रविवार, 28 जुलाई 2024

लक बॉय चांस ....जुहु बीच पर ...





आज सुबह जुहू बीच पर पहुंचते ही ऐसे लगा कि वापिस ही चला जाए....फिर यही लगा कि अब इतनी दूर आए हैं तो थोड़ा वक्त बिता ही लिया जाए....हां,वापिस जाने का मन इस लिए हुआ था क्योंकि वहां पर बहुत गंदगी पसरी हुई थी....खैर, दो मिनट चलने पर पाया कि हालात इतने भी बुरे नहीं है, थोड़ा टहलना तो हो ही सकता है ...





एक बात जो मैं हमेशा कहता रहता हूं कि अगर हम लोग घर के बाहर निकलें ...खास कर पैदल चलें थोड़ा बहुत जितना हो सके ..तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि हमें कुछ ऐसा न देखने को न मिले जिसे हम पहली बार देख रहे हैं...कहीं कोई सब्जी, कोई फल, कोई नज़ारा ऐसा दिख ही जाता है जिसे हमने पहले नहीं देखा होता....आज भी अभी दो मिनट ही चला था कि देखा समंदर में कुछ आदमी एक छोटा सा जाल लेकर खड़े हैं, ऐसे लग रहा था कि कुछ तलाश रहे हैं...मछली तो हो नहीं सकती किनारे के इतनी पास...किसी बंदे से पूछा तो पता चला कि सिक्के ढूंढे जा रहे हैं....फिर भी बात समझ में आई नहीं...अब नहीं आई तो नहीं आई, क्या करें....उन के साथ आगे जा कर खड़े तो नहीं सकते कि पूरी प्रक्रिया का गहन अध्ययन हो सके....



इन स्वच्छता बंधुओं ने बताया कि जब ये सारा कुछ इक्ट्ठा कर लेते हैं तो आता है ट्रक ...



तुम ले रहे हो भाई टैक्नोलॉजी का पूरा फायदा...वीडियो कॉल से गांव में सारे कुनबे को जुहू बीच घुमा दिया....

आगे बढ़ने पर देखा कि वहां भी बहुत से लोग इसी तरह के सिक्के ढूंढने में मसरूफ़ हैं....इस फ़न का एक खिलाड़ी जो अभी मैदान में नहीं उतरा था, मैंने उस से पूछा कि क्या चल रहा है। उसने भी वही जवाब दिया.....मैंने कहा कि हां, पिछली जगह पर कोई एक तांबे का पूजा का यंत्र सा दिखा तो रहा था ....उसने कहा कि सब लक बॉय चांस है .....सिक्के तो मिलते ही हैं, कितने मिलेंगे किसी को सब किस्मत केऊपर है ...और कईं बार तो चांदी और सोने के सिक्के भी मिल जाते हैं....


हमारे लिए यही जुहू बीच हुआ करता था....हम थोड़ा बहुत ही टहलते थे ...रात में बीच पर रोशनी नहीं होती थी, इसलिए उन दिनों बीच के सुनसान इलाकों में अंधेरे की तलाश में आए लोग भी अकसर दिख जाते थे ...






कौन जाने इन में से कौन कल का सचिन होगा .....यह तो अल्ला को खबर, यह तो मौला को खबर ....


इन्होंने भी अपने काम पर पूरी रिसर्च की हुई लगती है ....सारी स्ट्रेच में दो तीन जगहों पर ही ये माल तलाश रहे थे ...



अपनी अपनी आस्था के अनुसार कुछ लोग ये सब चीज़ें समंदर मेंं फैंकते हैं....और उस बंदे ने बताया कि बारिश के मौसम में यह सब चलता रहता है ...मैंने पूछा कि सारा दिन यह खोज चलती है ....उसने कहा कि नहीं, जब तक पानी उतर नहीं जाता, तभी तक ....पानी के उतरते ही (लो-टाइड) यह खोज बंद हो जाती है ....

मेहनत कर रहे थे वे लोग ...कुछ हाथ लगना भी चाहिए.....

