मंगलवार, 21 जून 2016

विश्व योग दिवस से सभी को मिली प्रेरणा



आज विश्व योग दिवस है ..यहां लखनऊ में सुबह से ही झमाझम बरसात की वजह से फिज़ाएं भी खुशनुमा थीं...सुबह उठ कर बाहर देखा तो सुंदर नज़ारा दिखा...


आज लखनऊ के उत्तर रेलवे के मंडल चिकित्सालय में भी विश्व योग दिवस को बड़े सुंदर ढंग से मनाया गया...
इस अवसर पर मल्टीमीडिया प्रोजेक्टर के द्वारा आयुष विभाग की एक आडियो-वीडियो प्रस्तुति के माध्यम से इस कार्यक्रम का बहुत सुंदर रूप देखने को मिला...







इस कार्यक्रम में कर्मचारियों एवं अधिकारियों ने शिरकत किया और इस बेहतरीन आयोजन से लाभ प्राप्त किया...
सब से पहले तो योग के महत्व को बड़े ही प्रभावशाली ढंग से बताया गया...उस के बाद कुछ स्ट्रैचिंग एक्सरसाईज़ कीं...उस के बाद कुछ योगासन, तत्पश्चात् प्राणायाम् एवं उस के बाद ध्यान की बारीकियां समझाई भी गईं और उस का अभ्यास भी किया गया...

विभिन्न आसनों के क्या लाभ हैं, प्राणायाम् करने का सही ढंग बहुत अच्छे से समझाया गया..


मुझे याद है आज सी तीस चालीस वर्ष पहले हम लोग जब किसी को टीवी पर योगाभ्यास करते हुए देखा करते थे ..हां, क्या नाम था उन का ..शायद धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ...नया नया टीवी लिया था..उन के शिष्य जैसे ही हमें स्क्रीन पर टेढ़े-तिरछे कुछ आसन करते दिखते हम यही सोच लिया करते कि यह तो भई इन योगियों के बस का ही काम है, हम से तो नहीं होगा...

लेिकन अब योग का दृश्य बदल चुका है ...जिस तरह से इसे विश्व भर में मान्यता प्राप्त हुई है ..इस में लोगों की दिलचस्पी बहुत ज़्यादा बढ़ चुकी है ....वैसे अजीब सा लग रहा है यह लिखना कि इसे मान्यता प्राप्त हुई है ...इस पुरातन मनीषियों द्वारा सहेज के रखी गई धरोहर को आज विश्व ने क्या मान्यता देनी है..ये तो समूची मानवता के आरोग्य एवं कल्याण की विद्या का सम्मान कर के हम स्वयं सम्मानित होते हैं..

शायद हम लोगों ने पहले इतनी तन्मयता से इस तरह से सामूहिक रूप से इस तरह का अभ्यास नहीं किया था...एक आलौकिक ऊर्जा का संचार हो रहा था ....

ध्यान आ रहा था जब इस तरह के विभाग ...योग विभाग ...देश के प्रीमियर मैडीकल कालेजों द्वारा खोले जा रहे हैं..ऐसे में ज़रूरत है इस तरह से संदेशों को जनमानस तक बार बार पहुंचाए जाने की ...ताकि यह सब उन के जीवन का अभिन्न अंग बन जाए।

हां, मुझे यह भी ध्यान आ रहा था कि इस तरह की आडियो-वीडियो प्रस्तुति ओपीडी के वेटिंग एरिया में रोज़ाना चला दी जानी चाहिए....मरीज़ों एवं उन के तीमारदारों को इंतज़ार करते हुए कुछ अच्छा प्रेरणात्मक देखने सुनने को मिलेगा तो उन्हें अच्छा महसूस होगा....पता नहीं कौन सी बात हमारी जीवनशैली में अच्छा बदलाव ले आए....जब संसाधन हैं तो उन का बेहतर इस्तेमाल भी होना चाहिए...देखते हैं इस के बारे में कुछ करते हैं..

प्रेरणा की बात चली तो मुझे भी यह प्रेरणा मिली है कि मैं भी इस वीडियो को चला कर नित्यप्रतिदिन योगाभ्यास, प्राणायाम् एवं ध्यान किया करूंगा....अच्छा लगा आज बहुत....और यह भी महसूस किया कि हम लोग बिना वजह योगासनों से डर जाते हैं कि पता नहीं होगा कि नहीं होगा......कोई जल्दी नहीं, इत्मीनान से करते रहिए जितना आपके शरीर का लचीनापन आज्ञा दे....वैसे भी इस वीडियो में वह सारी जानकारी बड़ी स्पष्टता से दी गई है जितनी हमें चाहिए ...बाकी तो किसी की कला को रिफाईन करने की जहां तक बात है, यह तो ताउम्र चलता ही रहता है ...
सब से ज़्यादा ज़रूरी है कि हम एक बार इस की शुरूआत तो करें....और इस के नियमित अभ्यास को अपनी आदतों में शुमार कर लें...

इस वीडियो को मैंने यहां एम्बेड तो किया ही है ..इस का लिंक भी यहां दे रहा हूं..आप इसे डाउनलोड कर के रख लीजिए और नित्यप्रतिदिन इस की सहायता से योगाभ्यास करते रहिए....हम लोग स्कूल में जब आते थे...तख्ती पर मास्टर लोग हमें पूरने डाल देते थे पैंसिल के साथ ...फिर उस के ऊपर हमें कलम और स्याही से लिखना होता था...धीरे धीरे फिर हमें बिना पूरनों के लिखना आने लगा....योगाभ्यास भी ऐसा ही है।
श्री बिहारी लाल जी के साथ शेल्फी खिंचवा कर मैंने गौरवान्वित महसूस किया 
आज प्रेरणा का ध्यान आ रहा बार बार...दो दिन पहले एक व्यक्ति मिला ...जबड़े की किसी तकलीफ़ के साथ आये थे..मैंने जब उम्र पूछी तो मैं दंग रह गया...मुझे लगा कि मुझे सुनने में गलती लगी है...मैंने अपने सहायक से भी पूछा कि श्री बिहारी लाल जी की उम्र कितनी होगी?...उस का भी अनुमान मेरे साथ मेल ही खा रहा था...उसने भी यही कहा कि होगी, साठ से थोड़ी बहुत ऊपर नीचे....वैसे आप भी इन की उम्र का एक अनुमान लगाईए ..मैं अभी इस का जवाब बताऊंगा....

आप को भी हैरानगी होगी यह जान कर कि इन की उम्र ८५ साल की हो चुकी है ...86वां साल चल रहा है...इन्होंने अपनी इस सेहत के राज़ बांटते हुए बताया कि बिल्कुल सादा खाता हूं...रोज़ाना सुबह टहलने जाता हूं..किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं है, बीड़ी-सिगरेट-शराब-तंबाकू को कभी छुआ भी नहीं...अगर कोई शादी ब्याह में शराब पीने के िलए कहता है तो मैं हाथ जोड़ देता हूं... और हां, एक बात और ...अभी भी रोज़ २०-२५ किलोमीटर साईकिल ज़रूर चलाता हूं...मस्त रहता हूं.....मैंने कहा कि और किसी को अपनी उम्र मत बतलाईएगा......नज़र लग जायेगी!....यह सुन कर वह ठहाके लगा कर हंस पड़े।

जाते जाते मैंने उनसे कहा कि आप जैसे जवान बुज़ुर्गों को तो सरकार को फिर से नौकरी पर रख लेना चाहिए...एक अलग तरह की ड्यूटी पर ... अस्पतालों की ओपीडी के वेटिंग एरिया में आप जैसे लोगों का एक बड़ी सी कुर्सी लगी होनी चाहिए...जहां पर लोग आप के पास आकर आप की सेहत को राज़ जान पाएं, कुछ सीख पाएं, युवा लोग नशों की लत से दूर रह सकें....सच में ऐसे जवान बुज़ुर्गों के पास बहुत कुछ होता है जिससे हम सब लाभ उठा सकते हैं.....लेिकन अगर कोई सुनने की परवाह करे तो।

 विश्व योग दिवस पर परमपिता परमात्मा से यही याचना-प्रार्थना है कि सब लोग योग को अपने जीवन में उतारें...और अपनी जीवनशैली को ज़्यादा उलझाए बिना सीधा सीधा पटड़ी पर ले आएं......... आमीन!



सोमवार, 20 जून 2016

लखनऊ के मौसम ने भी ली करवट...

अब पता नहीं यह प्री-मौनसून है या क्या है, लेकिन सच यह है कि लखनऊ के मौसम ने आज शाम करवट ली है ....मौसम खुशगवार सा लग रहा है ..


अभी मैं चारबाग से आलमबाग की तरफ़ आ रहा था तो देखा कि मैट्रो का काम भी जोरों-शोरों से चल रहा है ...

मैट्रो रेलवे के अनुशासन को देख कर बहुत ही अच्छा लगता है ..सब कुछ कायदे से हो रहा है...उस महान् पुरूष श्रीधर जी को शत्-शत् नमन...कुछ पुरूष अपने आप में एक संस्था होते हैं...१९९० के दशक से उन के बारे में पढ़ते रहते हैं जब से कोंकण रेलवे को बिछाया जा रहा था...फिर दिल्ली ...और फिर बीच में कितने ही शहर...अब लखनऊ में ...

आप देखिए इन तस्वीरों में कि सड़क जैसी पहले थी उस से बेहतर ही हुई होगी...क्यों कि मैट्रो के तो केवल खंभे ही हैं ज़मीन पर ..बाकी तो सब वैसा का वैसा ही है...जगह जगह से जो लोगों को कट मारने की लत है, वह भी गई समझो...मैट्रो रेलवे के द्वारा बढ़िया सी रेलिंग लगाई जा रही है..


