शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

चमड़ी रोग के लिये ली यह दवा मौत के मुंह में भी धकेल सकती है !

वैसे सुनने में बहुत हैरतअंगेज़ ही लगता है और खास कर किसी नॉन-मैडीकल इंसान को कि सोरायसिस नामक चमड़ी रोग के लिये ली गई एक दवा ( जिस में ईफॉलीयूमाब- efalizumab नामक साल्ट था) से तीन लोगों की अमेरिका में मौत हो गई। इसलिये वहां की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने एक चेतावनी जारी की है कि भविष्य में इस दवाई पर एक ब्लैक-बाक्स चेतावनी लिखी जायेगी। इस की विस्तृत जानकारी आप इस लिंक पर क्लिक कर के प्राप्त कर सकते हैं।

अकसर मैंने देखा है कि लोग चमड़ी रोगों को बहुत ही ज़्यादा हल्के-फुलके अंदाज़ में लेते हैं। चमड़ी की कुछ तकलीफ़ों के बारे में तो अकसर लोग यही सोच लेते हैं कि इन का क्या है, कुछ दिन में अपने आप ही ठीक हो जायेंगी, अब कौन जाये चमड़ी रोग विशेषज्ञ के पास। अपने आप ही कोई भी ट्यूब कैमिस्ट से लेकर लगा कर समझते हैं कि रोग का खात्मा हो गया। लेकिन यह बात बिल्कुल गलत है। विभिन्न कारणों की वजह से लोग अकसर चमड़ी-रोग विशेषज्ञ के पास जाना टालते रहते हैं।

मेरा विचार है जो कि छोटी मोटी चमड़ी की तकलीफ़ें हैं उन का उपचार तो एक सामान्य डाक्टर ( एम.बी.बी.एस) से भी करवाया जा सकता है ---उदाहरण बालों में रूसी, कील-मुहांसे, जांघ के अंदरूनी हिस्सों में दाद-खुजली, स्केबीज़ आदि ---- लेकिन कुछ चमड़ी रोग इस तरह के होते हैं जो बहुत लंबे समय तक परेशान किये रहते हैं, बीच बीच में ठीक हुये से लगते हैं और कभी कभी फिर से उग्र रूप में उभर आते हैं। सोरायसिस भी एक ऐसी ही चमड़ी की तकलीफ़ है , वैसे तो और भी बहुत सी चमड़ी की तकलीफ़ें हैं लेकिन इस की एक मात्र उदाहरण यहां ले रहे हैं।
वैसे तो आम से दिखने वाले चमड़ी रोगों का भी जब कोई जर्नल एमबीबीएस डाक्टर या कोई भी स्पैशलिस्ट ( चमड़ी रोग विशेषज्ञ नहीं ) इलाज कर रहा होता है और कुछ दिनों के बाद भी उपेक्षित परिणाम नहीं मिलते तो समय होता है उसे चमड़ी रोग विशेषज्ञ के पास रैफर करने का। और जहां तक चमड़ी की क्रॉनिक बीमारियां हैं जो लंबे समय तक चलती हैं उन का इलाज तो चमड़ी रोग विशेषज्ञ से ही करवाना चाहिये।

