शनिवार, 27 अगस्त 2022

हुड़दंग-हुल्लड़बाज़ी ज़िंदगी बदल देती है कईं बार ....

आते जाते रास्तों पर सड़के नापते हुए फिरंगियों के वक्त की इमारतें देख कर हैरत में पड़ जाता हूं ...कुछ दिन पहले एक बस में बैठा बैलर्ड पियर जा रहा था (वी टी स्टेशन से गेटवे ऑफ इंडिया तक ए.सी बस सर्विस बहुत बढ़िया है)...रास्ते में एशिआटिक लाईब्रेरी दिखी ..पहली भी कईं बार देखी है ...उस दिन भी देखते ही बरबस मुंह से यही निकला ..पास बैठे अंजान यात्री से जैसे कुछ कहने लगा कि इन अंग्रेज़ों को भी अगर पता होता कि इन्हें इस देश से खदेड़ दिया जाएगा तो ये सब कुछ इतनी मोहब्बत से कहां बनाते ....उसने भी हामी भर दी ...। 


आज दोपहर बाद भी अभी एक-दो घंटे पहले ढ़ाई बजे के करीब मैं भायखला स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर दादर जाने के लिए लोकल-ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था ...वैसे तो पिछले कुछ महीने में भायखला स्टेशन का पूरा काया कल्प हुआ है ..एक दम हैरीटेज लुक दी गई है ...अच्छा लगता है ...अचानक इस घंटे पर नज़र गई और उस पर लिखा साल देखा तो हैरानी भी हुई १६० साल से पुराना घंटा ...फोटो खींच ली ... वैसे भायखला उस रेल लाइन पर आता है जहां पर हिंदोस्तान की सब से पहली रेलगाड़ी चली थी...मुंबई वी टी (या बोरी बंदर कहते थे तब) से ठाणे तक ....बाकी की स्टोरी तो आप जानते ही हैं...

फिरंगियों की तरफ से इस तरह के पुराने सामान को जब देखता हूं तो उन से किसी भी तरह की सहानुभूति की तो ऐसी की तैसी ...हर बार यही मज़ाक सूझता है कि इन पट्ठों ने ये सब यही सोच कर बनाया-सजाया होगा कि अब तो यह सब कुछ अपना ही है ...लेेकिन फिर मन ही मन नतमस्तक हो जाते हैं आज़ादी के उन दीवानों के बलिदान पर जिन्होंने अपनी जान गंवा कर हमें आज़ाद भारत में सांस लेने का और इस तरह के घंटे की फोटो खींचने का मौका दिया....

दो-तीन मिनट तो कभी कभी लोकल गाड़ी के लिए इंतज़ार करना ही होता है ...लेकिन इसी दौरान देखा कि सामने तीन नंबर प्लेटफार्म पर जो लोकल ट्रेन मुंबई वी टी की तरफ जा रही हैं, उस में बहुत से युवा ऊंची ऊंची आवाज़ निकाल कर हूटिंग सी कर रहे हैं....ऐसी ही हुल्लडबाजी ...मस्ती .....। मैंने सोचा कि शायद कल रविवार है, रेलवे भर्ती बोर्ड या किसी अन्य विभाग का कोई पेपर हो ...लेकिन उन युवकों की उम्र देख कर लगा नहीं ...अजीब सा शोर था....

खैर, इतने में मेरी ट्रेन भी कसारा लोकल आ गई ...बैठ गया....पेपर पढ़ने लगा ...इतने में पता नहीं मन किया कि परेल स्टेशन पर ही उतर जाता हूं ...उतरने लगा तो वहां पर भी दूसरी तरफ़ से आने वाली एक गाड़ी गुज़र रही थी और खूब शोर मचा हुआ था ...मुझे अचानक ख्याल आया कि दो दिन बाद गणेश-चतुर्थी है ...ये लड़के लाल बाग से गणपति बप्पा की मूर्ती लेने निकले होंगे ...हुल्लडबाजी कर रहे हैं, मस्ती कर रहे हैं...उम्र ही ऐसी है इन की ...खैर, मैं नहीं उतरा वहां पर ..