अभी मैंने श्रीधर जी को याद किया तो मुझे आज सुबह की बात याद आ गई..मैं ड्यूटी पर जा रहा था तो मैंने देखा कि मेरे सामने वाली कार की नंबर प्लेट पर नंबर के ऊपर बड़े बड़े से अक्षरों में लिखा हुआ था महात्मा....मुझे ज़्यादा हैरानगी वैसे हुई नहीं ..क्योंकि यहां लखनऊ में हर दूसरे वाहन के ऊपर उ.प्र.शासन..पुलिस, अधिवक्ता, हाई कोर्ट, सचिवालय, अध्यक्ष, सचिव, जिला प्रधान.....पढ़ते पढ़ते मैं ऊब चुका हूं...इसलिए आज यह अजीब सा नया लेबल देख कर बस कुछ अलग सा लगा...  इत्तिफाकन मुझे भी खास की बजाए आम बंदे से ही मिल कर ज़्यादा खुशी होती है जिस को लटकाने के लिए कभी कोई बिल्ला मिला ही नहीं...वे मेरे से और मैं उनसे दिल खोल के बतिया लेता हूं....क्या करें, मुझे हमेशा से अच्छा लगता है...

सोचने वाली बात है कि क्या महात्मा लोग लेबल चिपका कर घूमते हैं ..तख्ती लटकाते हैं कि मैं महात्मा हूं....नहीं ना, मैं भी यही समझता हूं...इसलिए उस में बैठा आदमी कुछ भी होगा, लेकिन महात्मा नहीं हो सकता...महात्मा लोग तो वैसे ही इतने सभ्य, निर्मल, विनम्र होते हैं कि क्या कहें!..

मैं भी लैपटाप खोल कर लिखने तो लग गया.....पता कुछ नहीं कि लिखना क्या है ...बस, ऐसे ही मौसम का हाल चाल अच्छा देखा, उमस से राहत महसूस हुई तो उंगलियां चल पड़ीं...

वैसे भी मैं सोच रहा हूं कि अपनी पोस्टों की लंबाई थोड़ी कम ही कर दूं...इतना लंबा लंबा कौन पढ़ सकता है ....करता हूं कुछ इस के बारे में आज से ही ..अपनी बात कम शब्दों में भी रखने का सलीका सीखना होगा...

अच्छा अभी एक काम करते हैं ...बारिश के लिए मिल कर प्रार्थना करते हैं....आप भी शामिल हो जाइए इस में ....

मंगलवार, 14 जून 2016

खुशियों का आचार डालें?

कुछ मैसेज वाट्सएप पर ऐसे मिलते हैं जो सारा दिन दिमाग में हलचल मचाए रहते हैं...कोई आइडिया मन को इतना अच्छा लगता है कि इच्छा होती है कि इसे अपना ही लिया जाए...

आज सुबह मुझे भी खुशियों का आचार डालने वाला एक मर्तबान मिला ...आप भी इस के दर्शन कर लीजिए..

इस मर्तबान पर लिखा है कि यह खुशियों का जार है ...हर दिन एक ऐसी बात लिखिए जिसने आप को खुश किया हो ..उस कागज़ के पुर्ज़े को इस जार में डालते जाईए...और साल भर यह काम करिए...साल के अंत में उस जार को खोलिए ...और यह देख कर आप हैरान हो जाएंगे की कितनी सुंदर और अद्भुत घटनाएं सारे साल के दौरान घटती रहीं जो आप को खुश करती रहीं...

मुझे यह आइडिया बहुत अच्छा लगा.. मैं सोच रहा हूं कि मैं भी यह काम शुरू कर दूं...देखता हूं...अगर आज ही से शुरू हो जाए तो और भी बढ़िया...मेरे विचारों का कुछ भरोसा नहीं..

मुझे ध्यान यह भी आया कि अकसर हर रोज़ हमें बातें तो वही खुश करती हैं जहां पर हम ने किसी के साथ अच्छे से बर्ताव किया है, ढंग से बात की है, किसी की बात अच्छे से सुन कर उसे रास्ता सुझाया हो ....लंबी लिस्ट है...

और यह संभावना भी है कि अपने बारे में बस अच्छी अच्छी ही बातें लिखते रहना होगा... लेकिन फिर ध्यान आया कि खुशियों के मर्तबान की ऐसी कोई शर्त भी तो नहीं कि अपने मुंह मियां मिट्ठू भी नहीं बन सकते...सीधी सी बात है कि जो मन को खुश करे दिन भर में ...उसे लिखिए और इस मर्तबान में डाल कर छुट्टी करिए..

आज एक ग्रुप पर बात करते हुए यह भी बात ध्यान में आई कि जब हम लोग पुराना समय याद करते हैं तो अकसर दिनों को नहीं याद करते, चंद लम्हें हमारे दिलो-दिमाग पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं...है कि नहीं?

चलिए, मैं कुछ वाकया लिखूंगा....ज़ाहिर है जो बातें मुझे खुश करती हैं वही लिखूंगा...इसे अन्यथा न लिया जाए...वैसे तो मैं भी कमियों का पुतला हूं...जानता हूं...लेिकन यहां पर लिखने के लिए मुझे खुशी देने वाली बातों का जिक्र करूंगा...बिल्कुल एक उदाहरण के तौर पर....शायद किसी को प्रेरणा मिले...

मुझे लगता है कि यह सब लिखना बड़ा घटिया सा लगेगा...जिन बातों को मैंने अभी तक किसी से भी शेयर नहीं किया..लेकिन फिर ब्लॉग तो ब्लॉग है ही...जहां आप अपनी ज़िंदगी की किताब के कुछ पन्ने खोलने की हिम्मत जुटाने लगते हैं...

प्रसाद का भोग..
एक वाकया है कुछ महीने पहले का...मैं सत्संग के लिए बेसन के लड्डूओं का प्रसाद लेकर जा रहा था ..अचानक एक सड़क के किनारे पर मैंने देखा कि एक कमज़ोर दिखने वाली महिला अपने रिक्शे से नीचे उतर कर बैठी हुई है ...अपना माथा पकड़े ...रिक्शेवाला भी परेशान सा पास ही खड़ा है...अब इतना पूछना तो बनता ही था कि क्या हुआ ?..मैंने स्कूटर पास में खड़ा कर दिया और मुझे पता नहीं क्यों लगा कि यह प्रसाद खाने से यह ठीक हो जायेगी...पानी की बोतल तो उन के पास थी ही ....मैंने पूछा कि प्रसाद लेंगे?...तो उस महिला ने मेरी तरफ़ ऐसे देखा जैसे कि मौन सी हामी भरी हो कि हां, लेंगे.....मैंने उसी समय उस डिब्बे को खोला ...उस महिला को, उस के साथ खड़े पुरूष को ...और रिक्शेवाले को वे बेसन के लड्डू दिए...मुझे पता नहीं आज भी लगता है कि जैसे वह उस औरत उस प्रसाद को भोग लगाने की ही इंतज़ार कर रही थी...मेरे सामने ही उस महिला ने प्रसाद खाया और मैं दो मिनट वहीं था...मुझे लगा कि उसे कुछ ठीक सा लग रहा है ...अगर मैं उस दिन वहां से उन लोगों को प्रसाद का भोग लगाए बिना आगे निकल आता...तो शायद मैं अपने आप को कभी माफ़ न कर पाता....मुझे लगा कि मैंने प्रसाद को सही भोग लगवा लिया है .....इस बात ने मुझे बहुत खुशी दी थी...

एक बुज़ुर्ग को लिफ्ट..
अस्पताल के बाहर आते ही जब मैंने एक बुज़ु्र्ग को लिफ्ट दी तो वह झिझकते हुए बैठ तो गए...फिर कहने लगे, वहां छोड़ देना, वहां से आटो ले लूंगा...लेकिन मैंने उन के घर का पता पूछ कर उन्हें घर पर ही पहुंचा दिया...उस दिन भी मुझे बहुत अच्छा लगा...और विशेषकर यह सोच कर और भी अच्छा लगता है कि मैंने यह काम निःस्वार्थ किया...

इस तरह की बातें भी क्या गिनाने के लिए होती हैं...लेकिन अगर ऐसा न करूं तो आप को मेरे हल्केपन का पता कैसे चलेगा!

चलिए..अब आज से मैं तो शुरुआत कर रहा हूं..मेरी मशविरा है कि आप भी कर दीजिए...अच्छा ही नहीं, बहुत  ही अच्छा लगेगा....और आप का इस में जा क्या रहा है?..कुछ भी नहीं....आप का मर्तबान आप के पास है, ठीक लगे तो ठीक, वरना वे पर्चियां बाहर कूड़ेदान में फैंक कर आम का आचार उस में भर दीजिएगा....its as simple as that! 

वैसे विचारों की उड़ान का भी क्या है, आज खुशियों के मर्तबान को सुबह देख कर आचार तैयार करने वाले पुराने दिनों की रील दिमाग में घूम गई...आज भी आचार तो डाले ही जाते हैं...लेकिन मुझे ४० साल पहले की बातें याद आ गईं जब आचार डालना एक उत्सव से कम नहीं होता था..आधे मोहल्ले को पता होता था कि किस किस घर में आचार तैयार हो चुका है..कौन सी गृहिणी किस आचार में परफैक्ट है ....सब कुछ पता होता था...और जब रिश्तेदार के पास दूसरे शहरों में जाते हुए बिस्तरबंद, सुराही, ट्रंक, एक कमबख्त डालडे का डिब्बा आचार का भर कर भी ले कर जाना होता था...इस के बारे में किसी दिन फिर ठिकाने से लिखेंगे... 

वैसे तो आप को ऊपर बताए गये खुशियों के आचार वाले मर्तबान वाला ख्याल कैसा लगा?...हो सके तो लिखिएगा....वरना कोई बात नहीं। 

उस मर्तबान के बारे में मेरे मन में एक विचार यह है कि क्या साल बाद इसे खोलने के बाद क्या वे पर्चियां दूसरों के साथ शेयर कर सकते हैं?...I don't think there is any harm!. I won't mind sharing those special happy moments with anybody around whosoever cares to peep into those moments! 


सोमवार, 13 जून 2016

अफसरी हैंगओवर .. (कहानी)

पाला मानता है कि दारू का हैंग-अोवर तो उसे होता है जिसने अध्धा चढ़ाया हो...उसे ही सुबह उठ कर कुछ जुगाड़ करना होता है उस से बाहर निकलने के लिए ...और वह आसानी से उस से बाहर आ भी जाता है...

