मंगलवार, 7 जून 2016

लिखना शुरू कैसे करें?

कुछ याद आया?...मुझे तो आया...बस, लिखने के लिए ऐसा जुनून चाहिए, और कुछ नहीं...
बहुत बार इस तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं कि हम लोग लिखना तो चाहते हैं लेकिन झिझक होती है...बात है भी ठीक, अपनी ज़िंदगी की किताब कैसे अचानक लोगों के सामने खोल दी जाए!

लेिकन हर काम के लिए एक सतत प्रयास और अभ्यास तो चाहिए ही ...लिखना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है...सन् २००० से पहले जब मैं विभिन्न पत्रिकाओं के लिए अपने क्षेत्र से जुड़े लेख भेजा करता था तो मुझे यही लगता था कि मेरे पास तो बस २०-३० विषय ही हैं, जिन पर मैं कुछ कह सकता हूं..उस के बाद क्या लिखूंगा?...१५ साल घिसने के बाद अब सैंकड़ों बातें हैं करने के लिए...बातों से बातें स्वतः ही निकलने लगती हैं...लेकिन वक्त की कमी, आलस्य और उमस भरी गर्मी की वजह से वे मन में ही रह जाती हैं। 

इतने में क्या हुआ...यह शायद २००१ या २००२ की बात है...केन्द्रीय हिंदी निदेशालय ने एक प्रतियोगिता रखी ...नवलेखक अपनी अपनी रचनाएं भेजें..चयनित लेखकों को हम लोग नवलेखक शिविरों में भेजेंगे..

उन दिनों मुझे कंप्यूटर पर हिंदी में लिखना नहीं आता ..वैसे कंप्यूटर था भी नहीं उन दिनों हमारे पास...मैंने भी एक लेख लिख कर पोस्ट कर दिया...डाकिया डाक लाया...यह भी लेख संस्मरणों पर ही आधारित था..

कुछ दिनों बाद चिट्ठी आ गई कि आप को आसाम के जोरहाट में दो हफ्ते के लिए नवलेखक शिविर के लिए आमंत्रित किया जाता है ...जोश होता है उस उम्र में..फिरोजपुर से दिल्ली, दिल्ली से गुवाहाटी और वहां से जोरहाट की ओवर-नाइट यात्रा ...पहुंच गये जी जोरहाट...

वे पंद्रह दिन मेरे लिए बहुत अहम् थे...देश भर के प्रसिद्ध लेखक और हिंदी विद्वान उन्होंने वहां बुलाए हुए थे..सुबह से शाम तक हिंदी लेखन के बारे में बाते ही बातें...अपनी बात खुले से कहने की सीख....

एक तिवारी जी थे ..उन से हमने हिंदी की डिक्शनरी देखने का सलीका सीखा...सच में हम लोग हिंदी की डिक्शनरी में कुछ ढूंढ ही नहीं पाते थे पहले...उन्होंने ही प्रेरित किया कि कुछ भी लिखो...रोज एक पन्ना लिखो...साल में ३६५ पन्ने हो जायेंगे ...उन में से सौ पचास तो कहीं छपने लायक होंगे...अगर नहीं भी होंगे तो आप लिखते लिखते अपनी बात कहनी सीख जाएंगे...

मुझे उन की बातें बड़े काम की लगीं...वे अकसर कहते कि आप जो भी लिखते हैं रोज़ वह भी आने वाले समय में साहित्य ही कहलायेगा...वे अपने नाना की बात सुना रहे थे कि दशकों पहले उन के नाना जी ने एक जगह पर सब्जियों, दालों, चाय, शक्कर, घी के भाव लिखने शुरू किए...वे उम्र भर इसे लिखते रहे...और वह बता रहे थे कि आज की तारीख में वे प्रामाणिक दस्तावेज़ हैं, यह भी साहित्य ही है...

पंडित नेहरू बेटी इंदिरा के नाम जो खत लिखते थे ..किसे पता था कि वे छपेंगे, किताब की शक्ल ले लेंगे....ऐसी अनेकों अनेकों उदाहरणें हैं....

बस, सुझाव यही है कि रोज़ कुछ न कुछ लिखने की आदत डाल लीजिए...रोज़ का मतलब रोज़....छुट्टी आप को चाहिए ही क्यों?...

मुझे कोई कहता है ना कि लिखें तो लिखें क्या, मैं अकसर उन्हें यह भी कहता हूं कि चलिए..आप शुरूआत इस तरह से करिए कि दिन भर में हमारे पास सैंकड़ों नहीं भी तो बीसियों वाट्सएप मैसेज आते हैं...इन में से दर्जनों ऐसे होते हैं जिन्हें हम अगले ही क्षण आगे शेयर करते हैं...मुझे तो कईं बार यह बड़ी फिक्र होती है कि यार, अब इन्हें फिर से पढ़ना होगा तो कैसे हो पायेगा?

