अभी अभी ब्लागवाणी देख रहा था तो डा महेश सिन्हा की एक बहुत उपयोगी पोस्ट दिख गई ---मस्तिष्क आघात के मरीज़ को कैसे पहचानें? मस्तिष्क आघात --जी वही, जिसे कईं बार ब्रेन-स्ट्रोक भी कह दिया जाता है अथवा आम भाषा में दिमाग की नस फटना या ब्रेन-हैमरेज भी कह देते हैं।
इस के बारे में पोस्ट डाक्टर साहब को किसी मित्र से मिली है --
वे लिखते हैं ---- एक पार्टी चल रही थी, एक मित्र को थोड़ी ठोकर सी लगी और वह गिरते गिरते संभल गई और अपने आस पास के लोगों को उस ने यह कह कर आश्वस्त किया कि सब कुछ ठीक है, बस नये बूट की वजह से एक ईंट से थोड़ी ठोकर लग गई थी। (आस पास के लोगों ने ऐम्बुलैंस बुलाने की पेशकश भी की).
साथ में खड़े मित्रों ने उन्हें साफ़ होने में उन की मदद की और एक नई प्लेट भी आ गई। ऐसा लग रहा था कि इन्ग्रिड थोड़ा अपने आप में नहीं है लेकिन वह पूरी शाम पार्टी तो एकदम एन्जॉय करती रहीं। बाद में इन्ग्रिड के पति का लोगों को फोन आया कि कि उसे हस्पताल में ले जाया गया लेकिन वहां पर उस ने उसी शाम को दम तोड़ दिया।
दरअसल उस पार्टी के दौरान इन्ग्रिड को ब्रेन-हैमरेज हुआ था --अगर वहां पर मौजूद लोगों में से कोई इस अवस्था की पहचान कर पाता तो आज इन्ग्रिड हमारे बीच होती।
ठीक है ब्रेन-हैमरेज से कुछ लोग मरते नहीं है --लेकिन वे सारी उम्र के लिये अपाहिज और बेबसी वाला जीवन जीने पर मजबूर तो हो ही जाते हैं।
जो नीचे लिखा है इसे पढ़ने में केवल आप का एक मिनट लगेगा ---
स्ट्रोक की पहचान ---
एक न्यूरोलॉजिस्ट कहते हैं कि अगर स्ट्रोक का कोई मरीज़ उन के पास तीन घंटे के अंदर पहुंच जाए तो वह उस स्ट्रोक के प्रभाव को समाप्त (reverse)भी कर सकते हैं---पूरी तरह से। उन का मानना है कि सारी ट्रिक बस यही है कि कैसे भी स्ट्रोक के मरीज़ की तुरंत पहचान हो, उस का निदान हो और उस को तीन घंटे के अंदर डाक्टरी चिकित्सा मुहैया हो, और अकसर यह सब ही अज्ञानता वश हो नहीं पाता।
स्ट्रोक के मरीज़ की पहचान के लिये तीन बातें ध्यान में रखिये --और इस से पहले हमेशा याद रखिये ----STR.
डाक्टरों का मानना है कि एक राहगीर भी तीन प्रश्नों के उत्तर के आधार पर एक स्ट्रोक के मरीज की पहचान करने एवं उस का बहुमूल्य जीवन बचाने में योगदान कर सकता है.......इसे अच्छे से पढ़िये और मन में बैठा लीजिए --
S ---Smile आप उस व्यक्ति को मुस्कुराने के लिये कहिए।
T-- talk उस व्यक्ति को कोई भी सीधा सा एक वाक्य बोलने के लिये कहें जैसे कि आज मौसम बहुत अच्छा है।
R --- Raise उस व्यक्ति को दोनों बाजू ऊपर उठाने के लिये कहें।
अगर इस व्यक्ति को ऊपर लिखे तीन कामों में से एक भी काम करने में दिक्कत है , तो तुरंत ऐम्बुलैंस बुला कर उसे अस्पताल शिफ्ट करें और जो आदमी साथ जा रहा है उसे इन लक्षणों के बारे में बता दें ताकि वह आगे जा कर डाक्टर से इस का खुलासा कर सके।
नोट करें ---- स्ट्रोक का एक लक्षण यह भी है --
1. उस आदमी को जिह्वा (जुबान) बाहर निकालने को कहें।
2. अगर जुबान सीधी बाहर नहीं आ रही और वह एक तरफ़ को मुड़ सी रही है तो भी यह एक स्ट्रोक का लक्षण है।
एक सुप्रसिद्ध कार्डियोलॉजिस्ट का कहना है कि अगर इस ई-मेल को पढ़ने वाला इसे आगे दस लोगों को भेजे तो शर्तिया तौर पर आप एक बेशकीमती जान तो बचा ही सकते हैं ....