मुझे भी याद आ गया कि जब हम लोग अमृतसर में रहते थे तो रेल गाड़ी से कहीं भी जाना होता तो पहले तो ब्यास नदी और फिर सतलुज नदी तो पड़ते ही थे ....मैं अकसर देखता था कि लोग नदी आने से पहले ही पैसे तैयार रखते थे ट्रेन की खिड़की से नीचे गिराने के लिए ....मुझे बड़ी हैरानी होती थी.. वैसे मैंने कभी गिराए भी नहीं ....पैसे फैंकने की बजाए मैंने तो मैं वेसन के गर्मागर्म लड्डू और बढ़िया बढ़िया पूरी छोले जो इस रुट पर गाड़ी के अंदर लगातार बिकते रहते हैं ....वही खरीद कर पेट पूजा पर पूरी तवज्जो दी....फिर बाद में जब लोग अंबाला से आगे निकलते तो जमुना नदी में भी इसी तरह से पैेसे फैंकते यात्री दिखते थे ....यह तो थी बात नदियों की लेकिन मुंबई का समंदर तो फिर समंदर हुआ ... न कोई ओर न छोर ....इस लिए ये माल ढूंढने वाले अपने काम में लगे हुए दिखे ....

बीच पर फुटबाल खेल का तो मज़ा आ जाता होगा 


लॉक डाउन के दौरान मैंने भी इसी तरह की फैट-साइकिल को इसी बीच पर चला चला कर अपने बचे खुचे गोड्डे बर्बाद कर लिए थे ..

यादें बनाने में लगे हुए परिवार ...उम्र भर की यादें 



आज के सुनहरी पल.....उम्र भर की यादें 

एक महिला ध्यान मुद्रा में दिखी ....👍प्रेरणादायी चित्र

आज एक बात पहली बार देखी कि लोग अपने कुत्तों को भी समंदर में अपने साथ तारी लगवा रहे थे ....वो तो ठीक है, कुछ लोगों ने अपने शेरों जैसे दो दो-तीन तीन कुत्ते खुले छोड़े हुए थे ....अब वे होंगे अपने मालिकों के कंट्रोल में, मालकिनों के इशारे पर चलते होंगे लेकिन इस से आम पब्लिक को क्या.....जब भी वे कुत्ते किसी दूसरे के पास आते तो वह तो डर जाता ...एक दो बार तो मैं भी डर गया....आखिर किसी एक तो कहना ही पड़ा .....दिस इज़ नॉट एक डॉग पार्क....होल्ड दैम....

जुहू बीच पर भी सुबह सुबह बहुत सारे नज़ारे देखने को मिलते हैं.....साथ साथ मेरी उम्र के नौजवानों को अपने चालीस- पचास साल पुराने दिन याद आने लगते हैं.....बहुत से परिवार तो यादें बनाने में लगे हुए थे .....छोटे बच्चों के साथ तो वैसे ही माहौल हर वक्त, हर जगह खुशनुमा हो ही जाता है ...

आज से जब 35-40 साल पुरानी यादें इसी जुहू बीच की याद आती हैं तो वह फोटोग्राफर भी याद आता है जिस के पास पोलरायड कैमरा होता था जो उसी वक्त फोटो निकाल कर हमारे हाथ में दे देता था ...शायद यही कोई पचास रूपए लेता था लेकिन उम्र भर की एक याद थमा देता था ....जाओ,ऐश करो, देखते रहो, उम्र भर ....मेरे पास भी 1981 की एक ऐसी ही फोटो है, लेकिन कहीं दबी पड़ी होगी.... 

आज भी जब कुछ लोगों को इसी तरह से फोटो खिंचवाते देखा तो पुराना दौर याद आ गया.....लोग भी शेल्फी ले-लेकर थक चुके हों जैसे ...कुछ लम्हें इसी तरह से संजोने लायक होते हैं....मोबाइल का क्या है, इस में पड़ा सब कुछ लेबाइल है .....कब कहां गायब हो जाए....कुछ अता पता नहीं...