इस में किसी चिकित्सक के डाक्टर को अहम् को ठेस पहुंचने वाली बात तो है ही नहीं ---जो भी जिस रोग का विशेषज्ञ है उसी के पास जाने में समझदारी है। यह सोच कर कि चमड़ी के कुछ रोगों का इलाज तो लंबा चलता है –बार बार कौन स्किन स्पैशलिस्ट के पास जाये, ऐसे ही किसी पड़ोस के फैमिली डाक्टर से कोई दवा लिखवा कर, कोई ट्यूब लिखवा कर लगा कर देख लेते हैं। इस से कोई फायदा होने वाला नहीं विशेषकर उन तकलीफ़ों में जो क्रॉनिक रूप अख्तियार कर लेने के लिये बदनाम हैं। एक तो रोग बिना वजह बढ़ता है और दूसरा यह कि ऐसी दवाईयों के इस्तेमाल की जितनी जानकारी और जितना अनुभव एक चमड़ी-रोग विशेषज्ञ को होता है उतना एक सामान्य डाक्टर को अथवा किसी दूसरे विशेषज्ञ को नहीं होता । और आज आपने अमेरिका में सोरायसिस के लिये दी जाने वाली दवा का किस्सा तो सुन ही लिया जिस की वजह से तीन लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। अब इस बात का ध्यान कीजिये कि वहां पर कानून कायदे इतने तो कड़े हैं कि चमड़ी-रोग विशेषज्ञ ही चमड़ी के मरीज़ों का इलाज करते हैं। लेकिन फिर भी यह दुर्घटना हो गई ---- इस में चमड़ी रोग विशेषज्ञों का भी कोई दोष नहीं है, अब नईं नईं दवाईयां, नये नये इलाज आ रहे हैं जिन के इस्तेमाल को हरी झंडी मिल तो जाती है लेकिन फिर भी लंबे अरसे तक उन का इस्तेमाल करने से चिकित्सकों को बाद में पता चलता है कि उन के क्या क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं और जब ये फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के नोटिस में आते हैं तो फिर वह भी हरकत में आ कर उचित कार्यवाही करती है।

अकसर मैं देखता हूं कि चमड़ी के रोगों के इलाज में खूब गोरख-धंधा चल रहा है ---और इस का मुख्य कारण यह है कि चमड़ी रोग विशेषज्ञ के पास ना जा पाना। मरीज़ जब अपनी मरजी से तरह तरह की ट्यूबें लगा कर थक जाते हैं तो फिर किसी नीम-हकीम देसी दवाई वाले की शरण ले लेते हैं --- वह भी सभी अंग्रेज़ी दवाईयां कूट कूट कर मरीज़ों को महीनों एवं सालों तक छकवाता रहता है और जब या तो रोग बहुत ही ज़्यादा बढ़ जाता है और या तो बिना किसी हिसाब किताब के ली गई इन अंग्रेज़ी दवाईयों ( स्टीरायड्स इस में सब से प्रमुख हैं) .... के कारण जब शरीर में अन्य भयंकर रोग लग जायेंगे तो फिर चमड़ी रोग विशेषज्ञ को ढूंढना शुरू किया जाता है ---- अब इतनी देर से उस के पास जाने से कैसे बात तुरंत ही बन जायेगी। एक बात यहां यह भी रखनी ज़रूरी है कि संभवतः चमड़ी-रोग विशेषज्ञ भी अन्य दवाईयों के साथ साथ मरीज़ को स्टीरायड्स दे सकता है लेकिन उसने इन दवाईयों का सही नुस्खा लिखने की तहज़ीब सीखने के लिये दस साल लगाये हैं -----और वह आप के इलाज के दौरान आप के तरह तरह के टैस्ट करवा कर यह भी सुनिश्चित करता रहता है कि सब कुछ ठीक चल रहा है, शरीर पर किसी तरह का दुष्परिणाम दवाईयों का नहीं पड़ रहा है।


दोस्तो, जिस का काम उसी को साजे ------वाली कहावत इस समय याद आ रही है --- कुछ साल पहले मेरी माता जी को आंख के पास भयानक दर्द थी, एक दो दिन में आंख के ऊपर माथे पर छोटी छोटी फुंसियां सी निकल आईं ---- दर्द बहुत भयानक था ---- याद आ रहा है कि उस दिन मैं, मेरा छोटा बेटा और मां जी भटिंडा स्टेशन पर बैठे थे ---जनवरी की सर्दी के दिन थे ---- वह लगातार दर्द से कराह रही थी ---- उस सारी रात वह एक मिनट भी नहीं सोईं ।

