मंगलवार, 5 मई 2009
पंगा अकल की दाढ़ का - पार्ट 3.
हां, तो अपनी बातें हो रही हैं पंगेबाज अकल की दाढ़ के बारे में। और अब तक हमने जो थोड़ी बहुत बातें की वह इस के बारे में थीं कि 17 से 21-22 वर्ष का युवावर्ग किस तरह से इस अकल दाढ़ की वजह से परेशान रहता है। इस का यह मतलब नहीं कि इस उम्र के आगे इस दाढ़ की समस्या खत्म हो जाती है।
दरअसल हम लोग रोज़ाना बड़ी उम्र के लोगों को भी अकल दाढ़ की वजह से होने वाली विभिन्न परेशानियों के साथ देखते रहते हैं। चलिये, जैसा कि मैंने पीछली दो पोस्टों में कहा कि कुछ लोग बस दर्द-सूजन के ठीक होते ही अकल की दाढ़ को भूल सा जाते हैं।
यह भूलना विभिन्न कारणों से हो सकता है ---ह सकता है कि उन्होंने अपने दंत-चिकित्सक की सलाह अनुसार अकल की दाढ़ के एरिये का एक्स –रे ही न करवाया हो। और अगर करवाया भी हो डाक्टरी सलाह के मुताबिक ऐसी अकल की दाढ़ को निकलवाया ही न हो जिस तरह की अकल दाढ़ की तस्वीर आप यहां नीचे देख रहे हैं।
ठीक है, कुछ साल बीत गये , बस, किसी बंदे को लगता रहा कि चलो, अब ठीक हैं, क्यों बिना वजह इस अकल की दाढ़ को निकलवाने के झंझट में पड़ें ----गाड़ी चल ही रही है , फिर कभी सोचेंगे। अकसर ऐसी अवस्था को इग्नोर करने के पीछे यही मानसिकता ही काम कर रही होती है।
तो, फिर सालों-साल इस तरह की टेढ़ी पड़ी अकल दाढ़ जिस के ऊपर निकलने की बिल्कुल भी संभावना नहीं होती है, मुंह के अंदर छुप कर पड़ी सी रहती है। शायद बंदे को इस की केवल इतनी परेशानी होती होगी की कभी कभी कुछ खाना-वाना फंसने पर उसे वहां से कैसे भी निकालने की ज़हमत निकालनी पड़ सकती होगी। और यह भी हो सकता है कि बंदे को ऐसे जबड़े के अंदर धंसी अकल दाढ़ की वजह से कोई परेशानी ही न होती हो।
लेकिन अगर बंदे को इस से कोई परेशानी नहीं है या थोड़ा बहुत उस अकल दाढ़ एवं उससे अगली दाढ़ के बीच कुछ खाना फंसता है -----बात केवल इतनी ही नहीं है। दरअसल , इस खाने के फंसने से इस अकल की दाढ़ में या इस के अगली दाढ़ में दंत-क्षय लगना शुरू हो जाता है । जिसे हम लोग दांतों की सड़न या कैविटि या आम भाषा में दांत को कीड़ा लगना भी कह देते हैं।
अकसर लोग दंत चिकित्सक के पास नियमित जांच के लिये जाते तो हैं नहीं, इसलिये जब यह कैविटी एक बार बननी शुरू हो जाती है तो फिर इलाज होने तक गहरी ही होती जाती है , आगे ही बढ़ती जाती है। यह सिलसिला तब तक चलता रहता है जब तक कि इस सड़न की वजह से इंफैक्शन किसी दाढ़ की जड़ तक ही न पहुंच जाये।
तब एक दिन मरीज़ को भयानक दर्द के साथ जब सूजन सी आ जाती है और वह डैंटिस्ट के पास जाता है जहां पर उस पर एक्स-रे करने से यह पता चलता है कि इस धंसी हुई अकल दाढ़ की वजह से इस बंदे की तो अगली दाढ़ भी खत्म हो गई । अब अगर मरीज़ अकल दाढ़ के आगे पड़ी ( जो पहले अच्छी खासी थी ) का रूट कनॉल ट्रीटमैंट एवं कैपिंग का महंगा इलाज करवा पाता है तो ठीक है , वरना उस दाढ़ को तो उखड़वाने के अलावा कोई चारा नहीं और साथ में टेढी पड़ी हुई अकल की दाढ़ तो जाती ही जाती है। है कि नही यह सब पंगे का काम।
