रविवार, 20 दिसंबर 2020

कुछ चेहरों पर ख़ुदा जैसे ख़ुद सुकून खुदवा देता है ...

कुछ लोगों को देख कर बिल्कुल ऐसा ही लगता है ...उन के सुकून को देख कर हमें भी सुकून पर भरोसा होने लगता है...कुछ अरसा पहले हम लोग एक हिल-स्टेशन पर गये हुए थे ...थोड़ी थोड़ी बूंदाबादी हो रही थी ..हम लोग ऐसे ही टहल रहे थे ..एक छोटी सी दुकान पर रूक गए...थोड़ी भूख लगी हुई थी ...हम लोगों ने यह जानना चाहा कि उस छोटी सी दुकान में खाने में मिलेगा क्या… उस दुकान के काउंटर और शेल्फ़ों को देखते ही लगा कि ज़्यादा कुछ जानने का झंझट नहीं करना होगा ...क्योंकि उस अधेड़ उम्र की महिला दुकानदार के पास एक तो बीस-तीस ग्लूकोज़ बिस्कुट के पांच-पांच रूपये वाले पैकेट रखे हुए थे ...और शायद दो चार रोज़मर्रा की चीज़ें ….साबुन, आलू, प्याज़, नमक, हल्दी इत्यादि। 

हम लोगों ने बिस्कुट के कुछ पैकेट खरीदे ...दुकान छोटी थी ...बेशक….लेकिन उस महिला दुकानदार के चेहरे पर सुकून का क़ुदरती मेक-अप लाजवाब था … उस के चेहरे से सब्र-संतोख झलक रहा था ...ये वो लोग होते हैं जिन के पास खड़े होकर दो बातें करने की इच्छा सी होती है … हम लोग वहां से चल पड़े...उन बिस्कुटों को खाते यही टोटल लगा रहे थे कि इस महिला के पास कुल कितनी राशि का राशन भरा होगा ...यही दो-चार सौ रूपये ...लेकिन फिर भी वह गुमटी लगा कर अपना फ़र्ज़ निभा रही है ..अब ऐसी दुकान से वह कितनी बिक्री कर लेती होगी और उस में से कितना मुनाफ़ा कमा लेती होगी...पहले ही से मेरे पास ऐसे अनेकों सवाल हैं, उस में एक और जुड़ गया….जैसा कि मैंने ऊपर लिखा है ...दुकान छोटी सी बिल्कुल लेकिन उस महिला का संतोष पहाड़ जैसा था…यह मुझे कैसे पता चला? …. यह जानने के लिए किसी विशेष योग्यता की ज़रूरत नहीं होती ...हमारा चेहरा हमारे दिल का आइना होता है ...सब कुछ लिखा रहता है वहां पर ….बस चेहरों को पढ़ने की फ़ुर्सत, थोड़ा बहुत गु़ज़ारे लायक हुनर और थोड़ी बहुत परवाह भी होनी चाहिेए…. 

मैं अकसर जब भी इस तरह के छोटे छोटे दुकानदार को देखता हूं उन के शांत चेहरे देखता हूं तो यही सोचता हूं कि शुक्र है कि यह जो सब्र, संतोष, सुकून किसी मॉलं-वॉल में नहीं बिकता ...नहीं तो इस के बंटवारे में भी गड़बड़ हो जाती...सच में धन्ना-सेठ इस की भी होर्डिंग कर लेते ...आने वाली कईं पु्श्तों के लिए भी … कुछ दिन पहले की बात है मैं एक चौक पर एक बैंच पर बैठा हुआ सींग-दाना खा रहा था ...अचानक मेरी नज़र अधेड़ उम्र की महिला पर पड़ी जो सड़क पर कुछ भाजी-तरकारी बेच रही थीं ...उसे भी दूर ही से देख कर लग रहा था कि यह भी अपने आप से सुकून में है….कोई हड़बड़ाहट नहीं ...चेहरे पर कोई शिकन नहीं ...ग्राहक ने जब आना होगा तो आ ही जाएगा….शहरों के आसपास सटे हुए गांवों से जो लोग अपने खेतों से भाजी-तरकारी लाकर बेचते हैं उन का पता चल जाता है ….उन के पास सब्जी कम होती है लेकिन होती बिल्कुल ताज़ा है .. मैं दस-पंद्रह मिनट उधर बैठा रहा ...कुछ रिटायर्ड लोग भी वहां पर बैठ कर गप्पबाजी में मशगूल वक्त को धकेल रहे थे ...

