गुरुवार, 17 मार्च 2016

लोहे वाले नमक के बारे में आप का क्या ख्याल है?

दो दिन पहले हिंदी के अखबार के पहले पन्ने के आधे हिस्से में  टाटा के लोहे वाले नमक का विज्ञापन पसरा हुआ था..खुशी हुई कि ऐसा नमक भी मिलने लगा है ..वैसे टीवी में तो विज्ञापन आ ही रहे हैं...

टाटा कंपनी है, इसलिए गुणवत्ता के बारे में तो कोई चिंता करने की बात ही नहीं, टाटा के नमक का नाम आते ही याद आ जाता है वह विज्ञापन...नमक हो टाटा का, टाटा नमक..

इस तरह से नमक की आयोडीन, आयरन जैसी तत्वों से फोर्टीफिकेशन बहुत आधुनिक तकनीक से किया जाता है, टाटा कंपनी कभी अपने किसी भी प्रोडक्ट की गुणवत्ता पर समझौता नहीं करती ..वैसे भी इस तरह की तकनीक डिवेल्प करने में नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ न्यूट्रीशन का पूरा सहयोग रहा है। 

निःसंदेह यह एक बहुत बड़ा कदम है देश में लोगों की रक्त की कमी (एनीमिया) से जूझने का। मुझे बहुत खुशी है कि शुरूआत हुई है...इस के साथ साथ लोगों को बहुत सी बातें समझाने की ज़रूरत है ...विशेषकर यह बात कि बस, यह लोहे वाला नमक कोई जादू ही न कर देगा...इस के लिए अपने खान पान के चुनाव का भी ध्यान देना होगा...मेरा इशारा महंगे खाद्य-पदार्थों की तरफ़ नहीं है, बस जंक फूड, फास्ट फूड को त्याग कर पौष्टिक खाने को अपनाने की बात है ..तभी तो रक्त बनेगा।

मैंने पिछले चार दिन से इस विषय पर जो रिसर्च की उस के मुताबिक अभी जनता को इस के बहुत से पहलूओं के बारे में बताया जाना बहुत ज़रूरी है.. पता नहीं इतने दिनों से मीडिया में कुछ दिखा क्यों नहीं इस विषय पर ..शायद इसलिए कि यह प्रोडक्ट वैसे तो बड़े शहरों में २०१३ से ही चल रहा है, मुझे इस की जानकारी नहीं थी, नेट से ही पता चला...

मुझे मेरे एक प्रश्न का जवाब क्लियर कहीं नहीं मिला...इस कंपनी की हेल्पलाइन पर फोन भी किया लेकिन बात नहीं हो पाई, मैडीकल कालेज के एक प्रोफैसर एवं विभागाध्यक्ष को ई-मेल से भी पूछा.... अभी जवाब नहीं आया...सब से विश्वसनीय साईट्स भी खंगाल लीं...लेकिन इस विषय पर कुछ नहीं दिखा कि अगर कोई व्यक्ति है जिस का हीमोग्लोबिन सामान्य है, क्या वह इस तरह के फोर्टीफाईड नमक (fortified with iron and iodine)का इस्तेमाल कर सकता है..प्रामाणिक जानकारी नहीं मिली मुझे अभी तक। 


लोहे वाले टाटा नमक के विज्ञापन में इस बार की तरफ़ विशेष ध्यान आकर्षित किया जा रहा है कि इसे दस ग्राम खाने से रोज़ाना आप की ऑयरन (लोहे) की दिन भर की ज़रूरत का आधा हिस्सा आप को मिल जायेगा...

बात यह विचार करने योग्य है कि एक परिवार में जिन लोगों का एचबी स्तर ठीक है, नार्मल है, इस का मतलब वे आॉयरन ठीक ठीक मात्रा में पहले ही से ले रहे होंगे, तभी तो सब कुछ दूरूस्त है...अब अगर ऊपर से यह नमक में मौजूद ऑयरन भी उन्हें मिलने लगेगा तो क्या शरीर में इस से कोई हानि तो नहीं होने लगेगी, ऑयरन शरीर के विभिन्न अंगों में जमने तो नहीं लगेगा....कुछ शारीरिक तकलीफ़ें हैं जो शरीर में ऑयरन की मात्रा ज़रूरत से ज़्यादा होने पर भी हो जाती हैं. 
निःसंदेह अधिकतर महिलाओं, बच्चों, किशोरावस्था में, युवावस्था में, गर्भवती महिलाओं में, स्तनपान करवाने वाली माताओं के लिए इस तरह का प्रोड्क्ट एक तोहफे जैसा है...और कैसे भी बिना किसी किंतु-परंतु के उन्हें तो इसे इस्तेमाल करना शुरू कर ही देना चाहिए, एक बार अपने चिकित्सक से पूछ कर। 
कोई यह तर्क भी दे सकता है घर में इतने सारे लोगों के लिए अगर यह प्रोड्क्ट इतना बढ़िया है तो हरिये का क्या, वह अपना अलग नमक इस्तेमाल कर ले, मैंने भी ऐसे सोचा है, लेकिन यह यथार्थ नहीं हैं, जिस तरह से देश में खाना तैयार होता है, यह संभव नहीं होगा कि "मर्द" के लिए अलग खाना बने अलग नमक के साथ, यह हो नहीं पायेगा...न तो इतनी अवेयरनैस ही है, और न ही इतना झंझट हो पायेगा...होगा वही कि अगर कहीं से यह सुगबुगाहट भी हो गई कि यह तो हरिया के लिए ठीक नहीं है, तो न चाहते हुए भी फिर यह नमक घर में आया ही नहीं करेगा...क्योंकि देश में   आम तौर पर सब से कीमती जान घर के "मर्द" की ही मानी जाती है...साथ में बेटों की (छोटे मर्द)...बाकी सब लोग तो जैसे तैसे काम चला ही लेते हैं..

