टाइ्स ऑफ इंडिया ३ नवंबर २०१५ |
यह तो हम सब जानते हैं कि एसिडिटी कम करने के लिए इन दवाईयों का किस तरह से अंधाधुंध उपयोग हो रहा है...डाक्टर लोग इसे कुछ दिनों के लिए किसे लेने का मशविरा देते हैं, वह बिल्कुल दुरूस्त है..लेिकन यह जो अपने आप ही बाज़ार से खरीद कर किसी डाक्टर से परामर्श किए बिना ही इन दवाईयों को रोज़ाना उठते ही गटक लेना, यह बिल्कुल ठीक नहीं है, इससे गुर्दे खराब होने का खतरा मंडराता रहता है।
आज जब मैंने यह खबर देखी तो मुझे लगभग आठ साल पहले अपने इसी ब्लॉग पर लिखा एक लेख याद आ गया....अभी ढूंढा तो मिल गया...उस का लिंक यह लगाए दे रहा हूं...देखिएगा.. छाती में जलन- आधुनिकता की अंधी दौड़ की देन।
मेरे पास भी बहुत से मरीज़ आते हैं...मैं बहुत बार जो बात उन से कहता हूं ...विशेषकर जो लोग मुझे कहते हैं कि इस तरह की गोली तो सुबह उठते ही खानी पड़ती है, उस के बिना तो गुज़ारा ही नहीं है...मैं उन से भी वही बात कहता है कि यह जो एसिडिटी वाली आग है, ठीक है एक बार आपने इस तरह की गोली, कैप्सूल खा कर बुझा ली...लेकिन क्या ध्यान नहीं किया कि इस आग के लगने के कारणों के बारे में भी विचार किया जाए।
इस बात से कोई इंकार नहीं है कि इस तरह की शारीरिक तकलीफ़ों में हमारी जीवनशैली की ही अहम् भूमिका रहती है। फिर भी अगर प्रशिक्षित चिकित्सक इस तरह की दवाईयां किसी को लिख रहे हैं, तो आप इन का सेवन कर सकते हैं बेझिझक कुछ दिन डाक्टरी सलाह के मुताबिक।
मैंने भी अभी अपने उस पुराने लेख को पढ़ा तो मुझे भी हैरानगी हुई कि मैंने उस में दर्ज किया हुआ है कि २००७ तक मैंने शायद इस तकलीफ़ के लिए २० गोली-कैप्सूल खाए होंगे.....लेिकन ऐसा क्यों कि अब मुझे एक-दो महीने में इस तरह के एक कैप्सूल की ज़रूरत पड़ ही जाती है...और मुझे पता रहता है कि आज इस की ज़रूरत पड़ेगी.......वैसे तो हम लोग बाहर होटल-रेस्टरां में खाते ही नहीं, लेिकन फिर भी कभी किसी शादी-ब्याह में या किसी अन्य सार्वजनिक जगह पर अगर थोड़ी भी ओव्हर-ईटिंग हो जाए तो पता रहता है ....कि अब तो रात में २ बजे अजीब अजीब सी खट्टी डकारें आएंगी ...और बड़ी परेशानी होगी.....लेकिन अगर मैं उसी समय फ्रिज में रखा ठंडा दूध दो-चार घूंट ले लूं तो बड़ी राहत महसूस हो जाती है ..लेकिन कईं बार अगला सारा दिन ...खराब हो जाता है...एसिडिटी की तकलीफ़ से मेरे सिर में भयंकर दर्द होने लगता है....तबीयत बहुत खराब हो जाती है ...इसलिए मैं बदपरहेज़ी से बहुत डरता हूं....कईं बार तो इस एसिडिटी की वजह से उल्टियां होने लगती हैं।
बहरहाल, बात चल रही थी कि इस तरह की दवाईयों के अंधाधुंध उपयोग से गुर्दे खराब हो जाते हैं....और यह रिसर्च भी की है ...अमेरिकी गुर्दा रोग विशेषज्ञों ने....लेकिन अगर आप खबर पूरी देखेंगे तो कहीं यह भी लिखा पाएंगे कि ठीक है, अध्ययन कहीं पर हुआ है ...लेकिन इस का पुख्ता सबूत नहीं मिला है।
सेहत हमारी है....हम क्यों न विशेषज्ञ चिकित्सकों की बात को अभी से गांठ बांध लें.....प्रूफ जुटाने के चक्कर में पता नहीं कितने साल और लग जाएंगे.....फिर भी प्रूफ मिलेगा या नहीं मिलेगा.....इस तरह की दवाईयों को बनाने वाली कंपनियां बड़ी अमीर कंपनियां हैं......अगर पक्का प्रूफ़ मिल गया तो भी ...फिर शुरू होगा मुकदमेबाज़ी का लंबा दौर.....आरोप-प्रत्यारोप....जो भी फैसला आएगा ...कंपनियों के हक में आया तो ठीक, वरना फिर अपील पर अपील....सीधी सीधी बात यह कि जब तक........(आप समझते ही हैं सब, हर बात लिखना कहां ज़रूरी होता है) ....लिखने से ध्यान आया कि आपने नोटिस किया कि अखबार में भी इन दवाईयों में से किसी का भी ट्रेड-नेम नहीं लिखा गया, इसीलिए मैंने भी नहीं लिखा......आप जानते ही हैं जो दवाईयां हम इस काम के लिए इस्तेमाल किया करते हैं....सुबह, शाम....खाली पेट भी!
मेरा मशविरा तो यही है कि दोस्तो, अगर आप भी अपने आप अपनी इच्छा से कैमिस्ट से इस तरह की दवाईयां मंगवा कर रोज़ खाने लगते हैं तो इस पर फुल-स्टाप लगा दीजिए....गुर्दों की सेहत बेशकीमती है....लाखों-करोड़ों रूपयों की ढेरी लगाने से भी इन की सेहत वापिस नहीं आ सकती। और वैसे भी अमेरिकी विशेषज्ञों ने जब इस तरह के परिणाम निकाल ही दिए हैं...तो उस के आगे हमने क्या करना है प्रूफ़-व्रूफ़ को.....इस तरह की बात मान लेने में ही समझदारी है। दोस्तो, अपना खान-पान बदल दीजिए....जीवनशैली ठीक कीजिए.....और यह गीत सुन लीजिए....अफसोस, दाल अाम देशवासी की थाली से गायब होती जा रही है लेकिन धर्मेन्द्र भाजी तो अपनी बात पर अभी भी कायम हैं..