शुक्रवार, 18 जनवरी 2008

तो आप को भी मीठी-मीठी टिप्पणीयां ही चाहिएं.!!

क्या दोस्तो, यह मैं क्या देख रहा हूं ....मैंने यह नोटिस किया है कि कुछ लोगों को केवल मीठी-मीठी टिप्पणीयां ही चाहिएं...नहीं, नहीं , ऐसा मुझे किसी ने कहा तो नहीं है, लेकिन जो मैं इन ब्लोग्स की टिप्पणीयों वाली विंडोस से आबजर्व कर पाया हूं कि मामला कुछ कुछ ऐसा ही है। या फिर हम साफगोई से डरते हैं, घबराते हैं, भागने की कोशिश करते हैं....यार,यह सब बलागर्स की विशेषताओं में कब से शामिल हो गया, समझ नहीं आ रहा।
दोस्तो, मैं बात कर रहा हूं comment moderation की...यार, अपने कीमती समय खोटी कर के किसी भी ब्लागर को जब बड़ी ही आत्मीयता से कोई कमैंट भेजते हैं तो सबमिट करने पर पाते हैं कि आप की टिप्पणी सेव कर ली गई है, ब्लागर की अपरूवल के बाद प्रकाशित हो जाएगी.....यार, ये ब्लागर्स हैं या भगवान......एक तरह से देखा जाए तो हमारी spontaneity के इलावा हम बलागर्स में है ही क्या, अब अगर उस पर भी कोई अपनी धौंस दिखायेगा तो इन बंदों को चाहे वह कोई भी हो क्या टिप्पणी -विप्पणी देकर अपना टाइम खोटी करना। दोस्त, मैंने तो आज से क्या अभी से फैसला कर लिया है कि ऐसे किसी भी ब्लागर को टिप्पणी नहीं भेजूंगा, जिस ने यह सुविधा आन की होगी.....यार इस से मैं तो बडा़ इंस्लटेडिट महसूस करता हूं।
यह कमेंट माडरेशन वाली सुविधा तो वही बात लगती है कि जैसे किसे ने मेरा मुंह रूमाल से बंद कर दिया हो कि बेटा, रूमाल तभी हटाऊंगा अगर तूं मेरे बारे में अच्छा अच्छा बोलेगा। क्या नाटक है यह ,दोस्तो.. हटा दो ,आज ही अपनी यह कमेंट माडरेशन वाली आपशन....क्या यार हम सब इतना पढ़े लिखे , मैच्यूर लोग हैं, हम लोग आपस मे एक दूसरे की बात सुनने से डर रहे हैं. ....चलिए, मुझे आप जितने मरीज कमैंटस भेजिए, चाहे अनानिमस ही भेजें, मैं सब को स्पोटर्समैन स्पिरिट में लेने के लिए सदैव तत्पर हूं,,,और आप से प्रोमिस करता हूं कि कभी भी यह आपशन आन नहीं करूंगा। मुझे तो दोस्तो ऐसा करना ड्रामेबाजी लगती है। वैसे भी मेरे गुरू जी ने तो हमें यही सिखाया है..........
we unnecessarily worry about what people say about us !!
Actually what we speak about others speaks volumes about us!!

दोस्तो, मेरी बात को कृपया अन्यथा न लें,,,,नया नया ब्लागिया हूं....इस लिए जो बात परेशान कर रही थी, आप के सामने रख दिया क्योंकि डाक्टरी के इलावा जो इस दुनिया से सीखा है कि लेखन वही है जिस लिखे बिना आप बस रह न सकें। ठीक है, ठीक है, तो फिर इस दुनिया के किसी भी बंदे की टिप्पणी से क्यों भागना....इसे भागना ही कहेंगे न कि पहले आप टिप्पणी पढ़ेगे , फिर अपरूव करेंगे कि वह छपेगी कि नहीं.....छोड़ो यारो, Come on...be brave to face even the nastiest comments...................Well, this is my opinion. What's yours, by the way ??

Good night , friends,
Dr Parveen chopra
18.1.08...21:23hrs

क्या ये बीमारियां परोसने वाले दोने हैं?




