शनिवार, 26 जुलाई 2008

बच्चे पैदा करने की इतनी भी क्या जल्दी है !!

शादी के बाद बच्चे पैदा करने की इतनी भी क्या जल्दी कि इस के लिये कुदरत के नियमों से डायरैक्ट पंगा ही लेलिया और एक ऐसा उपाय इस्तेमाल कर डाला कि शायद मेरी तरह आप ने भी इस जल्दबाजी के लिये इस तरह केइस्तेमाल की बात न सुनी होगी।

यह तो आप जानते ही हैं कि आई.वी.एफ अर्थात् in-vitro fertilization तकनीक आज कल खूब चल निकलीहै...इस तकनीक में शरीर से बाहर ही अंडे एवं शुक्राणु का मेल करवा कर उसे महिला के गर्भाशय में डाक्टर द्वारारख दिया जाता है। जिन दंपतियों में शादी के बाद विभिन्न कारणों की वजह से बच्चा होने में दिक्कत होती है उनमें पूरी जांच के बाद इस तरह की तकनीक इस्तेमाल की जाती है।

लेकिन मुझे तो दोस्तो आज पता चला कि इस तकनीक का इस्तेमाल अमेरिका की एक बेहद सुप्रसिद्ध विवाहितहस्ती ने इसलिये किया कि वह नार्मल तरीके से गर्भधारण की इंतज़ार के झंझट में नहीं पड़ना चाहती थी। इस केबारे में आज के इंगलिश न्यूज़-पेपर में एक ब्रीफ सी खबर छपी है।

उस खबर में बताया गया है कि उस हस्ती ने ऐसा इसलिये किया क्योंकि उस महिला को इस बात की बहुत हीजल्दी है कि जल्दी जल्दी ही उस के बहुत सारे बच्चे हो जाएं। और इस के लिये एक तो उस ने नैचुरल कंसैप्शन कीबजाए आई.व्ही.एफ का रास्ता चुना और यह रास्ता चुनने का दूसरा कारण यह भी है कि इस आई.व्ही.तकनीकद्वारा जुड़वा बच्चे होने का चांस नार्मल गर्भ-धारण की तुलना में 25 गुणा बढ़ जाता है। तो, फिर गुड-न्यूज़ यही हैकि उसे जुड़वा बच्चे पैदा हुये हैं।
वैसे तो हर किसी की अपनी लाइफ़ है, क्या परिस्थितियां हैं, हम लोग कैसे कोई टिप्पणी कर सकते हैं, लेकिन वोब्लागर ही क्या जो बिना-वजह टिप्पणी देने से बाज आ जाए। तो, मुझे तो भई यही लगता है कि यह तो कुदरत केनियमों के साथ बिलकुल डायरैक्ट पंगा है कि अब लोगों की बेताबी इतनी बढ़ गई है कि नार्मल कंसैप्शन का भीइंतज़ार इन्हें गवारा नहीं है।

एक बात और भी है ना ....उस छोटी सी खबर में यह भी बताया गया है कि उस हस्ती ने इस तकनीक के लिये 12 हज़ार डालर खर्च किये हैं.......सोच रहा हूं कि जब कोई बड़ी हस्ती इस तरह की तकनीक का सहारा ( केवलजल्दबाजी के लिये ही !!....... well, that is what is written in that snippet and let’s believe it ! ) लेती हैतो कईं बार दुनिया को इस का गलत मैसेज मिलता है.....कहीं यह भी कोई फैशन-फैड ही ना बन जाए कि कौननार्मल-कंसैप्शन के चक्कर में पड़े, पता नहीं कितने साईकल्ज़ व्यर्थ ही निकल जाएं.......अब अगर लोगों की सोचइस तरफ हो जायेगी कि नहीं, भई , हमें तो तुरंत रिज़ल्ट चाहिये.....तो फिर वही बात हो गई कि फास्ट-फूड ज्वाईंटसे कुछ भी लेकर खाने वाला कैसे चूल्हे-चौके में चक्कर में पड़े।

वैसे सोच रहा हूं कि अगर किसी हस्ती ने इस तरह की तकनीक का सहारा लिया भी है तो उसे मीडिया द्वारा इतनातूल क्यों दिया जाता है..........पता है क्यों ?..... ताकि हम हिंदी ब्लागरों को भी पता चलता रहे कि दुनिया में क्याक्या चल रहा है, दुनिया कितनी आगे निकल चुकी है और किस कदर हम लोग मदर-नेचर से जबरदस्त पंगे लियेजा रहे हैं और फिर उसे ही कोसने लगते हैं।

यह मैंने भी क्या लिख दिया !!