अगला स्टेशन दादर था ...दादर सेंट्रल रेलवे के प्लेटफार्म नंबर एक पर उतरा तो यह महिला अपना बोझा ढोने के लिए बड़ी मशक्कत करती दिखी ..लेकिन उसने अपने बलबूते पर इतना सामान सिर पर उठा कर ही दम लिया....इतने में देखा एक लड़की १८-२० बरस की बदहवास सी प्लेटफार्म पर भागते भागते गाड़ी पर चढ़ने से रह गई ...उसे तुरंत एक महिला कांस्टेबल ने पकड़ कर नसीहत की अच्छी घुट्टी पिलाई कि इस के बाद कोई ट्रेन नहीं आएगी क्या....



खैर, सामने एक नन्हा बालक दिखा ...मां के हाथ में दूध की बोतल तो थी लेकिन वह मोबाइल पर गुफ्तगू में मसरूफ़ थी....वाट्सएप पर ऐसे बहुत सी पोस्टें दिखती रहती हैं न ...मुझे भी उस वक्त यही ख्याल आया जैसे कि वह शिशु मां को कह रहा हो कि मम्मी जी, मुझे भूख लगी है ...प्लीज़ मोबाइल पर तो सारा दिन रहती ही हो, मेरा भी तो कुछ ख्याल करो ...

कुर्ला, मध्य रेल, लोकल प्लेटफार्म नंबर १

खैर, अभी इस प्यारे से बालक की तरफ से नज़र हटी ही थी कि आगे फिर थोड़ा शोर सा दिखा ...प्लेटफार्म पर कुछ खून गिरा हुआ था...मुझे लगा कि किसी को चोट वोट आई होगी या किसी को खून की उल्टी हुई होगी ... अभी चंद कदम आगे चला था कि प्लेटफार्म के एक एरिया को कार्डन-ऑफ किया गया था ... भान हुआ कि कुछ तो मनहूस बात हुई ही है ...आगे बढ़ तो गया लेकिन रहा नहीं गया....पाटिल हवलदार से पूछा कि क्या हुआ...उसने जो बताया वह दिल को दहलाने वाला था ...कहने लगा कि पांच-दस मिनट पहले चार युवक गिर गए गाड़ी से ...गिरा तो एक ही, साथ में तीन और ले बैठा....किसी का हाथ कट गया है, किसी का पांव.....बहुत अफसोस हुआ यह सुन कर। मेरे पूछने पर उसने बताया कि अभी तो सॉयन अस्पताल भेज दिया है ...बाद में उन के परिवार वाले उन्हें जहां से लेकर जाना चाहें....

पाटिल बता रहा था कि ये लड़के लोग गणपति चतुर्थी के चक्कर में बड़ा हुड़दंग मचा रहे थे ...चलती ट्रेन से खंभे को छूने की कोशिश कर रहे थे ...बहुत ज़्यादा अफसोस हुआ यह सुन कर ...यार-दोस्त थोड़ी मस्ती करने निकले और अचानक क्या से क्या हो गया....किसी को कुछ फ़र्क नहीं पड़ता ...मुंबई एक मिनट भी नहीं थमी..हादसे के पांच मिनट बाद सब कुछ ऐसे चल रहा था जैसे कुछ हुआ ही नहीं...

पोस्ट इसलिए लिखने पर मजबूर हुआ कि मन की बात कह लूं कि त्यौहार का मतलब हम लोग क्यों इतने हुड़दंग करना ही मान लेते हैं...खुशी है, उत्सव का माहौल है, ठीक है...लेकिन जोश के साथ होश भी तो रखना होगा...मैं मानता हूं कि हर किसी को इस तरह की नसीहत की पुडि़या बहुत बुरी लगती है ...क्योंकि हादसा तो कभी भी हो सकता है...किसी के साथ भी ..लेकिन फिर भी जितना हो सके, उतना ही ख्याल रखना ही चाहिए....पानी के सामने, आग के सामने, और गाड़ी के सामने किसी की नहीं चलती....

