मुझे याद है...मैं १७ -१८ वर्ष का था, अमृतसर के डैंटल कॉलेज में बीडीएस में मेरा दाखिला हुआ था और तब हमें टीवी खरीदे भी कुछ हफ़्ते ही हुए थे....डैंटल कॉलेज में दाखिल होते ही वे लोग दांतों की सफ़ाई की बातें नहीं करने लगते..सिलेबस के अनुसार बीडीएस कोर्स के तीसरे वर्ष के दौरान हमें टुथब्रुश-टुथपेस्ट के सही इस्तेमाल के बारे में बताया जाता है। लेकिन मैं यहां बात करना चाह रहा हूं एक जालंधर दूरदर्शन के एक टीवी प्रोग्राम की ...मुझे अच्छे से याद है उस सेहत संबंधी कार्यक्रम में एक दंत चिकित्सक टुथब्रुश की सही तकनीक एक माडल पर बता रहे थे।
उन्होंने इतने अच्छे से माडल के ऊपर टुथब्रुश करना बताया कि मैंने उसी दिन से अपना ब्रुश करने का ढंग सही कर लिया...इससे पहले मैं गलत ढंग से ही ब्रुश किया करता था। दंत चिकित्सक के पास हम लोग कभी गये ही नहीं थे, हम क्या हमारी पुश्तें कभी दांत उखड़वाने के अलावा कभी न गई होंगी ...हम यही समझा करते थे कि दंत चिकित्सक के पास दांत में दर्द होने पर ही जाते हैं।
बहरहाल, मैं प्रशंसा कर रहा हूं उस दंत चिकित्सक की जिन्होंने मुझे उस टीवी प्रोग्राम के दौरान सही ब्रुश करना सिखा दिया। समय चलता गया... कुछ वर्षों बाद मुझे भी आल इंडिया रेडियो एवं दूरदर्शन पर आमंत्रित किया जाने लगा। मुझे याद है कि मैं दूरदर्शन पर जब भी गया तो ब्रुश के सही इस्तेमाल को दिखाने के लिए माडल और ब्रुश ज़रूर लेकर जाया करता था।
यह जो मैं बता रहा हूं कि मैं बहुत बार टीवी और रेडियो के कार्यक्रमों में गया....ऐसा नहीं था कि मैं बहुत काबिल रहा होऊंगा उस दौर में, इसलिए मुझे बुलाया गया। मेरे से सीनियर विशेषज्ञ भी होते थे लेकिन कईं बार मुझे ही बुलाया जाता था। इस का केवल यही कारण था कि रेडियो से या टीवी में काम करता कोई कर्मचारी या अधिकारी आप के पास अपने इलाज के लिए आया, उसे लगा कि अगली बार आप को बुलाया जाए तो बुला लिया गया। बस, इतनी सी बात। इस में अपनी कोई विशेष काबलियत न रही होगी, ऐसा मैं सोचता हूं।
बहुत बार तो जब हमारे वरिष्ठ प्रोफैसरों की ही इन कार्यक्रमों में बुलाया जाता था तो मन में एक प्रश्न सा तो आता ही था कि यार, इन लोगों ने अपना जुगाड़ फिट कर रखा है ... इन्हें ही आल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर जाने के इतने अवसर मिलते हैं।
लेकिन आज जब मेरे बाल पकने लगे हैं तो मुझे लगने लगा है कि इस सरकारी मीडिया का विशेषज्ञों की चयन बिल्कुल परफैक्ट है......ये जिन भी विशेषज्ञों को बुलाते हैं वे अपने काम से साथ पूरा न्याय कर के जाते हैं।
क्या करें, चंद शब्दों में अपनी बात कहना सीख ही नहीं पाए, अब अगर किसी विषय की भूमिका ही इतनी लंबी-चौड़ी हो जायेगी तो पोस्ट को उबाऊ होने से कौन रोक पाएगा। चलिए, मैं सीधा अपनी बात पर आता हूं और सरकारी मीडिया पर सेहत संबंधी जानकारी के बारे में कुछ बातें करना चाहता हूं।
