रविवार, 6 मार्च 2016

अच्छा तो यह है धतूरा ...

हमारी कालोनी के बाहर सब्जी मंडी लगती है ..रविवार के दिन...उधर से गुजर रहे थे तो एक दुकानदार ने अलग तरह की सब्जी रखी हुई थी...मैंने पहले भी इस ब्लॉग पर लिखा है कि मैंने लखनऊ में आकर बहुत सी नईं नईं सब्जियां देखी हैं और खाई भी हैं...

धतूरा ...
मैं भी आदत से मजबूर... जिज्ञासा का क्या करता?...पूछ ही लिया...भैया जी, यह कौन सी सब्जी है?...मेरी बात सुन कर वह तो हंस पड़ा और उस की एक ग्राहक मेरे मुंह को ताकने लगी....तब भैया जी ने खुलासा किया.. यह धतूरा है।

उसी समय मेरे मन में यह विचार आया कि धतूरा तो कुछ गड़बड़ चीज होती है ... सुनते हैं कि यह नशा है... शायद यह कोई और धतूरा होगा जो इस तरह से िबक रहा है। 

उस दुकानदार ने बताया कि यह जहर है, अगर इन दो को आप खा लेंगे तो दो दिन उठ नहीं पाएंगे... यह खाने की चीज नहीं है, यह पूजा की चीज़ है। 

कल शिवरात्रि है ..भोले बाबा की पूजा के लिए इसे इस्तेमाल किया जाता है .. 


आगे बताने लगा कि दस रूपये में पूजा के लिए एक धतूरा, बेल पत्र और बेर दे रहे हैं.. कल २१ रूपये में भी नहीं मिलेगा...गांव में ढूंढ कर लाते हैं... यहां बिकेगा तो ठीक, वरना अभी ५०० रूपये के १०० धतूरे के हिसाब से ये अभी कोई ले जायेगा...

धतूरा ऐसे बिक रहा है ...हैरानगी हुई .. मुझे नहीं पता कि यह ऐसे बिक सकता है कि नहीं, लेकिन वही बात है ...यह१२५ करोड़ लोगों का देश, अलग अलग आस्थाएं, अलग अलग विश्वास....इस देश को चलाना भी एक चुनौती ही है , हम लोग अपनी अपनी ओपीडी ही ठीक से चला कर खुश हो लेते हैं...indeed a great challenge...

शिवरात्रि की मेरी यादें ...बस यही हैं, एक तो यह गीत जो ऊपर लगा दिया है ...दूसरा यह कि मेरे पिता जी वैसे तो आस्तिक नहीं थे, दुनियावी दृष्टि से इधर उधर बिल्कुल भटकते नहीं थे, भ्रांतियों से कोई लेना देना न था ..लेिकन एक बेहतरीन शख्स थे... full of humane qualities... धर्म के नाम पर उन्हें शिवरात्रि के दिन शिव जी का ब्याह सुनना बहुत अच्छा लगता था... ज़रूर सुनते थे .. The biggest lesson taught to us by our father is...All humans are equal and always be kind to the person who is less fortunate than you!

और शिवरात्रि की याद यह कि होस्टल में एक बार इस मौके पर किसी ने भांग के पकौड़े खिला दिये थे ..बहुत से छात्र अस्पताल में दाखिल हो गये थे.. और एक दुःखद याद कि १९८६ या १९८७ के आसपास अमृतसर के भाईयां शिवाले में शिवरात्रि के दिन एक बहुत बड़ा धमाका हुआ था...वे आतंकवाद के दिन थे..यह शिवाला हमारे होस्टल से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर था.. 

कैलाश खेर का यह गीत याद आ गया... दो साल पहले इसे कैलाश खेर के एक लाइव प्रोग्राम में सुना था..प्रोग्राम के बाद जिस गर्मजोशी से कैलाश खेर से मेरी बात हुई...बेटे ने बाद में मुझे पूछा कि क्या वह आप को पहले से जानते हैं?...मैं क्या जवाब देता, हंस कर टाल गया। याद है उस प्रोग्राम में लोग झूम रहे थे कैलाश खेर के साथ....

हर तस्वीर कुछ कहती है, अगर हम सुनने की परवाह करें तो ..

यह बात मैं बहुत बरस पहले समझ गया था... एक बहुत मशहूर कहावत है कि एक एक तस्वीर १००० शब्दों के बराबर है ..एक ज़माने में जब मैं online story-telling के कोर्स पे कोर्स किए जा रहा था तो यह बात बात बार बार सुनने को मिलती थी अकसर...और उन्हीं दिनों यह भी समझ में आ गया कि यह १००० शब्दों वाली बात तो है ही, इस के साथ साथ हर तस्वीर बोलती भी है...हम से कुछ चीख चीख कर कहना चाहती है ...थोड़ी फुर्सत तो निकालइए...

मेरे शौक भी कुछ कुछ दिनों बाद बदल जाते हैं.... कुछ भी नया देखता हूं..ट्राई करने की कोशिश तो करता ही हूं...just experimentation!

