मेरी टेबल पर पडा़ यह प्लांट मुझे मेरी खुदगर्ज़ी का अहसास दिलाता है ...हर रोज़ |
कुछ महीने पहले मैंने एक छोटे से गमले में रखा हुआ एक इंडोर प्लांट अपने चेंबर में रख लिया...यह सोच कर कि यहां रखने से चल जाएगा...कभी कभी पानी दे देता हूं ...मेरी साइड टेबल पर ही सजा हुआ है ...चल तो निकला है, कद भी लंबा हो गया है, पत्ते भी खूब नए आ गये हैं ..हरे भरे ...मुझे कुछ अरसा पहले यह ख्याल आ रहा था कि कुछ और इंडोर प्लांट यहां रखअ लूंगा ...लेकिन अब कुछ ऐसा हो गया है कि लगने लगा है कि इसे भी जल्दी ही दूसरे पेड़ों के झुरमुट में सजा दूं...
मुझे इसे देखना अच्छा तो लगता है लेकिन सिर्फ एक मेरे अच्छा लगने की बात ही नहीं है, और किसी ने कभी इस की तारीफ़ नहीं की कभी ...कुछ दिनों से मुझे इसे देख कर अजीब सा अपराध बोध लग रहा था ...सोच रहा था कि शायद इस की तारीफ़ नहीं हो रही, इस लिए कुछ नाराज़ होगा...लेकिन यह क्या उस के पास तो गिले-शिकवों का पिटारा था, मेरे से पूछने वाले सवालों का अंबार था उस के पास...
मुझे लगता है कि वह मुझ से ये सवाल पूछ रहा हो ....
अगर तुम्हें किसी आलीशान कमरे में ऐसे ही अकेले छोड़ दिया जाए तो तुम्हें कैसा लगेगा...उस कमरे में बोलने-बतियाने के लिए और कुछ न हो ...
तुम बताओ कि तुम्हें तो दिन भर मरीज़ों के दुखडे़ सुनने के पैसे मिलते हैं, मुझे क्या मिलता है, मुझे क्यों इस कैद में डाल कर रखे हो, आज़ाद करो मुझे भी ..
क्या तुम कभी ऐसे कमरे में रहे हो जहां धूप ही न आती हो ...यह जो तुम मेरे नए पत्ते देख कर इतराते हो न यह भी मुझे पता है मैं सिर्फ तुम्हारी खुशी के लिए कैसे जुटाता हूं ...ट्यूब की रोशनी जब तुम्हें ही इतनी डिप्रेसिंग लगती है तो मेरी सोचो....
तुम भी कितने मतलब परस्त हो बस अपनी खुशी के लिए मुझे अपनी मेज़ पर सजा लिया...मेरे बारे में कुछ सोचने की कोशिश ही नहीं की ...ऐसा ही है न...
जो किसी शै से मोहब्बत करते हैं वे लोग उसे खुले में सांस लेने के लिए आज़ाद रखना भी जानते हैं ...ऐसे नहीं कि बिना धूप के, बिना हवा के बस उसे बढ़ने के लिए पानी ठेल देते हैं कभी कभी ...जब तुम शाम को छुट्टी कर के चले जाते हैं तब तो कमरे में हवा भी नहीं होती, दम घुट जाता है ..और तो और जब तुम दो चार दिन की छुट्टी पर बाहर कहीं धक्के खाने निकल जाते हो, चुप चुपीते ....तो मुझे तो दो बूंद पानी के लिए भी तरस जाना पड़ता है ...कौन देगा मुझे पानी उन दिनों में कभी सोचने की तुम्हें फुर्सत ही कहां है...बड़े आए पेड़ों से प्यार करने वाले...तुम्हारा यह प्यार छलावा है, स्वार्थ है, और कुछ नहीं ...ढोंगी हो तुम एक नंबर के ...
