गुरुवार, 31 जुलाई 2014

ई-बोला वॉयरस इंफैक्शन आजकल बहुत चर्चा में है---क्या है यह?

 ई-बोला हैमरेजिक बुखार एक बहुत ही खतरनाक बीमारी है जो कि ९०प्रतिशत केसों में जान ही ले लेती है और यह मानव एवं प्राइमेट्स में (जैसे कि बंदर, गोरिल्ला) में होती है। 
यह बीमारी एक वॉयरस के द्वारा होती है -वैज्ञानिकों ने पांच तरह की ई-बोला वॉयरस की पहचान की है। अभी तक तो यह बीमारी अफ्रीका के कुछ भागों तक ही सीमित थी। 
मैं आज कहीं पढ़ रहा था कि इस वॉयरस को बॉयो-टेरेरिज़म के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। 
मनुष्यों में यह बीमारी संक्रमित पशुओं एवं पशुओं के पदार्थों से (animal materials)..फैल सकती है। ई-बोला वॉयरस इंसानों में आपस में नज़दीकी संपर्क से एवं संक्रमित शारीरिक द्रव्यों के द्वारा और अस्पताल में संक्रमित सूईंयों से फैल सकती है।
इस की जांच के लिए विभिन्न तरह के टैस्ट उपलब्ध हैं। 
शुरूआती दौर में इस के लक्षण हैं जो कि लगभग एक हफ्ते तक रह सकते हैं...... जोड़ों में दर्द, पीठ दर्द, कंपकपाहट, दस्त, थकान, बुखार, कुछ न करने का मन, मतली, गले में दर्द, उल्टी होना....
बाद में यह लक्षण आ जाते हैं..... आंखों, कानों और नाक से खून बहना, मुंह से और गुदा द्वार से रक्त बहना, आंख की सूजन, यौन अंगों की सूजन (महिलाओं में योनि द्वार - लेबिया और पुरूषों में अंडकोष की सूजन), चमडी में ज्यादा दर्द महसूस होना, सारे शरीर में अजीब तरह की रक्त-रंजित खारिश, और मुंह में तालू लाल दिखने लगता है। 
इस बीमारी का इलाज कुछ है नहीं, लगभग ९० प्रतिकेस तो जान गंवा बैठते हैं. वैसे मरीज़ को आईसीयू में रहने की ज़रूरत पड़ती है और वहां पर उसे रक्त या प्लेटलेट्स दिये जा सकते हैं। अकसर मरीज की मौत रक्त चाप बहुत नीचे गिर जाने से होती है। 
अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़िए.....   Ebola Hemorrhagic fever
Further reading.......
                   Sierra Leone declares Ebola Emergency
                   Why Ebola is so dangerous?

मैंने अपनी कमर माप ली, क्या आप ने मापी...

आज सुबह बीबीसी न्यूज़ पर यह रिपोर्ट दिखी तो एक बार फिर से आंखें खुल गईं। क्या करें, आंखें तो कईं बार पहले भी खुल चुकी हैं, लेकिन हम मानते कहां है, कहां मीठा खाने पर कंट्रोल ही करते हैं और कहां नियमित शारीरिक परिश्रम ही करते हैं।

हां तो इस रिपोर्ट में लिखा है जिन पुरूषों की कमर ४० इंच और महिलाओं की ३५ इंच होती है उन में मधुमेह रोग का खतरा पांच गुणा बढ़ जाता है। पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए आप इस नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।
'Tape measure test' call on type 2 diabetes

जैसा अकसर हमारे जैसे घरों में होता है, सुबह जब खबर पढ़ी तब तो इंचीटेप मिला नहीं, हां, जब श्रीमति जी ने दोपहर में ढूंढ लिया तो मैंने कमर मपवाई...बिल्कुल ऐसे ही जैसे इस रिपोर्ट की फोटो में दिखाई गई है..अर्थात् अम्बलाईकस के इर्द-गिर्द। मुझे उम्मीद थी कि यह ४० के करीब होगी। नहीं, ये ४२ से थोड़ी ऊपर थी।

