शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

हम सब के चेहरों से जल्दी ही मॉस्क हट जाएं....काश!

मेरी तरफ़ से मेडीकल व्यवस्था से जुड़े हर एक शख़्स के लिए आज नववर्ष की शुभ बेला पर एक ही दुआ है- ईश्वर हम सब के चेहरों से जल्दी ही मॉस्क हटा दे .... शायद नए वर्ष का यह सब से बेशकीमती तोहफ़ा होगा..

आज कल नए वर्ष की शुभकामनाएं भिजवाना बड़ा सस्ता सा काम हो गया है ...हमारे ज़माने में नहीं हुआ करता था ...उन दिनों अगर आप को किसी को नये साल की ग्रीटिंग्ज़ भिजवानी हैं तो आप को दो चार पांच दस रूपये खर्च कर के उसे नए साल का ग्रीटिंग कार्ड भिजवाना पड़ता था....बहरहाल, यह तो एक पर्सनल सा मुद्दा हुआ। मुझे याद है कुछ लोग इस काम के लिए दर्जनों कार्ड थोक-रेट पर खरीद लिया करते थे...लेकिन हम लोगों ने ऐसा कभी भी ऐसा नहीं किया- एक तो इन बेकार चीज़ों के लिए इतने पैसे ही नहीं होते थे और दूसरा, इन सब चोंचलों की निरर्थकता बचपन से ही समझ आने लगी थी। 

मुझे तब भी ये सब कार्ड-वार्ड भिजवाना बड़ा नीरस सा काम लगता था (याद नहीं अभी तक दो-चार कार्ड भी किसी को भिजवाएं हों ...और आज भी सोशल मीडिया पर एक क्लिक से 256 लोगों को बधाई संदेश भिजवाने में मैं तो बड़ा गुरेज करता हूं...ग्रीटिंग कार्ड के ज़माने में भी जब हम किसी को हाथ से लिख कर ख़त भिजवाते थे या दूसरों से ऐसे हस्तलिखित संदेश पाते थे,  उसकी तो बात ही अलग हुआ करती थी..अब सोशल मीडिया के सस्ते दौर में कौन हिसाब रखता फिरे कि किस को शुभकामनाएं भेजी, किस को मिलीं और किस ने वापिस हमें तुरंत लौटाईं भी या नहीं। मुझे इन सब पचड़ों से बेहद चिढ़ है।😁

हम लोगों ने जैसा बचपन से देखा-सुना, आज भी वैसा ही करते हैं...सुबह उठ कर समूची कायनात के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर लेते हैं...और नए साल में भी किसी को भी फोन या मैसेज करने से कहीं बेहतर मुझे यही लगता है कि दुनिया के हर शख़्स, हर परिंदे और हरेक पेड़ के लिए यह वर्ष नई उम्मीद एवं नई उमंग, खुशियां ले कर आए...परिंदे गुलेल से, जानवर कसाई से और हरे-भरे पेड़ पढ़े-लिखे लोगों की कुल्हाड़ी से बचे रहें...मेरी यही अरदास है। और सब को रहने के लिए एक ढंग की जगह मिले, खाना-पीना ठीक से खाएं, स्वस्थ रहें और इतने खुश रहें सभी कि चिंताएं उन के पास फटक न पाएं....

यह सब लिखते लिखते मुझे एक फिल्मी गीत याद आ गया....कहने को तो यह फिल्मी गीत है, लेकिन मैं इसे एक भजन मानता हूं...यह मेरे दिल के बहुत करीब है...क्योंकि ये जिन मुद्दों की बात उठा रहा है वे सब मेरे दिल के बेहद करीब हैं....इसलिए मैं अपने आप को ज़मीन पर टिकाए रखने के लिए अकसर सुनता रहता हूं और जब भी इसे सुनता हूं तो भावुक हो जाता हूं...मुझे पूरी उम्मीद है कि आप ने भी इस के लिरिक्स की एक एक पंक्ति की तरफ़ ध्यान तो दिया ही होगा...गीतकार की अद्भुत रचना। एक बार तो मुझे यह भी ख्याल आया था कि इस अरदास भरे गीत के बोल लिख कर फ्रेम करवा कर अपने आसपास टांग लेने चाहिए.. ताकि ये सब बातें याद रहें कि दुनिया में अभी भी हर किसी को बराबरी, घर, दो जून की रोटी, सामाजिक न्याय मयस्सर नहीं है और इस के लिए निरंतर काम करने की ज़रूरत है जब तक कि लाइन में खड़े आखिरी इंसान तक उस का हिस्सा सम्मान के साथ न पहुंच जाए!

आज नए वर्ष बेला पर मैं भी यही अरदास कर रहा हूं ....

 

 ओह! मैं भी नए वर्ष की पहली सुबह ही कहां से किधर जा  निकला....बात तो सीधी सादी शुभकामनाएं देने की थी ...मेडीकल व्यवस्था से जुड़े हरेक वर्कर के लिए मैं आज यह दुआ करता हूं कि हरेक के चेहरों से मॉस्क हट जाएं...बहुत मुश्किल होता है सारा दिन एन-95 चढ़ा कर अपना काम करना, मरीज़ों से बोलना-बतियाना ....कुछ घंटों के बाद ही हालत खराब होने लगती है ...सर भारी हो जाता है और तबीयत नासाज़ - और पी पी ई किट डाल कर जो लोग पूरा दिन ड्यूटी कर रहे हैं उन को भी अब इस सब से मुक्ति मिले ....जल्दी से कोरोना का नाश हो और हम सब एक बार फिर से खुली फ़िज़ाओं में खुशनुमा हवाओं का लुत्फ़ उठा पाएं...और इस के साथ ही जन साधारण को भी इन नकाबों से मुक्ति मिले ...छोटे छोटे बच्चों को भी मॉस्क लगा कर बाहर निकालने की मजबूरी देखता हूं तो मन दुःखी होता है। एक ज़माना था जब मेडीकल स्टॉफ के अलावा अगर कोई दूसरा इंसान फेसमास्क लगाए दिख जाता था तो हम समझ जाया करते थे कि यह शख़्स किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त है, इस की इम्यूनिटि डॉउन है ... कोई बड़ा लफड़ा है इस के साथ। लेकिन अब तो फेस-मॉस्क सब के लिए सरदर्दी बन चुकी है ...लेकिन जब तक कोरोना का संकट इसे लगाए रखना और ठीक से लगाए रखना हमारी सब की मजबूरी है ...

एक तो मेरे जैसे दो कौड़ी के लेखक जो लगभग सभी हिंदी फिल्में कईं कईं बार देख चुके हैं , उन के गीत आत्मसात कर चुके हैं...उन को लिखते वक्त हर सिचुएशन पर फिल्माए गीत जैसे बीच बीच में आकर कहते हैं कि हमें भी तो इतना पसंद करते हो ..बार बार सुनते हो, हमारे बारे में भी कहो ..ठीक है बाबा, ठीक है .....कहे देता हूं ...तो जनाब यह गीत है हमारे बचपन में आई फिल्म सच्चा झूठा का ....फिल्म मुझे बहुत पसंद थी और यह गीत भी .... यह भी उन सब नकाबों की बात कर रहा है जो हम सब ने ओढ़ रखे हैं....इस गीत में एक जगह यह कहा गया है ..."सब ने अपने चेहरों के आगे झूट के परदे हैं डाले ....!" लीजिए, आप भी सुनिए हमारे बचपन के दौर के मेरे इस बेहद पसंदीदा गीत को ....😀