मैंने देखा उस दौरान उस महिला के पास कोई सब्जी खरीदने तो नहीं आया...लेकिन साईकिल पर थर्मल लेकर एक चाय बेचने वाला उधर ज़रूर आया….उस ने एक कप चाय खरीदी और इत्मीनान से पी….और वहां से आते वक्त मैंने भी उस से मूली-मेथी खरीद ली...मुझे बड़े बड़े स्टोर या मॉल से भाजी-तरकारी या फल-फ्रूट खरीदना समझ में नहीं आता….छोटे दुकानदारों को हमारे प्रोत्साहन की ज़रूरत होती है, एक तरह से ये लोग हमारे ऊपर अहसान ही कर रहे होते हैं इतनी बढ़िया भाजी-तरकारी हम लोगों तक पहुंचा कर  ...उन के लिेए एक-एक ग्राहक मायने रखता है। 

दो दिन बाद सबब ऐसा बना कि एक बार फिर उस चौक की तरफ़ जाने का सबब हुआ...मेरी मिसिज़ मेरे साथ थीं...मैंने उन्हें भी उस उम्रदराज़ महिला के चेहरे का सुकून पढ़ने को कहा ...उन्होंने भी यही कहा ...बिल्कुल, इन को यह ईश्वरीय वरदान हासिल होती है...उस दिन के बाद भी जब भी उस तरफ़ से गुज़रता हूं तो उस ख़ातून को इत्मीनान से बैठे हुए पाता हूं ..जैसे उसने सब कुछ ईश्वर पर छोड़ रखा हो ...हम लोग अकसर उस से कुछ न कुछ खरीदते भी ज़रूर हैं....और हां, एक बात तो मैं बतानी भूल गया कि उस का कुल सामान १००-१५० से ज़्यादा का नहीं होता होगा…..लेकिन सुकून ऐसा जो पूंजीपतियों के पास भी शायद ही होता हो, उन के चेहरों पर तो हवाईयां ही उड़ती दिखती हैं… 

यह तो बस एक दो मिसालें थीं जो हाल ही में मेरी नज़रों में आ गईं…..लेकिन जब हम अपने इर्द-गिर्द नज़र दौडातें हैं तो ऐसे लोग हमें हर तरफ़ दिखते हैं ...जो सुकून के नज़रिए से हम लोगों से बहुत रईस दिखते हैं…..उन के पास टोटल मारने के लिए कुछ ज़्यादा होता नहीं और हम लोग सारा दिन केलकुलेशन के चक्कर में रातों की नींद गंवा बैठते हैं....जिसके पास जितनी दौलत है वह उतना ही अनस्कयोर और जिस के पास जितनी पावर है वह भी उतना ही खौफ़ज़दा….दोनों को दौलत और पावर खो जाने का डर ढंग से जीने ही नहीं देता .. कल हमारी श्रीमति जी ने एक बहुत सुंदर वाट्सएप संदेश हमें भेजा कि एक दिन ऐसा आता है जब यह बातें बिल्कुल मायने नहीं रखतीं कि कौन कितना शक्तिशाली हो, कितना स्मार्ट है या कितना दौलतमंद है…..बात एक ही मायने रखती है कि क्या आप ख़ुश हैं या नहीं।
 


मुझे यह मैसेज बहुत भाया.... सोचने वाली बात यह भी है कि हम लोग दिन में कितनी बार इतना खुल कर हंसते हैं ...आप भी ख़ुद से पूछिए...मैं भी अपने आप से पूछता हूं ...हां, एक बात की तरफ़ आप का भी ध्यान गया होगा कि ये जो छोटे-मझोले दुकानदार हैं ये सब आपस में भी सुकून ही से रहते हैं...एक साथ हंसते भी हैं, एक दूसरे के दुःख सुख में साथ खड़े भी होते हैं ...लेकिन जब हम लोग ज़रूरत से ज़्यादा पढ़-लिख जाते हैं, ज़रूरत से ज़्यादा पॉवर हथिया लेते हैं या दौलत जमा कर लेते हैं तो किसी दूसरे को हम कुछ भी नहीं समझते … लेकिन अपने आप से फिर भी ख़फ़ा ही रहते हैं…साथियों के साथ सभी काम एक औपचारिकता की तरह वाट्रसएप पर ही निपटा कर फ़ारिग हो लेते हैं…