गुरुवार, 1 मई 2008

वैसे आप एक वर्ष में पिस्ते की कितनी गिरीयां खा लेते हैं ?....(मैडीकल व्यंग्य)

इस से पहले कि आप मेरा यह बेहूदा सा प्रश्न पढ़ कर आक्वर्ड महसूस करें और यह सोच कर मुझ से खफ़ा होने लगें कि क्या अब और कुछ लिखने को बचा नहीं जो......, इस प्रशन का जवाब सब से पहले मैं ही अपने आप से पूछता हूं। तो,सुनिये, मैं भी पूरे वर्ष में पिस्ते की आठ-दस गिरीयां खा ही लेता हूं। मेरा यह कोटा तो लगभग फिक्स ही है......दो-तीन गिरीयां मैं जब अपने ससुराल जाता हूं तब खाता हूं, दो-तीन फिर मुझे अपने दीदी के यहां जाकर भी खानी होती हैं......और वैसे मैं कोई इतना ज़्यादा सोशल-प्राणी हूं नहीं, ज्यादा कहीं आता जाता नहीं.....अब जैसा भी हूं, आप के सामने हूं.....अब अपने द्वारा खाई गई पिस्ते की गीरियों का स्कोर बढ़ाने के लिये तो इधर-उधर जाने से रहा.............लेकिन मेरे तक आप के मन का प्रश्न पहुंच गया है कि यार, तू अब हमें बातों में मत उलझा, पहले तो अपनी आठ-दस गिरीयों का ब्रेक-अप पूरा कर.....सो, चार गिरियां तो मैं गिना ही चुका हूं.....बाकी की खाता हूं दिवाली के दिनों में.....जब कोई भूला-भटका हमारा चाहने वाला ड्राई-फ्रूट के एक डिब्बे का उपहार हमें दे जाता है..( खुद खरीद कर तो पिछले बीस वर्षों में घर में एक-दो बार ही 50-100 ग्राम पिस्ते के दर्शन हुये हैं !!).. तो फिर उस के बाद आने वाले दस-बीस शुभचिंतकों के बीच जब उन पिस्ते की गीरियों को घुमा कर अपनी साधन-संपन्नता का परिचय दिया जाता है तो ऐसे ही कईं बार फार्मैलिटी के राउंड पे राउंड चल पड़ते हैं जब मेजबान कहता है कि लीजिये ना, यह पिस्ता तो आप छू तक नहीं रहे हैं, प्लीज़ लीजिये....फिर मेहमान का वही रटा-रटाया हुया फिकरा कसना.......डाक्टर साहब, सुबह से कईं जगह हो कर आये हैं.....पेट में बिल्कुल भी जगह नहीं है.....लेकिन इतने पर भी मेजबान कैसे हार मान ले....वह फिर अपने संभ्रांत होने का परिचय देने पर मजबूर हो जाता है......क्या यार, इंद्रजीत, इस ड्राई-फ्रूट के लिये भी क्या पेट में खाली जगह होने की ज़रूरत होनी जरूरी है ??( वो बात अलग है कि जब गेस्ट के जाने के बाद बच्चे इन गिरियों की मुट्ठियां भरना चाहते हैं तो हम ही उन के कान खींच कर कहते हैं कि अब तू इन से पेट भरेगा क्या ?.. दाल-रोटी को तो तू मुंह लगा के राज़ी नहीं).........बस, उस एक अदद ट्रे की घुमाई-फिराई के चक्कर में समझ लो पांच-छः गिरीयां विवशता वश खानी ही पड़ जाती हैं.....हां तो हो गया ना मेरा एक साल का कोटा पूरा....आठ-दस गिरीयां, अब तो आप खुश हैं ना .....वैसे एक बात यहां बता दूं कि यह गिरीयां खाने की विवशता मैंने इसलिये लिखी है क्योंकि मेरा इन को इतनी कम मात्रा में खाने से कुछ नहीं होता....वो कहते हैं ना ज़ुबान भी गीली नहीं होती........मैं तो अकसर व्यंग्य का एक बाण यह छोड़ा करता हूं कि अव्वल तो किसी को ट्रे इत्यादि में ड्राई-फ्रूट परोसो नहीं.......अगर किसी भी कारणवश हमारी ड्राई-फ्रूट परोसने की औकात हो ही जाये तो सीधे-सादे ठेठ पेंडू तरीके से कटोरियों में डाल कर सभी मेहमानों के हाथों में एक एक कटोरी थमा दो..................यकीन मानिये, मेरे ये कटोरी में ड्राई-फ्रूट परोसने वाले विचार मेरे बेटों को बहुत भाते हैं.....उन की तो बांछे ही खिल जाती हैं....लेकिन आप अभी तक यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर मैं कहना क्या चाह रहा हूं !!

कहने को ऐसा कुछ खास भी नहीं है....बस परसों की इंगलिश की अखबार में एक हैल्थ-कैप्सूल देख लिया जिसे नीचे दे रहा हूं.....