फिर वह पैंट का भी माप लिया जो मैं पहनता हूं और जो अभी ठीक आती है, वह ४१ इंच के लगभग थी।
सीधी सीधी बात कि आंकड़ा ४० इंच तक तो शर्तिया पहुंच ही चुका है और उम्र ५० के पार हो गई है, इसलिए इस तरह की रिपोर्टें मेरे जैसों को यही याद दिलाने के लिए होती हैं कि अभी भी सुधर जाओ....खाना पीना ठीक कर लो, वैसे तो खाना पीना ठीक ही है, पीना है नहीं, लेकिन मीठा ज़्यादा हो ही जाता है और नियमित शारीरिक परिश्रम का अभाव बना हुआ है।

अब इन दोनों बातों का ध्य़ान रखना होगा, और दो एक दिन में फिर से साईक्लिंग शुरू करनी होगी।
आप भी अपनी कमर अभी माप ही लीजिए.....लेकिन मापिए नाभि को रेफरेंस लेकर ही। प्रेरणा हमें कहीं से भी मिल सकती है ..कभी भी.......... There is never a wrong time to do the right thing. So, just check!

आम हिंदोस्तानी की छोटी बड़ी मजबूरियां...

मेरे पास कुछ महीने पहले एक व्यक्ति आता था.. ७० के ऊपर की उम्र... २० साल से कोर्ट कचहरी के धक्के खा रहा है, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई..रिटायर हुए भी १२-१३ वर्ष हो गये हैं लेकिन अभी भी बड़ा हैरान, परेशान और एकदम पज़ल सा दिखा मुझे वह।

हैरान परेशान का कारण यही कि अभी तक कोर्ट-कचहरी में इतना पिसता रहा कि अभी भी तीनों बेटियों को ब्याहना है। और जिस बेटी को वह मेरे पास लेकर आया वह बेटी चाहती थी कि उस के आगे के सभी दांत एक दम सुंदर दिखने लगें .. सफ़ेद हो जाएं.. हंसते हुए जो थोड़े भद्दे से दिखते हैं, वे अच्छे दिखें......मैं सब समझ गया जब उस बुज़ुर्ग ने कहा कि लड़के वाले फोटो मंगवा रहे हैं, हम अभी भेज नहीं रहे हैं, ज़्यादा देर नहीं कर सकते, हम चाहते हैं इस के दांत अच्छे दिखने लगें तो ही फोटू खिंचवाए।

एक बाप की मजबूरी मैं समझ रहा था......मैंने भी कुछ दिन लगा दिए उस के दांतों को अपनी तरफ़ से बिल्कुल सफ़ेद-और बिल्कुल तरतीब में करने में। वे बाप और बेटी दोनों खुश थे। उन को खुश देख कर मैं भी बहुत खुश हुआ।
यह पोस्ट मैं इसलिए नहीं लिख रहा कि मैंने बहुत महान काम किया....सरकारी अस्पताल में सरकारी लोगों का अच्छे से इलाज करना मेरा पेशा है, सरकार उस के लिए मेरा ध्यान रखती है...ऐसे बहुत से युवत-युवतियों के चेहरों को सुंदर बनाया होगा.....लेकिन यह केस मुझे भुलाये नहीं भूलता क्योंकि यहां एक बाप की मजबूरी हर पल मुझे द्रवित करती थी।

लगभग ३० वर्ष की रही होगी उस की बेटी लेकिन वह बुजुर्ग बाप बेचारा इलाज के दौरान सामने बैठा  बीच बीच में उस के दांत को ऐसा चैक करता था -- जैसे कि कोई मां-बाप अपने छोटे शिशु को इलाज के लिए लाये हों। मुझे बिल्कुल भी असहज महसूस नहीं हुआ ..हर बाप का अधिकार है ...मैंने तो उन्हें इतना भी कहा कि वह इस बेटी की मां को भी साथ ला सकते हैं, लेकिन उसने बिल्कुल भोलेपन से जब कहा कि डा साहब, वह तो खाट पर पड़ी है, अगर आप कहेंगे तो टैक्सी कर के ले आएंगे। मैंने कहा ..नहीं, नहीं, मैं तो आप की संतुष्टि के लिए कह रहा था।