आप स्वयं देखिए कि कितनी बार आपने वाट्सएप मैसेजों को पीछे पीछे सरका के देखा...कितनी बार?...शायद कभी यह मैं कर लेता हूं...लेकिन बहुत बार मेरी आलसी प्रवृत्ति मुझे ऐसा करने से रोक देती है ...छोड़ो यार, जो गया सो गया, अब आगे इतने मैसेज इक्ट्ठा हो गये हैं...इन्हें देखते हैं...

बिल्कुल शुरुआत में आप एक काम कर सकते हैं...एक बड़ी सी डायरी लगा लीजिए..उस में उन सभी मैसेजों को लिखना शुरू करें जिन्होंने आप को गुदगुदाया, हंसाया, कुछ सोचने पर मजबूर किया या फिर आप की आंखें ही नम कर दी हों... 

अच्छा, आप यह काम शुरू करिए..और मुझे बताइए कि आपने शुरू कर दिया है ...आगे की क्लास उस के बाद...

अभी ध्यान आया कि मैंने कुछ साल पहले इंटरनेट लेखन की वर्कशाप के बाद कुछ ज्ञान भी बांटा था..अगर कभी फुर्सत हो तो देखिएगा..मुझे तो उन्हें देखते हुए डर लग रहा है, पता नहीं क्या कुछ टिका दिया होगा... मैं उन्हें वापिस नहीं देखता क्योंकि फिर मैं उन में गुम हो जाता हूं... 

उन लेखों के िलंक यह रहे ..वैसे ये खूब पापुलर हुए थे उस ज़माने में .... 

चलिए, अपनी कापी खोल लीजिए..और मोबाइल से अच्छे अच्छे मैसेज निकाल कर लिखना शुरू करिए... and start exploring this wonderful of words! 

आप भी समझ लीजिए कि इस मस्ती की पाठशाला में आज आप का पहला दिन है...

लखनऊ शहर के बदलते मिजाज...

यह मौसम की बात नहीं है...मौसम तो अब हर जगह एक जैसा ही हो रहा है ...गर्मी में तंग करने वाली उमस-वुमस तो अब हमारे साथ ही जायेगी...इस का कोई क्विक-फिक्स उपाय नहीं है, हम सुधरने वाले हैं नहीं..

मैं तो मिजाज की बात कर रहा था इस शहर की ...कुछ समय पहले हम ने अपने एक साथी से ऐसे ही पूछ लिया कि यहां इस शहर में इतनी वारदातें क्यों होती हैं!...चलिए, वारदातें भी अब लगभग सभी जगहों पर होने ही लगी हैं..लेिकन जिस तरह के वारदातें यहां दिन-दिहाड़े होती हैं उस से यही लगता है कि यहां पर गुंड़ों को किसी का खौफ़ ही नहीं है..

हमें यह जवाब दिया गया कि आप को यू.पी के दूसरे शहरों का नहीं पता... भाग्यशाली हैं वे लोग जिन्हें लखनऊ पोस्टिंग मिल जाता है ...यहां आने के लिए तो लोग सोर्स लगवा २ के हार जाते हैं...ठीक है, हम मान गये..

दूसरे शहरों से अचानक याद आ गया कि हमें भी बरेली और सुल्तानपुर भिजवाए जाने की पूरी तैयारियां थीं...पूरी फिल्मी स्टोरी है...लेकिन Central Administrative Tribunal (CAT) ने बचा लिया..क्या करेंगे, मजबूरी में CAT की चौखट तक जाना ही पड़ा। कारण यह था जो किसी फाइल में नहीं है, ३-४ साल के मेरे बेटे से badmintom खेलते हुए वह बच्चों वाली छोटी सा प्लास्टिक शटल एक उच्च अधिकारी की बेगम के सिर पर जा लगी ...बस, तब से हमारे बुरे दिनों की शुरूआत हो गई...

मैं भी किधऱ की बात िकधर ले गया...वे किस्से बताने को उम्र पड़ी है!

दरअसल आज कल जगह जगह बोर्ड दिख जाते हैं...लखनऊ बदल रहा है....लखनऊ सुधर रहा है...

मैंने पिछले दो तीन दिनों में अपनी साईकिल यात्राओं के दौरान मैट्रो का काम पूरे ज़ोरों शोरों से होते देखा है ..सोचा कि वे फोटू ही आप से शेयर कर दूं... मैं कितना लिखूंगा?..A picture is worth 1000 words!

यह जो तस्वीर है यह आलमबाग एरिया के मवैया एरिया की फोटो है ..परसों की है ..सुबह सुबह यहां पर खूब तेज़ी से काम चल रहा होता है ...पहले चरण में मैट्रो लखनऊ के अमौसी एयरपोर्ट से चारबाग रेलवे स्टेशन तक चलने वाली है इसी वर्ष के दिसंबर से पहले ... यह मैट्रो स्टेशन चारबाग मैट्रो स्टेशन से एक-डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर ही है...यहां पर मैट्रो के काम के लिए कुछ न कुछ पंगा ही रहा ...मुश्किल था ... प्रशासनिक नज़र से ...आप इस तस्वीर में देख रहे हैं...एक रेलवे लाइन है पहले से जिस पर से एक गाड़ी गुज़र रही है...अब मैट्रो का ट्रेक उस के ऊपर बनेगा...कुछ ग्रेडिएंट की दिक्कत थी..लेकिन रेलवे के इंजीनियरों को और विशेषकर उस महान शख्शियत श्री धर जी को सलाम...मैं आज सुबह सोच रहा था कि इस तरह के इंसानों को तो ईश्वर को ५० साल की उम्र बोनस में और दे देनी चाहिए...९० साल की उम्र में उन का उत्साह देखने को बनता है ...सादगी से भरा उम्दा जीवन..