लेकिन पाला सोच रहा था कि यह अफसरी का कैसा हैंग-ओवर है जो रियाटर होने के बाद अफसर को कम और उस की बीवी बच्चों को बहुत परेशान करता है। 

पाले को याद आ रहा था कि किस तरह से साहब के दफ्तर जाने के बाद मेम साहिब के सामने साहब के नीचे काम करने वाले लगभग १५ कर्मचारी हाथ बांधे खड़े हो जाते थे...और वह किस तरह से उन को काम बांटा करती ...अनुशासन इतना कि सिर्फ़ सूर्यमुखी के फूल पर ही अफसरी नहीं चलती थी, वरना हर पौधे की दशा-दिशा भी मेमसाहब की मर्जी से ही तय हुआ करती थी...भले ही उस के लिए पौधों के छोटे छोटे तने के साथ लकड़ी ही क्यों न बांधनी पड़े...

अच्छा, पाला सब समझता था कि वैसे तो उस की संस्था में इतनी यूनियनबाजी है...छींक मारते ही ज़िदाबाद मु्र्दाबाद करता हुआ मोर्चा आ जाता है..लेिकन ये अच्छे खासे स्वलंबी दिखने वाले लोग कैसे इस तरह से सारे खानदान के अंडरगारमेंट्स भी रिन घिस घिस  कर धोने के लिए तैयार हो जाते होंगे...धीरे धीरे उसे माजरा समझ में आने लगा कि दफ्तर में काम करेंगे तो काम आठ घंटे करना पड़ेगा...डांट डपट भी कभी कभी खानी ही पड़ेगी.. लेकिन इस काम में तो मजे हैं..एक डेढ़ घंटे का काम...और फिर छुट्टी और साहब लोगों के पास रहने की वजह से साल में एक आध बार कहीं से ईनाम भी मिल जाने का जुगाड़...

पाला अकसर बड़े बड़े रिटायर अफसरों के यहां किसी न किसी काम से जाता रहता है ...पाले ने क्या जाना है, वे ही उसे बुला लेते हैं..

पाला उस दिन अपनी पारो को बता रहा था कि भाग्यवान, जितनी परेशानी मैंने इन अफसरों की रिटायरमैंटी के बाद देखी है उतनी तो मैंने किसी रिटायरमैंट वाले की नहीं देखी...

पाला पारो को कहने लगा िक उस का बापू उसे हंस हंस के बताया करता था कि पाले, जितनी ज़िंदगी अपने एरिया के थानेदारों (दारोगाओं) की रिटायरमैंटी के बाद खराब हो गई...तरस आता है ..पहले तो ये लोग बंदे को बंदा नहीं समझते थे, मां-बहन की गाली निकाले बिना, झापड़ लगाने के बाद तो कहीं जा कर बात शुरू हो पाती थी..जहां मन किया जूस पी लिया, जहां मन किया नाश्ता कर लिया...सारे एरिये का जैसे बाप हो...ऊपरी कमाई का भी कोई हिसाब किताब नहीं...लेकिन रिटायर होने के बाद काई सलाम ठोंकना तो दूर, देखता तक नहीं ...सभी ठाट-बाठ रातों रात ही गायब ...और फिर उन के घर में हर समय कलह-कलेश-मार-कुटापा, सियापा....बस यही कुछ....पारो, ज़्यादा चल नहीं पाते ये रिटायरमैंटी के बाद...

पारो.....लेकिन पाले तुम तो बड़े बड़े अफसरों की बातें कर रहे थे! वह बात तो तन्ने बीच में ही छोड़ दी!
पाला...क्या क्या बताएं पारो, इन बड़े लोगों के बारे में...बस, एक बात तू पल्ले बांध के रख ले कि जितना पैसा है, जितना जितना बड़ा रूतबा है, उतने ही अकसर ये लोग दिल के गरीब से दिखे मुझे...

पारो...पाले, तू कह रहा था कि अपनी लाडो को तो उस बड़े अफसर के घर में घरेलू काम के लिए भेजा करेगा! उस का क्या हुआ!

पाला...आगे से नाम ना लेना लाड़ो के इन अफसरों के घर जा कर काम करने का ...अपनी लाडो तो खूब पढ़ेगी, लिखेगी..उसे हम लोग बहुत बड़ी मास्टरनी बनाएंगे...

पारो...लेकिन पाले तुम ही तो कह रहे थे ..अब क्या हुआ!

पाला...भाग्यवान, तुम सुननी ही चाहती हो तो सुनो...दरअसल, पारो, ये जो बड़े बड़े अफसर हैं ना ये तो अपने कामों में खूब व्यस्त रहते हैं...इन्हें अफसरी भोगने का कुछ िवशेष मौका मिलता नहीं ...लेिकन इन में से कुछ की बेगमें असल में अफसरी के सारे ठाठ भोगती हैं....हर घर में दस-पंद्रह लोग आगे पीछे मेमसाब, मेमसाब करते ...पानी तक पीने की ज़हमत उठाने की ज़रूरत नहीं...लेिकन रिटायरमैंटी के बाद कौन किस की सुनता है तू तो जानती है ..बड़े साहब के यहां पिछले छः महीने में चार नौकरानियां काम छोड़ चुकी हैं... इतना दबदबा, इतना रुआब है मेम साब का लेिकन कौन सहता है, काम करने वाले आज कल वैसे ही नहीं मिलते हैं...

किसी का काम मेम साब को पसंद नहीं आता...उन्हें लगता है जिसे सर्विस के दौरान आगे पीछे १५ लोग घूमा करते थे, उसी तरह से ये एक दो नौकर भी घूमें...किचन में घुस कर राजी नहीं है, चाय तक बनाती नहीं, अगर एक दो दिन कुक छुट्टी पर चला जाए तो सारा दिन ब्रेड और मैगी ही खाते रहते हैं...और ...

पारो...हां हां और क्या, बता जल्दी से...लाडो आने वाली है स्कूल से, उस के लिए कुछ बनाना है मैंने।

पाला..तुम अपना काम करना ..इन बड़े लोगों की रामायण की कथा तो कभी खत्म होने वाली नहीं...हां, पारो, बिंदा भी उस साहब के पास रह चुका है ना ...रिटायरमैंट के बाद...वह बता रहा था कि आदतें इतनी खराब हो जाती हैं कुछ मेमसाहबों की कि कईं बार बाज़ार से छोटा मोटा सामान मंगवाती है तो पैसे भी नहीं देती...ऐसे नाटक करती है जैसे भूल गई हो ..लेकिन बिंदा भी याद दिला कर ही दम लेता है.....बिंदा भी तंग आ गया था वहां से...कह रहा था हर समय कहती है कि साहब जब सर्विस में थे तो पंद्रह बीस लोग थर-थर कांपते बंगले में तैनात रहते थे ..और अब धोबी को प्रेस में दिये गये कपड़ों की गिनती, अखबार वाले का हिसाब, और किरयान वाले की दुकान पर फोन भी उसे ही करना पड़ता है ...

पारो...हाय, ओ रब्बा, यह भी कोई काम हैं। 

पाला...हैं पारो, तुम बहुत सिध्धड़ हो, इन लोगों को सारा दिन फोन से ही फुर्सत नहीं मिलती ... सारा दिन, वही बातें फोन पर भी मेरा वह रिश्तेदार इतना बड़ा अफसर, मेरा बाप फलाना, मेरा फूफा ढिमका, भाई सेर, भाभी सवा-सेर...मेरी बहन यह, मेरा बहनोई वहां, देवर उस मंत्री का संतरी, ननद उस जगह की मािलक....बिंदे के तो सुन सुन कर कन पक जाते थे...हां, एक और भयंकर बीमारी है इन मेमसाबों को! 

पारो... इस के अलावा भी ! 

पाला...हां, जो अफसर इन की जगह पर आता है ...या उससे  से भी बड़ा आफीसर जो भी तैनात होता है, यह हर एक को उस की बहुत धौंस देती हैं... कि मैं तो उसे कह कर यह करवा दूंगंगी ...वो करवा दूंगी...वह तो इन के पति के सामने का भर्ती है और इतना जूनियर था कि उस के पति के आगे पीछे ही घूमता रहता था...

पारो...अब तुम छोड़ो, इन बड़े लोगों की बातें...मेरा तो सिर घूम गया है ...कहां है टीवी का रिमोट?

पारो टीवी का रिमोट दबाती है तो पहली हैडलाइन ही यही दिखती है कि अच्छी सरकार के दो सालों में कोई भी भ्रष्टाचार का केस सामने नहीं आया....पारो को कहां ये सब समझ में आता है ..उसने रिमोट दबाया और पहुंच गई उस नाटक पर ...यह रिश्ता क्या कहलाता है!

पाला भी लेट गया और सोचता रहा कि क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है कि १२-१५ सरकारी मुलाजिम तनख्वाह तो लें सरकार से, चाकरी करें मेम साहब की ...हाज़िरी लगाने कभी गये नहीं ..कुछ की नौकरी तो शहर से बाहर है...हाज़री इन लोगों की अपने आप लग जाती है .....

पता नहीं यह सोचता सोचता पाला कब ऊंघने लगा...
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जनाब कहानी खत्म हो चुकी है, आप भी उठ जाइए...मुझे पता है बड़ी बोरिंग थी...लेकिन पाला है ही ऐसा क्या करें! .. पता नहीं कहां कहां से निकाल के लाता है ऐसी पकी हुई कहानियां जो सुनने में ही बिल्कुल झूठी लगती हैं...😊



रविवार, 12 जून 2016

माता खीर भवानी चल रहे हैं ना!


देश का विभाजन हुआ १९४७ में ..भारत और पाकिस्तान...इस के बारे में कभी कभी अखबार में आता रहता है ..डाक्यूमेंटरी भी बनी हैं..यू-ट्यूब पर भी हैं...खुशवंत सिंह की "ट्रेन टू पाकिस्तान" और भीष्म साहनी का नावल "तमस "कभी पूरा नहीं पढ़ पाया...

लोगों के विस्थापन की जितनी भी हृदय दहला देने वाली जानकारी है हमने पेरेन्ट्स से सुनीं जो वहां से जान बचा कर आए...अन्य रिश्तेदारों से मिली(first hand accounts) ...परिचितों से मिली...कुछ फिल्मों से भी मिली..लाखों लोग मौत के घाट उतार दिए गये (मुझे एग्जैक्ट आंकड़े पता नहीं हैं) लेकिन दो दिन पहले अखबार में पढ़ा कि विश्व के सब से बड़े इस पलायन/विस्थापन में ६० लाख के करीब हिंदु उधर से उजड़ कर इधर आ गये..और ७०से ७५लाख मुस्लिम यहां से पाकिस्तान में चले गये..