इसलिए मेरे विचार में जल्दी से इस विषय पर चर्चा होनी चाहिए...मैं अपने स्तर पर भी कोशिश करूंगा, मैडीकल कालेज के प्रोफैसर से मिलूंगा... इस के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने के बाद आप के पास वापिस आऊंगा.. आप भी अपने स्तर पर इस का जवाब ढूंढिएगा...प्रश्न ज़रूरी है ...आप की सेहत का मसला है, कहीं यह भी न हो कि जानकारी के अभाव में लोग बाग इसे ज़्यादा इसलिए खाने लगें कि यह लोहे वाला है ...और इसी चक्कर में ब्लड-प्रेशर का स्तर बढऩे लग जाए।
कंपनी की साइट पर ही FAQs में एक प्रश्न है कि क्या यह साल्ट केवल आयरन की कमी वालों के लिए ही है , इस का जवाब यह दिया गया है कि चूंकि हम इस का इस्तेमाल रोज़ाना कुकिंग के लिए कर सकते हैं तो इसे बच्चों को भी दिया जा सकता है जो सब्जियां खाना पसंद नहीं करते और न ही ऑयरन के सप्लीमैंट्स ही लेते हैं...

आने वाले दिनों में बहुत सी बातें क्लियर हो जाएंगी...लेकिन जो प्रश्न मैंने आप के समक्ष रखा है, उसे ध्यान में रखते हुए ही कोई निर्णय लीजिए..तब तक आप यह कर सकते हैं कि घर में कम रक्त की कमी से परेशान बाशिंदों को तो इसे इस्तेमाल करने की सलाह दे ही दें....मैंने टाटा प्लस की साइट पर भी इस प्रश्न का जवाब ढूंढना चाहा तो वे भी इस बात का गोलमोल जवाब दे रहे हैं...ऊपर देखिए स्क्रीनशॉट...आप इस लिंक पर जा कर इस प्रोडक्ट के बारे में अधिक जानकारी पा सकते हैं...  इस तरह के नमक के स्वाद के बारे में और कुछ अन्य ज़रूरी जानकारी भी यहां आप को मिल जायेगी...

मैं भी कैसी ऊट-पटांग नमकीन, कसैली बातें लेकर बैठ गया ..होली के सीजन में, वह भी लखनऊ शहर में ...जब बातें गुजिया, गुलाल, फूलों और रंगों की होनी चाहिए..बस....





टहलना तो बस एक बहाना होता है शायद!

शुरूआत करते हैं जह्ान्वी के इस बेहतरीन डायलाग से ... शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है, अगर यही जीना है तो मरना क्या है...मुझे यह डॉयलाग बहुत पसंद है...अनेकों बार सुन चुका हूं और सुनता रहता हूं ...जैसा आधुिनक जीवन का सार सिमट कर रख दिया हो इसमें...आप भी सुनिए....


यह तो था विद्या बालन का विचार ...मेरा आज का विचार यह है कि टहलना तो बस एक बहाना है, तन मन चुस्त दुरूस्त रखने के साथ साथ टहलने के दौरान हमें बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है, आज प्रातःकाल भ्रमण करते हुए यही ध्यान आ रहा था कि सुबह सवेरे जब हम लोग प्रकृति की गोद में आते हैं तो मानो यह भी अपने सारे खज़ाने खोल देती है ...