मेरे साथ कईं बार ऐसा होता है कि जब मैं अपनी किसी पुरानी पोस्ट को पढ़ता हूं तो लगता है कि यार, यह मैंने भीक्या लिख दिया। शायद कभी कभी थोड़ी एम्बैरेसमैंट भी होती है और लगता है कि चलो, यार, कौन देख रहा है, डिलीट कर देता हूं। लेकिन मैंने आज तक अपनी किसी भी पोस्ट को इस कारण की वजह से डिलीट नहीं किया कियार, उस दिन पता नहीं क्या मूड था, क्या परिस्थितियां थीं कि ऐसा कुछ लिखा गया।

मैं सोचता हूं कि जिस घड़ी में हम जो लिख रहे हैं...अगर मैं पूरी इमानदारी से लिख रहा हूं तो वह उस समय की मेरीअंतररात्मा की आवाज़ है। और जो भी उस समय मन लिखने को कह रहा है, मैं लिख रहा हूं...तो फिर इस मेंएम्बैरेसमैंट आखिर कहां से गई। खुल कर आने दो अपने विचार दुनिया के सामने.....काले हैं, गोरे हैं, रंग-बिरंगेहैं या मटमैले हैं...विचार तो मेरे ही हैं, तो फिर इस से क्या घबराना।

मुझे लगता है कि अपनी किसी भी पुरानी पोस्ट को इस तरह के छोटे मोटे कारणों की वजह से डिलीट कर के हमलोग अपना ही नुकसान कर रहे हैं.......मैं समझता हूं कि यह सच्चाई से भागने वाली बात है। जो भी है, जो भीलिखा है , हमें उस पर स्टैंड करना चाहिये।

एक विचार और भी रहा है कि अगर हम लोग अपनी किसी पोस्ट को एडिट भी करें तो हमें पोस्ट की बॉडी में हीडेट डाल कर यह बता देना चाहिये कि मैं इस तारीख को इस पोस्ट को इन कारणों से एडिट कर रहा हूं। मैं समझताहूं कि इस से हमारी बात की विश्वसनीयता बढ़ती है। वैसे पोस्ट के नीचे तो ही जाता है जब हम लोग अपनीकिसी पोस्ट का संपादन करते हैं , लेकिन अगर पोस्ट की बॉडी में ही इस तरह की बात हो जाये तो अच्छा रहेगा।

अपनी किसी पुरानी पोस्ट को डिलीट करने की बात से ध्यान रहा है कि जब ब्लाग का नाम ही है.....वेबलॉग.....अर्थात् हम लोग जब अपनी एक डायरी ही लिख रहे हैं तो उस में इतना हो-हल्ला क्यों !!..छूटने दें जो भीकलम रंग छोड़ना चाहती है। रह रह कर वही खुशवंत सिहं जी की बात याद आती रहती है कि ऊपर वाले का शुक्र हैकि किसी ने पेन के लिये कंडोम नहीं बनाया। क्या हम लोग अपनी किसी डायरी से पुराने पन्ने निकाल कर फाड़तेहैं....क्या उन्हें इरेज़ करने की कोशिश करते हैं तो फिर पुरानी किसी भी पोस्ट को डिलीट करने का विचार भी क्योंआता है ?