बहरहाल, इतने वर्ष हो गये इस काम को करते हुए लेकिन जितनी लाचारी, बेबसी और उम्मीद मैंने इस बुज़ुर्ग बाप की आंखों में देखी, मैंने शायद पहले कभी इस का अनुभव नहीं किया होगा। शुक्र है ईश्वर का कि मैं बाप बेटी की उम्मीदों पर खरा उतर सका।

सच में एक औसत हिंदोस्तानी की कितनी अजीबोगरीब मजबूरियां हैं ना....... क्या करे, हाय रे, हमारी सामाजिक व्यवस्था.......सुबह कभी तो आएगी।

बिल्कुल विश्वसनीय हैल्थ जानकारी हिंदी में मैडलाइन प्लस पर..

पांच छः वर्ष पहले मैंने एक लेख इस विषय पर लिखा था कि इंटरनेट पर सेहत से संबंधी जानकारी आप किन किन साइटों से प्राप्त कर सकते हैं। एक बार फिर से इस का लिंक यहां दे रहा हूं..

इंटरनेट पर स्वास्थ्य से संबंधित जानकारी के लिए वेबसाइटें

ये वेबसाइटें एक दम पुख्ता जानकारी उपलब्ध तो करवाती हैं लेकिन इंगलिश भाषा में। होता है कईं बार इंगलिश में किसी को बात ठीक से समझ न आए, ऐसे में कोई क्या करे। अब हिंदोस्तानी साइटों पर --सरकारी पर भी--मुझे तो कुछ इस तरह का इन सात-आठ सालों में दिखा नहीं कि मैं आप को उस की सिफ़ारिश कर सकूं।

लेकिन मुझे कुछ समय पहले यह अवश्य पता चला कि मैडलाइन प्लस नामक वेबसाइट पर सेहत से संबंधित जानकारी हिंदी में भी उपलब्ध करवाई जा रही है। यह जानकारी अमेरिकी की सरकारी संस्था नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मैडीसन से उपलब्ध करवाई जाती है....इस का वेबएड्रस जरूर नोट कर लें। बहुत काम की बात है।

इस का यूआर एल है .....   http://www.nlm.nih.gov/medlineplus/languages/hindi.html#E

मैं इस साइट पर लिखी बातों को एक दम विश्वसनीय मानता हूं.....मानता हूं क्या, यह एक दम विश्वसनीय ही है। जिस तरह से हम सरकारी अस्पताल के किसी वरिष्ठ, अनुभवी और ईमानदार चिकित्सक के परामर्श को बिल्कुल विश्वसनीय मानते हैं, बिना किसी नुकुर-टुकुर के आंख बंद कर के उस की सभी बातों पर विश्वास कर लेते हैं, उन्हें मान लेते हैं, इस साइट पर भी जितनी भी सेहत संबंधी जानकारी है वह उसी उच्च कोटि की है.........इंगलिश का पेज भी हिंदी के साथ ही लगा हुआ है, इसलिए किसी तरह की गलतफहमी की कोई गुंजाइश भी नहीं।

होता है कभी हमें किसी सेहत से संबंधित जानकारी को हिंदी में ही पढ़ना होता है, समझना होता है, तो इसके लिए ऊपर दिये गये लिंक से बेहतर विकल्प अभी तक मेरे को दिखा नहीं......भारत की सरकारी वेबसाइटें की छान ली हैं इन वर्षों में ..वहां भी रस्म-अदायगी ज़्यादा है, कहीं कहीं तो वह भी नहीं है। एक कड़ुवा सच।

मुर्गा खाना भी बीमारियों को बुलावे जैसे

मैं जहां रहता हूं लखनऊ ...उस कॉलोनी से बाहर निकलने पर जिस तरह से सड़क के किनारे लकड़ी की अलमारियों में बंद मुर्गे-मुर्गियां देखता हूं.... एक बड़ी ही दयनीय स्थिति लगती है।

मैं अभी कुछ दिन पहले ही सोच रहा था कि ये सब के सब बिल्कुल दुबके से, एक दूसरे से चिपके से, उदास से ऐसे पड़े हुए हैं जैसे इन को इन का अंजाम पता चल गया है और ये एकदूसरे के हमदर्द बने ऐसे दिखते हैं जैसे कि एक दूसरे का हौंसला बढ़ा रहे हों कि चिंता मत करो, देखेंगे जो होगा, देख लेंगे... हम इक्ट्ठे तो हैं .......hoping against hope. Poor souls!