पिछले कुछ महीनों के दौरान शेयरो-शायरी का शौक चढ़ गया था... खूब पढ़ा बड़े बड़े शायरों को ... और उन के खूबसूरत विचारों के पोस्टर बना कर शेयर भी बहुत किया...एक दिन अचानक लगा, यह तो कोई बात नहीं हुई..उन्होंने जो बात कहने थी, वे कह गये, उन के अपने अनुभव थे, वे दर्ज़ कर गये ...लेिकन हमारे (मेरे) पास जो अपने हर तरह के अनुभवों को पिटारा है उन का आचार डालें?.... वे किस काम के?

मैं हरेक को अपने विचारों को, अपने अनुभवों को कलमबद्ध करने के लिए प्रेरित किया करता हूं...इस के लिए कोई बहुत बड़ा बुद्धिजीवी भी होने की या दिखाने की भी ज़रूरत बिल्कुल नहीं है, पहले बचपन में हम लोग स्क्रैप-बुक में कुछ भी लिख लिया करते थे, फिर डायरी लिखनी शुरू की... एक ब्लॉग भी शुरू किया ...डायरी की तरह का ही ...मेरी स्लेट के नाम से ...बहुत समय तक वह खुला रहा लेकिन एक दिन पता नहीं क्या सूझी उसे पर्सनल कर दिया....

आप जो भी लिख रहे हैं, यह कहां ज़रूरी है कि उसे कोई पढ़े ... पढ़े तो अच्छा, न पढ़े तो और भी अच्छा...लिख तो आप अपने लिए रहे हैं.. क्योंकि आप को अच्छा लगता है .. आप हल्कापन महसूस करते हैं लिखने के बाद...बात इतना मासूम सा कारण है!

पिछले कुछ दिनों से मुझे अपने अनुभवों के आधार पर Quotes लिखने को शौक लग गया है ...जिन तस्वीरों के ऊपर ये जो Quotes लिखे हुए हैं ये भी मेरे द्वारा ही खींची गई हैं.. अच्छा लगता है, पहले कभी कभी मैं दूसरों के Quotes कापी कर लिया करता था, वह सिलसिला कैसे टूटा अभी बताता हूं, पहले आप कुछ Picture Quotes देखिएगा जो मैंने पिछले कुछ दिनों में बनाए हैं... बड़ा आसान है .. आप के पास कोई भी तस्वीर है, उस के बारे में कुछ भी कहने से शुरूआत तो कर के देखिए... शुरू शुरू में थोड़ा शायद पक जाएं, लेकिन फिर अच्छा लगने लगता है... कोशिश करिएगा... शेयर करना हो तो करिए, नहीं तो अपने पास ही रखे रखिए छुपा के दबा के, मैं तो वैसे शेयर करने में विश्वास करता हूं..




















 इन तस्वीरों को यहां पेस्ट करते समय एक तस्वीर मेरे स्कूल के मैगजीन की भी दिख गई...१९७७ के समय की ...अमृतसर शहर की ४०० वीं जयंती के विषय पर स्कूल की पत्रिका प्रकाशित हुई थी...मैंने भी उस समय कुछ लिखा था इंगलिश में...समाचार-पत्रों में प्रकाशित मेरे लेखों का मुझे कुछ पता नहीं कि वे कहां हैं ..अभी हैं भी या नहीं, लेिकन स्कूल के मैग्जीन में छपे ये लेख तो स्पेशल हैं ही ...


बस, यही कह कर इस पोस्ट को बंद करूंगा कि आप सब से भी यही अनुरोध है कि कंटेंट में नयापन लाने की कोशिश करिए... जो भी मन में है कापी में लिखना शुरू करिए, डायरी लिखिए, अगर ऑन-लाइन अपना ब्लॉग लिखना चाहते हैं तो शुरूआत तो करिए...कोई मुश्किल हो तो बिंदास मुझे भी िलख सकते हैं (drparveenchopra@gmail.com)..

हां, मैंने कैसे अचानक ये Quotes लिखने शुरू कर दिए.... मैंने बताया न कि मैं पहले दूसरे लोगों के Quotes वाट्सएप पर शेयर कर दिया करता था ... जब भी मेरी मां जी को यह मिलता..उसे वाट्सएप पर पढ़ती या मेरी किसी डॉयरी में मेरे द्वारा लिखा हुआ देखती तो मुझे अकसर पूछती हैं .... ऐह तू लिखया? ( क्या यह तुमने िलखा है?).... जब मैं कुछ बार यह कह कर के ऊब सा गया कि नहीं, किसी और ने कहा है, बस लिखा मैंने हैं........मेरी यही प्रेरणा रही कि अपनी बात, अपने अल्फ़ाज़ में रखते हैं, अपने ज़िंदगी के पन्नों के बारे में लिखते हैं......बस, अब यही सोचा है कि अपने अनुभव की ही बात करेंगे, वरना चुप रहेंगे....आप का क्या ख्याल है?

मेरी पसंद का एक गीत सुनते हैं...इस के याद रहने का एक और भी कारण है... कुछ साल पहले मुझे सर्जरी के लिए आप्रेशन थियेटर में ले जाया गया...किसी प्राईव्हेट अस्पताल में जयपुर में...लेिकन अंदर टीम भी एफ.एम की शौकीन ...मुझे अच्छे से याद है कि एनेस्थिसिया दिए जाने से पहले उस आप्रेशन थियेटर में यही गीत बज रहा था...