गुरुवार, 27 नवंबर 2025

सपने में देखा इक सपना....!!

बड़े बुज़ुर्गों एक सीख दिया करते थे ...सीख क्या दिया करते थे, वे इस बात पर अमल किया करते थे कि रात में हल्का खाना चाहिए....और कईं लोग तो सूर्यास्त होने से पहले ही जो भी खाना हो खा लेते हैं, उस के बाद नहीं....हम ने देखा है जब भी इस बात क नज़रअंदाज़ किया ...घर में, किसी पार्टी या किसी रेस्टरां में रात के वक्त कुछ भारी खा लेते हैं तो फिर रहिए करवटें बदलते...उठिए फिर देर रात ईनो पीने के लिए....

अब रात में अगर मक्की की रोटी के साथ राजमाह छक लिए जाएंगे तो बड़ी उम्र में कैसे पचा पाएंगे....(बाल काले करने से जवां नहीं हो जाते, उम्र तो अपने रंग दिखलाती ही है...) ...कल यही हुआ...यह सब खा लिया, उस के बाद नींद ही उड़ गई...यह बहुत कम होता है मेरे साथ...एलसीडी पर यू-ट्यूब पर पाकिस्तानी पंजाबी के कॉमेटी सीरियल  भी देख लिए....बाद में किसी लाइव शो पर गाने भी सुन लिए...और कुछ इस तरह के व्हीडियो भी देख लिए जिन में कुछ नौजवान लड़के 100 किलो दूध से देशी घी, मावा, पनीर, और रसगुल्ले बना रहे थे...इस तरह के व्हीडियो कईं बार ऑटोसुजेशन से ही दिख जाते हैं....बस, देखने लगा तो उन में ऐसा रम गया कि दो व्हीडियो देख कर ही दम लिया...बाद में लिखता हूं कि उन में क्या देखा...नीचे लिंक भी लगा दूंगा......

उस के बाद भी नींद के आने का नामोनिशान नहीं, कल अखबार नहीं पढ़ी थी, वह पढ़ने लग गया ....अखबार खत्म हो गई और पौन तीन बज गए....सोचा कि अगर अब भी जबरदस्ती नींद को काबू न किया तो कल छुट्टी ही करनी पडे़गी...खैर, जैसे तैसे आंख लगी लेकिन एक घंटे बाद उठना पड़ा...क्योंकि सपना ही ऐसा था ....

सपने की सेटिंग थी ...1974 की...हम सब लोग अपने घर के बरामदे में बैठे हुए हैं...असार्टेड फर्नीचर पर ...मैं चारपाई पर, पिता जी डाईनिंग टेबल की चेयर पर, और घर के दूसरे सदस्य भी कोई दीवान पर, कोई स्टूल पर.....मैं अपनी किताब के पन्ने उलट-पलट रहा हूं क्योंकि अगले दिन मेरा इम्तिहान है ....मैं बहुत परेशान हूं ...साईंस की किताब खोल रखी है ..कुछ भी मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा ...और साथ में यह खयाल भी आ रहा है कि मेरा तो हाल गणित में भी ऐसा ही है ....

मैं हाथ में पकड़ी उस किताब के पन्ने उलटते पलटते इतना परेशान हूं कि मुझे लगा कि आत्म-समर्पण ही करने में भलाई है ...

"पता नहीं इस बार पढ़ाई हुई नहींं, न तो साईंस में कुछ समझ आया है और न ही गणित में ....डर लग रहा है, इम्तिहान में क्या होगा."..मैने उस बरामदे में बैठे सभी लोगों की तरफ़ देखते हुए यह डिक्लेयर कर दिया...

अकसर इस तरह का ब्यान मैं किसी भी पेपर से पहले दिया करता था कि पेपर है, डर लग रहा है तो मेरे माता-पिता का हमेशा यही जवाब होता था कि इस में डरने की क्या बात है, जो आता होगा, लिख आना....बेडर हो कर जाओ...लो ये दही चीनी खा के जाओ....सब ठीक होगा....बस, बाकी काम दही चीनी ही कर देती होगी...कुछ बरसों बाद जब मैंने यह कहना नहीं छोडा़ तो मेरे पिता जी ने यह कहना शुरु कर दिया कि यार, तुम हमेशा कहते यही है और नंबर तुम इतने बढ़िया ले कर आते हो .... 

खैर, कल रात के सपने पर वापिस लौटता हूं...मैंने जब यह डिक्लेयर किया कि डर लग रहा है ...पता नहीं क्या होगा..कुछ नहीं आता-जाता, कुछ पढ़ाई हुई ही नहीं इस बार...तो मैं भी अपने माता-पिता के फ़िक्रमंद चेहरे देख कर परेशान सा हो गया....इतना परेशान कि नींद ही खुल गई...