लेकिन अकसर नोटिस यह भी करता हूं कि इन के मसल तो ठीक ठाक होते हैं लेकिन ऊपर की चमड़ी अजीब सी लाल, पंख कमजोर से, झड़ चुके या झड़ने की कगार पर.

इन्हें देखने ही से लगता है कि यार इन बेचारों के साथ सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। सोचने वाली बात है कि अगर आदम जात के पट्ठे बनाने के लिए स्टीरॉयड जैसे कैमीकल्स, हारमोन्स आदि इस्तेमाल किए जाते हैं, जिस देश में दस-बीस रूपये किलो बिकने वाली सब्जियों को बढ़ा करने के लिए टीके लगते हों, वहां क्या चूज़ों को बढ़ा करने के लिए तरह तरह की अनाप-शनाप दवाईयों पिलाई या लगाई न जाती होंगी।

मेरी सोच कुछ ऐसी ही रही है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ जरूर इन को बढ़ा करने के चक्कर में होती ही होगी। वैसे तो नॉन-वैज नहीं खाता, कोई भी इस का धार्मिक कारण नहीं है....किंचित मात्र भी नहीं, बस वैसे ही बुरा लगता है किसी जीव को अपने मुंह के स्वाद के लिए पहले मार देना फिर उस को भून कर या तल कर खा लेना। और ऊपर से अगर यह सब बीमारियों का घर हो, तो क्या सोचने मात्र से ही सिर भारी नहीं हो जाता।

आज भी सुबह ऐसा ही हुआ है, टाइम्स ऑफ इंडिया और दा हिंदोस्तान ..दोनों अखबारों के पहले पन्ने पर बड़े बडे़ शीर्षकों के साथ खबर छपी है कि सैंटर फॉर साईंस एंड एन्वायरमैंट की स्टडी में पाया गया है कि चिकन के ४०प्रतिशत नमूनों में ऐंटीबॉयोटिक दवाईयों की मात्रा पाई गई है।

अब सोचने लायक बात यह है आखिर चिकन के नाम पर खाया क्या कुछ जा रहा है, ताकत वाकत की बात छोड़ ही दें, जो पहले से बची-खुची है अगर वही न लुट जाए तो गनीमत जानिए......

यह मार्कीट शक्तियों का रातों रात अमीर होने का जुनून कहीं हमारी जान ही न ले ले ...हर तरफ़ मिलावट...घोर मिलावट.....बीमार कर देने वाली, बहुत बीमार कर देने वाली, जो जानलेवा तक भी हो सकती है।

एक बात और..यह भी नहीं कि आज अखबार में परोसी खबर ही से हमें पता चला हो कि मुर्गों के साथ यह सब कुछ हो रहा है, बहुत बार सुन चुके हैं, देख चुके हैं, पढ़ते भी रहते हैं ...लेकिन इन्हें खा खा कर एक बार नहीं बार बार अपने पैरों पर कुल्हाड़ी से वार किए जा रहे हैं, चोटिल हुए जा रहे हैं, शायद किसी विशेष बीमारी के निमंत्रण का इंतज़ार। अगली बार मुर्गा शुर्गा खाने से पहले आप भी सोचिएगा।

Source-- Antibiotics in your chicken 
              Antibiotic residues in chicken 
लिखते लिखते लव शव ते चिकन खुराना फिल्म का ध्यान आ गया...... कोई गीत ढूंढने लगा तो यह सीन हाथ लग गया, आप भी देखिए...मेरी पोस्ट पढ़ने से जो सिर भारी हुआ होगा वह हल्का हो जाएगा इस परिवार की कच्छा चर्चा सुन कर।