पानी से याद आया...पिछले दिनों में हर साल की तरह बंबई के जुहू बीच और अन्य बीचों पर कुछ युवा डूब गए...रेड-एलर्ट जारी था ...और सरकार भी क्या करे, लेकिन जवान लोग किस की सुनते हैं...समंदर की लहरें लील ले गईं जवान लोगों को ...अकसर इस तरह की खबरें देख कर मुझे कुछ पंद्रह बीच बरस पहले कोच्ची की अपनी यात्रा याद आ जाती है..कोच्ची से कोई २०-२५ किलोमीटर दूर एक बीच है...वहां कहते हैं ज़्यादा आगे जाना खतरनाक होता है (चेतावनी हम लोगों ने बाद में पढ़ी थी) ..हम लोग किनारे पर ही खड़े थे ...अचानक लहर आई ..हमारे पैरों के नीचे से ऐसे रेत खिसकी की मां कहां गई, पर्स कहां गया, छोटा बेटा दो-तीन साल का कहां बह गया...बाकी भी सभी लुढ़क गए...उस वक्त तो यही लगा कि पता नहीं कितने लुढ़क गए, कितने रह गए ...खैर, फटाफट जैसे तैसे उठ खड़े हुए और भागे वहां से ..टैक्सी में बैठ कर ....अभी याद आया .....जी हां, वह था कोवलम बीच 

हां, अभी कुछ दिन पहले कृष्ण जन्माष्टमी थी ..दही हांडी का उत्सव था ..किस तरह से कुछ युवक बुरी तरह से ज़ख्मी हो गए...अखबार में पढ़ा कि एक का तो दिमाग ऐसा डेमेज हुआ है कि उस का बचना मुश्किल है ..और दूसरा कोमा में है ....ऐसे बहुत से केस हर बरस होते हैं ....हम लोग सीख क्यों नहीं लेते ..उत्सव मनाएं लेकिन होशोहवाश में रह कर .... इस बार मेरे एक दोस्त ने दही हांडी वाले दिन एक वीडियो भेजी जिसे देख कर मेरा दिल दहल गया....कुछ युवक एक लड़के को पकड पर ऊपर हांड़ी की तरफ उछाल रहे थे ...उस युवक का जब सिर उस मटकी पर लगा वह हांडी फूट गई ....लेकिन होने को तो कुछ भी हो सकता था ...

यही नहीं होली के दिन भी सभी अस्पतालों की एमरजैंसी को किस तरह से मुस्तैद रहने को कहा जाता है ....क्योंकि हादसे होते हैं, चोटे लगती हैं उन दिनों भी ....बात सोचने वाली यही है कि क्या हम अपने आप में रह कर संयम से अपने तीज-त्यौहार नहीं मना सकते ....ऐसा क्या है कि धार्मिक त्यौहारों पर भी सरकारों को इतने बड़े स्तर पर पुलिस बंदोबस्त करना पड़ता है कि एक अजीब सा खौफ़ कहीं न कहीं सताने लगता है ...

बस बात यही खत्म करते हैं कि किसी को कोई नसीहत की ज़रूरत नहीं है, जितना कुछ जानने लायक है उस से तो ज़्यादा ही हम लोग जानते हैं......मानते हैं या नहीं, वह अलग बात है। बस, अपना ख्याल रखा करो भाई...बच कर रहिए, बच कर चलिए, खुद भी बचिए, औरों को भी बचाते रहिए ..

शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

20 हत्याएं जिन्होंने दुनिया बदल दी ...




कुछ किताबें के कवर देख कर हम लोग उसे खरीदने पर मजबूर हो जाते हैं....मेरे साथ तो ऐसा अकसर होता ही है ...महंगी महंगी किताब खरीदते वक्त मुझे बस अपने दिल को यह तसल्ली देनी होती है कि मैं समझूंगा कि मैंने कुछ पिज़ा खा लिए ....जो कि मैं कभी खाता नहीं ...

खैर, यह किताब हाथ में आई तो इसे झट से पढ़ने की तमन्ना भी जाग उठी....जैसा कि हम सब के साथ होता है मैंने भी इस के लेखक के बारे में पढ़ा, और उन बीस लोगों की फेहरिस्त देखी जिन की हत्याओं ने दुनिया को ही बदल कर रख दिया...