लेकिन यह मेरी सोच है......आप की सोच अनेकों कारणों की वजह से मेरे से भिन्न हो सकती है। यही तो अपनीडायरी लिखने का मज़ा है, यही तो स्लेट पर घसीटे मारने का मज़ा है, जो चाहो लिखो......जितनी चाहे मस्तीकरो.....और फिर मिटा दो...............नहीं, नहीं, इस नेट वाली स्लेट से कुछ भी मिटाओ....अगर ज़रूरत हो तोपोस्ट को एडिट कर लिया जाये............क्या फर्क पड़ता है।

मुझे याद है जिस दिन मैंने यह ब्लाग मेरी स्लेट शुरू की थी ....उस दिन शायद पहली पोस्ट मैंने यही लिखा था किमेरे मन में जो भी आयेगा , लिखूंगा, उस को फिर पोंछ डालूंगा, फिर कुछ नया लिखूंगा ......लेकिन आज मैं कुछअलग ही सोच रहा हूं। और एक राज़ की बात आप से शेयर करना चाह रहा हूं कि मैं अकसर अपनी पुराने पोस्टेंपढ़ता ही नहीं हूं.......अब कौन हलवाई अपनी मिठाई खाये और वह भी बासी !!

शुक्रवार, 25 जुलाई 2008

विवाह से पूर्व चैक अप वाला विज्ञापन

मैं इस विषय के बारे में बहुत सोचता हूं.....और यह भी सोचता हूं कि हम लोग किसी फुटपाथ से बैंगन खरीदते हुये उसे इतनी गंभीरता से चैक करते हैं.....उस के खराब होने का अंदेशा होते ही अगली रेहड़ी की तरफ़ चल पड़ते हैं। लेकिन जब अपने बेटी-बेटों की शादी की बात आती है और उन के भावी पति अथवा पत्नी की सेहत की बात कभी छिड़ी देखी ही नहीं गई।

लगभग तीन हफ्ते पहले मैंने एक सुप्रसिद्ध लैब का एक विज्ञापन एक अंग्रेज़ी के अखबार में देखा था। ऐसा विज्ञापन मैंने तो पहले बार ही देखा था.....शायद इस से पहले भी आया हो, लेकिन मेरी नज़र न उस पर पड़ी हो। आप भी जानने को उत्सुक हो रहे होंगे कि आखिर क्या था उस विज्ञापन में।

तो सुनिये, उस विज्ञापन में उस कंपनी द्वारा उपलब्ध करवाए जा रहे विभिन्न टैस्टों की जानकारी दी गई थी। उस में अलग अलग आयु वर्ग के लोगों के लिये विभिन्न स्कीमें थीं। एक स्कीम जिसे पहली बार किसी विज्ञापन में देख कर मुझे बेइंतहा खुशी हुई वह थी .......विवाह से पूर्व युवक-युवती की जांच ( Pre-marital health check-up for individuals and couples) ……Detects presence of chronic infectious diseases. Identifies and helps prevent transmission of abnormal Hb related disorders to progeny.

मुझे यह पढ़ कर बहुत ही खुशी हुई क्योंकि मैं इस बात की बहुत हिमायत करता हूं कि शादी से पहले लड़के और लड़की का चैक-अप होना चाहिये। मुझे पता है कि हिंदोस्तानी समाज में यह बात विभिन्न कारणों की वजह से अभी लोगों के गले नहीं उतरेगी। इस के कारण भी तो बहुत से हैं।

इस देश में किसी लड़के-लड़की की शादी की जब बात चल रही होगी तो अगर कोई लड़के या लड़की की चैक-अप की बात छेड़ कर तो देखे, अगले दिन ही बिचोलिये का फोन आ जायेगा कि अभी लड़के वाले सोच रहे हैं.....चैक-अप की तो बात छोड़िये, लोग इन मौकों पर सेहत की बात करना ही महांपाप समझते हैं......मुझे कभी समझ नहीं आई कि ये लोग इतना डरे, सहमे से क्यों होते हैं !!