शायद इसीलिए छोटे मोट विस्थापन या पलायन हमें कुछ लगते ही नहीं हैं...है कि नहीं?..१९९१ मई में हमारी जॉब लगी पंजाबी बाग के पास ईएसआई मेन अस्पताल में ...वहां आते जाते पीरागढ़ी चौक के पास अचानक बहुत से लोग कुछ अस्थायी से दिखने वाले घरों में रहते दिखते थे....किसी ने बताया कि ये लोग कश्मीर से आए हैं...जैसे ही कश्मीर में आतंकवाद ने अपने पांव पसारने शुरू किए....कश्मीरों पंडितों को अपनी जान की बचा कर घाटी से पलायन करना पड़ा...

उस के बाद कभी कभी किसी चुनाव के समय या ऐसे ही कभी भी उन को जुमलेबाजी की चंद मीठी गोली बंटती देख रहे हैं....बिल्कुल वैसे ही जैसे यह शब्द खीर भवानी साल में एक बार मीडिया द्वारा कानों में डाल दिया जाता है...

माता खीर भवानी उत्सव के बारे में जानने की उत्सुकता हुई..आप भी मेले के बारे में इस वीकिपीडिया लिंक पर क्लिक कर के अधिक जानकारी पा सकते हैं...


संक्षेप में बताते चलें कि माता खीर भवानी मेला कश्मीर घाटी के धार्मिक सौहृादय का प्रतीक है ...इस मेले पर मंदिर में खीर का प्रसाद चढ़ाया जाता है ..देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले कश्मीरी पंडित इस दिन इस मंदिर में आते हैं जो का श्रीनगर से १४ मील की दूरी पर है ...जानने वाली बात यह है कि पंडित यहां पर पूजा करने आते हैं लेकिन यहां का सारा इंतज़ाम मुस्लिम समुदाय संभालता है..



आज भी टीवी में देखा कि मेले में प्रदेश की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी आईं और कहा है कि वे पंडितों के घाटी लौटने  के इंतज़ाम करेंगी ...

मुझे यह ध्यान आ रहा है कि इस तरह की विस्थापना की हम लोग शायद कल्पना भी नहीं कर सकते...सरकारी नौकर अपनी सारी उम्र चपड़ासी से अधिकारी बनने तक की एक ही शहर में बिता देना चाहते हैं..और बिताते भी हैं...दो तीन घंटे की दूरी पर स्थित किसी जगह पर तबादला रोकने के लिए जी-जां लगा देते हैं.. और इन कश्मीरी पंडितों की अचानक क्या हालत हुई होगी...यह हमारी कल्पना से परे की बात है ..


चाहे ये लोग अपने ही देश में थे...लेिकन फिर भी इस तरह से एक जगह से जड़ों समेत उखाड़ दिए जाना और फिर दूसरी किसी  गैर जगह पर जाकर उस पल्लवित-पुष्पित वृक्ष को रोपना क्या इतना आसान होता है...सैंकड़ों कारणों की वजह से जिन्हें मेरे जैसे लोग जानते ही नहीं, बस फीकी सी कल्पना कर सकते हैं...

अपनी जड़ों से हटना कष्ट तो देता ही है ...एक सरबजीत गल्ती से पाकिस्तान की तरफ़ चला गया तो उस के परिवार का संघर्ष हम सब ने देखा ..शायद पंद्रह वर्षों तक या इस से भी ज़्यादा ...मैंने उस संघर्ष को कुछ ज़्यादा ही नज़दीक से देखा क्योंकि हम लोग उस दौरान ६ वर्षों के लिए पंजाब में ही थे...हर दिन उस बहन की संघर्ष की तस्वीर ...लेकिन रिजल्ट क्या निकला... 

सुबह ही  छोटा बेटा रामचंद पाकिस्तानी को अचानक याद कर के कह रहा था कि वह फिल्म भी बहुत अच्छी थी...जी हां, अगर आपने अभी तक नहीं देखी तो देखिएगा...यू-ट्यूब पर पूरी फिल्म HD क्वालिटी की पड़ी हुई है ...इसमें भी एक छोटे बच्चे की कहानी है जो गल्ती से बार्डर क्रास कर लेता है...बेहतरीन प्रस्तुति...इस में नंदिता दास ने उस बच्चे रामचंद की मां की भूमिका निभाई है ...

चलिए, मां खीर भवानी से यह प्रार्थना करते हैं कि उस के सभी बच्चे वापिस अपने अपने घरों में लौट आएं..हालात कुछ इस तरह के खुशगवार हो जाएँ कि हर तरफ़ प्यार, अमन, भाईचारे की गंगा बहने लगे..आमीन!!

शौहर-बीवी ही अगर एक दूसरे की जासूसी करने लगें..

आज टाइम्स ऑफ इंडिया के संडे एडिशन में एक फीचर देखा तो गुज़रे ज़माने के १९७० के आस पास के दिनों की यादों की रील अपने आप चलने लग गई..

दादी, नानी, मामा-मामी, चाचा-चाची, मौसी, बुआ-फूफा का ख़त अाना...कितना उम्दा लफ्ज़ है ना ख़त...नाम लेते ही यादों का सैलाब सा आ जाता है जैसे। हम लोगों को घर में आते ही अकसर पता चल जाता कि आज किसी अपने रिश्तेदार का ख़त आया है ...पहले तो उसे पढ़ना...शाम रात तक जब भी कोई घर में लौटता जाता, उसे वह ख़त पढ़ना ही होता...कभी ऐसा था ही नहीं कि ख़त किसी एक के लिए आया हो...सभी परिवार वाले पढ़ कर पोस्टकार्ड के किसी कोने में दुबके हुए अपने लिए प्यार को ढूंढ रहे होते ...जैसे नानी-दादी गले मिल रही हो।

दादी का ख़त तो पिता जी को हमें ही सुनाना होता...अधिकतर पोस्ट कार्ड...अपने आप पर फख्र भी होता ..पिता जी को हिंदी नहीं आती थी.. और दादी हिंदी में ही लिखती थीं..एक बार सुन कर पिता जी ने उस कार्ड को अपने सिरहाने के नीचे रख लेना...फिर जब कभी मन किया उसी दिन या अगले दिन कभी भी ...एक बार फिर सुन लिया....जहां तक मुझे याद है यह सिलसिला अगने ख़त के आने तक तो चलता ही था..

चलिए इसे यहीं फुलस्टाप लगाते हैं वरना मैं कहीं का कहीं निकल जाऊंगा... बस, कहना यही चाहता हूं कि हम लोग भी कितने सुनहरे वक्त के गवाह रहे हैं...We are proud of our times! ....जब पांच पैसे वाला पोस्ट कार्ड सारे कुनबे के लिए प्यार-दुलार और दुःख-सुख की संवेदनाओं का वाहक होता था...
टाइम्स ऑफ इंडिया १२.६.१६
लेिकन आज यह जो टाइम्स आफ इंडिया की रिपोर्ट देख रहा था तो बड़ा ही अजीब सा लगा... शीर्षक ही यही था कि क्या पति पत्नी को एक दूसरे के फोन में तांक-झांक करते रहना चाहिए...हां, एक वाकया उस में लिखा था कि बेंगलुरु की एक पत्नी ने अपने पति को देखा कि वह उस के फोन से कुछ मैसेज पढ़ रहा था ..उसने आव देखा न ताव..झट से पति पर चाकू से प्रहार कर दिया... और उस फीचर में कुछ आंकड़ें भी दिए गये हैं कि कितने प्रतिशत पति पत्नी एक दूसरे के फोन में तांक-झांक करने से गुरेज नहीं करते!

फिर उस में कुछ लोगों का राय थी कि क्या इस तरह से पति पत्नी को एक दूसरे के फोन में देखना चाहिए कि नहीं!
आंकड़ों की तो बात ही क्या करें, अधिकतर ये सब कुक्ड-अप ही होते हैं...लेिकन फिर भी यह समस्या तो है ही अगर इस तरह से लोग इस के बारे में खुल कर चर्चा करने लगे हैं।

टॉपिक बहुत बड़ा है ..लेिकन मेरी राय यही है कि कुछ भी हो...हम लोगों को एक दूसरे के फोन में इस तरह से जासूसी नहीं करनी चाहिए...इस से कुछ हासिल नहीं हो सकता...अपनी अपनी बीसियों सिरदर्दियों में एक और सिरदर्दी और जोड़ लेते हैं..क्या ख्याल है?....हर आदमी --साहब, बेगम हो या फिर गुलाम ..की अपनी ज़िंदगी है और किसी के पर्सनल स्पेस में इस तरह से अतिक्रमण करना ..एक दम घटिया काम तो है ही, सिर-दुखाऊ भी है।

 एक दूसरे के फोन को तांक-झांक के नज़रिये से देखने की कोशिश नहीं करनी चाहिए...और इतनी ओपननैस भी चाहिए कि हम सब के फोन बिना स्क्रीन-लॉक के ही घर में पड़े रहें ...

वैसे तो यह प्रश्न ही ठीक नहीं है कि शौहर-बीवी एक दूसरे के फोन को चैक करते रहें?....जवाब है बिल्कुल नहीं.... But it should not at all be based on passive acceptance!.... कहने का मतलब है कि स्क्रीन-लॉक नहीं लगा हुआ है ..लेकिन आप फिर भी उसे घर में कहीं भी पड़ा रहने दें क्योंकि घर के हर बंदे को पता हो कि कोई भी किसी के फोन की जासूसी नहीं करेगा......That's the ideal situation... thank God, we follow this rule! हम लोगों ने कभी ये नियम-कायदे तय नहीं किये, लेकिन हम लोग घर में एक दूसरे के फोन को कभी छूते तक नहीं...We need to be quite aware about other person's personal space! कुछ बच्चे वैसे अपने मोबाइल को लॉक लगा कर रखते हैं ...It's fine...it's their life! ..it's their experience! Let it be that way!

