शनिवार, 24 अप्रैल 2010

कैंसर के केसों के ओव्हर-डॉयग्नोसिस का हुआ खुलासा

अकसर हम लोग यही जानते हैं कि कैंसर को जितनी शुरूआती अवस्था में पकड़ लिया जाए उतना ही बेहतर है। लेकिन मंजे हुये चिकित्सा वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि कैंसर का ओव्हर-डॉयग्नोसिस हो रहा है---इस का मतलब यह है कि ऐसे केसों की भी कैंसर से लेबलिंग कर दी जाती है जो आगे चल कर न तो मरीज़ में कोई तकलीफ़ ही पैदा करते और न ही मरीज़ की इन से मौत ही होती।

वैज्ञानिकों ने घोषणा की है कि मैमोग्रॉफी से पच्चीस प्रतिशत तक स्तन-कैंसर के केसों का, और प्रोस्टेट स्पैसीफिक ऐंटीजन(protein specific antigen -- PSA test) द्वारा प्रोस्टेट कैंसर के साठ प्रतिशत केसों को ओव्हर-डॉयग्नोसिस हो रहा है। और छाती के एक्स-रे एवं थूक के परीक्षण से फेफड़ों के कैंसर का डायग्नोसिस करने के मामलों में भी लगभग पचास फीसदी ओव्हर-डायग्नोसिस हो ही जाता है।

चिकित्सा वैज्ञानिकों ने अन्य तरह के कैंसरों के बारे में भी यह पता लगाया है कि पिछले तीस वर्षों में उन कैंसरों के नये केसों में तो वृद्धि हुई है लेकिन उन कैंसरों से मरने वालों की संख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। इस का सीधा मतलब है कि कैंसर के मामलों में ओव्हर-ड़ॉयग्नोसिस हो रही है और ज़ाहिर सी बात है कि एक बार डायग्नोसिस हो गया ---फिर वह चाहे जैनुयिन हो या ओव्हर-डायग्नोसिस----तो फिर उस का उपचार तो शूरू हो जायेगा।
To address the problem, patients must be adequately informed of the nature and the magnitude of the trade-off involved with early cancer detection. Equally important, researchers need to work to develop better estimates of the magnitude of overdiagnosis and develop clinical strategies to help minimize it.
---Journal of National Cancer Institute
आवाज़ उठने लगी है कि हमें कैंसर के डायग्नोसिस एवं उपचार में मॉलीकुलर एवं इम्यूनोलॉजी (molecular & immunological techniques) लाकर और भी सुधार करने की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है।