किताब तो बाद में पढ़नी थी ...लेकिन जिस बात ने मुझे सब से ज़्यादा हैरान-परेशान किया वह यह थी कि उन बीस हस्तियों में मैंने १४ लोगों के नाम ही कभी नहीं सुने थे ...है कि नहीं हैरानी वाली बात....साठ साल की उम्र होते होते कुछ तो पढ़ते ही रहे हैं लेकिन फिर भी सामान्य ज्ञान इतना कमज़ोर ....सच में थोड़ी डिप्रेशन भी हुई कि जिन बीस लोगों की हत्याओं ने दुनिया में तहलका मचा दिया, उन में से तुम्हें ७० फीसदी का नाम तक नहीं पता, अपने आप से इतना तो कहना ही पड़ा। 


और एक रोचक बात सुनिए ...जिन छः लोगों के नाम मैंने सुन रखे थे ...मुझे बिल्कुल भनक तक न थी उन में से दो की हत्या की गई थी ...इन में लार्ड माउंटबेटन और किंग लूथर का नाम मैं लेना चाहूंगा...इतनी बड़ी हस्तियां और हमें (नहीं, मुझे) इन के बारे में कुछ खास पता ही नहीं। जब से यह वाट्सएप आया है पिछले सात-आठ सालों में लेडी माउंटबेटन के साथ चाचा नेहरू की तस्वीरें तो वाट्सएप विश्वविद्यालय यूनिवर्सिटी चलाने वाले बार बार शेयर करते रहते हैं लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कभी कि माउंटबेटन की हत्या एक बम विस्फोट में १९७९ में हुई थी ...और उसी किताब से पता चला कि माउंटबेटन की हत्या के बाद भारत में एक हफ्ते का शोक रखा गया था ...उस में यह भी पढ़ा कि माउंटबेटन से हिंदोस्तान को पाकिस्तान और भारत में बांटने की गलती हो गई ....हैरानी तो मुझे भी बडी़ हुई कि ऐसी गलती हुई तो हुई कैसे ...खास कर के उस के बारे में, उस की बैकग्राउंड के बारे में पढ़ कर मुझे भी बड़ा अजीब सा लगा कि बस इसे एक गलती कह कर ही बात को रफा-दफा किया जाए...लाखों लोगों ने जाने गंवाई, बेघर हुए ...और आज तक लोग उस गलती का खमियाजा भुगत रहे हैं ...खैर, चलिए...अब पछताए होत क्या, जब चिढ़िया चुग गई खेत..

मार्टिन लूथर के बारे में भी पढ़ना है ...लिंकन के बारे में तो पहले ही से पढ़ा हुआ है ...भला इंसान था ...आप को भी याद होगा उसने जो चिट्ठी अपने बेटे के अध्यापक को लिखी थी .....बहुत ही नेक बंदा था ...इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के बारे में पढ़ा ....इन दोनों की हत्याएं तो हमें बड़े अच्छे से याद हैं...और उन के बाद होने वाला घटनाक्रम भी। राष्ट्रपति कैनेडी की हत्या की पूरी जानकारी आज पहली बार हासिल हुई ...और इस लिस्ट में कैनेडी नाम का एक और इंसान था, उस के बारे में पता चला कि वह भी कैनेडी का भाई ही था ...वह भी राजनीति में आगे आ रहा था ...उसे भी राष्ट्रपति कैनेडी की हत्या (१९६३) के पांच बरस बाद १९६८ में मौत के घाट उतार दिया गया...

वैसे तो हम जितना भी पढ़-लिख लें, जितना भी ज्ञान अर्जित कर लें, हमारा ज्ञान दुनिया के ज्ञान के समक्ष एक रेत के कण के बराबर भी नहीं है ...यह बात बिल्कुल सच है ....लेकिन हमें ऐसे ही कभी कभी ऐसा महसूस होने लगता है कि हम तो सब कुछ जानते हैं...ऐसा नहीं है ...मुझे भी अकसर किताबें पढ़ते पढ़ते ही यह अहसास होता है कि मैं कितना कम पढ़ा-लिखा हूं ...मुझे किसी ने पूछा कि आप फिक्शन पढ़ते हैं या नॉन-फिक्शन ....मैंने कहा मुझे जो भी किताब अच्छी लगे, मैं उसे पढ़ना चाहता हूं ....हिंदी-इंगलिश-पंजाबी में पढ़ता हूं अकसर ...गुज़ारे लायक उर्दू भी पढ़ लेता हूं ....किंडल होते हए भी किताब तो भई हाथ में थाम कर ही अच्छा लगता है ...

