मंगलवार, 19 मई 2020

वाट्सएप पर कुछ भी फारवर्ड करने से पहले ...

वाट्सएप पर हम जिन लोगों से जुड़े होते हैं ... अकसर उन का मिज़ाज भी अच्छे से समझने लगते हैं ....कुछ का तो जैसे काम ही सनसनी फैलाना होता है ...और ख़्याल आता है उन की पोस्टें देख कर कि ख़बरिया चैनलों से भी ज़्यादा तेज़ी से तो ये सनसनी फैला रहे हैं ...कईं बार आपने देखा होगा कि चैनल वाले तो फिर भी कुछ तस्वीरें नहीं दिखाते और साथ में कह देते हैं कि ये तस्वीरें आप को विचलित कर सकती हैं ..लेकिन वाट्स पर तो बाप-रे-बाप -इतना ज्ञान, इतनी खौफ़नाक तस्वीरें ...बच्चे, बुज़ुर्ग सभी देखते हैं ..सहम जाते हैं ...आप और मैं जितना मर्ज़ी सोच लीजिए इस का कुछ नहीं कर सकते ...ये आत्म-संयम का मामला है ...और हर किसी की मानवीय संवेदनाओं से जुड़ा हुआ मुद्दा है ...

हां, तो हुआ यूं कि इसी महीने की शुरुआत के दिनों की ही बात होगी ...एक डाक्टर ने किसी ग्रुप में एक पोस्ट शेयर की जिसमें लिखा था  कि अब जितना भी सामान आप के पास है, उसी से ही काम चलाएं ...बाहर न निकलें ..अगले एक हफ्ते का वक्त बड़ा निर्णायक हैै ...क्योंकि कोरोना का वॉयरस हर तरफ़ हवा में फैल चुका है ..। 

एक बडे़ सीनियर डाक्टर की यह पोस्ट देख कर मुझे ऐसा लगा कि शायद इसे पहले भी मार्च के आखिरी दिनों में कहीं देखा होगा ..लेकिन फिर लगा कि मुझे ऐसे ही लग रहा होगा...वाट्सएप माल के ढ़ेरों पार्सल तो रोज़ाना पहुंचते हैं ...लेकिन उस पोस्ट को पढ़ कर मुझे बड़ी फ़िक्र हुई .....जिस वक्त मैंने यह पोस्ट पढ़ी उस वक्त यही कोई रात के साढ़े नौ बजे थे ...लेकिन यकीं मानिए उसे पढ़ कर मेरा मन बहुत उदास हो गया .......और मैंने चादर तानी और लमलेट हो गया..। मैं इस पोस्ट पर इतना यकीं कर बैठा क्योंकि यह एक सीनियर डाक्टर ने भेजी थी...

सुबह उठते ही जैसा हम सब लोग मोबाइल देवता के दर्शन करते हैं ...मैंने जैसे ही वाट्सएप खोला तो मुझे उस पोस्ट के जवाब में एक पोस्ट दिखी किसी दूसरे डाक्टर की जिसने उस पोस्ट के जवाब में लिखा हुआ था कि यह तो पोस्ट 26 मार्च की थी ...मैंने पहले ही आप को बताया कि शक तो मुझे भी था .. 😅....बहरहाल, उस डाक्टर का जवाब पढ़ कर मेरी तो भई जान में जान आई ..क्योंकि हर तरफ़ हवा में वॉयरस होने का मतलब बड़ा खौफ़नाक होता है .. ज़ाहिर है यह एक फ़र्ज़ी क़िस्म की पोस्ट थी। हो जाता है, हम से किसी से भी कभी भी ऐसे अचानक शेयर अथवा फारवर्ड हो ही जाता है, कोई बड़ी बात नहीं है।

मैं आज इतने दिनों बाद यह सब क्यों लिखने बैठ गया ....अच्छा तो हुआ यूं कि आज संयोगवश हमने एक पोस्ट देखी ... यही वाट्सएप पर ही थी ...बंबई में कोई सीनियर डाक्टर ने हम लोगों को यह ताक़ीद की थी कि वाट्सएप पर कुछ भी ठेलने से पहले अच्छे से उसके बारे में सोच समझ लिया करें - अभी मैं उस आर्टीकल यहां ही चस्पा किए दे रहा हूं ..इंगलिश में है, आप अगर पूरा पढ़ना चाहें ...उन्होंने लिखा कि पिछले दिनों सायन हास्पीटल मुंबई में कोरोना की वजह से जिन लोगों की तकलीफ़ें वाट्सएप पर दिखाई गईं ....उन को देखने पर उन्हें कुछ 54 साल पुरानी बातें अपने बचपन की याद आ गईं ...वह 13-14 बरस के थे ...1967 की बात है ..उन का गला दुखने लगा ...घर में सब ने कहा कि कोई बात नहीं, सब ठीक है ...लेकिन उन की मां को लगा कि नहीं कुछ तो गढ़बढ़ है ...वे बालक को लेकर डाक्टर के पास गईं ..लेकिन यह कोई आम रोग नहीं था ...जिस की दवाई देकर मरीज़ को घर भेज दिया जाता ...यह तो डिप्थीरिया (गल घोंटू) रोग था ...जो एक बेहद संक्रामक (संचारी) रोग था ...इस के ग्रस्त होने वालों की मौत बड़ी पीड़ा दायक होती थी ... उन दिनों इस का टीका अभी नहीं आया था...