एक दूसरी स्थिति देखिये , इस नीचे दी गई तस्वीर में आप देख रहे हैं कि ऊपर वाले जबड़े में तो अकल की दाढ़ है लेकिन नीच वाले जबडे ( मैंडीबल) में अकल की दाढ़ है ही नहीं ---शायद तो कभी थी ही नहीं ( ऐसा भी होता है !!) और शायद कुछ साल पहले निकलवा दी गई होगी। अब ऐसी स्थिति में होता क्या है कि ऊपर वाली अकल दाढ़ पर नीचे की दाढ़ का अंकुश न होने की वजह से वह धीरे धीरे नीचे की तरफ़ सरकनी शुरू कर देती है ---ऐसे केस डैंटिस्ट रोज़ाना देखते हैं।
अब इस ऊपर वाली अकल दाढ़ के सरकने की वजह से उस का उस के अगले दांत से संबंध बिगड़ने लगता है । प्रकुति ने दांतो के आपसी संबंध को परफैक्ट तरीके से रखा हुआ है। इस बिगड़े संबंधों की वजह से अब ऊपर वाली अकल दाढ़ एवं उस के अगली स्वस्थ दाढ़ के बीच खाना फँसना शुरू हो जाता है और वही क्रम चल निकलता है जैसे कि मैंने पिछले पैराग्राफों में चर्चा की है। अकसर लोग इस तरह के खाना-वाना फंसने को इतनी गंभीरता से लेते नहीं है जिसकी वजह से एक अच्छी खासी दाढ ( दूसरी दाढ़) इतनी ज़्यादा खराब हो जाती है कि या तो उसे निकलवाना पड़ता है और या फिर रूट कनॉल ट्रीटमैंट और कैप वैप लगवाने वाले महंगे इलाज का विकल्प ही बच जाता है।
अब तो आप को भी थोडा थोड़ा आभास हो चला होगा कि सचमुच यह अकल दाढ़ पंगा भी रियल पंगा है । इस के बाकी पंगों के बारे में आगे बाते करते रहेंगे।
अकल की दाढ़ का पंगा --- पार्ट 2.
अच्छा तो कोई मरीज़ अपने पास अकल की दाढ़ की तकलीफ़ के साथ आया हम ने उसे कुछ दवाईयां दे दीं और वह ठीक हो गया। एक बात मैं कल कहनी भूल गया कि मुंह के जिस तरफ़ की अकल की दाढ़ परेशान किये हुये है उस तरफ़ अगर थोड़ी सिकाई भी की जाये तो अच्छा अनुभव होता है।
ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि जो दवाईयां वगैरा लेने से अकल की दाढ़ की तकलीफ़ में बिल्कुल टैंपरेरी सा आराम आता है। अधिकांश केसों में इस तरह का इलाज कोई पक्का इलाज नहीं होता। और अकसर कईं मरीज़ ऐसे दिखते हैं जो कि एक-दो महीने में बार बार इस तरह की अकल दाढ़ में दर्द, सूजन एवं बुखार आदि से परेशान होते हैं।
इसलिये जब कोई भी मरीज़ पहली बार ही किसी अकल दाढ़ की परेशानी के लिये जाता है, वह उसे दर्द-सूजन के लिये दवाईयां आदि तो लेने को कह देता है ....लेकिन साथ ही साथ वह उस दर्द-सूजन का कारण टटोलने में लग जाता है।
