हड़बां
पंजाबी भाषा दा इक पुट्ठा लफ़्ज़ हड़ब,
पुट्ठा ही तो हुआ अगर यह किसी को परेशान कर दे,
जबड़े की कहें या गाल की हड़्डी उसे कहते हैं हड़ब…
दोनों तरफ़ की जब हो बात तो हड़ब से बन गया हड़बां…
किसी के गाल जब जाएं पिचक
ज़ाहिर है चेहरे पर जैसे नज़र पड़ती है सिर्फ़ दिखती हैं…
जबड़े की हड्डीयां …
और इसे पंजाबी अपने शटल्ली अंदाज़ में फरमाते हैं..
हड़बां निकल आईयां ने उस दीयां…..
युवावस्था की दहलीज़ पर अकसर लड़कों की निकली ही दिखती थीं हड़बें
फिर सुनना पड़ता जने-खने से, सवालों से भरी उन की आंखों से,
मां-बापू, दादी, नानी, बुआ से …
क्यों निकल गई हैं हड़बें तुम्हारी…..कुछ करो…।
शारीरिक बदलाव, मानसिक उथल-पुथल,
अपने ही में सिमटे, सकुचाते, सुनहरी सपने उधड़ने-बुनने की कच्ची उम्र
हारमोन लोचे से, काल्पनिक बीमारियों से जूझता…
क्या ही कर लेता इस का लेकिन
बार बार ये हड़बां-हड़बां सुन
काका और भी रहने लगता परेशान ….
कुदरत का प्यारा निज़ाम देखिए….
अगले दो चार बरसों में गालें भी भर जातीं और शरीर भी ….
खैर, हर पिचके हुए गालों की दास्तां जुदा है …
स्कूल-कॉलेज वाले लड़कों की बात हो गई ….
फिर हम लगे देखने …बड़े बड़े खिलाड़ीयों को भी,
टॉप माडल, हॉलीवुड स्टार भी …
हड़बें उन की भी निकली दिखतीं…
ज़िंदगी के सफ़र में फिर आगे देखा
डाईटिंग, फैशन, स्टाईल के दीवाने
जब चाहते हड़बां निकाल लेते
जब चाहते भर लेते उन पिचके गालों को …
ज़रूरत पड़ने पर भरवा भी लेते फिल्लर से ….
पैसे वालों के लिए दिखा यह एक खेल….
दांत निकल जाने से गाल जाते ही हैं पिचक
हड़बां आती हैं निकल …
नकली दांतों तक हर किसी की नहीं होती पहुंच
पूरी उम्र गुज़ार देते है पिचके गालों के साथ अमूमन
पोपले बने हुए, हड़बां निकली हुईं …
दांत नहीं हैं तो क्या जीना छोड़ दें….
गजब की बात यह कि सब कुछ खा-चबा लेते हैं…
मौज करते है, खुल कर बेपरवाह हंसते भी दिखते हैं…
किसी से कोई शिकायत नहीं….
जिंदगी से राज़ी दिखते हैं, समझौता कर लेते हैं…
इन की बेपरवाह रुह से निकली हंसी सब को लेती है मोह ….
चिढ़ाती हो जैसे उन लोगों को
जिन्होंने लाखों लगा दिए दांतों के इंप्लांट पर,
चेहरे पर बोटॉक्स लगवाने में,
गालों का ज़रा भी अंदर धँसना रोकने के लिए,
हरेक मसल को पूरा एकदम टनाटन टाईट रखने के वास्ते,
किसी मसल की क्या मजाल की चेहरे पर ज़रा ढिलका दिख जाए…
इन सब जुगाड़ के बावजूद….
कुछ लोगों की हंसी इतनी कैलकुलेटेड, डरावनी, बनावटी और मज़ाक उड़ाती ही दिखीं….
दूसरों की खिल्ली उड़ाती....😂
दास्तां जुदा हैे हर पिचके गालों की….
नशा-पत्ता करने वालों की भी उभर आती हैं हड़बें…
कल शाम एक एक अधेड़ उम्र की बहन दिखी ट्रेन में चढ़ती…
एक दम पिचके गाल, हड़बां ही हड़बां दिखतीं,
इस तरह की हड़बें निकली हुईं देखने वाले को कर देती हैं फ़िक्रमंद…
इन हड़बों के साथ बीमार शरीर भी दिखता है इक मुट्ठी हड्डियों जैसा,
अंदर धंसी आंखे, उम्मीद की मंद किरणों से रोशन,
इस तरह की हड़बों को चाहिए …
दवा के साथ दुआ….बढ़िया खाना, मुकद्दर भी चाहिए अच्छा….
यह सब हरेक को कहां हो पाता है मयस्सर,
इसीलिए टावां टावां ही ….🙏
प्रवीण चोपड़ा
28.10.25
पुट्ठा (पंजाबी लफ्ज़)- उल्टा,
टावां-टावां (पंजाबी) ….कोई कोई
अभी मैं जब इस पोस्ट को बंद कर रहा हूं, विविध भारती पर यह गीत बज रहा है …. सुपर-डुपर हिट गीत …हमारे कॉलेज के दिनों की यादों का एक अहम् हिस्सा …