इस किताब में दर्ज अहम जानकारीयां किसी अगली पोस्ट में शेयर करूंगा... वैसे तो नाम अब आप के पास हैं, गूगल कर के भी खुद भी ऑन-लाइन पढ़ सकते हैं...

वैसे एक बात और है ...ख्याल अगर खुद के कमज़ोर सामान्य ज्ञान का आ रहा है तो बात यह भी याद आ रही है कि हम कितना दुनियावी वैभव, शानो-शौकत के पीछे भागते भागते हांफते रहते हैं, एक तरह से हलकान हुए रहते हैं और इधर दुनिया के गिने-चुने बीस लोगों की हत्या हो गई और मेरे जैसे पढ़े-लिखे कहलाने वाले तक को भी उन में से अधिकांश के नाम ही न पता थे ....सच में सब कुछ कितना क्षणिक है, कितना क्षण-भंगुर है ....लेकिन इत्ती सी बात ही हमारे पल्ले इतनी आसानी से कहां पड़ती है ...😂

सोमवार, 1 अगस्त 2022

बदलते बदलते बदल गई लाटरीयां भी ...

लिखने वाले के लिए लेख भी बच्चोंं की तरह पीछे पड़ जाते हैं...मुझे मोहम्मद रफी साहब के बारे में कुछ लिखना है, स्टेचू ऑफ यूनिटी, गुजरात के बारे में कुछ लिखना है ...अभी वह सब सोच ही रहा था, ख़्याली पुलाव बना ही रहा था कि यह लाटरी वाला छोटा बालक जैसे बार बार कहने लगे ..हमारी बात कह पहले ...कह न ...हमारी बात पहले ....


तो दोस्तो हुआ यूं कि आज शाम को बंबई के भायखला स्टेशन में तीन चार महिलाओं का एक ग्रुप कुछ घरेलू सामान बेच रहा था ....कुछ लाटरी वाटरी सिस्टम था ...अच्छा, उन के बारे में सब से बाद में लिखूंगा ..सब से पहले आज से ५५ बरस पहले की बातें याद आ रही हैं इन लाटरीयों की, उन्हें तो लिख लूं ...यही कोई पहली दूसरी जमात में स्कूल में जाते वक्त दस पैसे तो मिलते ही थे ...यार, बहुत होते थे, उन दिनों दस पैसे भी ...उस से ज़्यादा तो हम संभाल भी न पाते ... और असल बात यह भी है कि हम से वह दस्सा (पंजाबी में दस पैसे के सिक्के को कहते थे दस्सा ..जो पीतल का होता था ...मेरी सिक्कों की क्लेक्शन में पड़ा है उस तरह की दस्सा भी ...) ...बचपन की कितनी यादें कितनी मीठी होती हैं न ..मां पीतल की एक डिब्बी में एक-दो परांठे गुड़ के साथ रख देतीं और पिता जी जाते वक्त एक दस्सा हाथ में रख देते ....बस, हम अपने आप को महाराजा पटियाला समझने लगते ...आस पास के दोस्तों के साथ, जिनमें एक देवकांत भी था...हम स्कूल के लिए निकल पड़ते .... वहां पर पांच पैसे की कभी कभी लाटरी खरीद लेते ..मेरे जैसे सठिया गए लोगों को तो याद होगा कि यह लाटरी का क्या चक्कर था, आप समझिए एक कैलेंडर जितनी शीट थी, जिस के ऊपर सौ-पचास छोटे छोटे पतले कागज के स्टिकर चिपके रहते थे ...हम उस स्कूल वाली मौसी को पांच पैसे देते, वह हमें एक स्टिकर उखाड़ने को कहती ...हम उसे खोलते, और इनाम निकलता ...कभी एक टाफी, कभी कुछ नहीं ...कभी यह इनाम होता कि चलो, एक बार लाटरी और खेल लो...कभी कोई छोटा-मोटा प्लास्टिक का लाटू, झुनझुना ...कुछ भी निकल आता ....

