बुधवार, 28 मार्च 2018

घने दरख्तों को पीढ़ीयां पलोसा करती हैं..


किसी भी जगह जाऊं तो वहां का पुराना शहर, पुराने घर और उन की घिस चुकीं ईंटें, वहां रहने वाले बुज़ुर्ग बाशिंदे जिन की चेहरों की सिलवटों में पता नहीं क्या क्या दबा पड़ा होता है और इस सब से साथ साथ उस शहर के बड़े-बड़े पुराने दरख्त मुझे बहुत रोमांचित करते हैं।


आज दरख्तों की बात करते हैं...पंजाब हरियाणा में जहां मैंने बहुत अरसा गुज़ारा...वहां मैंने दरख्तों के साथ इतना लगाव देखा नहीं या यूं कह लें कि पेड़ों को सुरक्षित रखने वाला ढांचा ही ढुलमुल रहा होगा ..शायद मैंने वहां की शहरी ज़िंदगी ही देखी है..गांवों में शायद दरख्तों से मुहब्बत करते हों ज़्यादा... पता नहीं मेरी याद में तो बस यही है कि जैसे ही सर्दियां शुरू होती हैं वहां, बस वहां पर लोग पेड़ों को छंटवाने के नाम पर कटवाने का बहाना ढूंढते हैं..


मुझे बचपन की यह भी बात याद है कि दिसंबर जनवरी के महीनों में अमृतसर में हातो आ जाते थे (कश्मीरी मजदूरों को हातो कहते थे वहां ...जो कश्मीर में बर्फबारी के कारण मैदानों में आ जाते थे दो चार महीनों के लिए काम की तलाश में)...वे पेड़ों पर चढ़ते, कुल्हाड़ी से पेड़ों को काटते-छांटते और और फिर उस लकड़ी के छोटे छोटे टुकडे कर के चले जाते ...इन्हें जलाओ और सर्दी भगाओ....इस काम के लिए वे पंद्रह-बीस-तीस रूपये लेते थे .. यह आज से ४०-४५ साल पहले की बात है।


हां, तो बात हो रही थी दरख्तों की ....मैं तो जब भी किसी रास्ते से गुज़रता हूं तो बड़े बडे़ दरख्तों को अपने मोबाइल में कैद करते निकलता हूं और अगर वे पेड़ रास्तों में हैं तो उस जगह की सरकारों की पीढ़ियों को मन ही मन दाद देता हूं कि पचास-सौ साल से यह पेड़ यहां टिका रहा, अद्भुत बात है, प्रशंसनीय है ...वह बात और है कि इस में पेड़ प्रेमियों के समूहों का भी बड़ा योगदान होता है...वे सब भी तारीफ़ के काबिल हैं...


हम लोग कहां से कहां पहुंच चुके हैं ...कल मैंने एक स्क्रैप की दुकान के बाहर एक बढ़िया सा फ्रेम पडा़ देखा...बिकाऊ लिखा हुआ था ... खास बात यह थी कि इस फ्रेम में एक बुज़ुर्ग मोहतरमा की तस्वीर भी लगी हुई थी .. पुराने फ्रेम को बेचने के चक्कर में उन्होंने उस बुज़ुर्ग की तस्वीर निकाल लेना भी ज़रूरी नहीं समझा...होगी किसी की दादी, परदादी , नानी तो होगी..लेकिन गई तो गई ...अब कौन उन बेकार की यादों को सहेजने के बेकार के चक्कर में पड़े..


ऐसे माहौल में जब मैं घरों के अंदर घने, छायादार दरख्त लगे देखता हूं तो मैं यही सोचता हूं कि इसे तो भई कईं पीढ़ियों ने पलोसा होगा... चलिए, बाप ने लगाया तो बेटे तक ने उस को संभाल लिया..लेकिन कईं पेड़ ऐसे होते हैं जिन्हें देखते ही लगता है कि इन्हें तो तीसरी, चौथी और इस से आगे की पीढ़ी भी पलोस रही है ....मन गदगद हो जाता है ऐसे दरख्तों को देख कर ...ऐसे लगता है जैसे उन के बुज़ुर्ग ही खड़े हों उस दरख्त के रूप में ...


मैं जब छोटा सा था तो मुझे अच्छे से याद है मेरे पापा मुझे वह किस्सा सुनाया करते थे ...कि एक बुज़ुर्ग अपने बाग में आम का पेड़ लगा रहा था, किसी आते जाते राहगीर ने ऐसे ही मसखरी की ...अमां, यह इतने सालों बाद तो फल देगा... तुम इस के फल खाने तक जिंदा भी रहोगे, ऐसा यकीं है तुम्हें?