ज़ाहिर है सपना भी टुूट गया ...शुक्र है ....वरना पता नहीं आगे क्या हो जाता ....

नहीं, नहीं, ऐसा वैसा कुछ नहीं, पिटाई विटाई का तो सवाल ही पैदा नहीं होता, हमें हमारे पेरेन्ट्स ने ज़िंदगी में कभी पिटाई करना तो दूर, कभी सख्ती से कुछ कहा भी नहीं.....यही मधुर यादें होती हैं, दोस्तो....मैं अकसर सोचता हूं कि जैसे किसी के साथ घर में, दुनिया में  बर्ताव हुआ होता है, वह बाद में वही वापिस लौटाता है ....खैर, यह तो फलसफे की बात हो गई....

सपना टूट गया...नींद लगी थी मुश्किल से पौने तीन बजे और पौने चार बजे ...सपने के टूटने से जाग गया....फिर से सोना ही था, और  उठ गया पौने छः बजे....सात आठ घंटे की नींद की जगह तीन घंटे की नींद लेने से जितना तरोताज़ा कोई महसूस कर सकता है, उतना ही मैं भी कर रहा हूं .... 

मैट्रिक में इतने अच्छे स्कोर से मनोबल इतना बढ़ गया कि .....चक ते फट्टे
....48 साल पहले का ज़माना था यह ...😂

सपने भी क्या चीज़ हैं....ऐसे लगता है जैसे सब कुछ असल में ही चल रहा है ....बाद में बहुत से सपने याद भी नहीं रहते ...मुझे एक सपना अकसर अभी भी यही आता है कि मेरी दसवीं की परीक्षा चल रही है और मेरे से कोई भी सवाल हल ही नहीं हो रहा ..(जब कि मैं सभी सवाल ठीक कर के आया था ..लेकिन खौफ़ ही इतना था दसवीं की परीक्षा का....)....अभी प्रूफ के तौर पर अपनी मैट्रिक की मार्क-शीट भी दिखाऊंगा आप को ...मेरिट होल्डर था, नेशनल मैरिट स्कालरशिप भी ....आज से पचास साल पहले इतने नंबर कम ही देखने को मिलते थे .....

खैर, एक सपना और अकसर आता है कि किसी रेलवे स्टेशन पर गाड़ी रुकी है ....और मैं पानी पीने के लिए नीचे उतरता हूं और ट्रेन चल पड़ती है ....बस, तभी अचानक मेरी नींद खुल जाती है और मेरी जान में जान आती है ... बचपन में ऐसी एक घटना हुई थी लुधियाना स्टेशन पर ....ठीक है, मैं भाग के जैसे तैसे किसी डिब्बे में चढ़ तो गया लेकिन वही नाईट-मेयर के रूप में मन के किसी कोने में अभी भी छिपा बैठा है ....

वैसे तो जो मुझे कल रात में सपना आया ...वैसी बात मेरी असल ज़िंदगी में भी हुई थी....

सन 1974 ..छठी कक्षा में पढ़ता था उन दिनों...एक दिन मैंने घर आकर रोते रोते अपने पिता जी को बताया कि मुझे हिसाब की कक्षा में कुछ भी समझ में नहीं आता....उन्होंने दिलासा दिया कि कोई बात नहीं, सब ठीक होगा। मैंने उन को यह भी बताया कि मास्टर जी स्कूल के बाद हिसाब की ट्यूशन भी लेते हैं....अगले दिन स्कूल जाते वक्त पिता जी ने मेरे मास्टर जी के लिए एक चिट्ठी लिख कर दी ....और मैं उसे मास्साब को दे दिया। उस दिन छुट्टी के बाद मास्टर जी ने मुझे भी ट्यूशन के लिए रुकने के लिए कहा ....बस, फिर क्या था, मैं कुछ ही दिनों में गणित में चल पड़ा....

बस, चल पड़ा? नहीं, भई, मैं तो लगा भागने ...फिर कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा....

उस से जुड़ी एक बात और याद आई..हर महीने मेरे पिता जी टुयूशन के पैसे एक सफेद एन्वेल्प में डाल कर मुझे देते थे ...मास्टर जी को देने के लिए....वह मेरे लिए पहला सबक था कि किसी को पैसे देने का क्या तरीका होता है, क्या सलीका होता है .....। सारी क्लास में मैं ही फीस इस तरह से देता था, मास्साब उसे लेकर अपने ब्रॉउन कोट की जेब में रख लेते थे ....बिना गिने....

खैर, सपनों की बातें चल रही है....मैं अकसर सपने देखता हूं और अगर मुझे सुबह तक याद रह जाते हैं तो मैं उन के ऊपर एक पोस्ट तो ठेल ही देता हूं ..जैसा कि इस वक्त कर रहा हूं....लेकिन ज़्यादातर सपने सुबह तक याद नहीं रहते ...या धुंधले से याद रह जाते हैं....जैसे सपने में अपनी दिवंगत माता जी के साथ बाज़ार में, अनजान जगहों पर खूब घूमता हूं ..सुबह याद नहीं रहता कुछ याद ...सिवाए इस के कि कल हम दोनों खूब घूमे....