दोस्तो, आप भी सोच तो जरूर होंगे कि यह इस बलागिये ने तो जब से चिट्ठों की दुनिया में पांव रखा है न, बस हर वक्त डराता ही रहता है कि यह न खायो, वो न खायो, उस में यह है,उसमें वह है......बोर हो लिए यार इस की डराने वाली बातो से....हम तो जो दिल करेगा... करेंगे, खाएंगे पीएंगे, मजा करेंगे......वही कुछ कुछ ठीक उस पंजाबी गाने की तरह....
खाओ, पियो ,ऐश करो मितरो,
दिल पर किसी दा दुखायो न.....
लेकिन जब खाने वाली चीज़े जिस दोने में परोसी जा रही हैं, अगर वह ही आप की सेहत से खिलवाड़ करने लगे तो .....वो कहते हैं न कि बाड़ ही खेत को खाने लगे तो फिर कोई क्या करे....चुपचाप बैठा रहे, या शोर डाल कर लोगों को चेताया जाए। बस,दोस्तो, कुछ वैसा ही काम करने की एक बिलकुल छोटी सी कोशिश करता रहता हूं।
कल रात की ही बात है दोस्तो हम सब घूमने बाज़ार गये हुए थे। वहां पर एक अच्छी खासी मशहूर दुकान से मेरा बेटा एक दोने में गाजर का हलवा खा रहा था, अचानक उस ने शिकायत की यह हलवे के ऊपर क्या लगा है, अकसर हम उसे ऐसे ही कह देते हैं कि यार, तू न ज्यादा वहम न किया कर , बस खा लिया कर, कुछ नहीं है। अकसर हम इसलिए कहते हैं क्योंकि वह हर चीज़ को बड़ी अच्छी तरह से चैक कर के ही खाता है...शायद मां-बाप दोनों डाक्टर होने का ही कुछ असर है। कल भी ऐसा ही हुया, हम ने उसे मज़ाक में फिर कह दिया कि यार तेरी ही खाने की चीज़ में कुछ न कुछ लफड़ा होता है, लेकिन दोस्तो जब उस ने उस गाजर के हलवे से भरा चम्मच हमारे सामने किया तो हम दंग रह गए। बात क्या थी, दोस्तो, कि जिस दोने में वह गाजर का हलवा खा रहा था, वह वही आज कल कईं जगह पर मिलने वाले कुछकुछ ट्रेडी फैशुनेबल से डोने से ही खा रहा था, जो होता तो किसी पेड़ के पत्ते का ही है, लेकिन अंदर उस के एक चमकीली सी परत लगी होती है।
चूंकि वह उस तरह के ही दोने से खा रहा था तो यह समझते देर न लगी कि यहउस दोने की चमकीली ही उस हलवे के साथ उतर कर पेट में जा रही है।
दोस्तो, आप को भी शाकिंग लगा न, तुरंत वेटर ने वह दोना तो बदल दिया, लेकिन जिन करोड़ों बंदों को इस बात का ज्ञान नहीं है, बात उन के दोने बदलने की है, उन तक भी यह दोने न पहुंचे, बात तो तब बने.....
दोस्तो, मैं भी कल तक यही समझ रहा था कि इन बड़े आकर्षक दिखने वाले दोनों में कुछ उसी तरह का मैटिरियल लगा होता होगा जिस फायल में आजकल चपातियां लपेटने का चलन है। लेकिन आते वक्त उत्सुकता वश मैं वहां से एक खाली दोना मांग कर ले आया......दोस्तो, आप हैरान होंगे जब घर आकर मैंने उस दोने के ऊपर लगी परत को उतारा तो दंग रह गया ...यह कोई फायल-वायल नहीं था, ये तो एक पतला सा मोमी कागज था, पालीथीन जैसा जो अकसर दशहरे के दिनों में बच्चों के तीर कमान बनाने वाले, बच्चों के मुकुट बनाने वाले इस्तेमाल करतेहैं। यह सब देख कर बड़ा ही दुःख हुया कि आमजन की सेहत से कितना खिलवाड़ हो रहा है, यह सब चीज़ें हमारे शरीर में जाकरइतना ज्यादा नुकसान करती हैं कि अब क्या क्या लिखूं क्या छोडूं...फिर आप ही कहें कि बलोग की पोस्टिंग बड़ी हो गई है। तो , दोस्तो, आगे से आप भी इन बातों की तरफ जरूर ध्यान दीजिएगा। वही दशकों पुराने पत्ते के दोने में ही यह खाने-पीने की चीज़े खानी ठीक हैं, उस में यह बिना वजह की आधुनिक का मुलम्मा चढ़ाने का क्या फायदा ...और वह भी जब यह हमारे शरीर में ही इक्टठा हो रहा है। गाजर के हलवे में तो हम ने उसे पकड़ लिया, लेकिन क्याइस तरह के ही माड्रऩदोने में परोसी जा रहीं जलेबियों, गर्मागर्म टिक्कीयों,एवं पानी-पूरी इत्यादि के रास्ते हमारे शरीर के अंदर जा कर यह बीमारियों को खुला नियंत्रण नहीं देता होगा .....आप भी मेरी ही तरह यही सोच रहे हैं न। तो ,फिर अगली बार ज़रा दोने का ध्यान रखिएगा .......
पता नहीं , आप मेरी बात पर अमल कर पाएंगे या नहीं, लेकिन इस पूरे ऐपिसोड का मेरे बेटे को जरूर फायदा हो गया ......He got a cash reward of fifty rupees for his keen sense of observation…..दोस्तो, बस एक और भी है न अब बलोगरी में पांव रख ही लिया है , तो उन्हें जमाने के लिए ऐसे stingers को भी समय समय पर प्रोत्साहित तो करते ही रहने पड़ेगा, दोस्तो।

हिंदी फिल्मी गीतों जादू.....