वह डा्क्टर अपने ब्लॉग में लिखता है कि उसे फ़ौरन एक आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कर दिया गया....किसी को अंदर आने की इजाज़त नहीं थी ...मां भी बाहर ही से देखने को तरस जाती कि मैं ठीक तो हूं ...डाक्टर लिखता है कि मेरी उम्र तेरह बरस होेने की वजह से मुझे बडे़ लोगों के वार्ड में ही रखा गया ...जहां मैंने बड़ा दुःख देखा ...एक दिन मेरे साथ वाले बिस्तर वाला मरीज़ चल बसा ...मुझे यह पता चला कि किस तरह से मृत-मरीज़ के शरीर को उन के परिजनों को सौंपने से पहले कितने और मुद्दे होते है ं...फिर वह डाक्टर लिखता है कि मैं दो दिन कोमा में रहा ..दो दिन बाद जब मैं सुबह उठ पाया तो मैंने ईश्वर का शुक्र किया कि मैं उठ तो पाया ... ऐसे ही फिर उस आइसोलेशन वार्ड में जब तक उस के बाहर आने का दिन नहीं आया वह डाक्टरों और नर्सों की मदद करने लगाा ...किसी मरीज़ को दवाई और किसी को खाना देने लगा ...लंबी बात को छोटी करूं तो यह है कि उस के मन में डाक्टर बनने के लिए एक इच्छा पैदा हो गई ...

जब वह बिल्कलु ठीक हो गया और जिस दिन घर आया तो मां ने उस की पसंद का खाना उसे ठूंस ठूंस कर खिलाया ...उसने मां से कहा कि मैं भी डाक्टर बनूंगा... हां, फिर वह डाक्टर कहता है कि ज़िंदगी में यह ऐसा मोड़ था जिस की वजह से वह डाक्टर बन गया और वह निरंतर रोगियों की सेवा में लगा हुआ है ...डिटेल्स आप उस लेख में पढ़ लीजिए....

I am a Doctor in Mumbai ..please forward and receive whatsapp with care! (Click on this to read)

हिंदी में तो मेरे से जैसा लिखा गया, मैंने लिख दिया ......बाकी आप इस लिंक पर जा कर पढ़ लीजिए......वह लिखता है कि उसे यह भी मालूम हुआ बचपन में उस बीमारी के दौरान ही कि क्यों कर  लोग आइसोलेशन-वार्ड आदि के नाम से भागते हैं ...लेकिन अगर वह आप के और दूसरों के हित में हो तो करना ही पड़ता है ......उस का पैग़ाम यही है कि जब किसी अस्पताल में शवों की तस्वीरें दिखाई जाती हैं आज के सोशल-मीडिया पर तो यह बात भी याद रखने की है कि ये अस्पताल इंसानियत के वो मंदिर-मस्जिद हैं (पता नहीं यह लिखा है कि नहीं उसने ....चलिए, अगर मैं जोड़ भी रहा हूं तो अच्छी बात ही है..) ...जहां से बहुत से लोग दूसरी ज़िंदगी का तोहफ़ा लेकर फिर से अपने आशियाने में अपनों के बीच भी लौटते हैं ..जैसा कि वह ख़ुद लौटा ...जीवन दान पाते हैं ...उन दयालु-कृपालु डाक्टरों की कृपा  से ...

मुझे डाक्टर की बात सुंदर लगी इस लिए सोचा हिंदी में लिख कर शेयर करते हैं ....

हां, वाट्सएप पर शेयर बहुत कुछ हो रहा है ...अब सोच रहा हूं इतने ज़्यादा कंटैंट आने लगा ...किस को पढ़ें, किस को छोड़ें ....दो चार दिन पहले एक आदमी ने घर ही में अपनी हजामत करते हुए की एक वीडियो डाल दी ....उसे कईं ग्रुप्स में देखा ....हमें तो देख कर ही सहम गये ...हम तो ये सब कहां ट्राई करेंगे ......लेकिन देखने में ही लगे कि अगर कोई ऐसी चीज़ें ट्राई करने लगे और वह अपने आप को कोई गंभीर चोट लगवा बैठे तो आप किसे दोष देंगे ..


