रविवार, 18 सितंबर 2022

कुमार शानू लाइव शो में शिरकत कर पाना ही एक सुनहरे सपने जैसा ....

 दुनिया में हमारे प्रगट होने से भी पहले की फिल्म के गीतों का पेम्फलेट ..1960 में छपा होगा ..

फिल्मी गीतों की याद करते हैं तो हमें वो दिन याद आते हैं जब किसी फुटपाथ पर हमें 25-50 पैसे के पेम्फलेट पर हमें किसी फिल्म के गीत छपे हुए मिल जाते थे ...हम उसे देख-पढ़ कर खुश हो जाया करते थे ...पता नहीं मैं इन पेम्फलेटों को कैसे भूल गया था ...कुछ महीने पहले जब ऐसा ही एक पेम्फलेट एक विंटेज शॉप से 500 रूपये में खरीदा तो सभी यादें ताज़ा हो आईं...हा हा हा ....पांच सौ रूपये खर्च दिए इत्ती सी बेफ़िज़ूल चीज़ के लिए ....😂 हां, खर्च दिए यह सोच कर हमेशा की तरह कि जैसे एक पिज़्ज़ा खा लिया (अगर मैं यह न सोचूं तो इतनी फ़िज़ूलखर्ची करते वक्त मेरी तो भई जान ही निकल जाए...)  ...क्योंकि ऐसी ची़ज़ के फिर से दिखने के कोई चांस नहीं होते और हमारे जैसे लोगों के लिए ...ख़ास कर जो थोड़ा बहुत लिखना भी सीख रहे हों, उन के लिए तो ऐसा एक पेम्फ्लेट भी अपने साथ पुरानी खुशगवार यादों का तूफ़ान ले उमड़ता है ...

और एक बात, अभी इन पेम्फलेट्स से फुर्सत मिली ही थी कि मेरी उम्र के लोगों ने फिर गीतों की छोटी छोटी किताबें फुटपाथ से खरीद कर इक्ट्ठा करना शुरू कर दीं... तब तो ये हमें दो-तीन रूपये में मिल जाती थीं ...अब मैंने कितने में खरीदी हैं ये लता जी और किशोर दा की पुरानी किताबें, वह मत पूछिए....कभी खुद देखिएगा ट्राई कर के .. पता चल जाएगा.. 😂

खऱीदने का कारण .... कारण यही कि फिर ये किताबें कहीं नज़र आएं, न आएं ...कौन जाने...इसलिए खरीद लो जिस भी दाम पर मिलें, ऐसा सोच कर संग्रह कर लिया ...

पुरानी कैसटों का भी तो यही हाल होता था...जेब में सौ-पचास रूपये होते हुए भी 20-25 रूपये की कैसेट खरीद ही लेते थे ...दुकान पर चाहे दस मिनट सोचने में लगा देते कि लें या रहने दें..गाने तो इसमें अपनी पसंद के दो ही हैं....लेकिन फिर दिल पर दिमाग हावी पड़ता और उसे खरीद ही लेते। अपने एक दोस्त ने पिछले महीनों ढेरों कैसटें रद्दीवाले को दे दीं....हमें पता चला तो इतना दुःख हुआ ..हमने कहा कि हमें बताते, हम उठा लाते और सहेज कर रखते ....अब उन्हें जब भी हम यह बात याद दिलाते हैं वह भी उदास हो जाते है ं....हां, अपने पास भी कुछ बहुत पुरानी कैसटों का ज़ख़ीरा रखा पड़ा है ...यादों की पिटारियां हैं यार, इन्हें कैसे फेंक सकते हैं...अब कोई टेप-रिकार्ड इस लायक तो है नहीं कि उन पर इन्हें सुना जा सके ...और अगर कभी टू-इन-वन की तबीयत किसी दिन ठीक मिलती भी है तो उस दिन कैसेट का चलने का मूड ही नहीं होता....

