बुधवार, 30 अप्रैल 2008

बिल्कुल चंदू के चाचा और चाची वाली बात की ही तरह ....(व्यंग्य-बाण)

वैसे तो मैं टीवी देखता नहीं.....अपना प्रोफैशन ही ऐसा है कि फुर्सत ही कहां है...बचा खुचा टाइम लिखने-पढ़ने में निकल जाता है। लेकिन कल ही कुछ घंटे पहले ही उस सैटेलाइट टीवी का रिचार्ज कूपन डलवाया था। दोपहर में खाना खाते वकत उस सैटेलाइट टीवी सर्विस के सर्विस सैंटर से फोन भी आ गया था कि आप का कार्ड खत्म हुया हुया है, क्या दिक्कत है......मैंने तो फोन पर बात ही ना करना चाहता था लेकिन जब श्रीमति जी ने फोन मेरी तरफ़ सरका ही दिया तो मैंने सोचा कि इस दाल-चावल का क्या है....कहां भाग जायेगी.....पहले ज़रा इस की क्लास ले लूं। मैंने उस से कहा कि भई, तुम्हारी यह क्या सर्विस है कि बाज़ार में चार-पांच चक्कर लगाने के बाद भी रिचार्ज कूपन नहीं मिल पाता। और भी जो मैंने अपनी तरफ़ से उसे फीड-बैक देनी थी, दे दी। संक्षेप में कहूं तो कल शाम को आखिर घूम घूम कर रिचार्ज-कूपन मिल ही गया और टीवी चलना शुरू हो गया।

वैसे दूसरे टीवी तो चल ही रहे थे .....हमारे यहां वैसे तो बिजली की सप्लाई अच्छी ही है...बहुत ही कम जाती है..कोई ब्रेक-डाउन ही हो तभी ......लेकिन केबल वाले के यहां जब भी बिजली गुल होती थी, केबल टीवी चलना बंद हो जाता था। इसी परेशानी से बचने के लिये एक टीवी पर सैटेलाइट टीवी वाली डिश की व्यवस्था पिछले साल की थी।
अच्छा तो मैं कह रहा था कि मुझे टीवी देखने से एक तरह की एलर्जी है.....लेकिन शायद नये नये रिचार्ज कूपन के चाव में मैंने अपने बेटे से रिमोट लिया और शायद चार-पांच महीने बाद टीवी देखने का मूड बना लिया था। रात के नौ-साढ़े नौ बज रहे थे। बेटे राघव ने भी बेहद आसानी से रिमोट मेरी तरफ थमा दिया....वह बड़ा सेंसेटिव किस्म का है......शायद वह भी सोच रहा होगा कि बापू वैसे तो टीवी देखता नहीं, पता नहीं आज तो इस की कुछ ज़्यादा ही इच्छा लगती है।

मैं बस ऐसे ही चैनल-सर्फिंग करने लगा.....लेकिन मेरी किस्मत ही खराब थी....इतने लंबे समय बाद टीवी देखने के लिये बैठा और एक अच्छे-खासे हिंदी न्यूज़-चैनल पर अटक गया.....वहां पर जो दिखाया जा रहा था, बताया जा रहा था.......रोचक लगा.....एक उभरते नेता के बारे में बताया जा रहा था कि कैसे उस ने एक छोटी सी चाय की दुकान में जाकर कर चाय की चुस्कीयां लीं....किस तरह वह गांव वालों से घुल-मिल गया....किस तरह से उस ने एक गांव-वाले के कंधे पर हाथ रखा, किस तरह से वह भी गांव वालों के साथ धरने पर बैठ गया, किस तरह से उस ने अपने सुरक्षा घेरे की परवाह ना की....किस तरह से जाते जाते वह उस चाय की दुकान वाले के बच्चे की कापी में धन्यवाद के 12 शब्द हिंदी में लिख कर लौट गया। और, फिर जिस तरह से ये चैनलों वाले विश्लेषण करते हैं....उन हिंदी में लिखे 12 शब्दों का विश्लेषण होने लगा....पहले तो स्पैलिंग चैक किये इन चैनल वालों ने, फिर इन 12 शब्दों वाले धन्यवाद-नोट पर पूरा विश्लेषण हुया कि उस नोट के एक एक शब्द के पीछे क्या उद्देश्य हो सकता है। शायद इतना सब कुछ दो-तीन मिनटों तक चलता तो मैं पचा लेता......क्या करें, अब आदत सी ही हो गई है। लेकिन यह क्या यह कार्यक्रम तो भई लगभग आधे-पौन घंटे से चला ही जा रहा था.......बार-बार वही रिकार्डिंग देख कर मेरा तो सिर भारी हो गया.....मुझे तो मलाल इसी बात हो रहा था कि वहां तो हिंदी के 12 शब्दों की इतनी पूछ है और यहां हम ब्लागिये हैं जिन्हें एक-एक लाख शब्द हिंदी में लिखने पर भी कोई नहीं पूछता......किसी और से क्या गिला-शिकवा....हमारे अपने ही टिपियाने से भी कन्नी कतराते हैं।