क्या है ना मन की शांित बहुत बड़ी चीज़ है...हम लोगों ने मन में पहले ही से इतना क्लटर clutter  ठूंस रखा है कि अब किसी दूसरे के संदेशे पढ़ कर उस अंबार को और बढ़ाने की हिमाकत भला कौन करना चाहेगा... हम लोग अपने मैसेज तो पढ़ नहीं पाते...मुझे लगता है कि मैं अपने ८०-९०प्रतिशत मैसेज तो देख ही नहीं पाता..क्या करें, जो सच है सो है !
क्या है ना कि किसी के मैसेज या अन्य कुछ देखना किसी दूसरे की चिट्ठी पढ़ने जैसा हो...और हमें पता है कि किसी दूसरे की चिट्ठी पढ़ना कितनी बुरी बात मानी जाती थी और अभी भी है !

एक दूसरे के मोबाइल चैक करना ही नहीं, पति पत्नी के बारे में कभी भी यह भी खबरें आती हैं विशेषकर महानगरों में कि एक दूसरे की जासूसी करवाते हैं कुछ पति पत्नी, और कईं बार यह भी पेपरों में देखा कि पति ने पत्नी ने कुछ आपत्तिजनक वीडियो क्लिप बना कर ऑनलाइन कर दिए...वह तो एक अलग बात हो गई, सिरफिरापन...अगर पति पत्नी के रिश्ते इस तरह के हैं तो फिर बाहरी दुश्मनों की ज़रूरत ही क्या है!

और क्या लिखूं इस चिट्ठी में समझ नहीं आ रहा, बस गोंद लगा के बंद कर रहा हूं...

रविवार है ..अभी तक स्नान नहीं किया है..अभी खाना खाएंगे....सब कुशल क्षेम है...बड़ों को नमस्कार, छोटों को प्यार...

शनिवार, 11 जून 2016

टैटू बनवाने के चक्कर में पड़ना ही क्यों!

टैटू बनवाना अगर अमेरिका जैसे देश में खतरे से खाली नहीं है तो अपने यहां की तो बात ही न करें..

हम सब ने देखा है कि कैसे मेले में जमीन पर एक फटी चटाई पर बैठ कर टैटू बनवाने वाला दस बीस रूपये में टैटू बनाने की कलाकारी कर के लोगों को इम्प्रेस करता है ...और ऊपर से सरसों का तेल लगा कर ग्राहक को फारिग कर देता है।

आम लोग नहीं समझते कि इस तरह के टैटू गुदवाने से कितनी भयंकर बीमारियों को वे खुला निमंत्रण दे रहे होते हैं..मुख्यतः एचआईव्ही संक्रमण, हैपेटाइटिस बी एवं सी जैसी खतरनाक बीमारियां इस तरह से भी फैलती है..
मीडिया डाक्टर :   हैपेटाइटिस 

मुझे हैरानगी होती है जब मैं कभी अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा जारी की गई सलाह को देखता हूं इस बारे में...उस का कारण यह है कि वे लोग बात करते हैं कि जो स्याही इस्तेमाल की जा रही है, उस की क्वालिटी कैसी है, उस में कोई कीटाणु तो नहीं है...यहां तक कि स्याही जिस पानी में घोल कर तैयार की गई है वह पानी कीटाणुमुक्त था कि नहीं..


लेिकन अपने यहां तो ये कोई इश्यू हैं ही नहीं...लोग टैटू गुदवाते ही रहते हैं...बिना किसी हिचकिचाहट के .. हमारे यहां तो अभी कुछ लोग सूईं आदि के बारे में प्रश्न करने लगे हैं कि वह कैसी होगी, डिस्पोज़ेबल होगी िक नहीं...ऐसे ऐसे प्रश्न... लेिकन फिर भी आप कहीं भी इस के बारे में आश्वस्त नहीं हो सकते। 

कुछ महानगरों में कुछ टैटू-पार्लर तो खुले हैं..लेकिन वहां भी किस तरह की सूईंयां इस्तेमाल करते होंगे, क्या करते होंगे...अधिकतर इन लोगों का मैडीकल ज्ञान तो ना के बराबर ही होता है ..बस, ऐसे ही कोई भी यह काम करने लग जाता है...

पता नहीं इस टॉिपक पर आज लिखते हुए कुछ बोरियत सी हो रही है..अच्छा, अपने कुछ पुराने लेख इस विषय पर ढूंढता हूं...

इस का इतना चलन है कि हमारी दादी, नानी, मां आदि की पीढ़ी तक वे अकसर अपना नाम गुदवाने तक ही सीमित थे..या अपना कोई धार्मिक चिन्ह ... लेकिन आज के युवाओं में इस का क्रेज़ बहुत ही बढ़ता जा रहा है...देखो भाई इन चक्करों में पड़ना ठीक नहीं, बहुत बड़ा रिस्क है ..सूईं का तो है ही ..लेिकन स्याही की मिलावट एवं उस से एलर्जीक रिएक्शन का मुद्दा भी अमेरिका जैसे देश में कितना गर्माया हुआ है, आप यहां इस लिंक पर जा कर देख सकते हैं..

न्यूज़ बोर्ड 11.6.16

आज की सुर्खियां

विधान परिषद चुनाव - समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी जीतीं, भाजपा को झटका 
भाजपा के दयाशंकर सिंह को छोड़ अन्य दलों के सभी प्रत्याशी विजयी
इस तरह की खबरें मेरे लिए काला अक्षर भैंस बराबर वाली कहावत जैसी हैं...कुछ पल्ले नहीं पड़ता...और न ही मैंने इन्हें समझने की कभी कोशिश ही करी। इतनी कभी फुर्सत मिली ही नहीं। वैसे यह इस लोकतंत्र की बहुत बड़ी कमज़ोरी है कि पढ़े लिखे लोग कितनी आसानी से इस सब से पल्ला झाड़ लेते हैं !!

चारबाग स्टेशन २४ घंटे वाई-फाई 
चारबाग रेलवे स्टेशन पर यात्रियों के लिए शुक्रवार से २४ घंटे फ्री वाई-फाई सेवा शुरू कर दी गई। वाई-फाई के लिए १५० राउटर लगाए गए हैं। एक बार में आठ हज़ार उपभोक्ता वाईफाई का इस्तेमाल २४ घंटे तक कर सकते हैं। वाईफाई कनेक्ट करने के लिए मोबाइल की सेटिंग में जाकर वाई-फाई ऑन करें। रेलटेल वाईफाई पर क्लिक करे। इसके बाद मोबाइल नंबर डालें। उसी नंबर पर ओ टी पी - वन टाइम पासवर्ड आएगा। ओटीपी डालने के बाद उपभोक्ता रेल टेल से कनेक्ट हो जाएगा। 
बहुत बढ़िया काम किया गया है यह .. जनता को इस से बहुत फायदा होगा...वैसे भी यह समय की मांग तो थी ही। 

के जी एम यू में शाम को भी ओपीडी
केजीएमयू में अब सुबह से शाम तक मरीज देखे जायेंगे। इसके लिए दो शिफ्टों में ओपीडी चलेगी। मरीज़ों को बढ़ती भीड़ और बेहतर इलाज को देखते हुए यह व्यवस्था की जा रही है। सुबह की ओपीडी पहले की तरह ही चलेगी। दूसरी ओपीडी दोपहर २ से ५ या ३ से ६ बजे तक चलाने का प्रस्ताव है। 
बहुत बहुत बधाई इस तरह की शुरूआत के लिए... जितनी भीड़ होती है वहां यह काम तो पहले ही हो जाना चाहिए था..चलिए, कोई बात नहीं, देर आयद, दुरुस्त आयद। 

आधे लखनऊ का पानी पीने के लायक नहीं
शुक्रवार को अलग-अलग इलाकों से जांच के लिए पानी के नमूने लिए गए। स्वास्थ्य विभाग ने २१ इलाकों से पानी के नमूने लिए। १५ स्थानों पर पानी पीने लायक नहीं मिला। 
घोर चिंताजनक बात तो है ही ....

पटरी चटकी, थमे पुष्पक के पहिए
लखनऊ-कानपुर रेलमार्ग पर मगवारा से उन्नाव के बीच पटरी चटकने से पुष्पक एक्सप्रेस हादसे का शिकार होते होते बच गई...
पुष्पक एक्सप्रेस के बारे में कुछ अहम् बातें आप का इधर भी इंतज़ार कर रही हैं...मेरे डेढ़ साल पुराने लेखों में...देखिएगा कभी ...

त्वचा जल गई तो स्किन बैंक से नई ले लीजिए. 
एसिड अटैक या किसी हादसे में झुलसने वालों को अब अपनी खराब त्वचा को लेकर हीन भावना में नहीं रहना पड़ेगा। स्किन बैंक से उन्हें नई त्वचा मिल सकेगी। केजीएमयू के प्लास्टिक सर्जरी विभाग में जल्द यह सुविधा मिल सकेगी। इस सुविधा को शुरू करने वाला केजीएमयू देश के चुनिंदा संस्थानों में से एक हो जाएगा। 
यह सुविधा शुरू करने के लिए मेडीकल कालेज लखनऊ को साधुवाद...

गोमतीनगर में फिर से दो चेन लूट, एसओ नपे
गोमती नगर में बेखौफ़ बदमाशों ने शुक्रवार को भी पुलिस को चुनौती देते हुए वारदात की। बाइक सवार लुटेरों ने तीन घंटे के अंतराल में सेल टैक्स विभाग के रिटायर एएसपी की पत्नी समेत दो महिलाओं की चेन लूटी...
मुझे यार यह कभी समझ नहीं आया कि लोग ये चेनें पहनते ही क्यों हैं...इस से क्या होता है..जब कि पता है कि कोई कहीं भी झपट्टा मार सकता है ...मुझे अब इस तरह की खबर पढ़ कर कुछ भी प्रतिक्रिया देने की इच्छा ही नहीं होती..मुझे हमेशा लगता है जब तक ये चेन लटकाने का शौक जारी रहेगा, इन टप्पेबाजों के बच्चों की दाल-रोटी का जुगाड़ होता रहेगा..  एक शेयर पता नहीं यह फिट बैठता भी है कि नहीं, याद आ रहा है... मेरी डायरी में लिखा हुआ है ...