खैर, इस तरह की बातें तो हमारे पास ऐसी हैं कि किताबें लिख मारें अगर चाहें तो ...लेकिन अभी तो कुमार शानू के लाइव शो की बात करते हैं...एतवार के दिन  बंबई की टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ एक सप्लीमैंट होता है ..मुंबई मिरर ....उस से पता चल जाता है कौन सा शो कब और कहां होने वाला है ....जब कुमार शानू के शो का पता चला तो मन बना लिया कि वहां कर हो कर आएंगे ही ...


परसों 16 सितंबर 2022 शाम 6.45 बजे यह शो शुरू होना था ...मैं लगभग साढ़े सात बजे वहां पहुंचा ...षणमुखानंद हाल है ...किंग्ज़ सर्कल में ...वह हाल ही है कि मैं उस दिन अपने एक साथी को कह रहा था कि वहां जा कर ही ऐसे लगता है जैसे कि मंदिर में ही आ गए हैं...उस की आब-ओ-हवा में ही कुछ ऐसा है ...। 

खैर, जब मैं वहां पहुंचा तो वहां कोई नयी गायिका रचना चोपड़ा कोई गीत गा रही थी ..लोग बेसब्री से कुमार शानू का इंतज़ार कर रहे थे ...शोर मचा रहे थे ..वे किसी दूसरे को सुनना नहीं चाहते थे ...ठीक है, जिन लोगों ने हज़ारों रूपये की टिकट खरीदी हो वे कब किसी की सुनें ..शो कम्पियर करने वाला कह रहा था कि दादा पहुंच चुके हैं...बस, अभी आने ही वाले हैं ...खैर, उन्हें स्टेज पर आते आते आठ तो बज ही गए...



कुमार शानू का स्टेज पर आने पर बहुत स्वागत हुआ ...उन्हें देखना ही सब को एक सपने का साकार होने जैसा लग रहा था...खचाखच भरे हाल में और दोनों बालकनियों में लोग इस प्रोग्राम का आनंद ले रहे थे....कम्पियर ने जब कहा कि दादा ने 30 हज़ार से ज़्यादा गीत अलग अलग ज़ुबानों में गाए हैं तो शानू ने कहा कि नहीं, यह गलत कह रहा है ...ऐसा एक रिवाज हो गया है कि फलां फलां ने 50 हज़ार गाए ..उसने 40 हज़ार गाए...उन्होंने कहा कि जब से यह फिल्म इंडस्ट्री बनी है तब से कुल 72000 गीत बने हैं ...उन्होंने 21 हज़ार से ज़्यादा गीत गाए हैं...

शानू ने कहा कि आप सब लोग हो जिसने कुमार शानू को बनाया है ..मुझे इतनी मोहब्बत दी है ..एक गीत के दौरान जब सब लोग साथ में वह गीत गुनगुना रहे थे तो कुमार ने कहा कि ऐसे खुशकिस्मत कितने गायक होंगे ...उन्होंने कहा कि मैं जीते जी आप को कभी धोखा नहीं दूंगा ...जैसा भी बन पडे़गा, गाता रहूंगा ... जेन्यून काम किया है हमारे दौर के गायकों ने ...अब लोग जब मुझे कहते हैं कि वैसा दौर वापिस कब लौटेगा....तो मैं कहता हूं वह दौर अब कैसे लौट सकता है ...कहां से लाऊंगा मैं वे लिरिसिस्ट, वे संगीतकार ...और वे प्ले-बैक सिंगर जिनके लिए काम एक जुनून था ...इसलिए जब तक हम हैं, हम से ही काम चलाओ...