लेकिन कुछ भी हो लोगों की भई अपनी मजबूरियां हैं....अब अगर किसी लड़की का ब्याह किसी अमेरिका में रह रहे लड़के से तय हो रहा है और वर-पक्ष की कोई मांग भी नहीं है तो भला कौन लड़के के चैक-अप की बात घुसा कर अच्छी भली बनती बात को बिगाड़ने का साहस कर पायेगा। तो, इस तरह की विवाह से पूर्व चैक-अप की बात न छिड़ने का एक कारण जो हमारे सामने आ रहा है वह यही है कि हमारे देश में जो रिश्ते अपनी हैसियत वालों की बजाए अपने से so-called (!!!) ऊंचे या नीचे तबके ( मैं अपनी रियल लाइफ में इस तरह शब्द इस्तेमाल करने का घोर-विरोधी हूं, लेकिन यहां लिखना पड़ रहा है ) ......के साथ होते हैं, इन रिश्तों में लड़के के बापू का बड़ा सा बंगला या लड़की के डैड की फैक्टरी का रोब दूसरे पक्ष के मुंह पर पट्टी बांध देता है। और जितनी ही यह हैसियत की खाई गहरी होगी, यह पट्टी उतनी ही टाईट होती जायेगी।

एक कारण यह भी तो है कि अकसर हिंदोस्तान में रिश्तों में ही रिश्ते हो जाते हैं और लड़की या लड़के का शादी से पूर्व चैक-अप की बात कहने की भला कौन हिम्मत करे.......पता चले कि यह रिश्ता तो हुया नहीं और पहले वाले रिश्तों पर भी इस बात का असर पड़ गया।

कहने का भाव यही है कि हमारे लोगों के लिये दो जमा दो हमेशा चार नहीं हैं.....इन की समस्यायों के बहुत आयाम हैं। ये बेचारे तरह तरह के रिश्तों के बोझ तले, सामाजिक धारणाओं, रूढ़िवादी विचारों तले बुरी तरह से दबे हुये हैं .....इसलिये मैं कभी भी इन्हें किसी भी बात का दोष नहीं देता हूं......इस भोली भाली जनता का क्या दोष है..............और एक बात तो और भी बहुत दुःखद यह है कि इन मां-बाप को ही इस तरह की अवेयरनैस नहीं है तो ये क्या किसी से कुछ कहेंगे ।।

तो, फिर इस बात का समाधान कहां है....समाधान धरा पड़ा है ....इस तरह के विज्ञापनों में जिन्होंने सीधी बात ही पढ़े-लिखे लड़के-लड़की तक ही पहुंचा दी। लैब भी बहुत प्रसिद्ध है......इस लिये इस की रिपोर्ट भी पूरी विश्वसनीय होगी...यह नहीं कि नुक्कड़ पर कल ही खुली किसी लैब से रिपोर्ट ला कर लड़की या लड़के वालों को दी जा रही है जिससे उन का बस मुंह ही बंद हो जायेगा।

तो, मेरे विचार में इस बात में पहले पड़े-लिखे लड़के लड़कियों को ही करनी होगी.....और यह पैकेज भी कितना बढ़िया है कि दोनों इक्ट्ठे ही जा कर अपने टैस्ट करवा सकते हैं। क्या आप को लगता है कि यह बात किसी तरह से भी यह कुंडली –वुंडली के मिलान से कम अहमियत वाली है। नहीं ना.....बल्कि उस से भी शायद कईं गुणा ज़्यादा ज़रूरी है।
चूंकि लड़का-लड़की साथ साथ जा रहे हैं इस लिये किसी को बुरा लगने का सवाल ही नहीं पैदा होता। मुझे ऐसा लगता है कि अभी से अगर ये पढ़े-लिखे लोग इस तरफ पहला कदम उठाना शुरू करेंगे तो धीरे धीरे लोगों की झिझक दूर हो जायेगी।

मेरा यह लिखने का कारण केवल इतना है कि आप सब को भी पता है कि लोग सदियों से इन रिश्तों के समय तरह तरह के झूठ बोलते आये हैं , बीमारियां छुपाते आये हैं.........लेकिन अब तो भई जीने-मरने की बात हो गई है, दोस्तो।