जितनी चाहो जिस तरह की चाहो प्रेरणा बटोर लीजिए, जोश भर लीजिए, जीवन जीने की कला और दूसरों को खुश रखने का हुनर सीख लीजिए।

मैं अकसर यह शेयर करता हूं अगर आप रोज़ रोज़ एक ही उद्यान में भी जाते हैं तो परवाह नहीं, बस जाते रहिए, हर दिन आप को कुछ नया दिखता है, कुछ नये नये अनुभव होते हैं ...बहुत कुछ रोमांचित घट रहा होता है हर तरफ़। आप को क्या ऐसा नहीं लगता!

एक बार जो आपसे और शेयर करनी है कि जहां तक हो सके तो हमें  इन जगहों पर बिना एफ एम या एयरफोन्स के ही जाना चाहिए...मैं अकसर उद्यान में टहलते हुए एफएम पर फिल्मी गीत सुनना पसंद करता हूं ...आवाज़ धीमी रखता हूं ..एयरफोन्स का इस्तेमाल नहीं करता...बहुत वर्ष किया...जब लगने लगा कि थोड़ा थोड़ा ऊंचा सुनने लगा हूं तो यह शौक छोड़ दिया...हां, तो मैं कह रहा था कि एफएम सुनते हुए टहलता हूं...लेकिन विचार यह आ रहा था कि यह एफएम वाला शौक पूरा करने के लिए तो पूरा दिन है ...जितना हो सके, उस नैसर्गिक वातावरण के साथ मिलने की, उस के साथ जुड़ने की कोशिश करनी चाहिए...सुबह तो कोशिश भी नहीं करनी पड़ती, यह स्वतः ही हो जाता है।

पार्क के गेट पर लोग योगाभ्यास का आनंद लेते हुए

मैं भी आज एफएम नहीं ले कर गया...तो मुझे भी बहुत अच्छा लगा... सब से पहले तो देखा कि पार्क के बाहर ही लोग योग क्रिया में रमे हुए थे...अंदर जाते जाते किसी ज्ञानी की एक बात कान में पड़ गई... कि आदमी भी जानवरों से ही सब कुछ सीखता है, परिंदों की उड़ान से सीख ली और हवाई जहाज बन गया...हाथी से सीख ली तो जेसीबी मशीन बन गई....
हमारे दौर की विद्या देवी 

आगे चलने पर आज ये पेड़ खूब दिखे...इन पर लगे ये हरे हरे फल हैं या फूल हैं ...पता नहीं लेिकन इस पेड़ की पत्तियों की यादें ढ़ेरों हैं बचपन की ...यही तो पेड़ है जिस की पत्ती हम लोग कापी-किताब में रख कर सोच लिया करते थे कि अब विद्या देवी हमारे पास है, सब कुछ याद भी हो जायेगा और परीक्षा परिणाम भी बढ़िया आयेगा...हर दौर की अपनी बातें, अपनी भ्रांतियां...innocent, foolish childhood myths!
बुजुर्गों के ठहाके ...दिल खोल लै यारां नाल नहीं ते डाक्टर खोलनगे औज़ारां नाल 
मुझे टहलते हुए अच्छा लग रहा था जब मैं बहुत से लोगों को अपने अपने कामों में मस्त हुआ देख रहा था, कुछ बुजुर्ग अपने ग्रुप में योग करते करते हास्य-योग्य कर रहे थे ....मुस्कान और हंसी भी बड़ी संक्रामक होती है।

इस पार्क में जगह जगह प्लेटफार्म भी बने हुए हैं जहां पर बैठ कर भी लोग योगाभ्यास करते रहते हैं।
यहां प्राणायाम् चल रहा है 
कहीं कोई दंपति प्राणायाम् करता दिखा.... कोई बुज़ुर्ग ध्यान मुद्रा में बैठा जल्दी से अपना परलोक सुधारने की फिराक में लगा दिखा। महान् देश के लोगों की सभी आस्थाओं, धारणाओं को सादर नमन।
मुझे आज सुबह जल्दी उठने का इनाम यह नज़ारा मिला ...थैंक गॉड
हां, कुछ यार दोस्त, खूब हंसते हंसते अपने मोबाइल से फिल्मी गीत सुनते हुए टहल रहे थे...अचानक जैसे ही यह गीत बजा ...थोड़ा रेशम लगता है, थोड़ा शीशा लगता है ... तो उन में से एक दोस्त ने चुटकी ली.....अच्छा, थोड़ा रेशम लगता है .........अच्छा....बस, फिर से उन के ठहाके।
ऐसे माहौल में शेल्फी भी ठीक ठाक आ जाती है ...एक और फायदा 
सुबह सुबह का वातावरण अलग ही होता है ...मैंने अचानक आसमान की तरफ़ देखा तो मुझे यह स्वर्णिम नज़ारा दिखा..चंद मिनटों के लिए ही रहा ..