ये जो मेरे पत्ते पीले पड़ के झड़ने लगे हैं अभी, तुम यह ज़ुबान समझते हो क्या, यह मेरी नाराज़गी ही तो है जिसे मैं इस तरह से ब्यां करता हूं, और क्या करूं...और मैं तुम्हारा क्या बिगाड़ सकता हूं....मेरी तो छोड़ो बीसियों साल पुराने दरख्त तुम्हारे आसपास कत्ल कर दिए जाते हैं, तुम उस वक्त मुंह पर पट्टी बांधे रखते हो, मेरी फ़िक्र कोई क्या करेगा...चलो, हटो, यहां से ....बडे़ आए मेरा हित चाहने वाले ...
तुम्हें हर रोज़ नई जगहें, नये लोग देखने भाते हैं, उन से बात करना बहुत भाता है और मुझे हाउस-अरेस्ट कर के रख छोड़ा है तुम ने ...हाउस अरेस्ट का मतलब समझते भी हो क्या, तुम क्या समझोगे, तुम एक आज़ाद परिंदे की मानिंद हो ...खुदा तुम्हें ऐसे ही बनाए रखे ...बस, मेरी भी अर्ज़ सुन लो एक ...मुझे खुली हवा में रख दो, मेरे दोस्तों के साथ ...
तुम लोगों की एक बात और है ...तुम लोग सड़क पर जाते हुए किसी बिल्ली-डॉगी के छोटे छोटे प्यारे बच्चे देखते हो तो उसे फौरन उठा कर अपने स्कूटर पर या कार में रख कर अपने बाप का माल समझ कर उठा लाते हो....कभी उन के भाई बहनों का सोचा, उन की मां का सोचा.....क्या यह अपहरण नहीं है, तुम लोगों के बच्चों को दस मिनट घर लौटने में देर हो जाए तो तुम दुनिया सिर पर उठा लेते हैं...कभी सोचा तुम ने इस के बारे में .....
बस, अब तुम मेरा और मुंह मत खुलवाओ....तुम तो बस मेरे ऊपर एक दया करो...मुझे जहां से लेकर आए थे वहीं पर वापिस छोड़ आओ....मुझे न चाहिए ये बढ़िया चेंबर ...मुझे तो मिट्टी में रख के आओ...मेरे साथियो के साथ ....तुम्हें यह भी तो पता है कि पेड़ भी तुम लोगों की तरह आपस में बातें करते हैं ...एक दूसरे को देख कर झूमते हैं...उत्सव मनाते हैं ...फिर मुझे क्यों कैद में डाल रखा है ....वैसे तो तुम रोना रोते रहते हो कि तुम्हें डाक्टरी वाक्टरी नहीं करनी थी, तुम्हें तो बॉटनी ही पढ़नी थी ...क्योंकि तुम्हें बॉटनी ही पसंद थी ...फिर तुम्हारे पल्ले मेरी ये बातें क्यों नहीं पड़ रहीं .....
दोस्तो, इस इंडोर प्लांट के इतने सारे सवालों का मेरे पास कोई जवाब नहीं है, मुझे एक अजीब से अपराध बोध का आभास हो रहा है, कुछ दिन पहले मैं दो चार बहुत अच्छे अच्छे सिरेमिक के पाट्स भी खरीद लाया कि इन में बढ़िया बढ़िया इंडोर प्लांटस लगवा कर चेंबर में रखूंगा .......लेकिन नहीं, ऐसा कुछ नहीं, इसे इस की जगह पर एक दो दिन में पहुंचा दूंगा...अपनी बालकनी से उठा कर लाया था ..वहीं रख दूंगा इसे ले जाकर ...
आज शाम एक इंडोर प्लांट की एगज़िबिशन में हो कर आया....एक से एक सुंदर इंडोर पौधे बिक रहे थे....लेकिन रह रह कर मेेरे एक इंडोर प्लांट ने जो सवाल मेरे आगे रख छोड़े थे, उन का ख्याल आता रहा .....और एक भी इंडोर प्लांट वहां से उठाने का मन ही न हुआ...बिल्कुल मन न हुआ....बस एक फोटो खिंचवा के बाहर आ गया ...
कभी पेड़ का साया पेड़ के काम न आया...सेवा में सभी की उसने जन्म बिताया.... चलती है लहरा के पवन के सांस सभी की चलती रहे ...लोगों ने त्याग दिए जीवन के प्रीत दिलों में पलती रहे .... |