विविध भारती -- विविध भारती के नाम से तो आप सब परिचित ही हैं। यह हम लोग बचपन से ही सुन रहे हैं। पहले इसे सुनने के लिए अपने ट्रांसिस्टर को कईं बार थपथपाना पड़ता था या फिर छत पर जा कर एरियर की तार को हिलाना-ढुलाना पड़ता था...लेकिन अब यह आसानी से कहीं भी कैच हो जाता है.....एफ.एम तकनीक ने हमारे मनोरंजन के मायने ही बदल दिये हैं जैसे।
विविध भारती में बाद दोपहर के समय शाम ४ से ५ बजे सप्ताह में एक दिन कार्यक्रम आता है सेहतनामा। मैंने इस की प्रशंसा अपने बहुत से लेखों में की है, इस से बढ़िया सेहत से संबंधी कार्यक्रम मैंने रेडियो पर नहीं सुना।
यह एक घंटे का कार्यक्रम होता है जिस में किसी बीमारी के विशेषज्ञ को बुलाया जाता है... यह विशेषज्ञ अपने फील्ड का अच्छा मंजा कलाकार होता है.. परिचय तो वे करवाते ही हैं लेकिन उन की बातों का ढंग ही उन का परिचय दे देता है। जो विशेषज्ञ बुलाये जाते हैं वे या तो किसी मैडीकल कॉलेज के प्रोफैसर होते हैं या फिर कोई ख्याति-प्राप्त विशेषज्ञ जो किसी प्राईव्हेट अस्पताल में काम कर रहे होते हैं।
यह एक फोन-इन तरह का कार्यक्रम है जिस के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों से लोग उस विशेषज्ञ से जुड़ी अपनी शारीरिक-मानसिक समस्याओं को बता कर सलाह पाते हैं।
यह कार्यक्रम जिस ढंग से प्रस्तुत किया जाता है उस के लिए मैं दस में से दस अंक इन्हें देता हूं ...मैं पिछले लगभग सात वर्षों से इसे सुनता ही हूं ..जब भी मुझे याद रहता है.....लेकिन जितनी बार भी सुनता हूं उतनी ही बात कहीं न कहीं किसी फोरम पर इस की प्रशंसा के पुल अवश्य बांध देता हूं।
सब से बड़ी बात इन कार्यक्रमों में यह रहती है कि जो विशेषज्ञ इन कार्यक्रमों में आते हैं उन का कोई कंफ्लिक्ट ऑफ इंटरैस्ट (conflict of interest) नहीं होना चाहिए.....और इस के बारे में मुझे लगता है कि ये कार्यक्रम वाले बहुत अलर्ट हैं....मुझे कभी भी इस तरह की कोई शिकायत इस कार्यक्रम में महसूस नहीं हुई। न ही तो ये विशेषज्ञ किसी निजी अस्पताल का नाम लेते हैं न ही किसी दवाई के ब्रांड का नाम लेते हैं .. यूं कहें कि ये लोग १००प्रतिशत सच्चाई, ईमानदारी एवं बेहद अपनेपन से अपना जीवन भर का ज्ञान आपके सामने उस एक घंटे में रख कर चले जाते हैं।
मुझे कहने में कोई गुरेज नहीं है कि जिस स्तर के अनुभवी विशेषज्ञ इन कार्यक्रमों में बुलाये जाते हैं उन का एक एक शब्द ध्यान से सुनने लायक होता है...सुनने लायक ही नहीं, माननीय भी होता है।
कोई भी बात इन विशेषज्ञों से कभी इतनी मुश्किल नहीं सुनी कि जिसे आम आदमी भी सुन कर समझ न पाए। बिल्कुल बोलचाल की भाषा में ये इतनी इतनी बड़ी जटिल बातें बेहद सहजता से समझा कर चले जाते हैं कि आश्चर्य होता है।
