परसों रविवार था...बाद दोपहर मैं रेडियो पर विविध भारती सुन रहा था..प्रोग्राम था..उजाले उन की यादों के... पता चला कि एस महिन्दर नाम के किसी संगीतकार से इंटरव्यू चल रही है ...प्रोग्राम सुनते हुए अहसास हुआ कि मुझे तो ऐसे किसी संगीतकार का ध्यान ही नहीं था...
एक घंटे तक यह इंटरव्यू चलता है .. उसी दौरान अपनी एहसान-फरामोशी के बारे में भी यह अहसास हुआ कि जिस महान शख्स के संगीत से सजे गीत बचपन में स्कूल-कॉलेज के जमाने से सुनते सुनते बड़े हो गए, उस शख्स के बारे में कभी जाना ही नहीं...
जी हां, यह महान संगीतकार हैं...एस मोहिन्दर जी...यह एक सिख जेंटलमेन हैं...यह भी कार्यक्रम के दौरान ही पता चला ...इन्होंने महान गीतकारों के साथ हिंदी और पंजाबी गीतों के लिए संगीत तैयार किया।
मोहिन्दर जी १०मई १९४७ को बंबई आ गये ...यह कैसे आए..यह मुझे इस इंटरव्यू से अभी अभी पता चला तो मैं कांप उठा...आप स्वयं सुन सकते हैं इस इंटरव्यू में...
परसों वाले जिस रेडियो प्रोग्राम की मैं बात कर रहा हूं उस दौरान इन्होंने बहुत सी हिंदी फिल्मों के गीतों के बारे में बताया...बहुत ही प्रसिद्ध गीत थे वे सब...लेकिन मेरा ही ज्ञान उस दौर के हिंदी गीतों के बारे में बहुत कम है...मैं तो इन की बातों से यह अच्छे से समझ गया कि मैं २०-२२ साल की उम्र तक जो पंजाबी फिल्में दूरदर्शन में विशेषकर देखता रहा और रोज़ाना जालंधर रेडियो स्टेशन से प्रसारित होने वाले देश पंजाब प्रोग्राम में पंजाबी फिल्मी गीत बहुत बार बजते थे ..उन में भी इन्हीं का संगीत था...
इन्होंने कार्यक्रम के दौरान मोहम्मद रफी, आशा भोंसले, लता मंगेशकर जैसे गीतकारों के साथ काम करने के अपने अनुभव साझा किए...मो.रफी के बारे में तो बता रहे थे कि महीने में एक रविवार रफी साहब उन के घर ही बिताते थे...और यह भी सुन कर बड़ा मज़ा आया कि किस तरह से एक बार एक गीत की रिकार्डिंग के दौरान मो. रफी को रफी साहब के नाम से जब संबोधित किया तो वह रिकार्डिंग छोड़ कर नीचे आ गये....उन की नाराज़गी का कारण था कि तू तो मुझे हमेशा रफी कहता है, यह रफी साहब क्यों कहा!
ऐसे ही सुनील दत्त साहब के साथ बिताए समय के बारे में भी चर्चा कर रहे थे कि किस तरह से मन जीते जगजीत में काम करने के लिए वह राजी हुए और फिर १० दिन तक शूटिंग पठानकोट में चली....पृथ्वी राज कपूर साहब के साथ काम करने के भी मधुर अनुभव इन्होंने श्रोताओं के साथ साझा किए।
१९४७ में बंबई आ गए...१९५३ में शादी हुई.. चार बच्चे हैं...सभी सेटल्ड हैं...यह अमेरिका १९८२ में गये...सब भाई बहन और माता पिता वहीं रहते थे... बार बार वापिस लौट कर भारत आते हैं ...किसी न किसी फिल्म को कर के ही जाते हैं.. बता रहे थे कि इस बार बस इंटरव्यू ही दे रहा हूं...बातचीत से आप को पता चल ही जायेगा कि कोई लाग-लपेट नहीं...जो बात दिल में है, वही जुबान पर है...दिल खोल कर बात कहने की सच्ची ईमानदारी मुझे महसूस हुई... और इस उम्र में भी बच्चों जैसा उत्साह ...काबिलेतारीफ़....और एक तरफ़ हम जैसे जीव भी हैं जो बात बात पर अभी से रिटायरमेंट लेने की सोचने लगते हैं....his zeal and enthusiasm at this age is so very much inspiring!