बस, अपनी बड़ी बहन को इतना ज़रूर बता देता हूं कि कल बीजी सपने में आए और मैं उन के साथ खूब रहा ...इतना सुनने पर वह बीजी से गिला करने लगती हैं कि देखो, प्रवीण, बीजी को गए आठ बरस हो गए....लेकिन मेरे सपने में एक बार भी नहीं आए....

खैर, सपने भी अजीब होते हैं...मेरी मां को अपनी मां के बहुत सपने आते थे ...और एक बात भी लिखूं कि जब बड़ी उम्र में बड़े-बुज़ुर्गों को दिवंगत लोगों के सपने बार बार आने लगें तो वे थोड़ा डर सा जाते हैं और अकसर कहने लगते हैं कि वे तो जैसे उन को बुला रहे हैं.....यह सच्चाई है ....

सच्चाई ेेसे मतलब? - मतलब भई इतना ही कि यह एक धारणा है, सच्चाई है या नहीं, यह मैं नहीं जानता....ये मनोवैज्ञानिकों का काम है, मेरा नहीं...हां, इतना मैंने ज़रूर देखा है आसपास जब किसी बुज़ुर्ग को बार बार उस का साथी सपने में आने लगे तो वह थोडा़ सा ही सही, डर तो जाते ही हैं....हां, वह न भी डरें, घर के दूसरे लोग तो डर ही  जाते हैं कि कहीं लाडली मां भी पिता जी के पास जाने के लिए न चल पड़े....

हर उम्र के सपने अलग होते हैं....

मुझे कलाम साहब की वह बात अकसर याद आती है कि सपने वे नहीं जो आप सोते हुए देखते हैं, सपने वे होते हैं जो आप जागते हुए देखते हैं और जिन को पूरा करने के लिए आप की नींद उड़ जाती है....

हर उम्र के सपने ...

जवानी के सपने अलग, बुढापे के अलग ....इस में किसी को शक नहीं होना चाहिए, जवानी में किस तरह के सपने आते हैं, हर कोई जानता है ...बताना नहीं चाहते हैं तो कोई बात नहीं, लेकिन जानते सब हैं, सभी देखते हैं....

हां, कईं सपने बार बार आते हैं...मां अकसर एक सपना बताया करती थीं....कि वह अकेली कहीं पर जा रही हैं,जाते जाते आगे बहुत बडे़ पहाड़ हैं, खाईयां है, कोहरा है, वह रास्ता भूल गई हैं। वह डर के उठ जाती थीं....और एक मज़ेदार बात ...जब दूर नज़दीक के रिश्तेदार जिन को गए ज़माना गुज़र चुका था, वे भी मां के सपनों में बार बार आते ....तो मैं परेशान  तो हो जाती होगी....लेेकिन मज़ाकिया उस की इतनी तबीयत कि हमें सपने सुनाती वक्त यह अकसर कहती .....हुन ओ मरे-खपे खेहड़ा ही नहीं छड़दे....पिच्छे ही पए होए ने। (अब वे मर-खप चुके लोग पीछा ही नहीं छोड़ रहे, पीछे ही पड़ गए हैं....) ...कहीं न कहीं यह सुन कर हम भी परेशान हो जाया करते ....क्योंकि सुन तो हमने भी रखा था कि इस तरह के बार बार दिवंगत लोगों को सपने में आना अच्छा नहीं होता..........कितनी विडंबना है!!

हां, मैं उस विडियो की बात बता रहा था जो 100 किलो शुद्ध घी से देशी घी निकाल रहे हैं, अगर देखना चाहें तो इस लिंक कर क्लिक करिए....कुल आठ किलो घी निकला और कह रहें कि फायदे का सौदा है ....इतने लोग लगे रहे घी को निकालने में ...इतनी मेहनत, गैस इस्तेमाल हुई....और इतना बखेड़ा करने के बाद भी इतना ही घी निकला....और कुछ तो हुआ या नहीं, लेकिन मेरा विश्वास यह तो और भी पक्का हो गया कि अगर शुद्धता के लिए इतनी मेहनत लगती है तो पता नहीं जो हम तक पहुंच रहा है, वह क्या होगा....क्या नहीं....

अगर आप सपनों के सौदागर से मिलना चाहेंगे तो इस लिंक पर क्लिक करिए....सपनों का सौदागर आया ...वैसे तो मैं नीचे एम्बेड भी कर रहा हूं लेकिन कईं बार एम्बेडिंग अपने आप डिसेबल हो जाती है...गीत गायब हो जाता है ...