जब कभी बाजू से रक्त का सैंपल लिया जाता है तब तो आप डिस्पोज़ेबल सूईं इत्यादि का पूरा ध्यान कर ही लेते होंगे, लेकिन क्या कभी आपने यह ध्यान किया है कि जब आप की उंगली को प्रिक कर के सैंपल लिया जाता है तो वह किस तरह से लिया जाता है ?
मुझे याद है कि बचपन में हम लोग भी जब अपने रक्तकी जांच करवाने जाते थे तो उस लैब वाले ने एक सूईं रखी होती थी जिसे वह स्प्रिट वाली रूईं से पोंछ पोंछ कर काम चला लिया करता था।
आज इस बात का ध्यान इसलिये आया है क्योंकि कल ही अमेरिका की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने चिकित्सा कर्मीयों को कहा है कि ये जो इंसुलिन पैन एवं इंसुलिन कार्टरिज़ होती हैं, इन्हें केवल एक ही मरीज़ पर इस्तेमाल के लिये अप्रूव किया गया है।
इंसुलिन पैन जैसे कि नाम से ही पता चलता है पैन की शेप में एक इंजैक्शन लगाने जैसा उपकरण होता है जिस के साथ एक डिस्पोज़ेबल सूईं के साथ या तो एक इंसुलिन रैज़रवॉयर और या एक इंसुलिन कार्टरिज़ होती है। इस उपकरण में इतनी मात्रा में इंसुलिन होती है कि मरीज़ रैज़रवॉयर अथवा कार्टरिज़ समाप्त होने तक स्वयं ही अपने ज़रूरत के मुताबिक कईं बार इंजैक्शन लगा सकता है।
आखिर अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन को ऐसी चेतावनी देने की ज़रूरत क्यों महसूस हुई ? --- इस का कारण यह था कि इस संस्था को ऐसे दो अस्पतालों का पता चला जिस में लगभग 2000 व्यक्तियों के ऊपर जब इंसुलिन पैन से इंजैक्शन लगाये गये तो कार्टरिज़ कंपोनैंट की तरफ़ कुछ इतना ध्यान देना ज़रूरी नहीं समझा गया --- हालांकि डिस्पोज़ेबल नीडल को तो हर मरीज़ के लिये बदला ही गया था।
ऐसे उपकरण को जिसे केवल एक ही मरीज़ पर इस्तेमाल करने की अप्रूवल मिली हुई है ---इसे विभिन्न मरीज़ों द्वारा नीडल बदल कर भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता क्योंकि इस से रक्त के आदान-प्रदान से फैलने वाली एच-आई-व्ही एवं हैपेटाइटिस सी जैसी भयंकर बीमारियों के फैलने का खतरा होता है।
हां, तो हम लोग अपने यहां पर उंगली से रक्त का सैंपल देने की बात कर रहे थे ---सही ढंग की बात करें तो उस के लिये एक छोटा सी पत्तीनुमा बारीक सी सूईं आती है जिसे लैंसेट ( Lancet) कहा जाता है और यह डिस्पोज़ेबल होती है अर्थात् इसे दोबारा किसी मरीज़ पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये। वह सूईं को स्प्रिट में डुबो डुबो कर काम चला लेने वाला पुराना तरीका गड़बड़ सा ही लगता है । आप अपने डाक्टर से बात तो कर के देखिये।