'सरयू' ने १५ साल बाद गोण्डा से ली विदाई 
पतित पावनी सलिला सरयू नदी ने गोण्डा जिले से करीब १५ साल बाद विदाई लेनी शुरू कर दी है। जिले की नवाबगंज सीमा से निकलने वाली सरयू के जमीन छोड़ने से बाढ़ से प्रभावित दर्जनों गांवों के बाशिंदों के चेहरे खिल गए हैं। उन्हें लगता है कि उनकी जमीन अब वापिस मिल सकती है जिससे वे फिर से खेती कर सकेंगे। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि गोण्डा से विदाई लेती सरयू पोषक तत्वों वाली मिट्टी की सौगात देकर वापस हो रही है। 
अच्छा, ऐसा भी होता है, मुझे नहीं पता था...चलिए लोग खुश हैं तो हम भी खुश हैं। 

दलहन की खेती विदेशों में कराने की तैयारी 
दाल की कीमतों पर अंकुश लगाने की कोशिशों के तहत सरकार देश में दाल का उत्पादन बढ़ाने के साथ विदेशों में दाल की खेती करवाने की तैयारी कर रही है। सरकार देश में दाल की मांग और आपूर्ति का अंतर कम करने के लिए कनाडा, म्यांमार, अमेरिका और अफ्रीका के साथ कॉन्ट्रैक्ट खेती की संभावनाएं तलाश रही है। 

ऐसी खबर पहली बार दिखी...मुझे तो लगता है इस खबर ने देश में अगले कम से कम चर्चा करने का एक मसाला तो दिया...जो भी हो, इसी बहाने नौकरशाहों को इन देशों को परिवार सहित घूमने की एक ठोस वजह से मिल जाएगी....साथ में वहां हो रही खेती पर नज़र भी रखी जाएगी...

जौ का सेवन दिल के लिए फायदेमंद 
टोरंटो वालों ने संदेश भेजा है कि भोजन में जौ के इस्तेमाल से हृदय रोग का खतरा दूर होता है। यह विभिन्न प्रकार के हृदय रोगों के लिए जिम्मेदार लो-डेनसिटी लाइपोप्रोटीन कोलेस्ट्राल जिसे बैड कोलेस्ट्रॉल भी कहते हैं के स्तर को कम करता है। 
अच्छी खबर है .लेकिन यह तो हम लोगों को सदियों से पता है ..इसीलिए तो यहां जौ के सत्तू का इतना अधिक सेवन होता है ..वैसे भी बाबा रामदेव ने जौ का दलिया भी निकाला है, कभी आपने चखा है, अगर नहीं, तो जरूर ले कर आईए... 
मुझे यह बहुत पसंद है .. थैंक-यू बाबा 
हां, एक बात अाज के अखबार के एक पन्ने पर अमिताभ बच्चन की फिल्म के बारे में, उस की फोटो देख कर कुछ प्रेरणा मिलती है ...बीच में ही मैदान छोड़ कर न भागने की... अपने नाना जी का चेहरा ८० साल की उम्र में ट्यूशन पढ़ाने वाली 1970s की धुंधली तस्वीर जब वह नज़र के सामने आती है तो लगता है कि हम लोग तो अभी से थके-थके से थकी थकी बातें करने लगे हैं...VRS ले लेंगे ...सुस्ताएंगे...इतने में इन लोगों को देख कर पुराना चेहरा नाना जी का याद कर के एक नई चेतना का संचार होता है ...कि भागना ठीक नहीं है, डटे रहो..चुपचाप...बिना ऊट-पटांग बातों के ...लगे रहो..




मैं कल भी आप से शेयर किया था कि हमारी कालोनी के लोग बड़े क्रिएटिव हैं...विशेषकर महिलाएं...एक प्रमाण आज भी पेश कर रहा हूं...मैं गाड़ी पार्किंग कर के आ रहा था तो कॉमन एरिया में मेरी इस पौधे पर नज़र पड़ी ...मैं यही सोचने लगा कि गमला टूटने पर उसे फैंकना हम लोगों के लिए सिरदर्दी बन जाता है .लेकिन यहां टूटे गमले को भी इतने करीने से सजा दिया गया....सोच रहा हूं यह मेरा ब्लॉग भी यू-ट्यूब, पिनट्रस्ट, इंस्टाग्राम.... ऑल-इन-वन जैसा ही कुछ खिचड़ी बनता जा रहा है ....परवाह नहीं, जो भी है, ठीक है ..
टूटे हुये गमले से भी होती है लैंड-स्केपिंग 
कल की अखबार में एक शेयर था बाराबंकवी साब का ..आप भी पढ़िए..

ओ..माई गॉड...अब यह झूठा कहीं का यह गीत कैसे याद आ गया.....a super hit song of our college days!😊

शुक्रवार, 10 जून 2016

चीनी चीज़ों से आखिर इतनी रुसवाई क्यों!

मुझे यह कभी समझ नहीं आया कि यह रुसवाई क्यों है आखिर...हम लोग इतनी सारी चीन की बनी चीज़ें इस्तेमाल करते हैं, फिर भी चीन के बाज़ार को कोसते ही रहते हैं...मुझे लगता है शायद हम लोगों को उस की व्यापक मार्कीट से कहीं न कहीं ईर्ष्या भी होती होगी!

इतनी व्यापक मार्कीट है ..तो है...हमें खुशी खुशी यह स्वीकार करना चाहिए...वैसे भी हम लोग एक वैश्विक गांव - Global village में ही रहते हैं...सारा आकाश अपना है, जितना समेटना चाहें, समेट लीजिए, कौन रोक रहा है..

अच्छा, लोग भी खरीदते समय अपना अच्छा बुरा सब समझते हैं.. इतने competitive rates पर और कहीं से वैसा कुछ नहीं मिलता या ऐसा कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है, इसलिए वे चीनी चीज़ें खरीद लेते हैं खुशी खुशी...

और एक बात ..इन चीज़ों के रेट अधिकतर इतने कम होते हैं कि दुकानदार से यह पूछना भी एक बेवकूफ़ी लगती है कि भाई, यह कितना समय चलेगी... वैसे उन का भी डॉयलाग सैट है ...चीनी है, कोई गारंटी है, जो है आप के सामने..हमें तो दस रूपये मिलने हैं!

कुछ चीज़ों की उदाहरण दूंगा.. मुझे अभी बैठे बैठे ध्यान आया कि हम लोगों के घरों में बहुत सी चीज़ें चाईनीज़ ही हैं...अकसर ये मोबाइल-लैपटाप, चार्जर भी वहीं कहीं या आसपास ही तैयार हुए होते हैं...उसदिन ए.सी के बारे में पता चला कि ये भी चाईनीज़ आ रहे हैं, चीनी रेडियो-ट्रांसिस्टर तो हर नुक्कड पर धड़ाधड़ बिक ही रहे हैं...जी हां, लिस्ट कभी खत्म नहीं होने वाली...आप भी सोचिए आप के आसपास क्या क्या चाईनीज़ है!

यह जो मैंने रैकेट की तस्वीर लगाई है ..यह हमारे यहां हर बैड-रूम में है...आज कल तो मच्छर थोड़े कम ही हैं...लेिकन पिछले महीनों ढीठ किस्म के मच्छरों के लिए भी Multi-strategy अपनानी होती थी...शाम के समय स्प्रे करने के बंद कमरा बंद करना, उस के बाद गुडनाइट कॉयल लगा देना...इस के बावजूद भी बिस्तर पर लेटते हुए उन पांच सात मच्छरों का आतंक जब हद से गुज़र जाता है रोज़ाना तो फिर इस रैकेट को पकड़ कर हम लोग अपने आप को कितना बड़ा एचीवर (achiever) मानते हैं...

और यह सब किस कीमत पर?.... महज १६०-१७० रूपये में आने वाला रैकेट कितने काम है ..लेकिन दुकानदार एक बार चला कर दिखा देता है...बस, जैसा कि पहले बताया कि कोई गारंटी वांटी नहीं, वह साफ कह देता है पहले से..और इस की नियमित चार्जिंग करनी होती है ..

अब बात करते हैं दीवाली पर यूज़ होने वाली सजावटी लड़ियों की ..पीछे कुछ ऐसा अभियान सा चला था कि आप लोग दीए खरीदा करो...अपने कुम्हारों को भी कुछ मिलना चाहिए...बिल्कुल सही बात है, मानता हूं, उन के भी उत्पाद बिकते ही हैं.. .Of late, they have also become quite innovative! ..लेकिन हकीकत यह है कि खरीदार वह ही खरीदता है जिस में उस का फायदा है ...चीन ने हिंदोस्तान के घर घर में लड़ियां पहुंचा दीं....४०-५० रूपये में ...मोमबत्ती के दाम में बिक रही लड़ियां-झालरें कौन नहीं खरीदना चाहेगा! ... उन दिनों मैं लोगों को बीस बीस लड़ियां एक साथ खऱीदते देखता हूं.. उन हाकरों ने भी रटा हुआ है जुमला..कोई गारंटी नहीं, यहां चला कर देख लीजिए.....

हां, अब आ रहा हूं एक और ज़रूरी चीज़ पर...आज कल साईकिल का बहुत बोलबाला है ..हम लोग चलाने लगे हैं...लेिकन हवा तो चाहिए...लेिकन हवा भरवाने की सिरदर्दी भी कुछ तो है ही ...जिस समय मे हम सब लोग जो शौक के तौर पर सुबह साईकिल निकालते हैं उस समय साईकिल की दुकानें खुली नहीं होतीं...शाम के समय बार बार कौन जाए ..बहुत ट्रैफिक होता है ...इसी चक्कर में कहूं या इसी बहाने की वजह से मेरी सुबह की साईक्लिंग हफ्ता-दस दिन बीच बीच में रुक जाया करती थी ...लेकिन अब नहीं...

क्यों, अब क्यों नहीं?...क्योंकि अब मैंने भी एक चाईनीज़ पम्प खरीद लिया है ...मुझे एक बार मेरा एक मरीज़ ही बता गया था..यह १०० रूपये में बिकता है ..और एक मिनट से भी कम समय में हवा भर देता है ...बड़े आराम से, बिना किसी जोर के यह चलता है बड़ी सुगमता से...बहुत बढ़िया ...कुछ दिन पहले ही खरीदा है, उस दिन से साईकिल में हवा ठीक रहती है ..वरना तो कम हवा वाले साईकिल चलाने की क्या सिरदर्दी होती है ये तो वही जानते हैं जो यह काम कर चुके हैं!