यह वक़्त इस तरह के ख़तरों के खेल खेलने का तो नहीं है, अगर कुछ भी ऊंच-नीच हो जाए तो क्या करेंगे....चिकित्सा सेवाओं पर वैसे ही तरह तरह की पाबंदीयां हैं ...

वाट्सएप भी अजीब चीज़ है....मेरा तो मन भर चुका है इस से भी ...न्यूज़-चैनल हो या टीवी ...अब देखने की इच्छा ही नहीं होती ...कितना लंबा अरसा हो गया है ...पिछले 60 दिनों में मुझे नहीं लगता कि मैंने कभी किसी खबरिया चैनल को देखा हो ....हां, दो चार बार एनडीटीवी इंडिया लगा देखा तो पांच दस मिनट ज़रूर देखने लगा ...लेकिन वाट्सएप पर अब सामान बहुत आने लगा है ,..दरअसल कोई पता ही नहीं कौन किसे कैसी नसीहत दे रहा है, क्यों दे रहा है....कल मुझे बड़ी हंसी आई -एक ग्रुप में एक मेडीकल ज्ञान से जुड़ा एक लेख सा था ...अच्छा लगा ...मैंने देखा तो वह हमारे अस्पताल का ही एक अटैंडेंट हमें ज्ञान बांट कर चला गया....मुझे वह सोच कर बड़ी हंसी आई। वैसे तो ज्ञान कहीं से आए उस का स्वागत होना चाहिए...लेकिन फिर भी ....आप समझते ही हैं कि अगर किसी विषय़ के बारे में हमारी कोई शैक्षित योग्यता इत्यादि ही नहीं है तो इस शेयरिंग-वेयरिंग के चक्कर में पड़ा ही क्यों जाए..

बड़ी जल्दी होती है हम लोगों को आगे से आगे बातें शेयर करने की .......लेकिन कोशिश करिए कि थोड़ा देख-जांच के ...कोई रेस नहीं लगी हुई ...ग्रुप में जब कोई किसी को मुबारक बाद देने लगे तो बड़ी सिरदर्दी लगती है ..क्योंकि अगले 100 मैसेज --पहले 50 उस को मुबारक बाद देने वालों को और फिर उस के अगले 50 उन का शु्क्रिया अदा करने वाले मैसेज ...सजा लगती है ऐसे 100 मैसेज पढ़ना ...आप फोन उठाइए, उसे मुबारकबाद दीजिए...उस से पार्टी लेने की तारीख़ तय कीजिए...कुछ भी करिए.

सारा दिन कोरोना ..कोरोना ..कोरोना ...आंकड़े ...आंकडे़ ....आंकड़े ---अब यह दर इतनी फ़ीसदी हुई और अब इतनी फ़ीसदी हुई ...यह दर घट गई और यह बढ़ गई...सच दिमाग का दही बन जाता है ...अब तो मैं बहुत से ग्रुप्स में जाता ही नहीं हूं रोज़ ---कभी फ़ुर्सत हुई तो देख लिया...

हां, एक बात ...पहले यह भी चलन था कि लोग अपनी बगिया के फूलों की तस्वीरें शेयर करते थे वाट्सएप पर ....सुबह सुबह ...अच्छा लगता था...कोई सुबह के नैसर्गिक नज़ारे की तस्वीर भेजता था ....मुझे हमेशा ऐसे लगता है कि जो भी भेजिए...मौलिक भेजिए -- चाहे दो अल्फ़ाज़ ही लिखिए ..लेकिन ख़ुद लिखिए...उन्हें पढ़ने में ही मज़ा आता है ....  वैसे देखा जाए तो इस वाट्सएप में ऐसा पोटैंशियल है कि यह हमें एक तरह से ख़तो-किताबत की सुविधा मुहैया करवा रहा है ...और उस से भी बढ़ कर उस में हम फोटो भी चिपका दें, वीडियो भी नत्थी कर दें, वीडियो कॉल करें, ऑडियो नोट भेजें ...कुछ भी ... सोचने वाली बात यह है कि क्या हम वाट्सएप का पुरा इस्तेमाल कर भी पा रहे हैं? 

मुझे तो कुछ बात अगर नहीं सूझती तो मैं तो साठ-सत्तर के दशक को कोई गाना या कोई नया सा, बढ़िया सा GIF ही चिपका कर भाग लेता हूं ...