बुधवार, 7 अगस्त 2013

सत्तर की उम्र में रोज़ाना सत्तर किलोमीटर साईक्लिंग

हां तो बात करते हैं आज सुबह की एक फेसबुक पोस्ट की ...हमारे एक मित्र ने एक बहुत ही सुंदर बात शेयर की थी कि गरीब तो पैदल चलते हैं रोज़ी रोटी कमाने के लिए लेकिन अमीर पैदल चलते हैं अपनी रोटी पचाने के लिए........बहुत ही सुंदर पोस्ट थी, साथ में एक मेरे जैसे तोंदू की फोटू भी लगी हुई थी, हां, हां, मैं भी नहाने के बाद बिल्कुल ऐसा ही दिखता हूं, कब मीठे पर कंट्रोल करूंगा और कब नियमित टहला करूंगा, देखते हैं।

हां तो यह पोस्ट मैंने देखी थी सुबह ...और सुबह जब मैं अपने हास्पीटल गया तो कुछ समय बाद मेरे पास एक व्यक्ति आया --बाद में उस से बातचीत करने पर पता चला कि वह ७० वर्ष के युवा हैं, जी हां, वे युवा ही थे, जिस तरह से उन का उत्साह, उन का ढील-ढौल था, उस से उम्र कम ही लग रही थी।

वे मेरे पास एक दांत उखड़वाने आए थे, आप भी सोच रहे होंगे कि ठीक है ७० की उम्र में तुम्हारे पास एक बंदा दांत उखड़वाने आ गया तो इस में कौन सी बड़ी बात है, बात बड़ी है दोस्तो, सच में बड़ी बात है।

वे बुज़ुर्ग दुविधा में थे कि आज दांत उखड़वाऊं या आज केवल दवाई लेकर ही चला जाऊं ...मैंने कहा जैसा आप चाहें, लेकिन जब उन्होंने कहा कि मैं दूर से आता हूं तो मैंने पूछ लिया कि कहां से ...उन्होंने रायबरेली राजमार्ग पर किसी गांव का नाम लिया ... कहने लगा यहां से ३४-३५ किलोमीटर है।

मैंने ऐसे ही अनायास ही पूछ लिया कि बस में आए होंगे, लेकिन उन का जवाब सुन कर मैं दंग रह गया ---नहीं, नहीं, बस में कहां, हम तो साईकिल पर ही आते जाते हैं। मुझे जैसे अपने कानों पर यकीन सा नहीं हुआ ... मैंने फिर पूछा कि आप साईकिल पर आए हैं, तो फिर उन्होंने उसी गर्मजोशी से कहा कि हां, साईकिल पर आया हूं .. और जाऊंगा भी साईकिल पर ही।
उस ७० वर्ष के युवा की ज़िदादिली देख कर यही लग रहा था कि इसे कहां होगा हाई ब्लड-प्रैशर-वैशर ---लेकिन फिर भी चेक किया और पाया ११४ सिस्टोलिक और ७०डॉयस्टोलिक। जिस तरह की दिनचर्या उन की सुनी ...ऐसे में कोई हैरानी न हुई।

हां, मैंने तुरंत उन का दांत उखाड़ दिया....वह बहुत ज़रूरी था, पहले तो दो तीन दांत उन्होंने स्वयं ही उखाड़ िदये थे, लेकिन यह बहुत हिल रहा था और अटका हुआ था जिस की वजह से खाने पीने में बहुत दिक्कत हो रही थी। । दांत उखाड़ने से पहले उन्होंने बताया कि उन्हें ३४-३५ किलोमीटर साईकिल पर आने में २ घंटे लगते हैं ...कोई तकलीफ़ नहीं है, जब लखनऊ सर्विस करने आते थे तब भी साईकिल पर ही आते थे, इसलिए एक सहज आदत सी बन चुकी है।
हां, अब बीच में थोड़ा पानी वानी पीने के लिए थोड़ा रूक जाता हूं।

मैंने उन्हें जाते समय इतना ज़रूर कहा कि आपसे मिल कर मुझे बहुत अच्छा लगा, मुझे भी बहुत प्रेरणा मिली है..... सच भी है कि कई बार ऐसा लगता है कि कुछ मरीज़ हमारे पास कुछ सीखने नहीं बल्कि हमें कुछ याद दिलाने आते हैं। सोच रहा हूं एक दो दिन में मैं भी साईक्लिंग फिर से शुरू करूं ................कैसा लगा आपको इस ७० साल के युवा का ७० किलोमीटर रोज़ाना साईकिल चलाने का जज्बा.............वंडरफुल, है कि नहीं ?