ऐसा नहीं है कि पहले पंप नहीं थी..थे स्वदेशी पंप भी ...लेिकन उस में वॉशर का झंझट, कुछ दिन न इस्तेमाल करिए तो वह सूख जाती है...फिर उसे खोलो..प्रपंच करो, उसे फैलाओ....और वैसे भी इन पंपों को चलाना अब छोटी मोटी पहाड़ी पर चढ़ने जैसा लगता है...

हां, आज साईकिल से बात कुछ याद आ रही है... मैं अकसर बहुत से लोगों के साईकिल पर चलने की बातें यह शेयर करता रहता हूं.. अभी मैं अपना ब्लॉग सर्च कर रहा था...साईक्लिंग लिख कर ...मैं स्तब्ध रह गया ...दर्जनों साईक्लिस्टों की प्रेरणात्मक बातें दर्ज मिलीं....मैंने at random कुछ को देखा (पढ़ा नहीं, इच्छा नहीं होती, यह भी मेरी एक अजीब बीमारी है..) और उन के लिंक यहां लेख के बाद य़हां शेयर कर रहा हूं...आप इन में से किसी पर भी क्लिक कर के उसे देख सकते हैं....कम से कम एक बार तो देख ही सकते हैं..

हां, आज मैं अपने नाना जी के छोटे भाई की बात करूंगा..आज सुबह पता चला कि वे भी ८२ साल की उम्र में साईकिल चलाते हैं तो बहुत अच्छा लगा...बहुत खुशी हुई....बच्चों ने उन की एक छोटी सी, प्यारी सी वीडियो भी डाली है जिसे में इस पोस्ट में एम्बैड कर रहा हूं...

जनाब जगदीश चन्द्र जी बसूर भाखड़ा ब्यास बोर्ड से चीफ़ इंजीनियर के पद से रिटायर हैं...लगभग २५ साल हो गये हैं...बहुत ही साधारण जीवन और सोच बहुत ऊंची...संयमित जीवन...पढ़ाई में बहुत उपलब्धियां हैं...आज मुझे इन के मैडल की यह तस्वीर दिख गई ..साथ में चाची जी हैं... यह दंपति बहुत सहृदय हैं.. मस्त रहते हैं...खूब हंसते मुस्कुराते हैं...इन से मिल कर हमेशा अच्छा लगता है ...चाचा जी ने बंबई से इंजीनियरिंग की है ...सर्विस के दौरान इन की पोस्ट की वजह से इन के बहुत ठाठ-बाठ थे...अब भी हैं ...लेकिन इन्हें किसी पर निर्भर रहना पसंद नहीं है...यहां तक कि सुबह सुबह अपनी माडुलर किचन में अपना नाश्ता भी स्वयं बनाना भाता है...I like him very much because of his childlike innocence, inquisitiveness,  enthusiasm and cool temperament! जब भी मेरी मां और ये मिलते हैं तो अकसर अपने बचपन को याद कर के खूब ठहाके लगाते हैं...calling each other by their first names...'Jagdish' and 'Santosh'. God bless!


During his tenure as Chief Engr of Bhakra Beas Management Board
इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि वे किस तरह से अपने ग्रैंड-चिल्ड्रन को साईक्लिंग के प्रैक्टीकल पाठ पढ़ा रहे हैं...बहुत अच्छा लगा इन्हें बच्चों के साथ बच्चा होते देख कर .. आज कल यह चंडीगढ़ में रहते हैं और रोज़ सुबह साईक्लिंग के लिए निकल जाते हैं...

साईक्लिंग पर लिखे कुछ लेखों के लिंक ये हैं..>>>>>

अब गाना बजाने की बारी है..कंफ्यूजन है ...हिंदी चीनी भाई भाई पर या साईक्लिंग पर कुछ हो जाए...सोचता हूं... चलिए, यही ठीक है .. 

आज की ताज़ा खबर ..10.6.2016

सुबह सुबह आप के साथ अखबारों की सुर्खियां शेयर करने की इच्छा हुई...बस, फिर मैं शुरू हो गया..

कोटे में देंगे कोटा- राजनाथ
मऊ में केन्द्रीय गृहमंत्री ने कहा कि यू पी की सत्ता में आने पर लागू करेंगे अारक्षण का नया फार्मूला..
उन्होंने कहा कि पिछड़ी जाति के आरक्षण का बड़ा हिस्सा लाभ कुछ लोग मार जाते हैं जिससे अति पिछड़ा समाज इससे वंचित रह जाता है। इससे सामाजिक विसंगतियां बढ़ रही हैं। आरक्षण का लाभ सभी को बराबर मिलना चाहिए..
मुझे यह खबर पढ़ कर बहुत अच्छा लगा..मैं इस बात को समर्थक हूं...काश, यूपी से भी पहले अगर ये व्यवस्था केन्द्र में भी लागू हो जाए। 

केजीएमयू में अब ध्यान और योग से भी इलाज 
अगर आप योग, ध्यान जैसी भारतीय चिकित्सा पद्धति के माध्यम से इलाज कराने में विश्वास रखते हैं तो जल्द ही यह सुविधा आपको लखनऊ के किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में मिल जाएगी। योग और नेचुरोपैथी ओपीडी शुरू करने की तैयारी पूरी हो चुकी है। 
कुछ कालेजों में देखा है पहले भी ..लेकिन खाली पड़ी रहते हैं ऐसे कमरे..शुभकामनाएं केजीएमसी को इस तरह की पहल की सफलता के लिए...समय की मांग तो है ही...हम लोग कितनी गोलियां कैप्सूल फांकते रहेंगे!

स्वच्छकारों को कोटे का लाभ मिले- अपना दल..
 मुझे यह शब्द बहुत अच्छा लगा ..मुझे सफाईवाला शब्द ठीक नहीं लगता..हम सब सफाई वाले ही तो हैं...मैं मरीज़ों के मुंह के अंदर की सफाई करता है, दूसरे चिकित्सक अन्य अंगों की सफाई करते हैं..वैसे भी स्वच्छता अभियान के आने से तो हम सब सफाईवाले हो ही गये..और मैं यह बात बहुत जगह पर शेयर भी करता हूं... इसीलिए किसी के पदनाम के आगे सफाईवाला लिखना कुछ ठीक सा नहीं लगता..मैं तो समझा करता था कि उस के लिए हमें हाउसकीपिंग स्टॉफ लिखना चाहिए.. लेिकन लखनऊ की नज़ाकत और नफासत वाली तहज़ीब ने आज इस बेहतरीन शब्द से रू-ब-रू करवा दिया...स्वच्छकार ....बहुत अच्छा लगा। 

हॉस्टल में छात्र ने पंखे से लटककर जान दी..
सिटी लॉ कालेज के पहले वर्ष के छात्र २२ वर्षीय नीरज राय ने गुरुवार शाम फांसी लगा ली। 
इस खबर ने मुझे बड़ा कष्ट दिया... सारे अरमान कुछ पलों में ही मिट्टी में मिल गये...ईश्वर करे इस तरह के वाकया अखबारों से हमेशा के लिए गायब हो जाएं...हंसने खेलने की उम्र में ये बच्चे हंसते खेलते रहें...मस्त रहें...आप भी इस प्रार्थना में शामिल हो जाइए। ईश्वर नीरज की आत्मा को शांित को प्रदान करे... और मां बाप को इस सदमे को सहने की ताकत दे। कितना आसान है  दूसरों के लिए इस तरह की जुमलेबाजी कर देना!!


आईटी चौराहे से लूटी इनोवा, ड्राइवर को बाराबंकी में फैंका
एक्सयूवी सवार चार बदमाशों ने ओवरटेक करके रोकी इनोवा, ड्राइवर को पीटने के बाद गाड़ी समेत अगवा किया, मुकदमा दर्ज। 
लखनऊ में इस तरह की खबरें आम हो गई हैं। ईश्वर इन लोगों को अकल प्रदान करे। 

रस्सी से बंधे दुधमुंहे को सास ने खोला तो बहू ने खूब पीटा..
बस इस तरह की खबरें सुनने की कसर थी, वह भी पूरी हो गई। 

दोस्त ने सातवीं के छात्र से वसूले ९ लाख
११वी में पढ़ने वाले छात्र ने मारपीट के मामले में जेल जाने का डर दिखाकर सातवीं कक्षा में पढ़ने वाले मोहल्ले के दोस्त से ३० हज़ार रुपये और नौ लाख के गहने ऐंठ लिए। डराकर वह रुपये मांगता रहा और खौफज़दा छात्र घर से रुपये औ मां के एक-एक गहने चुराकर उसे देता रहा। 
इस तरह के अजीबो-गरीब दहला देने वाले हथकंडे बदल चुके समय का संकेत है। 

बीरबल के वंशजों की दरक रही हवेली 
गोण्डा के गांव मे मौजूद यह ऐतिहासिक धराहर अनूठी और बेजोड़ है..मुगल सम्राट अकसर के नौ रत्नों में से एक बीरबल के वंशजों की हवेली यहां ज़मींदोज हो रही है.. बीरबल की पुत्री के पुत्र राजा प्रेमचन्द पाण्डेय की विरासत की एक कड़ी राजा रामदत्त पाण्डेय के बेटे की हवेली अपनी अस्तित्व खो रही है। 
देख लो भाई इधर भी ध्यान दो...

उड़ता पंजाब राज्य के खिलाफ नहीं- बेनेगल 

मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल ने पंजाब में नशे के कारोबार पर बनी फिल्म उडता पंजाब की तारीफ की है। फिल्म देखकर उन्होंने कहा कि यह सच्चाई पर आधारित है और राज्य के खिलाफ नहीं है। 
बेनेगल जैसे महान् फिल्मकार की बात को आप दरकिनार नहीं कर सकते! वह कहते हैं ना -- Integrity beyond doubt!