और हां, यह पांच पैसे की लाटरी हम लोगों को बड़े गुपचुप तरीके से खरीदनी होती थी ..क्योंकि जब भी घर में आकर बात चलती कि आज लाटरी खरीदी थी तो मां समझाने लगती - न खरीदया कर लाटरी, जुए दी आदत पै जांदी ए...(मत खरीदा कर ये लाटरीयां-वाटरीयां, इन से जुए की आदत पड़ जाती है ...) खैर, यह दौर ऐसे ही चलता रहा ..कुछ बरस पहले..यही कोई दस बरस पहले की बात होगी मैंने शायद लखनऊ की किसी दुकान पर वैसी ही लाटरी वाली शीट देखी तो मुझे पुराने दिन याद आ गये। 


खैर, आगे बढ़ते हैं ...घरों में अखबार के साथ एक प्रिंडेट पोस्टकार्ड आ जाता कभी कभी ...जिस में कुछ खानों में अंक इस तरह से भरे होते कि उन का जोड़ ४४ आता था ...हमें कहा जाता था कि इस के साथ ही खाली खानों में आप ने अंक तरह से भरने हैं कि उन का योग ४८ आ जाए.... और साथ में लिखा होता कि जिन का जवाब सही होगा उन्हें वीपीपी से ट्रांजिस्टर या टार्च या प्रैस ...(और भी पता नहीं क्या क्या, अब इतना याद नहीं ...उम्र हो चली है भई अब अपनी भी)....भिजवा दिया जाएगा...अच्छा एक बात मज़ेदार यह कि उस कार्ड की खासियत यह होती कि उस पर बिना टिकट लगाए ही हमें उसे डाकपेटी के सुपुर्द करना होता था ...उस पर लिखा रहता था कि इस पर टिकट लगाने की कोई ज़रूरत नहीं ....अच्छा, एक तो हमारा दिमाग यह बात खराब कर देती कि यार, हम ने तो पहेली का सही हल ढूंढ लिया....वैसे उसमें करने को कुछ होता न था, बस हर खाने में एक एक अंक बढ़ाना होता था ...खैर, चलिए उसे डाकपेटी में डाल भी आए........और कुछ ही दिनों में किसी कंपनी से एक पैकेट आ जाता वीपीपी से कि ५० रूपये दो और आप के लिए यह इनाम आया है ...रियायती दामों पर ......मुझे नहीं याद कि कभी इस तरह का वीपीपी का पैकेट हमने या हमारे मोहल्ले में किसी ने भी उस डाकिये से लिया हो .....इतने पैसे होते ही किस के पास थे। खैर, एक दो बार में इन पोस्टकार्डों वाले धंधे की बात समझ में आ गई .....

और हां, यही ५० बरस पुरानी बातें यह भी हैं कि मोहल्ले की औरतें कमेटियां डालती थीं ... ५० रूपये की कमेटी या २५ रूपये की कमेटी फलां फलां महीने के लिए ..पुरुष लोग भी डालते थे लेकिन अलग ..महिलाओं की कमेटीयां का भी एक अलग ही नज़ारा होता था ....जब कमेटी खुलती यानि जिस की लाटरी निकलती, उस के घर में थोड़ी बहुत पार्टी होती ..समोसे-जलेबी-गुलाब-जामुन-बर्फी की ...लेकिन ये जो औरतें कमेटी की आर्गेनाइज़र होती थीं, वे सब की सब बड़ी लडाकू किस्म की होती थीं ...क्या करती वो भी ....उन्हें दबंग होना ही पड़ता था ....वरना कोई वक्त पर कमेटी की रक्म न दे तो .....और हां, कईं बार कमेटी निकलने पर बहुत से बर्तन या कोई आइटम जैसे सिलाई-मशीन या कोई प्रेशर कुकर या कुछ भ ी....(याद नहीं यार अब इतना तो ...यह भी आज इतने लंबे अरसे बाद इसलिए याद आ गई बातें क्योंकि लिखने बैठ गया हूं ......मैं इसलिए कहता हूं अकसर को लिखते वक्त अपने आप बातें पुरानी से पुरानी जो हम भूल भी चुके होते हैं ..वे भी याद आने लगती हैं..) ..

