शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

यौवन की दहलीज़ तो ठीक है लेकिन ...

कुछ दिन पहले मैं एक किताब का ज़िक्र कर रहा था ... यौवन की दहलीज़ पर जिसे यूनिसेफ के सहयोग से २००२ में प्रकाशित किया गया है।

इस के कवर पेज पर लिखा है...... मनुष्य के सेक्स जीवन, सेक्स के माध्यम से फैलने वाले गुप्त रोगों(एस टी डी) और एड्स के बारे में जो आप हमेशा से जानना चाहते थे, लेकिन यह नहीं जानते थे कि किससे पूछें।

मैंने इस किताब के बारे में क्या प्रतिक्रिया दी थी, मुझे याद नहीं ..लेकिन शायद सब कुछ अच्छा ही अच्छा लिखा होगा --शायद इसलिए कि मैं पिछले लगभग १५ वर्षों से हिंदी भाषा में मैडीकल लेखन कर रहा हूं और मुझे हिंदी के मुश्किल शब्दों का मतलब समझने में थोड़ी दिक्कत तो होती है लेकिन फिर भी मैं कईं बार अनुमान लगा कर ही काम चला लेता हूं।

यह किताब हमारे ड्राईंग रूम में पड़ी हुई थी, मेरे बेटे ने वह देखी होगी, उस के पन्ने उलटे पलटे होंगे। क्योंकि कल शाम को वह मेरे से पूछता है --डैड, यह किताब इंगलिश में नहीं छपी?..... मैंने कहा, नहीं, यह तो हिंदी में ही है।

वह हंस कर कहने लगा कि डैड, इसे पढ़ने-समझने के लिए तो पहले संस्कृत में पीएचडी करनी होगी। उस की बात सुन कर मैं भी हंसने लगा क्योंकि किताब के कुछ कुछ भागों को देख कर मुझे भी इस तरह का आभास हुआ तो था.....पीएचडी संस्कृत न ही सही, लेकिन हिंदी भाषा का भारी भरकम ज्ञान तो ज़रूरी होना ही चाहिए इस में लिखी कुछ कुछ बातों को जानने के लिए।

अच्छा एक बात तो मैं आप से शेयर करना भूल ही गया ... इस के पिछले कवर के अंदर लिखा है...यह पुस्तक बिक्री के लिए उपलब्ध नहीं है। मुझे यह पढ़ कर बड़ा अजीब सा लगा ...कि यौवन की दहलीज पर लिखी गई किताब जिन के लिए लिखी गई है, वे इस के अंदर कैसे झांक पाएंगे अगर यह किताब बिकाऊ ही नहीं है।कहां से पाएंगे वे ऐसी किताबें.

मुझे जब इस में कुछ कुछ गूढ़ हिंदी में लिखी बातों का ध्यान आया तो मेरा ध्यान इस के पिछले कवर की तरफ़ चला गया जिस में लिखा था कि जिस ने इस पुस्तक में बतौर हिंदी अनुवादक का काम किया वह बीएससी एम ए (अर्थशास्त्र) एम ए (प्रयोजन मूलक हिंदी) अनुवाद पदविका (हिंदी) आदि योग्यताओं से लैस थीं.......उन की योग्यता पर कोई प्रश्न चिंह नहीं, हो ही नहीं सकता।

लेिकन फिर भी अकसर मैंने देखा है कि इस तरफ़ ध्यान नहीं दिया जाता कि एक तो हम आम बोल चाल की हिंदी ही इस्तेमाल किया करें, सेहत से जुड़ी किताबों में जो किसी भी हिंदी जानने वाले को समझ में आ जाए। यह बहुत ज़रूरी है। किताबों में तो है ही बहुत ज़रूरी यह सब कुछ.... वेबसाइट पर तो इस के बारे में और भी सतर्क रहने की ज़रूरत है...किताबें तो लोग खरीद लेते हैं, अब एक बार खरीद ली तो समझने के लिए थोड़ी मेहनत-मशक्कत कर ही लेंगे, लेकिन नेट पर आज के युवा के पास कोई भी मजबूरी नहीं है......एक पल में वह इस वेबपेज से उस वेबपेज पर पहुंच जाता है, आखिर इस में बुराई भी क्या है, नहीं समझ आ रहा तो क्या करे, जहां से कुछ समझने वाली बात मिलेगी, वहीं से पकड़ लेता है।

ऐसे में हमें सेहत से जुड़ी सभी बातें बिल्कुल आम बोलचाल की भाषा ही में करनी होंगी...वरना वह एक सरकारी आदेश की तरह बड़ी भारी-भरकम हिंदी लगने लगती है। और उसी की वजह से देश में हम ने हिंदी का क्या हाल कर दिया है, आप देख ही रहे हैं......दावों के ऊपर मत जाइए। जो मीडिया आम आदमी की भाषा में बात करता है वह देखिए किस तरह से फल-फूल रहा है।

और दूसरी बात यह कि अनुवाद में भी बहुत एहतियात बरतने की ज़रूरत है। सेहत से संबंधित जानकारी को जितने रोचक अंदाज़ में अनुवादित किया जायेगा, उतना ही अच्छा है.. और इस में इंगलिश के कुछ शब्दों को देवनागरी लिपी में लिखे जाने से भला क्या आपत्ति हो सकती है।

बस यही बात इस पोस्ट के माध्यम से रखना चाह रहा था।

आप देखिए कि इंगलिश में कितनी बेबाकी से डा वत्स इन्हीं सैक्स संबंधी विषयों पर अपनी बात देश के लाखों-करोड़ों लोगों तक कितनी सहजता से पहुंचा रहे हैं........ आईए मिलते हैं ९० वर्ष के सैक्सपर्ट डा वत्स से।  (यहां क्लिक करें)