बिल्कुल जादू ही दोस्तो, पता नहीं कैसे बांध लेते हैं ये लोगों को दशकों तक.....एक फिल्म जो हिट हो जाती है या एक गाना जो सुपरहिट हो जाता है , क्या वो अपने आप में अजूबा नहीं है।
अभी चंद मिनट पहले मैं हरे रामा हरे कृष्णा का वही सुपर-डुपर गीत सुन कर झूम रहा था......नहीं, नहीं...खुल कर नहीं, इतनी मेरे जैसे बुझदिल की कहां हिम्मत, इसलिए केवल मन ही मन झूम रहा था और इसे लिखने वाले, इसे गाने वाले, इसे संगीत देने वाले, इसे फिल्म में फिल्माने वाले , इस में सहयोग देने वाले सैंकड़ों लोगों --स्पाट ब्वाय तक और उस सारे यूनिट को बारबार चाय पिला पिला कर चुस्त -दुरूस्ट रखने वाले किसी गुमनाम माई के लाल की दाद दिए बिना न रह सका। यही सोच रहा था जब कोई महान कृति बन कर हमारे सामने आती है तो हमें उस को बनाने के पीछे हर उस गुमनाम बंदे के प्रति नतमस्तकहोनाही चाहिए जिस की भी उस में भूमिका रही।
दोस्तो, यह हिंदी फिल्मों का , हिंदी फिल्मी गानों का भी हमारी लाइफ में कितना बड़ा रोल है, मैं इस के बारे में अकसर बड़ा सोचता हूं । पता है ऐसा क्यों है....क्योंकि ये हमारी सभी भावनाओं को दर्शाती हैं...ज़रा आप यह सोच कर देखिए कि हमारी कौन सी मानसिक स्थिति है जो इन फिल्मों में चित्रित नहीं है, तभी तो हमें दिन में कईं बार ये फिल्मे, इन के गोल्डन गाने याद आते रहते हैं, रास्ता दिखाते रहते हैं।
दोस्तो, क्या कोई भी बंदा जिस को रोटी फिल्म का वह गीत याद है कि .......जिस ने पाप न किया हो, जो पापी न हो, .....वो ही पहला पत्थर मारे......और किस तरह फिल्म में दिखाई गई सारी पब्लिक उस तिरस्कृत महिला को मारने के लिए सारे पत्थर नीचे फैंक देती है.....क्या ऐसा बंदा जिस की स्मृति में यह गाना घर चुका है, क्या वह बंदा किसे के ऊपर कोई अत्याचार कर सकता है, मैं तो समझता हूं ...कभी नहीं, और अगर वोह करता भी है तो मेरी नज़र में बेहद घटिया हरकत करता है।
दोस्तो, फिल्में हमें रास्ता दिखाने में आखिर कहां चूकती हैं.। जिस गाने की मैं पहले चर्चा कर रहा था , हरे रामा हरे कृष्णा फिलम के गीत की......उसमें केवल आप हिप्पीयों को ही न देखें, उस की कुछ लाइनें ये भी हैं.....
गोरे हों या काले,
अपने हैं सारे,
यहां कोई नहीं गैर......
और, हम कितनी दशकों से यह सब सुन रहे हैं, क्या हम ने ज़ीनत अमान जी की इस बात के बारे में भी कभी सोचने की कोशिश की..........लगता तो नहीं , अगर ऐसा होता तो, परसों रात को आजतक चैनल पर आसाम में आदिवासियों पर हो रहे घोर अत्याचार की तस्वीरें देख कर मेरे का शरमसार न होना पड़ता.....दोस्तो, उन खुदा के बंदों को रूईँ की तरह पीटा जा रहा था.....अच्छा , तो दोस्तो, अब यहां थोड़ा सा विराम लेता हूं क्योंकि मुझे भी तो एक हिंदोस्तानी होने के नाते शरम से सिर मुझे भी तो घोर शर्मिंदगी से अपने सिर झुकाने की रस्म-अदायिगी करनी है। आप क्या सोच रहे हैं.....इतना मत सोचा करो.... तकलीफ़ हो जाएगी, दोस्तो। मेरा क्या है, मैं तो थोडा़ आदत से मजबूर हूं।