खैर, आगे चलें ....यह जो कमेटियों वाला दौर था ...उसी दौर में बाज़ार में लाटरीयों वाले खड़े रहते थे ..एक रूपये की लाटरी, दो की, पांच की, दस की ..पचास की ..जहां तक मुझे याद है मेरे पिता जी भी कभी कभी तनख्वाह वाले दिन एक लाटरी टिकट खरीद कर लाते थे, और बडा़ संभाल कर रखते थे ....हमारे सारे कुनबे को यह फ़िक्र सताए रहती कि यह न हो कि इनाम निकल आए और फिर हमारी टिकट ही गुम हो जाए ....इसलिए मां अपनी लकड़ी की अलमारी में किसी साड़ी की तह में उसे संभाल कर रखती...फिर हम लोग रोज़ इंतज़ार करने लगते कि अभी इतने दिन हैं लाटरी का नतीजा आने में ...और अकसर यह नतीज़ा अखबार में भी आता ...यार, कैसे सांसे थाम कर हम लोग उस नतीजे का देखा करते थे ... अच्छा, लाख वाला तो नहीं आया, चलो दस हज़ार वाला देखो, पिछले पांच अंक भी नहीं मिल रहे टिकट के साथ.....इसी तरह जब हम आश्वस्त हो जाते कि दस रुपये भी नहीं निकले ....तो फिर कोई यह देता कि क्या पता अखबार में छपने में गलती हो गई हो ....इसलिए कोई न कोई घर का बंदा अगले दिन बाज़ार आते जाते उस लाटरी वाले से भी नतीजे का कंफर्म कर ही लेता .....एक बात तो मैं बतानी भूल ही गया कि मां अकसर कुछ लोगों के बारे में यह भी बताया करतीं कि फलां फलां की लाटरी निकली दस लाख और उस का यह खबर सुनते ही हार्ट फेल हो गया.......हम भी ठहरे एकदम कोरे भोले पंछी.....हमें यही लगता कि चलो अच्छा ही हुआ ईनाम नहीं आया, ज़िंदगी से बढ़ कर भी है क्या कुछ.....सच में हम बहुत डर जाते यह सुन कर कि जिन का बड़ा ईनाम निकलता है ....उन की खुशी के सदमे से मौत भी हो जाती है ....

और हां, दीवाली, दशहरा, लौहड़ी पर कुछ खास लाटरीयां बिकती थीं ..बम्पर-शम्पर ...५०-१०० की टिकटें बिकती थीं ...शायद कभी कभी हम लोगों ने भी खरीदी थीं ....बड़ी हसरत के साथ के कभी तो निकले यार .....हमारी भी एक लाटरी ...घर में हम सब लोग ख्याली पुलाव बनाते कि अगर एक लाख की लाटरी निकलेगी तो उस से क्या क्या करेंगे ...और खूब हंसा करते ...और जब नतीजा आता तो हमारे सभी ख्वाब मिट्टी में मिल जाते .... 


अब और क्या लिखूं यार....याद करूंगा तो बहुत कुछ याद आता जाएगा....अब बात करते हैं आज की ...उन महिलाओं की ...मैंने सोचा कि यहां क्या चल रहा है, थोड़ा वह भी समझ लिया जाए। एक महिला लोगों को बता रही थी उस के हाथ मे ं एक शीट थी जिस पर स्क्रेच करने वाला एक स्टिकर था ...यह छोटी सी शीट १०० रुपये में बेच रहे थे .....चलिए, जल्दी से उसे स्क्रेच करें...और हां, उस पन्ने पर दो तरह की चीज़ों की लिस्ट बनी हुई थीं ....अगर तो उस स्टिकर को खरोंचने पर आप का कुछ इनाम इस तरह का आ गया जिस की कीमत ८५० रुपये होगी तो आप उस को मुफ्त हासिल कर सकेंगे .....बस, आप लूट ले जाइए....और अगर कोई बड़ी आइटम निकलती है तो आप को उस आइटम के दाम में २७५० रूपये की छूट मिल जाएगी..........और अगर कुछ नहीं भी निकला ...अगर आप इतने ही किस्मत के मारे हैं तो भी गम नहीं ...आप के १०० रुपये कहीं नहीं गए......आप को १०० की जगह ३०० रूपये वापिस मिल जाएंगे......वाह.....वाह ...