कितनी बार अखबारों में पढ़ चुके हैं कि किसी विवाहित युवक को जब एच-आई-व्ही संक्रमण का पता चला तो सारा दोष उस की बीवी पर मढ़ा गया और उस के चाल-चलन पर शक किया गया। वैसे यह तो एक लंबी डिबेट है....हां, बिलकुल उस जैसी कि मुर्गी पहले आई या अंडा........लेकिन इतनी लंबी-चौड़ी डिबेट में पड़ने की बजाए सीधी तरह से लड़के-लड़की अपने मां-बाप को बीच में डाले बिना ही अपने ही लैवल पर विवाह-पूर्व अपना टैस्ट ही करवा लें तो कितने झंझटों से बचा जा सकता है।

रही बात कि हर मां-बाप का यह सोचना कि मेरे बच्चों का तो मुझे पता है ...मैं उन की गारंटी लेता हूं....उन्हें टैस्ट/वैस्ट करवाने की कोई ज़रूरत नहीं है........इस तरह की सोच में ही गड़बड़ी है, आज कल कौन किस की गारंटी ले सकता है .....इसलिये बेहतर होगा कि हम लोग शादी के वक्त इस तरह की गारंटी देना या स्वीकार करना बंद करें। बच्चों की पूरी लाइफ का मामला तो है ही......लाइफ एंड डैथ का मसला है भई।

अभी अभी लिखते लिखते मुझे लगभग 10-12साल पुरानी बात याद आ रही है....उन दिनों मैं बंबई सर्विस करता था ...एक आफीसर का बेटा था जो स्वयं भी नौकरी कर रहा था। उस 23-24 साल के लड़के को एक्सीडैंट की वजह से काफी चोटें आईं थीं और मैंने उसे आप्रेट करना था.......उस के बहुत से टैस्ट हुये थे जिन में से एक एचआईव्ही टैस्ट भी था जो उस का पॉजिटिव आया था। दो टैस्टों से इस टैस्ट को कंफर्म भी कर लिया गया था। मेरी उस के पिता से बात हो रही थो तो उस ने दो बातें कीं.....जो मुझे आज भी एकदम स्पष्ट याद हैं.....and only such casual remarks by some people have over a period of time and my education cum training at Tata Institute of Social Sciences, Bombay has revolutionized my thinking on such sensitive issues !!………………उस ने कहा कि डाक्टर साहब, आप को बताता हूं कि यह जब नया नया नौकरी लगा तो बाहर रह रहा था तो उस के पड़ोस रहने वाली एक लड़की ने इसे खराब कर दिया। और दूसरी बात उस ने कही कि मैं तो बस अपने शहर जा कर तुरंत इस की शादी कर दूंगा ......क्योंकि यह शादी के बाद बिलकुल ठीक हो जायेगा। इन दो बातों ने मुझे बहुत लंबे अरसे तक हिला कर रखा।

इसलिये आज जब यह विवाह-पूर्व युवक-युवती के चैक-अप वाले विज्ञापन वाली अखबार को ढूंढा तो दो बातें लिखने की तमन्ना जाग उठी।

शुक्रवार, 18 जुलाई 2008

हिंदी लेखकों के लिये कमाई के साधन !!

बहुत दिनों बाद लिख रहा हूं .....लिखता हूं तो मैं अपनी मस्ती से ही लिखता हूं ....किसी बात की भी ज़्यादा परवाह लिखते समय मैं करता नहीं हूं। मैं कभी कभी सोचता हूं कि कुछ भी लिखने के लिये किसी मानदेय की अपेक्षा करना ठीक नहीं है.....लेकिन जब मैं इमानदारी से अपने मन को टटोलता हूं तो यह भी मुझे मेरी कईं अन्य बातों की तरह केवल एक ढकोंसलेबाजी ही ज़्यादा दिखती है। वैसे देखा जाये तो लेखक अपने लेख को क्यों किसी के लिये लिखे बिना पैसे के !!