अगले दिन मैंने अपने एक चमड़ी-रोग विशेषज्ञ मित्र को अमृतसर फोन किया ---उस को सारा विवरण बताया , जिसे सुन कर उस ने बताया कि हरपीज़-योस्टर लग रहा है – फिर भी उस ने कहा कि तुरंत किसी चमड़ी-रोग विशेषज्ञ को दिखा कर आओ। हम लोग तुरंत गये शहर के एक चमड़ी-रोग विशेषज्ञ के पास, जिस ने कहा कि यह हरपीज़-योस्टर ही है ( जिसे अकसर लोग जनेऊ निकलने के नाम से भी जानते हैं) ---उस ने कुछ दवाईयां लिखीं और साथ में कहा कि तुरंत किसी नेत्र-रोग विशेषज्ञ को चैक अप करवायो (क्योंकि जब यह हरपीज़-योस्टर आंख को अपना शिकार बनाती है तो फिर कुछ भी हो सकता है) ---- तुरंत हम लोग नेत्र-रोग विशेषज्ञ के पास गये तो उस ने कहा कि आप बिल्कुल सही वक्त पर ही आये हो इस से आंख भी खराब हो सकती है। उन्होंने भी दवाईयां लिखीं ---खाने की और आंख में डालने की ---- और कुछ दिन इलाज करने के बाद सब कुछ ठीक हो गया।
यह उदाहरण इस लिये ही दी है कि किसी भी रोग को छोटा नहीं जानना चाहिये ---हमेशा यह मत सोचें कि सब कुछ अपने आप ठीक हो जायेगा --- हां, अगर कोई विशेषज्ञ यह बात कहता है तो बात भी है !! कईं बार जिस तकलीफ़ को हम बिल्कुल छोटा समझते हैं वह स्पैशिलस्ट के लिये किसी बड़ी तकलीफ़ का संकेत हो सकती है और अकसर जब कभी हम यूं ही किसी बड़ी तकलीफ़ की कल्पना से डर कर किसी विशेषज्ञ से मिलने से कतराते रहते हैं लेकिन विशेषज्ञ से मिल कर भांडा फूट जाता है कि यह तो तकलीफ़ कोई खास थी ही नहीं ----कुछ ही दिनों की दवाई से तकलीफ़ छृ-मंतर हो जाती है।

एक बात और भी है कि आज कल कुछ तरह के चमड़ी रोगों के होम्योपैथी इलाज के विज्ञापन भी समाचार-पत्रों में हमें दिख जाते हैं --- अकसर जब मरीज़ इन के बारे में किसी डाक्टर से अपनी राय पूछता है तो वह चुप सा हो जाता है । ऐसा इसलिये होता है क्योंकि हमारी चिकित्सा शिक्षा में एलोपैथी और अन्य भारतीय चिकित्सा पद्वतियों का समन्वय न के बराबर है ---- ना तो यह चिकित्सकों के स्तर पर है और न ही मरीज़ों के स्तर पर ---- कईं बार बस असमंजस की स्थिति सी बन जाती है --- मेरे विचार में मरीज को यह पूर्ण अधिकार है वह सारी सूचना प्राप्त कर के अपने विवेक एवं सुविधा के अनुसार ही चिकित्सा पद्धति का चयन करे ---बस इतना ध्यान अवश्य कर ले कि जो भी होम्योपैथिक एवं आयुर्वैदिक चिकित्सक उस का इलाज करे वह प्रशिक्षित होना चाहिये और दूसरा यह कि दोनों चिकित्सा पद्वतियों के इलाज की खिचड़ी से दूर रहने में ही समझदारी है ---- वरना दो नावों की एक साथ सवारी करने वाले जैसी हालत हो जाती है। जाते जाते बस एक बात और करूंगा कि यह जो हमें अकसर बैंक, डाकखाने , पड़ोस में सेल्फ-स्टाईल्ड होम्योपैथ अथवा आयुर्वैदिक चिकित्सक मिल जाते हैं ना इन से तो बिल्कुल बच कर ही रहा जाये ---- इन के पास कोई प्रशिक्षण होता नहीं है , बस कहीं से एक किताब मंगवा कर उस के आधार पर देख देख कर ये अपने जौहर दिखाने पर हर समय उतारू रहते हैं--- बस ऊपर वाला हम सब की ऐसी नेक रूहों से रक्षा करें---- जी हां, होते ये बहुत नेक किस्म के इंसान हैं लेकिन बस वही बात बार बार याद आ जाती है ----नीम हकीम खतराये जान !!