ऐसे ही कुछ कारणों की तरफ़ ज़रा देख लें ! बहुत ही कम केस हमारे पास ऐसे आते हैं जिन में यह अकल की दाढ़ पूरी तरह से आ तो चुकी होती है लेकिन उस के आसपास का मसूड़ा थोड़ा टाइट सा होने की वजह से बंदे को दर्द सी हो रही है। या तो कईं बार ऐसा भी होता है कि दांत मुंह में निकलने की अवस्था में तो है लेकिन उस के ऊपर की चमड़ी पूरी तरह से हटी नहीं है----ऐसा अकसर 17 से 21 या यूं कह लें कि 21 से एक-दो साल ऊपर तक ही होता है।
इस अवस्था में दंत चिकित्सक को उस के अनुभव से ही पता चल जाता है कि यह तो बस मामूली से कुछ दिनों की समस्या है ---- यह दाढ़ के ऊपर वाली चमड़ी अपने आप पीछे हट जायेगी और दांत पूरी तरह से दिखना शुरू हो जायेगा। मरीज़ को इस के लिये दर्द-निवारक टेबलेट तो दे दी जाती हैं ( अकसर कोई भी ऐंटीबॉयोटिक इस के लिये नहीं चाहिये होता ) लेकिन उसे कहा यह भी जाता है जितना इन को अवॉयड़ करेंगे उतना ही अच्छा होगा। बस, बार बार दिन में कईं बार नमक वाले गर्म पानी से कुल्ला करने की बात ज़रूर कही जाती है जिस से जबरदस्त राहत महसूस होती है।
हां, तो फिलहाल अपनी बात चल रही है 17 से 21 वर्ष के लोगों में अकल की दाढ़ के आते समय होने वाली समस्याओं की तरफ़। इन में से बहुत से केस ऐसे भी होते हैं जिन के मुंह के अंदर झांकते ही यह पता चल जाता है कि यहां तो भई रियल पंगा है। कारण ? ----या तो अकल की दाढ़ आधी अधूरी सी टेढ़ी-मेढ़ी निकली सी पड़ी है और या तो निकल रही दाढ़ के लिये जबड़े में जगह ही नहीं है। बहुत से केसों में इस अवस्था का अंदेशा मरीज़ के मुंह में देखते ही हो जाता है।
इस तरह के संभावित पंगे वाले केसों में उस अकल की दाढ़ वाले एरिया का एक डैंटल एक्स-रे करवाया जाता है ---- अकल की दाढ़ फंसी हुई तो जबड़े में हमें दिख ही रही है जो कि हमें अनुमान है कि अब ऊपर न आयेगी लेकिन फिर भी यह एक्स-रे एक तो मरीज़ को कंविंस करने के लिये और दूसरा उस दांत को निकालने की ढंग से प्लॉनिंग करने के लिये चाहिये होता है।
अकसर मरीज़ का दर्द-सूजन ठीक ठाक हो जाता है तो वह दंत-चिकित्सक की यह बात सुनी-अनसुनी कर देते हैं कि फलां फलां अकल की दाढ़ को निकलवाने में ही समझदारी है---वरना बार बार सूजन, बार बार वही दर्द-बुखार का झंझट------ जो तो लेते हैं बात मान, उन का तो हो जाता है कल्याण। लेकिन जो विभिन्न कारणों की वजह से अकल की दाढ़ को निकालने में टालमटोली करते रहते हैं उस के क्या परिणाम निकलते हैं इस के बारे में किसी अगली पोस्ट में विस्तार से बातें करेंगे।
ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि जो दवाईयां वगैरा लेने से अकल की दाढ़ की तकलीफ़ में बिल्कुल टैंपरेरी सा आराम आता है। अधिकांश केसों में इस तरह का इलाज कोई पक्का इलाज नहीं होता। और अकसर कईं मरीज़ ऐसे दिखते हैं जो कि एक-दो महीने में बार बार इस तरह की अकल दाढ़ में दर्द, सूजन एवं बुखार आदि से परेशान होते हैं।