चलिये ज़रा अपनी टूटी-फूटी हिंदी में इस का अनुवाद भी किये देता हूं.....
प्रश्न है.....क्या गिरीयां खाने से मेरा ब्लड-प्रैशर कम हो जायेगा ?
जवाब दिया गया है कि हां, पिस्टाशिओ की गिरीयां तुम्हारा यह काम कर सकती हैं। मुट्ठी भर पिस्टाशिओ की गिरीयां...डेढ़ आउंस के लगभग रोज़ाना खाने से ब्लड-प्रैशर कम हो जाता है।
मुझे गिरी और अंग्रेज़ी नाम से शक सा तो हो गया कि शायद यह कैप्सूल रोज़ाना चालीस-पचास ग्राम पिस्ता खाने की ही बात कर रहा है मैंने यह हैल्थ-कैप्सूल पढ़ कर अपने पास बैठी श्रीमति जी से पिस्टाशिओ का मतलब पूछा। लेकिन जब उन्होंने भी इस संबंध में अपनी अनभिज्ञता ज़ाहिर की तो फिर मुझे फ़ादर कामिल बुल्के के अंगरेजी हिन्दी कोश का रूख करना ही पड़ा....जहां से यह तो तय हो गया कि यह पिस्टाशिओ नाम की बला कोई और नहीं अपना पिस्ता ही है। अब पता नहीं अंग्रेज़ों ने इस का इतना नटखट नाम क्यों रख दिया .....या मुझे तो यह भी नहीं पता कि यह हिंदी नाम ही पिस्टाशिओ से ही चुराया गया है....वैसे संभावना मुझे इस की ज़्यादा लग रही है।
लेकिन क्या आप को लगता है कि मैं अपने किसी मरीज़ को यह सलाह देने की ज़ुर्रत कर सकता हूं कि देख, तूने अगर अपना ब्लड-प्रेशर कम करना है ना तो मेरी बात मान जो कि मैंने कल इंगलिश के अखबार में पढ़ी है ....तू रोज़ाना 40-50 ग्राम पिस्ते की गिरीयां तो खा ही डाला कर...........पता है मैं इस तरह की सलाह क्यों नहीं देना चाहता, क्योंकि मुझे पता है कि मुझे शायद उसी समय उस के मुंह से नहीं भी तो उस की आंखों से यह जवाब मिल ही जायेगा......डाक्टर, तू तो अच्छा भला होता था, तू तो पहले हमेशा से सस्ते, सुंदर और टिकाऊ देसी पौष्टिक खाने की बातें किया करता था, आज तेरे को क्या हो गया है...तू ठीक तो है ना......तेरे को पता है कि पिस्ता 500 रूपये किलो और ऐसे में घर में एक-दो सदस्य 50 रूपये का पिस्ता ही खाने लगेंगे तो बच्चों को या तो पास के किसी गुरूद्वारे में भेजना पड़ेगा या कटोरा पकड़वा कर नुक्कड़ पर खड़ा करना होगा......डाक्टर तू जानता है जिस मुट्ठीभर पिस्ते की गीरियों की तू बात कर रहा है.......यह तो हमारे लिये किसी सपने के बराबर है.......डाक्टर, तू तो जानता है कि अब तो हालत इतनी पतली है कि आसमान को छूते इस साली दाल के दामों की वजह से यह दाल भी इस मुट्ठी से सरकी जा रही है, तू इन में पिस्ता भरने की बातें कर रहा है...मेरे किसी भी बच्चे ने पिस्ते की शकल तक नहीं देखी...यहां तक कि सब्जी लेने बाज़ार में जाना ही बंद कर दिया है...न रेट पूछो..ना ही किसी तरह की हीन भावना का अहसास ही हो.....बच्चे भी बेचारे सारा दिन वह बढ़िया बढिया सीरियल देख कर खुश हो लेते हैं जिस में औरतें ने कईं किलो मेक-अप चढ़ाया होता है, जिस में सब लोग बढिया बढिया कपड़े पहन कर, पूरी तरह सज कर , बढ़िया खाना खाने के लिये कुछ इस तरह से बैठते हैं मानो कि हमें चिढ़ा रहे हों .....ऐसे हालातों में सच बता, डाक्टर तू हम लोगों से इस तरह का बेहूदा मज़ाक भला करता ही क्यों है ?....अब इस का है कोई मेरे जैसे डाक्टर के पास जवाब ??....नहीं, यार, अब क्या जवाब दूं मैं इस का।

ऐसे मौकों पर मुझे मेरे पेरेन्ट्स द्वारा बचपन में कईं बार सुनाया गया वह बाहर के किसी अमीर देश का किस्सा ज़रूर याद आ जाता है ....उस देश में जब अकाल पड़ा तो वहां की जनता बेहाल होकर जब रानी साहिबा के पास पहुंची तो उस ने उन्हें यह लापरवाही से कह डाला.......कोई बात नहीं अनाज नहीं है तो क्या, आप बिस्कुट खा लिया करें। कहते हैं कि उस की इस स्टेटमैंट्स से उस देश में एक गदर हो गया। सोच रहा हूं कि ये काजू-पिस्ते-चिल्गोज़े जैसी खाने वाली चीज़ों के इस्तेमाल के ज़्यादा मशवरे अपने मरीज़ों को ना ही देने में ही मेरी भलाई है.....और मेरे मरीज़ों की भी !!!