विविध भारती के अलावा भी --- विविध भारती के अलावा भी देश के विभिन्न रेडियो स्टेशन..रोहतक, चंडीगढ़, जालंधर .....कोई भी रेडियो स्टेशन...ये भी अपने क्षेत्र से विभिन्न विशेषज्ञ बुला कर सेहत संबंधी कार्यक्रम पेश करते रहते हैं। इन की प्रस्तुति भी प्रशंसनीय रहती है ... ये भी विभिन्न मैडीकल कालेजों या पीजीआई जैसे संस्थानों से विशेषज्ञ बुलाते हैं।
मुझे लगता है कि पिछले कुछ वर्षों से इन कार्यक्रमों का फारमेट बदल गया है......मुझे याद है मैं केवल एक ही बात रेडियो पर फोन-इन कार्यक्रम में बुलाया गया था........लेकिन अधिकतर बार मुझे किसी बस दस-पंद्रह मिनट के लिए मुंह से संबंधी रोगों के बचाव, निदान एवं उपचार के बारे में बोलना होता था, मैं एक लिखित स्क्रिप्ट के साथ जाता, वहां उसे थोड़ा देखा जाता कि कहीं कोई दवाई-वाई का नाम तो नहीं लिखा गया, किसी पेस्ट-मंजन का नाम तो नहीं है, बस इतना चेक करने के बाद मैं उसे दस-पंद्रह मिनट बोल कर लौट आता...फिर कुछ दिन बाद रेडियो पर उसे प्रसारित कर दिया जाता।
लेकिन आजकल यह फारमेट बहुत इंट्रएक्टिव है... प्रश्न -उत्तर के फार्मेट में और साथ में श्रोतागण अपनी समस्याओं से संबंधित फोन कर रहे हैं उसी समय ...इस से बेहतर तो कुछ हो ही नहीं सकता। आप को क्या लगता है?
पोस्ट बहुत लंबी हो गई दिखती है ...एक ब्रेक लेते हैं और अगली कड़ी के साथ जल्दी हाज़िर होता हूं....
एक बात और...विविध भारती पर प्रसारित होने वाले सेहतनामा कार्यक्रम के दौरान विशेषज्ञ के पसंदीदा गीत भी बजाये जाते हैं.........इतना सब कुछ, इतनी सच्चाई, इतनी सहजता...मनोरंजन की चाशनी में भिगो कर.............और ? ....क्या जान लोगो ?
उन्होंने इतने अच्छे से माडल के ऊपर टुथब्रुश करना बताया कि मैंने उसी दिन से अपना ब्रुश करने का ढंग सही कर लिया...इससे पहले मैं गलत ढंग से ही ब्रुश किया करता था। दंत चिकित्सक के पास हम लोग कभी गये ही नहीं थे, हम क्या हमारी पुश्तें कभी दांत उखड़वाने के अलावा कभी न गई होंगी ...हम यही समझा करते थे कि दंत चिकित्सक के पास दांत में दर्द होने पर ही जाते हैं।
बहरहाल, मैं प्रशंसा कर रहा हूं उस दंत चिकित्सक की जिन्होंने मुझे उस टीवी प्रोग्राम के दौरान सही ब्रुश करना सिखा दिया। समय चलता गया... कुछ वर्षों बाद मुझे भी आल इंडिया रेडियो एवं दूरदर्शन पर आमंत्रित किया जाने लगा। मुझे याद है कि मैं दूरदर्शन पर जब भी गया तो ब्रुश के सही इस्तेमाल को दिखाने के लिए माडल और ब्रुश ज़रूर लेकर जाया करता था।