इसलिये जब कोई भी मरीज़ पहली बार ही किसी अकल दाढ़ की परेशानी के लिये जाता है, वह उसे दर्द-सूजन के लिये दवाईयां आदि तो लेने को कह देता है ....लेकिन साथ ही साथ वह उस दर्द-सूजन का कारण टटोलने में लग जाता है।
ऐसे ही कुछ कारणों की तरफ़ ज़रा देख लें ! बहुत ही कम केस हमारे पास ऐसे आते हैं जिन में यह अकल की दाढ़ पूरी तरह से आ तो चुकी होती है लेकिन उस के आसपास का मसूड़ा थोड़ा टाइट सा होने की वजह से बंदे को दर्द सी हो रही है। या तो कईं बार ऐसा भी होता है कि दांत मुंह में निकलने की अवस्था में तो है लेकिन उस के ऊपर की चमड़ी पूरी तरह से हटी नहीं है----ऐसा अकसर 17 से 21 या यूं कह लें कि 21 से एक-दो साल ऊपर तक ही होता है।
इस अवस्था में दंत चिकित्सक को उस के अनुभव से ही पता चल जाता है कि यह तो बस मामूली से कुछ दिनों की समस्या है ---- यह दाढ़ के ऊपर वाली चमड़ी अपने आप पीछे हट जायेगी और दांत पूरी तरह से दिखना शुरू हो जायेगा। मरीज़ को इस के लिये दर्द-निवारक टेबलेट तो दे दी जाती हैं ( अकसर कोई भी ऐंटीबॉयोटिक इस के लिये नहीं चाहिये होता ) लेकिन उसे कहा यह भी जाता है जितना इन को अवॉयड़ करेंगे उतना ही अच्छा होगा। बस, बार बार दिन में कईं बार नमक वाले गर्म पानी से कुल्ला करने की बात ज़रूर कही जाती है जिस से जबरदस्त राहत महसूस होती है।
हां, तो फिलहाल अपनी बात चल रही है 17 से 21 वर्ष के लोगों में अकल की दाढ़ के आते समय होने वाली समस्याओं की तरफ़। इन में से बहुत से केस ऐसे भी होते हैं जिन के मुंह के अंदर झांकते ही यह पता चल जाता है कि यहां तो भई रियल पंगा है। कारण ? ----या तो अकल की दाढ़ आधी अधूरी सी टेढ़ी-मेढ़ी निकली सी पड़ी है और या तो निकल रही दाढ़ के लिये जबड़े में जगह ही नहीं है। बहुत से केसों में इस अवस्था का अंदेशा मरीज़ के मुंह में देखते ही हो जाता है।
इस तरह के संभावित पंगे वाले केसों में उस अकल की दाढ़ वाले एरिया का एक डैंटल एक्स-रे करवाया जाता है ---- अकल की दाढ़ फंसी हुई तो जबड़े में हमें दिख ही रही है जो कि हमें अनुमान है कि अब ऊपर न आयेगी लेकिन फिर भी यह एक्स-रे एक तो मरीज़ को कंविंस करने के लिये और दूसरा उस दांत को निकालने की ढंग से प्लॉनिंग करने के लिये चाहिये होता है।
अकसर मरीज़ का दर्द-सूजन ठीक ठाक हो जाता है तो वह दंत-चिकित्सक की यह बात सुनी-अनसुनी कर देते हैं कि फलां फलां अकल की दाढ़ को निकलवाने में ही समझदारी है---वरना बार बार सूजन, बार बार वही दर्द-बुखार का झंझट------ जो तो लेते हैं बात मान, उन का तो हो जाता है कल्याण। लेकिन जो विभिन्न कारणों की वजह से अकल की दाढ़ को निकालने में टालमटोली करते रहते हैं उस के क्या परिणाम निकलते हैं इस के बारे में किसी अगली पोस्ट में विस्तार से बातें करेंगे।
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