सुबह सुबह ऐसे में टहलने से हमें किसी की खुशी में खुश होने की भी सीख मिलती हैं , वरना सत्संग में यह भी तो समझाते हैं कि आज का मानव दूसरे की खुशी से नाखुश है...उदास है ... और एक बात संक्रामक हंसी से याद आ गई ...

मैं सत्संग में सुनता हूं अकसर कि एक बार एक गुरु ने अपने दो शिष्यों को १००-१०० फूल दिए और उन्हें बांटने के लिए कहा ...शर्त यही रखी कि जो हंसता हुआ दिखे ... उसे ही एक फूल देना है....शाम के वक्त दोनों लौट आए, एक के पास सभी फूल वैसे के वैसे और दूसरे को झोला खाली ....जो चेला सारे फूल वापिस ले कर लौट आया, उन ने पूछने पर बताया कि बाबा, दुनिया है ही इतनी खराब, सारे के सारे उदासी में जिए जा रहे हैं, सुबह से शाम हो गई , मुझे तो कोई भी मुस्कुराता नहीं दिखा...

चलिए अब दूसरे की बारी आई....उसने कहा ... कि बाबा, लोग इतने अच्छे हैं, मैं जिसे भी मिला, मैं उसे देख कर जैसे ही मुस्कुराता, वह भी खुल कर मुस्कुरा देता..और मैं झोले में से गुलाब निकाल कर उसे थमा देता....गुरू जी, मेरे फूल तो एक घंटे में ही खत्म हो गये....मुझे तो यही लग रहा था कि मुझे और भी बहुत से फूल लेकर चलना चाहिए था।

सीख क्या मिलती है इस प्रसंग से, हम सब जानते ही हैं, हंसिए खुल कर हंसिए, और दुनिया आप के साथ हंसेगी...बांटिए, खुशियां बांटिए, मदर टेरेसा ने एक बार कहा था कि आप जिस से भी मुलाकात करो, उसे आप से मिलकर बेहतर महसूस करना चाहिए।
सूर्योदय का मनोरम नज़ारा...काश, बचपन में सूर्य नमस्कार ही सीख लिया होता..
मुझे लगता है हम सब का यही प्रयास होना चाहिए....लेकिन इस के लिए पहले हमें अपने अाप को तो खुश रखना सीखना होगा कि नहीं, just being at ease with ourselves....और सुबह का टहलने इन ढ़ेरों खुशियों को बटोरने का एक बहाना है ...पंक्षियों की चटचहाहट, ठंड़ी हवाएं, खुशगवार फिज़ाएं, हरियाली, खिलखिलाते फूल.....omg... बस करता हूं कहीं कवि ही न बन जाऊं...वरना दिक्कत यह हो जायेगी कि थोड़ा बहुत जितना भी काम का बचा हुआ हूं वह भी नहीं बच पाएगा।

हमारी कॉलोनी की सड़कों पर पसरा सन्नाटा 
मुझे अपनी हाउसिंग सोसायटी में टहलने का मन नहीं होता ...बिल्कुल सुनसान सन्नाटे वाली सड़कें...कंक्रीट का एक जंगल सा ..हरियाली तो है वैसे ..लेिकन फिर भी यह एक हमेशा सैकेंड ऑप्शन ही रहता है मेरे लिए...क्योंकि जैसा मैंने पहले ही कहा है कि टहलना तो बस एक बहाना है, उस दौरान हमें अपने रूह की खुराक भी इक्ट्ठा करनी होती है ...यह सब स्वतः होने लगता है...और फिर हम ने देखना है कि कैसे हम उस एनर्जी से अपने आस पास के वातावरण को अभिसिंचित कर सकते हैं, दिन भर ....यह भी प्रभु कृपा से अपने आप ही होने लगता है....

जाते जाते कल सत्संग में स्टेज पर विराजमान महात्मा ने एक बात समझाई ....जितना प्राप्त है, पर्याप्त है... हम ने नोट कर ली उसी समय, कागज़ पर तो हो गई, काश, हम लोगों के दिल में भी बस जाए यह बात...सहज जीवन का मूल-मंत्र....

एक बात और .....When you are good to others, you are best to yourself!  (यह पोस्टर मैंने विशेष तौर पर बनवाया था औरर होस्टल में अपने कमरे में टांगा हुआ था)....पढ़ते ही मजा आ जाता था...

बस, अब इजाजत लेने की बारी है ....हां, उन दोस्तों वाला गीत तो सुनते जाइए...थोड़ा रेशम लगता है .....

दरअसल मैंने भी यह गीत आज मुद्दतों बाद सुना...अभी देखा तो झट से याद आ गया कि यह तो ज्योति फिल्म का गीत है ...कालेज के पहले साल में देखी थी यह फिल्म --१९८१ की एक सुपर-डुपर हिट फिल्म...