ओ..हो....हो गया ना यह सब कुछ .....लेकिन यह क्या... यह तो कोई तगड़ी पब्लिक-रिलेशन एक्सर-साइज़ चलती लग रही थी....किसी झोंपड़े में जाने से पहले उस युवा-नेता को बूट खोलते हुये भी बार-बार दिखाया जा रहा था....( जैसा कि मैं और आप ही क्या, हमारे देश का जन-मानस करता है!) ..और साथ में किसी निर्धन के बच्चे को कंधे पर उठाये हुये भी बार बार दिखाया जा रहा था......और बैकग्राउंड में चैनल वालों ने वह गीत भी तो चला रखा था......धरती सुनहरी अंबर नीला.....हर मौसम रंगीला.......ऐसा देश है मेरा...........( वीर-ज़ारा फिल्म से )। मैं सब कुछ ठीक से समझ रहा था लेकिन अब मेरी तबीयत जवाब दे रही थी और जैसे ही उस चुस्त-सी एंकर ने कहा कि बाकी देखते हैं ...थोड़े से ब्रेक के बाद.......बस उस का इतना कहना था कि मैंने भी रिमोट पर स्टॉप बटन दबा कर टीवी किया बंद और खाट पकड़ पर मच्छरों से जूझने की तरकीब लड़ाने में मसरूफ हो गया।

लेकिन मुझे तब ध्यान आया कि जब इस नेता ने कुछ दिन ही पहले किसी आदिवासी महिला के झोंपड़े में जाकर दाल-रोटी-चटनी खाई थी तो भी चैनल वालों को अपनी टीआरपी बढ़ाने का बढ़िया मसाला मिल गया था। लेकिन यह उस दिन की चटनी वाली बात और आज की ये क्लिपिंग्ज़ जो पता नहीं मैं कितनी बार ही आधे-पौन घंटे में देख चुका था.......ये सब देख कर रह रह मुझे अपनी पांचवी कक्षा के वे दिन याद आने लगे जब हम दोस्त आपस में वह वाली गेम खेला करते थे जिस में हमें ये टंग-ट्विस्टर तेज़ी तेज़ी से बिल्कुल रूके बिना बोलने होते थे.......चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को चांद की चांदनी में चांदी के चम्मच से चटनी चटाई.............मुझे भी कल वह हिंदी न्यूज़-चैनल बार बार वह क्लिपिंग दिखाता हुया ऐसा ही लग रहा था जैसे कि कोई यही कहे जा रहा है....चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को..........। खैर, जो भी हो, कल का यह प्रोग्राम देख कर मेरे मन में उस चैनल के बारे में एक पक्का इंप्रेशन बन गया है........नो, नो, वह मैं आप से शेयर नहीं करना चाहूंगा। क मच्छरों से मुकाबला करते करते कब नींद हावी हो गई पता ही नहीं चला।