इन्हें नानक नाम जहाज पंजाबी फिल्म के लिए नेशनल अवार्ड भी मिल चुका है...और भी बहुत सी उपलब्धियां हैं, लेिकन इस का ज़िक्र इन्होंने अमेरिका जाने के संबंध में किया ....इस के बारे में लिखने लगूंगा तो पोस्ट बड़ी लंबी हो जायेगी ........इसलिए भी ज्यादा नहीं लिखना चाहता कि मुझे यह रेडियो कार्यक्रम अभी अभी यू-ट्यूब पर अपलोड किया हुआ मिल गया है, जिसे मैं यहां एम्बेड कर रहा हूं...सुनिए...आप की बहुत सी जिज्ञासाएं शांत हो जाएं शायद...
इस इंटरव्यू को मैं एम्बेड नहीं कर पा रहा हूं ..इस का लिंक दे रहा हूं...इसे सुनने के लिए यहां क्लिक करिए.
दरअसल जब से मुझे मेरे स्कूल कालेज के दौर की फिल्मों में इन के संगीत के योगदान का पता चला है, मैं कुछ लिखने के मूड में नहीं हूं ज़्यादा...बस, मैं उन में कुछ पंजाबी के सुपर डुपर गीत आप से शेयर करना चाहता हूं, अगर आप सुनना चाहें तो...कुछ की तो मुझे वीडियो नहीं मिली..देखूंगा कहीं से मिल जाए तो .....आज सुबह इन गीतों को सुनते सुनते चालीस साल पुराने दिनों की यादें ताज़ा हो गईं इसी बहाने....शायद ही कोई दिन ऐसा होता हो जब शाम के समय हम लोग इन में से एक गीत रोज़ न सुनते हों....इन की पापुलेरिटि का अंदाज़ आप मेरी इसी बात से लगा सकते हैं...
जिन फिल्मों के गीत मैं यहां आप को सुना रहा हूं वे सभी ऐसी फिल्में थीं जो पंजाब के डीएनए में रची बसी हुई हैं.... उस दौर यह आलम था कि ये टैक्स फ्री तो थीं ही...स्कूल कालेज के बच्चों की पूरी क्लास को बारी बारी से सुबह का शो इसे दिखाने के लिए थियेटर में ले जाया जाता था......तब यह १०० करोड़ क्लब का फितूर नहीं हुआ करता था...
जदों जदों वी बनेरे बोले कां...
सानूं बुक नाल पानी ही पिला दे घुट नी, तेरा जूठा काहनूं करिए ग्लास गोरिए..
मो रफी ने दुःख भंजन तेरा नाम के लिए यह बेहद लोकप्रिय गीत भी गाया था... दुःखभंजन तेरा नाम जी...
दुःख भंजन तेरा नाम...बाबुल तेरे घर ... शायद दिन में एक बार तो यह सुन ही जाता था...Golden melody!
मित्तर प्यारे नूं...हाल मुरीदां दा कहना ...यह शब्द तो हमारे पंजाबी के सिलेबस में भी थी...स्कूल में ...और पता नहीं इसे पढ़ाते सयम हमारे पंजाबी के मास्साब की आंखें नम सी क्यों लगती थीं!...उम्र की उस अवस्था में हमें यह सब समझ नहीं आता था....अब आता है अच्छे से...सुबह स्कूल में पढ़ना, शाम के समय रेडियो पर बार बार सुनना...अच्छा ग्रेड तो पंजाबी में आना ही था!
अगर आप को लग रहा है कि पंजाबी की ओवरडोज हो गई इस चित्रहार में ...कोई बात नहीं उसी दौरान के दो अन्य गीत सुना देते हैं...दिल तो है दिल का एतबार क्या चीज़ है....और दूसरा...मोहब्बत आज तिजारत बन गई है...यह आवाज़ मो रफी साहब की नहीं, गायक अनवर हुसैन साहब की है...
जो काम दिल से हो जाए ...अच्छा लगता है...जैसे कि यह पोस्ट ...अच्छा लगा इसे महान् संगीतकार के बहाने पंजाबी गीतों के विरसे को याद करना और ब्लॉग में सहेजना का एक तुच्छ प्रयास करना...मुझे यकीन है कि कुछ मित्र भी इस पोस्ट को सहेज कर रखेंगे और बच्चों को इस का लिंक भेंजेंगे..
लो जी , एह रिहा मेरा अज्ज दा सुनेहा आप सब लई.....और सब तो पहलां अपने आप लई...हमेशा चेते रखन वाली गल...