यह जो मैं बता रहा हूं कि मैं बहुत बार टीवी और रेडियो के कार्यक्रमों में गया....ऐसा नहीं था कि मैं बहुत काबिल रहा होऊंगा उस दौर में, इसलिए मुझे बुलाया गया। मेरे से सीनियर विशेषज्ञ भी होते थे लेकिन कईं बार मुझे ही बुलाया जाता था। इस का केवल यही कारण था कि रेडियो से या टीवी में काम करता कोई कर्मचारी या अधिकारी आप के पास अपने इलाज के लिए आया, उसे लगा कि अगली बार आप को बुलाया जाए तो बुला लिया गया। बस, इतनी सी बात। इस में अपनी कोई विशेष काबलियत न रही होगी, ऐसा मैं सोचता हूं।
बहुत बार तो जब हमारे वरिष्ठ प्रोफैसरों की ही इन कार्यक्रमों में बुलाया जाता था तो मन में एक प्रश्न सा तो आता ही था कि यार, इन लोगों ने अपना जुगाड़ फिट कर रखा है ... इन्हें ही आल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर जाने के इतने अवसर मिलते हैं।
लेकिन आज जब मेरे बाल पकने लगे हैं तो मुझे लगने लगा है कि इस सरकारी मीडिया का विशेषज्ञों की चयन बिल्कुल परफैक्ट है......ये जिन भी विशेषज्ञों को बुलाते हैं वे अपने काम से साथ पूरा न्याय कर के जाते हैं।
क्या करें, चंद शब्दों में अपनी बात कहना सीख ही नहीं पाए, अब अगर किसी विषय की भूमिका ही इतनी लंबी-चौड़ी हो जायेगी तो पोस्ट को उबाऊ होने से कौन रोक पाएगा। चलिए, मैं सीधा अपनी बात पर आता हूं और सरकारी मीडिया पर सेहत संबंधी जानकारी के बारे में कुछ बातें करना चाहता हूं।
विविध भारती -- विविध भारती के नाम से तो आप सब परिचित ही हैं। यह हम लोग बचपन से ही सुन रहे हैं। पहले इसे सुनने के लिए अपने ट्रांसिस्टर को कईं बार थपथपाना पड़ता था या फिर छत पर जा कर एरियर की तार को हिलाना-ढुलाना पड़ता था...लेकिन अब यह आसानी से कहीं भी कैच हो जाता है.....एफ.एम तकनीक ने हमारे मनोरंजन के मायने ही बदल दिये हैं जैसे।
विविध भारती में बाद दोपहर के समय शाम ४ से ५ बजे सप्ताह में एक दिन कार्यक्रम आता है सेहतनामा। मैंने इस की प्रशंसा अपने बहुत से लेखों में की है, इस से बढ़िया सेहत से संबंधी कार्यक्रम मैंने रेडियो पर नहीं सुना।
यह एक घंटे का कार्यक्रम होता है जिस में किसी बीमारी के विशेषज्ञ को बुलाया जाता है... यह विशेषज्ञ अपने फील्ड का अच्छा मंजा कलाकार होता है.. परिचय तो वे करवाते ही हैं लेकिन उन की बातों का ढंग ही उन का परिचय दे देता है। जो विशेषज्ञ बुलाये जाते हैं वे या तो किसी मैडीकल कॉलेज के प्रोफैसर होते हैं या फिर कोई ख्याति-प्राप्त विशेषज्ञ जो किसी प्राईव्हेट अस्पताल में काम कर रहे होते हैं।
यह एक फोन-इन तरह का कार्यक्रम है जिस के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों से लोग उस विशेषज्ञ से जुड़ी अपनी शारीरिक-मानसिक समस्याओं को बता कर सलाह पाते हैं।
यह कार्यक्रम जिस ढंग से प्रस्तुत किया जाता है उस के लिए मैं दस में से दस अंक इन्हें देता हूं ...मैं पिछले लगभग सात वर्षों से इसे सुनता ही हूं ..जब भी मुझे याद रहता है.....लेकिन जितनी बार भी सुनता हूं उतनी ही बात कहीं न कहीं किसी फोरम पर इस की प्रशंसा के पुल अवश्य बांध देता हूं।