ऑपरेशन जवाहरबाग के दगाबाजों पर गाज
ऑपरेशन जवाहरबाग मे एसपी सिटी और एस ओ को छोड़कर भागने वाले इनके हमराह व गनर को लेकर हर किसी के अंदर उबाल है। संबंधित पुलिसकर्मियों व अन्य जिम्मेदारों में  कार्रवाई के भय से खलबली मची है।
खबर पढ़ कर तो मेरा भी ठंडा पड़ चुका खून खौल उठा, कैसे ये कर्मचारी अपने सीनियर को अकेला छोड़ कर दुम दबा कर भाग निकले...इन पर तो सख्त कार्रवाई होनी ही चाहिए।  

बादाम सेहत के लिए फायदेमंद 
बहुत बहुत शुक्रिया इस जानकारी के लिए, वरना पता ही नहीं चलता। 

व्हाट्सएप पर चलती फिरती तस्वीरें भेजेंगे.
वाट्सएप यूजर के लिए खुशखबरी है। अब इस इंस्टेंट मैसेजिंग एप पर जीआईएफ इमेज भी भेजी जा सकेंगी। यह जानकारी व्हाट्सएप पर नज़र रखने वाले एक ट्विटर अकाउंट से पोस्ट की गई है। जीआईएफ चलती फिरती तस्वीरों को कहा जाता है जो कुछ सेकंड के वीडियो की तरह होती हैं। जीआईएफ इमेज का लिंक साझा करने पर वह ऑटोप्ले हो जाएगा और यूज़र इसे कैमरा रोल में या आम तस्वीरों की तरह सेव भी कर सकेंगे। 
अच्छी बात है.जब हम लोगों को सारा िदन ही इस एप पर बीतता है तो इसे जितना लुभावना बनाया जा सकता है, बनाते रहिए...शुक्रिया 

डाकविभाग करेगा ईबे की डिलिवरी 
ऑनलाइन शॉपिंग साइटों के बढ़ते क्रेज़ और बदलते दौर की मांग को भुनाने में डाक विभाग भी जुट गया है। ई-कामर्स साइट e bay.in पर आने वाली बुकिंग को अब डाक विभाग उसके पते तक पहुंचाने का काम करेगा। 
इसे कहते हैं बदलते समय के साथ बदल जाना...मोहब्बतें फिल्म के अमिताभ की तरह नहीं..by the way..यह फिल्म अभी हमारे टीवी पर चल रही है.. 

राहत फतेह अली लखनऊ में ढूंढेंगे सांवरे 
नवाबों के शहर लखनऊ की गलियों में पाकिस्तानी गायक राहत फतेह अली नजर आएंगे.. दरअसल वह एक वीडियो गाने की रिकार्डिंग के लिए आ रहे हैं। शनिवार से राहत फतेह अली खान लखनऊ में डेरा डालेंगे। 
बहुत अच्छा है, देखते हैं कहीं न कहीं अगर खान साहब अगर मिल जाएं तो ...मैं इन का फैन तो हूं ही ..विशेषकर वह गाना तो मैं हज़ारों बार नहीं भी तो सैंकड़ों बार तो अवश्य ही सुन चुका हूं.. गुमसुम गुमसुम प्यार दा मौसम... आप भी सुनिए ... 

गुरुवार, 9 जून 2016

चुनावी मौसम के मजे...


कईं तरह के मौसम वैसे तो होते हैं...लेकिन मैं उन सब की बात नहीं कर रहा हूं...दूसरे कुछ तरह के मौसम...छुट्टियों का मौसम, त्योहारों का मौसम, आम का मौसम, शादियों का मौसम.....यहां तो बस मौसम ही मौसम हैं..

मुझे कुछ दिनों से चुनावी मौसम का ध्यान आ रहा है...आज सोच रहा हूं इसे लिख कर छुट्टी करूं..

जब हम लोग छोटे थे तो हमें बस इतना पता था कि चुनावी मौसम में गरीब जनता को भी भरपेट खाना मिलता है..वे उन का प्रचार-प्रसार करते हैं ..इस के बदले में पैसे और दारू पाते हैं..

फिर कुछ और बड़े हुए तो पता चला कि इस चुनावी मौसम में लोगों के कुछ रुके हुए काम भी हो जाते हैं...थोड़ा कह-कहलवा कर ... अच्छा लगता था जब पता चलता था कि किसी का राशन-कार्ड बन गया या किसी का कोई सर्टिफिकेट..

अच्छा, एक बड़ी भयंकर विडंबना है हमारे यहां कि यहां पर जितना एक आम आदमी आप को डरा-सहमा मिलेगा, उतना कोई नहीं मिलेगा.. उन लोगों के लिए राशन कार्ड मिल जाना भी एक उपलब्धि से कम नहीं होता...छोटे छोटे काम के लिए दलालों के चंगुल में फंसना, फिर दफ्तरों के धक्के खाना, फिर किसी बाबू की चापलूसी करना ...जो अपनी मुट्ठी गर्म करवा के भी काम नहीं करते..

चुनावी मौसम में इस तरह के टुच्चे काम आराम से हो जाते हैं...किसी को पकड़ कर लोग कोई न कोई जुगाड़ कर ही लेते हैं..

किसी की बिल्डिंग का नक्शा पास न हो रहा हो, वह भी चुनावी मौसम के शोरगुल में हो जाता है आराम से.. यहां तक की लोग अपनी ईमारतें भी इसी मौसम में खड़ी करना चाहते हैं क्योंकि इंस्पैक्टर लोग ज़्यादा चिक चिक नहीं करते...
हां, एक बात और बहुत अहम् कि ट्रांसफर सीजन भी यही होता है चुनाव की तारीखों के घोषित होने से पहले...
इतना सब कुछ राजनीति से प्रेरित होता है कि क्या क्या लिखें...यहां गैर-राजनीतिक बंदे के ऊपर तरस आता है ...वही बस डरा, सहमा और सिमटा सिकुड़ा रहता है ...

मैंने एक बात और नोटिस की है ..इन दिनों जब चुनावों के बादल मंडराने लगते हैं तो लोग अपने घर के आगे जितनी संभव हो सके अतिक्रमण (encroachment) कर लेना चाहते हैं... मुझे इस बात का बड़ा दुःख होता है कि घर के अंदर बीस कमरे होते हुए भी बाहर पैदल चलने वाले की  पांच फीट जगह पर ही इन की नज़र होती है ...मुझे बहुत बुरा लगता है ....और एक बात जिस का जहां मन चाहे स्पीड-ब्रेकर बनवा लेता है .. और खतरनाक किस्म के .. मैंने भी देखा आज सुबह एक ऐसा ही स्पीड-ब्रेकर जो बिल्कुल स्टीप (steep) सा था...मैं हैरान था...लेिकन इस तरह के कामों में भी पूरी रस्साकशी का खेल चलता है ... स्पीड ब्रेकर अगर दबंग १ ने बनाया है और दबंग २ उस से ज़्यादा पहुंच वाला है तो वह उसे तुड़वा देगा... यह सब चलता रहता है ... देखते रहते हैं...

ये सब बाते एक तरफ़ और जो बात मैं  अब लिखने लगा हूं वह सब से गंभीर है...बिहार चुनाव के बाद शराब पर प्रतिबंध लगा दिया गया...लेकिन यूपी में जहां तक मुझे याद है कुछ एक हज़ार से ज़्यादा शायद १५०० करोड़ के आसपास राजस्व (revenue) शराब की बिक्री से इस वर्ष कमाने का लक्ष्य है ...

शायद इसीलिए मैं लखनऊ शहर में बहुत सी जगहों पर देशी शराब के नये ठेकों के बोर्ड देख रहा था...यकीन मानिए, लगभग पंद्रह दिन पहले ऐसे ही टाट पर देशी शराब का ठेका लिख कर टंगा दिखा..फिर लड़की का कच्चा सा खोखा दिखा...कुछ दिनों खूब विरोध हुआ...विशेषकर महिलाएं बहुत रोईं-पीटी...लेिकन सुनता कौन है...दो दिन पहले देख रहा था कि अच्छे से बढ़िया टिन के ठेके तैयार हो गये हैं....और लोग बैठे वहां दारू भी पी रहे थे...

मुझे सब से ज़्यादा दुःख नये ठेके खुलने का होता है ...ठीक है, लोग दूसरे ठेके पर जा कर ले लेंगे...मैं समझता हूं..लेकिन फिर भी कुछ तो अंकुश लगेगा...और अब मैंने देखा है कि अच्छे पॉश एरिया में भी ये देशी दारू के ठेके खुलने लगे हैं...वही शोले फिल्म की लीला मौसी और अमिताभ बच्चन के संवाद वाली बात की तरह ...एक बार देशी दारू की दुकानें खुलेंगी तो दूसरे कईं तरह के अनाप शनाप धंधे भी साथ ही खुल जाएंगे....

सरकारें बड़े बड़े मैडीकल कालेज खोलती है... मुझे उन की जितनी खुशी होती है उस से कहीं गुणा ज़्यादा दुःख एक देशी दारू के ठेके के खुलने का होता है ....क्योंकि ये ठेके नहीं है, ये अरमानों के कत्लगाह हैं...ये अच्छे भले लोगों को हैवान बनाते हैं...घर बर्बाद करते हैं..घरेलू कलह...मारपीट ...हत्या, क्रूरता, बलात्कार, चोरी, डकैती ...सब को बढ़ावा देते हैं...जब किसी एरिया में कोई देशी दारू का ठेका खुलता है तो उस एरिया में लोगों को शोक मनाना चाहिए... ऐसा नहीं है इंगलिश दारू पीने वाले नहीं मरते ...या दारू नहीं पीने वाले अमर हो जाते हैं...लेकिन देशी दारू पीने वाले मिलावटी दारू, घटिया दारू, घटिया गुणवत्ता के शिकार ज़्यादा होते हैं ... लेकिन कौन सुनता है ...सब खेल राजनीति का है ....चुनावी मौसम में तो ऐसा है जैसे लूट मची हो ..

सुना है इसी चुनाव के चक्कर में बेचारे अनुराग कश्यप की फिल्म उड़दा पंजाब पर कैंची पर कैंची चली जा रही है...

फिर भी यह तो कहना ही पड़ेगा...यह जो पब्लिक है, सब जानती है...

आज मैंने यह नोट किया अपनी कापी में...
हमारी कालोनी के लोग बड़े क्रिएटिव हैं...