उन्होंने पब्लिक की फरमाईश पर बहुत से गीत सुनाए ... अब मैं कैसे वह लिस्ट आप तक पहुंचाऊं ...एक के बढ़ कर एक गीत ... कुमार ने कहा कि 1990 का दौर ही रोमांस का दौर था...किसी ने कहा कि इन के गीत गुनगुना गुनगुना कर ही बहुत सी लव-स्टोरी परवान चढ़ी ...बहुत ही शादियां हो पाई इन गीतों की वजह से ही ...तो कुमार ने कहा कि हां, शादीयां तो हुईं मेरे गीतों की वजह से उपजी प्रेम-कहानियों की वजह से....लेकिन आगे किसी के साथ जो भी हुआ ..उस के लिए मैं कतई ज़िम्मेदार नहीं हूं...😂 तुम लोगों ने मेरे गीतों के नाम पर पता नहीं कितने कांड़ कर डाले होंगे ... 

लाइव -शो के दौरान लोगों को उन का बड़ी सहजता से बात करना ..बिना किसी लाग-लपेट के ...अच्छा लगा ..उन्होंने लोगों की फरमाईश पर एक गीत बंगला गीत भी सुनाया .. जिस में धरती मां की पूजा करने की बात थी ...

जब कुमार ने वह गीत गाया जब कोई बात बिगड़ जाए .... तो उन के कहने पर तीनों फ्लोर पर सभी ने अपने मोबाइल फोन की फ्लैश ऑन कर के उन का साथ दिया....बहुत खूबसूरत नज़ारा था ...वह भी अपने गीतों के लिए इतना प्यार उमड़ता देख कर भावुक हो गए... 



बिल्कुल सच बात है कि हिंदी फिल्मी गीतों के साथ हमारी यादें जुड़ी हुई हैं...हम सब की ...जाने अनजाने में ही सही ..लेकिन यह बात तो है ही ....कुछ दिन पहले हमने एक साथी से सुना वह गीत.....ज़िंदगी आ रहा हूं मैं (गीत का लिंक है यह) ..दो दिन पहले मैंने उसे कहा कि वह गीत हमें भी बहुत अच्छा लगता है ...तब अचानक उसके मुंह से निकला कि तुम्हें पता है कि 30-35 बरस पहले मैं और मेरे साथी एक ट्रेनिग करने के बाद बस में वापिस अपने शहर की तरफ जब लौट रहे थे तो हम लोग मिल कर बहुत यही गीत गा रहे थे .... बताते बताते वह बंदा भावुक हो गया...और हमें भी अपनी यादों की ओस में थोड़ा तो भिगा ही गया... 

खैर, हम सब के साथ यही है ...मुझे आज तक याद है बचपन में जब स्कूल पैदल जाते थे तो रास्ते में जो गीत बहुत बजा करता था...रास्ते में पड़ने वाली दुकानों के रेडियो सेट पर ...शर्मीली ...ओ...मेरी शर्मीली ...(गीत का लिंक है यह), बस यह गीत हमेशा के लिए याद रह गया...जब कभी भी इसे सुनते हैं बचपन के वे दिन याद आ जाते हैं...ऐसी कम से कम सैंकड़ों यादें अभी भी ताज़ा हैं....क्या क्या लिखें, ..किसे दर्ज करें, किसे छोड़ दें, नाइंसाफी लगती है ....1990 में जब शादी के बाद मंसूरी में गये तो वहां पर सारी मंसूरी में आशिकी फिल्म के एक गीत ने जैसे धूम ही मचा रखी थी ... सांसों की ज़रूरत है जैसे ज़िंदगी के लिए..(गीत का लिंक यह है, इसे भी कुमार शानू ने गाया है) .बस, इक सनम चाहिए.... 