उस बुज़ुर्ग ने जवाब दिया....बेटा, मैं नहीं रहूंगा तो क्या हुआ, मेरे बच्चे, बच्चों के बच्चे तो चखेंगे ये मीठे आम!

मुमकिन है यह बात आप ने भी कईं बार सुनी होगी..लेकिन जब हम लोग अपने मां-बाप से इस तरह की बातें बचपन में सुनते हैं तो वे हमारे ऊपर अमिट छाप छोड़ जाती हैं...


बडे़ बडे़ पेड़ घरों में लगे देख कर यही लगता है कि इस घर में सब के पुराने संस्कार अभी अपनी जगह पर टिके हुए हैं ..नहीं तो पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाने में देर लगती है क्या, बस बहाना चाहिए और एक इशारा चाहिए.. यकीनन इन पेड़ों को कईं पीढ़ियों ने प्यार-दुलार से पलोसा होगा, तभी तो आज वे गर्व से सीना ताने खड़े हैं!!


कल मैंने जब एक बंगले में इन पेड़ों की यह हालत देखी तो मुझे राहत इंदौरी साहब की यह बात याद आ गई ...


यही विचार आ रहा है कि हम लोग अाज के बच्चों को पेड़ों से मोहब्बत करना सिखाएं....दिखावा नहीं, असली मोहब्बत ...दिखावा तो आपने बहुत बार देखा होगा ..

एक दिखावे की तस्वीर दिखाएं ... इसे अन्यथा न लें (ले भी लें तो ले लें, क्या फ़र्क पड़ता है!😀) शायद ऐसा होता ही न हो, एक लेखक की कल्पना की उड़ान ही हो...जैसा भी आप समझें, एक बार सुनिए ...जी हां, फलां फलां दिन पेड़ लगाए जायेंगे। जब पेड़ लगाने कुछ हस्तियां आती हैं.. उन के साथ उन का पूरा स्टॉफ, पूरे ताम-झाम के साथ, किसी ने पानी की मशक थामी होती है, किसी ने उन के नाम की तख्ती, किसी ने डेटोल लिक्विड सोप, किसी ने तौलिया ...और ऊपर से फोटो पे फोटो ...अगले दिन अखबार के पेज तीन पर छापने के लिए....अब मेरा प्रश्न यह है कि वे पेड जो ये लोग लगा कर जाते हैं वे कितने दिन तक वहां टिके रहते हैं...कभी इस बात को नोटिस करिएगा....

पिछले दिनों मैंने कुछ पेडो़ं के ऊपर कोलाज तैयार किए थे, सोच रहा हूं उन की नुमाईश भी यहीं लगा दूं... आज तो मौका भी मिला हुआ है ... 😀😂😎





यह बिल्कुल पेज थी टाइप इवेंट होता है ...शायद उस स्वच्छता मुहिम के जैसा जहां दस लोग झाड़ू पकड़ कर दस पत्तों के साथ फोटो खिंचवाने आ जाते हैं... फोटो देखने वाले को यह पता ही नहीं चलता कि यार, यहां पर गंदगी तो लग ही नहीं रही, सब कुछ तो चमाचम वैसे ही है ...इसीलिए एक स्कीम भी आई थी कि सफाई से पहले और बाद की फोटो भी शेयर की जाएं...उसी तरह का कुछ पोधारोपण के बारे में भी होना चाहिेए... आधार को जैसे हम जगह जगह लिंक किए जा रहे हैं, उसी तर्ज़ पर जिस व्यक्ति की उन पौधों को पालने की जिम्मेवारी बनती हो उन की Annual Confidential Report  भी इन पौधों की सुरक्षा के साथ जोड़ दी जानी चाहिए..

यह तो हो गई औपचारिकता....और दूसरी तरफ़ एक बच्चा घर से ही सीख रहा है ...कि कैसे पौधे को रोपा जाता है, कैसे उसे पानी दिया जाता है, कितना पानी चाहिए, खाद की क्या अहमियत है .. और ऐसी बहुत सी बातें ...

बात लंबी हो रही है, बस यही बंद कर रहा हूं इस मशविरे के साथ कि ....We all need to celebrate trees!! दरख्त हमारे पक्के जिगरी दोस्त हैं, इन के साथ मिल कर जश्न मनाते रहिए, मुस्कुराते रहिेए...