कल और आज सुबह की साईकिल यात्रा के दौरान कुछ और तस्वीरें खींची मैट्रो रूट की आप तक हाल चाल पहुंचाने के लिए...


ये जो ऊपर दो तस्वीरें हैं ये कानपुर रोड़ की हैं..अमौसी एयरपोर्ट से दो तीन किलोमीटर पहले की हैं...ज़ोरों शोरों से काम चालू है ..

हां, परसों शाम कथाकारों के एक जमावड़े की तरफ़ जाते हुए अचानक हज़रतगंज एरिया में यह मैट्रो का बोर्ड िदख गया..यहां यह बताना चाहूंगा कि दूसरे चरण में काम चारबाग रेलवे स्टेशन से चलेगा और हज़रतगंज एरिया से होते हुए आगे जायेगी मैट्रो... लेकिन अभी यहां पर आज पहली बार मैंने यह बोर्ड देखा ...पता नहीं क्यों मुझे अचानक बचपन के दिनों में मिलने वाले लालीपॉप का ध्यान आ गया...समझने वाले को इशारा ही काफ़ी है...जो न समझे वो अनाडी है!

एक बात ज़रूर शेयर करना चाहूंगा कि हज़रत एरिया का मतलब जैसे अमृतसर के लिए लारेंस रोड़, दिल्ली की कनाट प्लेस, बंबई का फ्लोरा फाउंटेन एरिया....लखनऊ के लिए यह एरिया वैसा ही है ...यह जिस जगह पर आप इस मैट्रो का बोर्ड देख रहे हैं यह उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के बिल्कुल सामने हैं...इस एरिया में शाम को बेवजह तफरीह करने के लिए एक शब्द भी सुनते हैं......गंजिंग...Ganjing...  यहां तक कि अखबार वालों ने भी यह कंसेप्ट पकड़ कर हर रविवार के दिन गंजिंग फेस्टीवल करना शुरू कर दिया है ...उस दिन यहां ट्रैफिक की नो-एंट्री होती है .. लेकिन खूब धूम-धमाका, संगीत...खाने, मौज-मस्ती का मेला लगता है ...

दरअसल मेरी कोई पोस्ट पेड़ या पानी के मटके डाले िबना पूरी होना ही नहीं चाहती..क्या करूं..मजबूरी है ...
   कुछ दिन पहले शहर के ऐशबाग एरिया में शाम कुछ ऐसी दिखी थी.

इस तरह की तस्वीरें शायद आप को भी इस उमस भरी सुबह में कुछ ठंडक पहुंचा दें...मुझे तो मिल गई!

पता नहीं पिछली बार कब किसी पैदल यात्री को इतनी मस्ती से चलते देखा...पीछे से किसी बाईक के ठुक जाने के डर से बेपरवाह..
लखऩऊ की वी आई पी रोड़ पर आज सुबह से यह देख कर मैंने भी १९ जून की डेट झट से ब्लॉक कर दी...


पैदल चलने वालों के लिए अलग जगह, साईकिल वालों के लिए अलग, क्या करूं ..इतनी खुशी समा नहीं पा रहा हूं..



लगता है अब इस पोस्ट के िलफाफे को बंद करूं...और ड्यूटी पर निकल पड़ूं...बातों का क्या है...बातें ही बातें तो हैं अपने जैसे लोगों के पास...मेरे Nexus5 में हज़ारों फोटू हैं.....और हर फोटो एक दास्तां ब्यां करती है.......लेकिन कितना कुछ ब्यां करें, अब मैं भी बुड़्ढा होने लगा हूं....थक जाता हूं ..लिखते लिखते.. 😊

मेरा बेटा एंटरटेन इंडस्ट्री में हैं...creative head है....और बहुत बार मजाक करता है कि बाप, मुझे फिल्मी बनाने में तेरा बड़ा हाथ है, जब हमारी उम्र के बच्चे पढ़ने में लगे रहते थे तो तू हमें फिल्में दिखाता रहा ..हिंदी-पंजाबी के फिल्मी गीत सुनाता रहा, पंजाबी के लोकगीत सुनाता रहा, भगवंत मान की सीडियां दिखाता रहा ...रिजल्ट (Product)  तेरे सामने हैं ...मैं भी उसे कहता हूं कि मुझे फिल्मी बनाने में मनमोहन देसाई जैसे गजब फिल्म निर्मात्ताओं का हाथ है ... जिन्हें देखते- सुनते मैं अब भी किसी दूसरे ही संसार में खो जाता हूं .. 😊