शनिवार, 20 जून 2015

हमारी बीमार शिक्षा व्यवस्था....

मैं अकसर लोगों से ईमानदारी से यह शेयर करता हूं ..कि मैंने भी इंटर तक फिजिक्स, कैमिस्ट्री पढ़ी है ... लेकिन अगर आज के दौर में पढ़ाई जाने वाली फिजिक्स-कैमिस्ट्री का पेपर मेरे को दे दिया जाए तो मुझे या तो शून्य मिलेगा या फिर दो तीन नंबर मैं शायद कैमिस्ट्री में ले पाऊं...पूरी सच्चाई से यह बात कर रहा हूं...अकसर मैं बेटे के बोर्ड के पेपर देख कर सारी केलकुलेशन करने के बाद ही इस तरह का ब्यान दिया करता था.

जो है सो है, सच्चाई मानने में कभी हिचकिचाहट हुई नहीं, जब से लिखने लगा हूं उस के बाद तो बिल्कुल भी नहीं...

आज बाद दोपहर बेटे के स्कूल में एक फंक्शन था...उसे भी सम्मानित किया जाना था....उस ने बहुत अच्छा किया है बोर्ड एग्ज़ाम में...४ बजे का टाइम था.. आज सुबह से थोड़ा सा सिर और गर्दन में दर्द हो रहा था...टेबलेट भी ली, लेकिन कुछ खास फर्क पड़ा नहीं...मुझे वहां जाने की ज़रा भी इच्छा नहीं हो रही थी, मैंने बेटे को कहा कि मम्मी के साथ हो आए....लेिकन उस के चेहरे की तरफ़ देखा तो जाने का मन बनाया....फिर भी हिम्मत नहीं हुई...बेटे ने कहा, पापा, पर्ची डालते हैं......दोस्तो, यकीन मानिए हम ज़िंदगी के बहुत से फैसले पर्ची डाल कर करते हैं....यहां तक कि उसने इंजीनियरिंग करनी है या बॉयोलॉजी, यह निर्णय भी पर्ची डाल कर किया गया था।

पर्ची डाली, यैस या नो....पर्ची का फैसला था नो......लेकिन मैंने नो के बावजूद भी तुरंत कपड़े डाले और हम लोग रवाना हो गये।

वहां का वातावरण ऐसा था कि चंद मिनटों में ही मैं एकदम फिट हो गया...सिर दर्द गायब, गर्दन की ऐंठन भी पता ही नहीं चला कब ठीक हो गई।

मुझे वहां बैठे बैठे यही विचार आ रहा था कि हमारी शिक्षा व्यवस्था भी कितनी बीमार है.....ऊपर मैंने अपनी उदाहरण तो दर्ज कर ही दी है....अब इन बच्चों के जगह जगह एन्ट्रेंस एग्ज़ाम होंगे......सीबीएसई ने एक बार ले िलया न तो उस पर भरोसा कर लो, नहीं तो उस के बाद होने वाले किसी एक राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रवेश परीक्षा पर भरोसा कर लो.......उस के अनुसार सारे देश की संस्थाएं अपनी सीटें भर लें।

सभी छात्रों के लिए भी यह कितना आरामदायक होगा.......अब दर्जनों टेस्ट हैं, हर जगह इन की फीसें, तरह तरह की औपचारिकताएँ, फिर परीक्षाएं...फिर इंतज़ार, फिर काउंसलिंग......बच्चों के साथ साथ मां बाप की भी अच्छी खासी रेल बन जाती है।

इतने सारे टेस्ट देख कर यही लगने लगता है कि शायद इन को एक दूसरे के टेस्ट पर भरोसा ही नहीं है...इतना अविश्वास का वातावरण तो है ही .....वैसे हरेक ने अपनी दुकान भी तो चलानी है।

प्लस टू और कोचिंग ......ये तो जैसे एक दूसरे के पूरक बन गये हैं.....अगर आपने प्लस टू की बोर्ड की परीक्षा में ९९ प्रतिशत भी ले लिए अपने बलबूते पर.....लेिकन अगर आपने कोचिंग नहीं की.......तो आप लगभग यह मान ही लें कि आप किसी प्रवेश परीक्षा में अच्छा कर ही नहीं पाएंगे।

यह बड़ी बदकिस्मती है ......कोई ऐसा नियम बन जाए कि प्लस-टू की परीक्षा खत्म ही कर दो.......दसवीं के बाद कह दो बच्चों को कहीं से भी पढ़ो. .दो साल बाद तुम लोगों की परीक्षा होगी.....तब तक कोचिंग करो...जहां चाहो, पढ़ो....कुछ भी करो.....बस, पेपर आप लोगों का दो साल बाद होगा।