 एक दंपति शायद रील बनाने में लीन थे ....बहुत बढ़िया ...रील बनाने का यह बहुत बढ़िया वक्त है ....

जुहू बीच पर क्रिकेट का मैच भी चल रहा था और फुटबाल की प्रेक्टिस भी ....


कालेज के छात्र श्रम-दान करते हुए ....



बच्चू, तीन हज़ार मील की दूरी पहले कदम से ही शुरू होती है ....मुबारक हो तुम्हें तुम्हारे नन्हे नन्हे कदम ...


अचानक यही ख्याल आया कि जब पिछली बार यहां आना हुआ था तो सफाईयां बड़े ज़ोरों शोरों पर चल रही थीं ....ट्रक भी इक्ट्टा किया हुआ इस तरह का सामान उठाते दिखते थे...अभी इतना सोच ही था कि स्वच्छता स्टॉफ दिख गया ....मैंने पूछा कि कब तक चलता है यह काम ...उसने बताया कि शाम के सात बजे पर चलता रहता है ....और दिन के 400 रुपए पाते हैं....जितने भी सार्वजनिक स्थल हैं ...वे सभी इन स्वच्छता स्टॉफ के बलबूते पर चल रहे हैं....उन में से एक ने बताया कि ये जो प्लास्टिक आप देख रहे हैं ये गटर के रास्ते यहां पहुंच जाता है ....

इतने में चलते चलते वह जगह आ गई जिसे हम जुहू बीच समझते थे .....एक जगह जहां कार, टैक्सी या आटो जिस में हम आते थे हम बस उसी को जुहू बीच समझते थे ....वहां समंदर में जाकर भीगना...फिर पानीपूरी-भेलपूरी खाना, बर्फ का गोला खाना ....और थोड़ा इधऱ उधर टहल कर वापिस लौट आना....यही यादें हैं जब भी बंबई आते थे ....एक बार 20-21 की उम्र की भी यादें है ...वे दिन भी मानसून के ही थे ....बारिश में भीग गया था ....यह वह दौर होता है जब हम लोग कोई फिल्म भी देखते तो हमें लगता कि वहां कुमार गौरव नहीं है, यह गीत तो हम पर ही फिल्माया जा रहा है .....अकसर फिल्म देखने के बाद जब भी कोई इस तरह का गीत रेडियो पर बजता....या वेस्टन के टू-इन-वन पर टेप लगा कर सुना जाता तो बहुत बार आंखें बंद किए ही वे गीत सुने जाते ....जब उन दिनों की याद आती है तो यह भी अकसर याद आता है >>>>....आ, मुलाकातों का मौसम आ गया....


जुहू बीच से वापिस आते वक्त देखा कि दूर भी किनारे की कुछ सफाई चल रही है ...पास जा कर देखा तो कालेज के युवक दिख रहे थे ...एमिटी कालेज अंधेरी से ये युवक आए हुए थे ...शनिवार या रविवार युवक आते हैं ..सुबह के वक्त ....इस स्वच्छता अभियान से जुड़े हैं.....बताने लगे कि बीच-वारियर्स नाम का एक ग्रुप है जो यह सब अरेंज करता है ....एक बीच-वारियर भी खड़ा था...उसने बताया कि स्वच्छता के साथ साथ इस ग्रुप का यह भी मिशन है कि वेस्ट मैनेजमेंट के बारे में, वेस्ट सेग्रीगेशन के बारे में भी इन युवाओं को और लोगों को जागरूक किया जाए कि यह कचरा वह नहीं है कि इसे लोगों ने यहां गिराया है ...यह वह कचरा है जो लोगों ने बिना सेग्रीगेशन के यहां वहां फैंका और वह यहां समंदर से होते हुए यहां तक आ पहुंचा है ...

घर आकर यह भी क्लास लेती है कि मुझे क्यों नहीं ले कर गए...नाराज़ हो जाती है बड़ी जल्दी ...