और यह जान आप की अपनी भी हो सकती है।
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डा्क्टर साहब की यह पोस्ट को हिंदी में लिखने का ध्यान आया क्योंकि मुझे अपनी बड़ी बहन का ध्यान आ गया। बात 1990 की है, वे जयपुर में प्रोफैसर हैं, एक दिन अचानक वह अचानक दाएं पैर की चप्पल बाएं में और बाएं की दाएं की डाल कर चलने लगीं तो घर में बच्चियां हंसने लगीं --- और थोड़े समय में उन की जुबान भी बताते हैं कांप सी रही थीं। जीजा जी उन्हें तुरंत फैमिली डाक्टर के पास ले गये ---अब देखिये फैमिली डाकटर भी कितने मंजे होते हैं ---उन्होंने उन्हें तुरंत डा पनगड़िया (जयुपर के क्या ,सारे विश्व के एक सुप्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट हैं डा पनगड़िया)की तरफ़ इन्हें रवाना कर दिया ...जाते ही उन का सीटी हुआ ---पता चला कि यह transient ischemic attack (TIA) है --- इस दौरान दिमाग में रक्त की मात्रा अचानक बहुत कम पहुचंती है --- और यह स्ट्रोक की तरफ़ भी जा सकता है। बस, उन्हें डाक्टर साहब द्वारा तुरंत एक इंजैक्शन दिया गया ---शायद ट्रैंटल नाम का टीका था ----जो तुरंत छोटे मोटे थक्के (clot) को घोल देता है।
तुंरत ही मेरी बहन ठीक हो गईं और बाद में कुछ हफ्तों के लिये लेकिन उन्हें दवाई खानी पड़ी थी। भगवान की दुआ से अब बिल्कुल तंदरूस्त हैं। यह बहन की बात इसलिये लिखी की सही समय पर तुरंत डा्क्टरी सहायता मिलना कितना ज़रूरी है इस बात को रेखांकित किया जा सके और साथ में अपने फैमिली डाक्टर से हमेशा सलाह लेने में ही बेहतरी है ---वरना शिक्षा से जुड़े लोगों को कहां पता रहता कि कौन न्यूरोलॉजिस्ट और किस के पास जाना है ?
बहरहाल, काम तो मैं नेट पर कुछ और करने बैठा था--- लाइट है नहीं, इंवरटर पर काम चालू है। घर वाले सभी जयपुर गये हैं ---बेटे को कह रहा हूं कि यार एक कप चाय पिला दो ---कह रहा है कि नहीं पापा, यह ना होगा ---देखता हूं शायद मुझे ही उठना होगा।
जब डाक्टर सिंहा की यह पोस्ट देखी तो रहा नहीं गया ----ऐसा लगा कि डाक्टर साहब जो निश्चेतना विशेषज्ञ हैं, अगर उन्होंने इतनी बढ़िया पोस्ट हम सब तक पहुंचा कर इतना सार्थक कार्य किया है तो अपना थोड़ा योगदान भी तो बनता ही है, बॉस.।
बहरहाल, डा सिंहा जी, गुस्ताखी माफ़ ----आप का लेख चुराने के लिये। Hope you dont mind, which i am sure you won't.