हां, तो मैं यह बात यहां लिखना चाह रहा हूं कि गीतों के साथ हमारी यादें तो जुड़ी होती ही हैं...लेकिन जो लोग इस तरह का क्रिएटिव करिश्मा कर गुज़रते हैं उन की भी बहुत सी यादें इन के साथ जुड़ी होती हैं...चाहे वह इन गीतों को लिखने वाले, चाहे इन के संगीतकार या गायक हों, या वो फिल्मी किरदार जिन पर ये फिल्माए जाते हैं...यादें सब की जुड़ी होती हैं...गीतकार अंजान, गीतकार गोपाल दास नीरज से ये सब बातें सुन चुका हूं ...लखनऊ में कुछ प्रोग्राम के दौरान...आनंद बख्शी के बेटे राकेश बेटे और हसरत जयुपरी की बेटी से नगमों के पीछे के किस्से आए दिन हम सुनते रहते हैं....और इसी तरह से गायकों की भी अपनी यादें होती हैं.... कुमार शानू ने बताया कि यह जो गीत आप सुनते हो ....कुछ न कहो, कुछ भी न कहो ...(गीत का लिंक) ..दरअसल यह उन का रिहर्सल टेक है..जिसे पंचम दा ने ओ के कर दिया....और मुझे बाहर आने के लिए कह दिया.... जब शानू ने कहा कि मुझे तो अभी फाइनल गीत गाना है ...तब पंचम दा ने कहा ... नहीं, उस की ज़रूरत नही ंहै, मुझे जो चाहिए था मुझे मिल गया है ... 

इक लड़की को देखा तो ऐसा लगा ... जैसे ... जैसे ....जैसे ...शानू ने कहा कि पंचम दा ने कहा कि इस गाने में जैसे ....जैसे ...जैसे ...बहुत बार आया है ...बस, अगर तुम ने हर जैसे को अलग तरह से निभा लिया तो मेरा गीत समझो सुपर-डुपर हिट हो गया....। उन्होने इस की एक झलक पेश भी की ....

एक बुज़ुर्ग महिला जब शानू को मिलने स्टेज पर आईं तो उन्होंने नसीब फिल्म (1997) के उस गीत की फरमाईश कर दी ...शिकवा नहीं किसी से, किसी से  गिला नहीं, नसीब में नहीं था जो हमें मिला नहीं.... य़ह रहा इस गीत का लिंक ... 

सोच रहा हूं बहुत लिख दिया है ....शायद ज़रूरत से ज़्यादा ही ...अब फुल-स्टॉप लगाता हूं इस पोस्ट को .... जाते अलविदा लेते हुए कुमार शानू ने अपना यह गीत सुनाया .... 


और यह गीत भी कुमार शानू का ही है ... 


हां, एक काम और करना बाकी है ..जिस हाल में यह प्रोग्राम था, वहां की कुछ तस्वीरें ली थीं....वह शेयर कर रहा हूं....





यह हाल किसी साउथ इंडियन सोसायटी द्वारा चलाया जा रहा है, इसलिए आप समझ सकते हैं कि वहां की साफ-सफाई, वहां की एम्बिएंस...और सारा वातावरण ही कितना संगीतमय, सुरमयी और सब को सुकून देने वाला होगा....कुछ महीने पहले भी मैंने लता जी के याद में एक प्रोगाम वहां अटेंड किया था ... उस में भी मैंने इस हाल की खूब तस्वीरें शेयर की थीं....अगर आप ने न देखी हों तो देखिएगा, कभी फुर्सत के पलों मे ं.... यह रहा उस का लिंक .... 

एक महीने पहले मो. रफी साहब की याद में भी वहां पर एक बहुत खूबसूरत प्रोग्राम में शिरकत करने का मौका मिला था...बस, अपनी डायरी स्वरूप अपने इस ब्लॉग में दर्ज करने से चूक गया....आलस किया दो तीन दिया....फिर बस लिखने से चूक ही गया...इसलिए सोचा कि आज पहले कुमार शानू वाले होम-वर्क को निपटाया जाए ...कहीं यह भी छूट न जाए....मेरे जैसे आलसी बंदों का क्या भरोसा... जो लोग वहां नहीं थे, उन तक कुछ तो ज़ायका पहुंचा दें... 😀

Take care.... enjoy ever green, immortal melodies! 
Praveen Chopra