जितना मजाक आज की तारीख में प्लस-टू का बन रहा है, उतना तो कभी न था....लोग कोटा, दिल्ली, चंडीगढ़ जा कर कोचिंग करते हैं, छोटे शहरों में डम्मी एडमिशन ले लेते हैं.....ताकि प्लस टू के पेपर दे सकें, लेिकन कोचिंग अागे की प्रवेश परीक्षाओं के लिए होती है......मेरे घर के सामने एक छठी कक्षा का लड़का पड़ता है....एक दिन फिट्जी की वेन में बैठ रहा था....मुझे पता चला कि उसने छठी से ही फिट्जी की कोचिंग शुरू कर दी है...यह कोचिंग आठवीं और नवीं कक्षा से तो बहुत से लोग करने लगे हैं।

मुझे शिकायत है इस तरह के परीक्षा के पेटर्न से जो इस तरह की कोचिंग को बढ़ावा देते हैं....इस से आर्थिक तौर पर मेधावी छात्र-छात्राओं के भविष्य पर आंच आती है.....बहुत से लोग जो इस तरह की एक एक लाख की कोचिंग ज्वाइन नहीं कर पाते...वे इंटेलीजेंट होते हुए भी इन परीक्षाओं में पीछे रह जाते हैं......

कौन बदलेगा यार इस व्यवस्था को.....किसी को को आवाज़ उठानी होगी.......इस सड़न को कौन खत्म करेगा.....मुझे भी नहीं पता......लेकिन इस का इलाज होना ज़रूरी है!

 बस हम यही मान कर चुप हो जाते हैं कि हमारी शिक्षा व्यवस्था बीमार है, बहुत बीमार है...अब इस का इलाज हो जाना चाहिए......इंत्हा हो चुकी है। मुझे तो यही लगने लगा है कि अगर कुछ सजग बच्चे, उन के मां-बाप कोर्ट कचहरी नहीं जाएं तो घोर अनर्थ हो जाए.....पेपरों में जालसाजी, धोखाधड़ी करने वाले दिनप्रतिदिन तेज़-तर्रार होते जा रहे हैं...कंपीटिशन बढ़ता जा रहा है...

पता नहीं कुछ और होगा कि नहीं होगा, मैं अपने दिल की बातें िलख कर हल्का महसूस कर रहा हूं...जो भी हो, दोस्तो, बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी!



देश को कहीं ले ही न डूबे चाटुकारिता

एक रोज़ मैं लखनऊ से कानपुर ऐसे ही घूमने के मूड में जा रहा था...एसी डिब्बे में मैं ऊपर वाली सीट पर था और नीचे दो दोस्त आपस में जो बातें कर रहे थे, मेरे कानों में पड़ रही थीं...मुझे नींद आते आते रह गई..मुझे लगा आज उन बातों को अपने पाठकों से शेयर करूं।

एक दोस्त ने कहा कि यार, यह चाटुकारिता बड़ी कुत्ती चीज़ है...शायद ये दोनों एक ही दफ्तर में काम करते होंगे..उन की बातों से ऐसा ही लग रहा था।

मैं अब लेख में आगे यह नहीं लिखूंगा िक उस ने कहा, दूसरे ने यह जवाब दिया...बस, उन की बातें लिखूंगा।

उन का एक साथी मिस्टर ....एक नंबर का चापलूस है....जो उस का काम है, वह बिल्कुल नहीं करता, बस सारा दिन बॉस की चापलूसी के चक्कर में उस के पास ही जा कर बैठा रहता है....वही नहीं, दो तीन और भी इसी तरह के बंदे हैं जो भी चाटुकारिता स्पेशलिस्ट हैं...बस, अपनी सीट का काम कुछ नहीं, पब्लिक जाए भाड़ में, एक सूत्री कार्यक्रम कि अपने बॉस को खुश रखो, उस की गलत-सही बात में हां में हां मिलाओ....न भी हंसी आए तो भी ऐसे नाटक करो कि उस की सेन्स ऑफ ह्यूमर से बढ़िया किसी की है ही नहीं, उस जैसा प्रशासक है ही नहीं।