मैं पिछले कईं सालों में शायद सैंकड़ों लेख लिख डाले....अपना खूब खर्च किया, फैक्स पर , फोन पर , कलर्ड प्रिंटर पर, डाक पर, स्पीड पोस्ट पर .........बहुत ही खर्च किया लेकिन कभी हिसाब नहीं रखा। शायद तब कुछ उम्र का दौर ही कुछ ऐसा था कि लगता था कि बस, यार अखबार में फोटो के साथ लेख छप गया है ना, तो बस ठीक है। लेकिन मुझे कभी भी अखबार वालों की तरफ़ से कुछ नहीं मिला।

मुझे कृपया इस पोस्ट की टिप्पणी में यह मत लिखियेगा कि लेखक का काम तो समाज सेवा ही होता है उसे पैसे वैसे से क्या लेना देना। मैं भी बहुत बार ऐसा ही सोचता हूं .....लेकिन दिल की गहराईयों में मैं बहुत कुछ और भी सोचता हूं .....वह यह कि आखिर लेखक की मेहनत की ही इस देश में कद्र क्यों नहीं है।

मैं तो अच्छी खासी नौकरी करता हूं .....ऊपर वाले की मेहरबानी है ....लेकिन फिर भी मुझे यह इच्छा तो हमेशा रही है कि यार लिखने के एवज़ में कुछ तो मिलना ही चाहिये । इसलिये जब मैं अपने उन लेखक भाईयों की तरफ़ देखता हूं कि जो अखबार में कम तनख्वाह वाली नौकरीयां कर रहे होते हैं या केवल अपने लेखन के भरोसे ही जीते हैं तो मुझे यकीन मानिये बेइंतहा दुख होता है और इसलिये ये जब धड़ाधड़ नौकरियां बदलते हैं तो मुझे लगता है कि क्या करें वे भी .....ठीक कर रहे हैं।

इमानदारी से बताऊं तो मेरा यह व्यक्तिगत विचार है कि चाहे ब्लागिंग ही हो, लेकिन जहां पर कुछ कमाई वाई नहीं दिखती तो दिल ऊब ही जाता है। मुझे तो लगता है कि यह ह्यूमन सायकालोजी है........ब्लागिंग में भी मेरे साथ यही हो रहा है।

बलागिंग में भी क्या है.......बस कमाई विज्ञापनों से ही संभव है और वह भी केवल इतनी कि किसी के ब्राड-बैंड का खर्च निकल जाता है....ऐसा मैंने पढ़ा था किसी ब्लाग पर ही । हां, हां ठीक है ब्लागिंग से मन को संतुष्टि मिलती है ......

यह बात भी बहुत अखरती है कि इंजीनियरिंग करने के तुरंत बाद ये लड़के 35-40 हजार रूपये महीना कमाना शुरू कर देते हैं ......कैंपस प्लेसमेंट हो जाती है और जर्नलिज़म करने के बाद इतने इतने तेजस्वी पत्रकार केवल तीन-चार हज़ार पर ही नौकरी हासिल कर पाते हैं.....लेकिन मैं भी पता नहीं काम की बातें पता नहीं अकसर क्यों भूल जाता हूं........ये पत्रकार-वत्रकार ( मैं भी एक क्वालीफाइड पत्रकार हूं) तो बस समाज सेवा के लिये हैं ......इन्हें क्या ज़रूरत है कि ये अपने जीवन में थोड़ी सुख-सुविधायें भोग लें.......अच्छा है अगर इन्हें घर पर एसी की आदत नहीं पड़ेगी, अच्छा घर खरीद कर भी क्या करेंगे.....इन की जाब में तो इतनी मोबिलिटी है, क्या करेंगे कोई अच्छी कार मेनटेन कर के .....विकास पत्रकारिता पर इस का बुरा प्रभाव पड़ेगा, ..........कितनी बातें और गिनाऊं ??......

बस , ब्लागिंग का यह फायदा तो उठा ही लिया....अपने मन की बात दुनिया के सामने रख कर अपने मन का बोझ हलका कर लिया । लेकिन एक उलाहना तो कुछ लेखकों के साथ रहेगा कि हम लोग दिल खोल कर अपनी ट्रेड सीक्रेट्स अपने दूसरे लेखक बंधुओं के साथ शेयर नहीं करते ।