सब से बड़ी बात इन कार्यक्रमों में यह रहती है कि जो विशेषज्ञ इन कार्यक्रमों में आते हैं उन का कोई कंफ्लिक्ट ऑफ इंटरैस्ट (conflict of interest) नहीं होना चाहिए.....और इस के बारे में मुझे लगता है कि ये कार्यक्रम वाले बहुत अलर्ट हैं....मुझे कभी भी इस तरह की कोई शिकायत इस कार्यक्रम में महसूस नहीं हुई। न ही तो ये विशेषज्ञ किसी निजी अस्पताल का नाम लेते हैं न ही किसी दवाई के ब्रांड का नाम लेते हैं .. यूं कहें कि ये लोग १००प्रतिशत सच्चाई, ईमानदारी एवं बेहद अपनेपन से अपना जीवन भर का ज्ञान आपके सामने उस एक घंटे में रख कर चले जाते हैं।
मुझे कहने में कोई गुरेज नहीं है कि जिस स्तर के अनुभवी विशेषज्ञ इन कार्यक्रमों में बुलाये जाते हैं उन का एक एक शब्द ध्यान से सुनने लायक होता है...सुनने लायक ही नहीं, माननीय भी होता है।
कोई भी बात इन विशेषज्ञों से कभी इतनी मुश्किल नहीं सुनी कि जिसे आम आदमी भी सुन कर समझ न पाए। बिल्कुल बोलचाल की भाषा में ये इतनी इतनी बड़ी जटिल बातें बेहद सहजता से समझा कर चले जाते हैं कि आश्चर्य होता है।
विविध भारती के अलावा भी --- विविध भारती के अलावा भी देश के विभिन्न रेडियो स्टेशन..रोहतक, चंडीगढ़, जालंधर .....कोई भी रेडियो स्टेशन...ये भी अपने क्षेत्र से विभिन्न विशेषज्ञ बुला कर सेहत संबंधी कार्यक्रम पेश करते रहते हैं। इन की प्रस्तुति भी प्रशंसनीय रहती है ... ये भी विभिन्न मैडीकल कालेजों या पीजीआई जैसे संस्थानों से विशेषज्ञ बुलाते हैं।
मुझे लगता है कि पिछले कुछ वर्षों से इन कार्यक्रमों का फारमेट बदल गया है......मुझे याद है मैं केवल एक ही बात रेडियो पर फोन-इन कार्यक्रम में बुलाया गया था........लेकिन अधिकतर बार मुझे किसी बस दस-पंद्रह मिनट के लिए मुंह से संबंधी रोगों के बचाव, निदान एवं उपचार के बारे में बोलना होता था, मैं एक लिखित स्क्रिप्ट के साथ जाता, वहां उसे थोड़ा देखा जाता कि कहीं कोई दवाई-वाई का नाम तो नहीं लिखा गया, किसी पेस्ट-मंजन का नाम तो नहीं है, बस इतना चेक करने के बाद मैं उसे दस-पंद्रह मिनट बोल कर लौट आता...फिर कुछ दिन बाद रेडियो पर उसे प्रसारित कर दिया जाता।
लेकिन आजकल यह फारमेट बहुत इंट्रएक्टिव है... प्रश्न -उत्तर के फार्मेट में और साथ में श्रोतागण अपनी समस्याओं से संबंधित फोन कर रहे हैं उसी समय ...इस से बेहतर तो कुछ हो ही नहीं सकता। आप को क्या लगता है?
पोस्ट बहुत लंबी हो गई दिखती है ...एक ब्रेक लेते हैं और अगली कड़ी के साथ जल्दी हाज़िर होता हूं....
एक बात और...विविध भारती पर प्रसारित होने वाले सेहतनामा कार्यक्रम के दौरान विशेषज्ञ के पसंदीदा गीत भी बजाये जाते हैं.........इतना सब कुछ, इतनी सच्चाई, इतनी सहजता...मनोरंजन की चाशनी में भिगो कर.............और ? ....क्या जान लोगो ?