कोफ्त होती है यार ऐसे लोगों से उन दोनों में से एक ने कहा.....तो दूसरे ने कहा कि तू करता रह कोफ्त, इसी चक्कर में लखनऊ और कानपुर के चक्कर काटता रहता है, हर दो साल बाद तेरा तबादला हो जाता है, सारी पब्लिक तेरे काम की इतनी प्रशंसा करती है, तेरी साफ-सुथरी इमेज है लेकिन बस तू बॉस की चापलूसी का गुर नहीं सीख पाया, इसलिए जो तीन चार चाटुकार साथी हैं वे कुछ भी उस कान के कच्चे बॉस को तेरे बारे में कहते रहते हैं कि यह तो अकडू है, वैसा है ....और बस।

वैसे दोनों हैरान थे कि किस तरह से लोग अपने काम धंधे को छोड़ कर बस चाटुकारिता के बलबूते अपना टाइम पास करते रहते हैं। एक कहने लगा कि यार हमें तो किसी की इस तरह की चापलूसी करने के नाम ही से उल्टी सी होने लगती है। अपने काम में ध्यान दो, और क्या....

फिर बात करने लगे कि जो जो लोग बॉस के परले दर्जे के चाटुकार हैं, उन के तबादले ही नहीं होते......वहीं टिके रहते हैं, और मजे की बात एक कह रहा था कि किस तरह से फलां फलां का तबादला बार बार इसलिए रूक जाता है कि बॉस सरेआम कहता फिरता है कि उस के दफ्तर को तो उस ने ही संभाल रखा है...और जो बॉस के ऊपर वाले हैं, वे यही सोच कर डर जाते हैं कि अगर यह बंदा इतना ही सक्षम है, कहीं इसे यहां से हिलाने-डुलाने में काठमांडू जैसे झटके यहां भी न आ जाएं।

मुझे उन दोस्तों की बातों में यथार्थवाद की महक आ रही थी....पाठको, आप लोग अपने अपने दफ्तर में भी झांक कर देखिए...कहीं आप को भी इस तरह के चापलूस दिखते हैं..

यह देश की बहुत बड़ी समस्या है। हमें बिना वजह वा-वाही लूटने की एक लत सी लग गई है.....जो चाटुकार का आर्ट सीख गया, वे अपनी बॉडी-लेंग्वेज से इस तरह के झुड्डू दिखने लगते हैं ...और इसी झुड्डूपने की आड़ में वे ऐसे ऐसे काम अंजाम दे जाते हैं....लेिकन उन की तरफ़ उंगली कौन उठाए, अगर कभी उंगली उठती भी है तो उसे मरोड़ कर नीचे कर दिया जाता है.

मैं लेटा लेटा यही सोच रहा था कि नौकरी में चापलूसी करना एक फुलटाइम काम है......ऐसा हो ही नहीं सकता कि आप थोड़ी थोड़ी चापलूसी कर लें, थोड़ा थोड़ा काम कर लें, यही बात तो उस में से एक कह रहा था कि हमें तो अपना काम करते हुए पानी पीने तक की फुर्सत नहीं मिलती, और इन चाटुकारों के चाय के दो-तीन दौर लंच से पहले हो जाते हैं..

बस करता हूं ...मैं किन चक्करों में पड़ गया.... उन दोस्तों की बातें ही शेयर करने लग गया......जब वे लोग कानपुर पर उतरे तो मैं अपने आप से यही पूछ रहा था कि उन की बातों में दम था कुछ!...मुझे लगा जैसे वे किसी भी दफ्तर की बातें शेयर कर रहे थे..वैसे नीचे से लेकर ऊपर तक यही समस्या है....मंत्रियों की बात कर लें तो जिस के समीकरण ऊपर तक ठीक हैं, वह कुछ भी कर लें, आंच न आएगी..

वैसे पंजाबी भाषा में हम लोग चापलूसी और चाटुकारिता को बड़ी आसानी से ब्यां कर लेते हैं....  XXXगुलामी...सॉरी मैं पूरी नहीं लिख सकता...यह अब एक सामान्य शब्द बन गया है जब हम कहते हैं कि यार, उस को छोड़. वह तो XXXगुलामी के चक्कर में पड़ा रहता है। एक दूसरा छोटा शब्द भी है...TC..... यह भी पंजाबी का ही है.

सीरियस सी बात लिखने के बाद मुझे हिंदी फिल्म के गीत की डोज़ चाहिए ही होती है.....सोचता हूं आज क्या सुनूं....चलिए, वही गीत चलाते हैं जिसने खूब धूम मचाई है...हम लोगों ने भी कुछ दिन पहले थियेटर में इसे देखा...ठीक ठीक लगी .....लेकिन इस गीत का संगीत बढ़िया है...मुझे अच्छा लगता है...