मंगलवार, 10 नवंबर 2009

सैक्स पॉवर बढ़ाने के नाम पर हो रहा गोरखधंधा

मुझे इतना तो शत-प्रतिशत विश्वास है ही कि भारत में तो यह सैक्स पॉवर बढ़ाने वाले जुगाड़ों का गोरखधंधा पूरे शिखर पर है। यहां पर इस तरह की दवाईयों, टॉनिकों, बादशाही कोर्सों के द्वारा पब्लिक को जितना ज़्यादा से ज़्यादा उल्लू बनाया जा सकता है उस से भी ज़्यादा बनाया जा रहा है ।

लेकिन जब मैं कभी देखता हूं कि अमेरिका जैसे देश में भी यह सब चल रहा है तो मुझे इस बात की चिंता और सताती है कि अगर उस जगह पर जिस जगह पर दवाईयों की टैस्टिंग करना करवाना इतनी आम सी बात है, लोग सजग हैं, पढ़े-लिखें हैं ---अगर वहां पर सैक्स पावर बढ़ाने वाले फूड-सप्लीमैंट्स में वियाग्रा जैसी दवाई मिली पाई जाती हैं और इसके बारे में लेबल पर कुछ नहीं लिखा रहता तो फिर अपने देश में क्या क्या चल रहा होगा, इस का ध्यान आते ही मन कांप जाता है।

अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट दिखी जिस में उन्होंने लोगों को चेतावनी दी है कि सैक्स पॉवर बढ़ाने के लिये "स्टिफ-नाईट्स" नाम के एक फूड-सप्लीमैंट में वियाग्रा जैसी दवाई पाई गई है। अब सब से बड़ी मुसीबत यही है कि लोग इस तरह के प्रोडक्ट्स को बस योन-पावर को बढ़ाने के लिये खाई जाने वाली आम टॉनिक की गोलियां या कैप्सूल समझ कर खा तो लेते हैं लेकिन इन में कुछ अघोषित दवाईयों की मिलावट होने के कारण ये कईं बार मरीज़ों का रक्त-चाप खतरनाक स्तर तक गिरा देती हैं।

जिस तथाकथित सैक्स-एनहांसर की बात हो रही है इस के इंटरनेट द्वारा भी बेचे जानी की बात कही गई है --- और यह छः,बारह और तीस कैप्सूलों की बोतल में भी आती है और बेहद आकर्षक ब्लिस्टर पैकिंग में भी आती हैं।

इतना सब पढ़ने के बाद क्या आप को अभी भी लगता है कि हमारे यहां जो सो-काल्ड सैक्स पावर बढ़ाने के नाम पर सप्लीमैंट्स धड़ल्ले से बिक रहे हैं क्या उन में ऐसी कुछ अऩाप-शनाप मिलावट न होती होगी ? ----पता नहीं, मुझे तो हमेशा से ही लगता है कि यह सब गोरखधंधा है, पब्लिक को लूटने का एक ज़रिया है , उन की भावनाओं से खिलवाड़ है ----और इस देश में हर दूसरा बंदा सैक्स कंसल्टैंट ( कम से कम डींगे हांकने के हिसाब से !!!!) होते हुये भी लोग सैक्स के बारे में खुल कर बात नहीं करते, किसी क्वालीफाईड सैक्स-विशेषज्ञ को मिलते नहीं ----इसलिये जिन्हें इस तरह की दवाईयों से तरह तरह के साईड-इफैक्ट्स हो भी जाते हैं वे भी मुंह से एक शब्द नहीं कहते ------क्योंकि उन्हें लगता है कि बिना वजह उन का मज़ाक उड़ेगा और इसी वजह से इस तरह की जुगाड़ बेचने वाली कंपनियां फलती-फूलती जा रही हैं।

हां, तो मैं पोस्ट लिख कर इस से संबंधित कुछ वीडियो यू-टयूब पर ढूंढने लगा तो मुझे दिख गया कि किस तरह से देश के फुटपाथों पर लोगों की योन-शिक्षा की स्पैशल क्लास ली जा रही है।

मोटापा --सेब जैसा या नाशपती जैसा ?


Photo courtesy : Medlineplus

शायद आपने पहले ना सुना हो कि मोटापे की दो श्रेणीयां होती हैं -- सेब जैसा तथा नाशपती जैसा।

जो मोटापा कमर से ऊपरी हिस्से में होता है उसे Apple-shaped obesity कहते हैं और जो मोटापा कमर से नीचे वाले हिस्से में जमा होता है उसे नाशपती जैसा मोटापा ( pear-shaped obesity) कहा जाता है। यह तस्वीर देखने पर आप को अच्छी तरह से क्लियर हो जायेगा।

सेब के आकार वाला मोटापा नाशपती के आकार वाले मोटापे से ज़्यादा खतरनाक होता है क्योंकि नाशपती आकार मोटापे में जांघों एवं नितंबों पर जमा फैट कोशिकाओं की विशेषतायें सेब-आकार मोटापे में मौजूद फैट-कोशिकाओं से भिन्न होती हैं।

एक और बात का ज़िक्र करना ज़रूरी है कि जो लोग धूम्रपान करते हैं उन में मोटापा अकसर सेब आकार जैसा और दूसरे लोगों में यह नाशपती के आकार जैसा होता है।

मोटापा से होता है मधुमेह का रिस्क 90 गुणा

आज सुबह मैं CNN की साईट पर डायबिटीज़ से संबंधित लेख पढ़ रहा था। कुछ बातें यहां दोहराने योग्य हैं ---हम में से बहुत से लोग पहले ही से इन्हें जानते हैं लेकिन फिर भी पुनरावृत्ति ज़रूरी है।

यह तो हम सब जानते ही हैं कि भारत में मधुमेह की समस्या इतनी विकराल हो गई है और दिन प्रतिदिन यह ऐसी विकट हो रही है कि इंडिया पर सारे विश्व में डायबिटीज़ की राजधानी होने का ठप्पा लगाया जा रहा है।

विकसित देशों में भी यह बहुत बड़ी समस्या है। अमेरिका में ही 240 लाख लोगों को डायबिटीज़ है, और 57 लाख लोगों की अवस्था प्री-डायबिटीज़ वाली है। अब यह प्री-डायबिटीज़ का क्या चक्कर है ? जब हम लोग खाली पेट ब्लड-शुगर का टैस्ट करवाते हैं तो 99mg% तक तो नार्मल है, 100-125 mg% को प्री-डायबिटिक कहा जाता है जिन में अभी बीमारी तो नहीं है लेकिन उन्हें अपनी जीवनशैली एवं खानपान में पूरी एहतियात की ज़रूरत है और जिन लोगों में फास्टिंग ब्लड-शुगर की मात्रा 126 एवं उस से ऊपर आती है उन को डायबिटिक लेबल किया जाता है।

दो बातें टाइप वन एंड टू डायबिटीज़ के बारे में करते हैं --- अधिकांश टाइप 1 डायबिटीज़ के केसों का अठराह वर्ष ( under 18) से कम उम्र में पता चल जाता है। इसे टाइप 1 इसलिये कहा जाता है क्योंकि यह एक ऑटोइम्यून डिसीज़ है जिस में पैनक्रिया ग्रंथी में मौजूद सैल( कोशिकायें) जो इंसुलिन बनाते हैं नष्ट हो जाते हैं जिस की वजह से इंसुलिन नहीं बन पाती और मधुमेह की बीमारी हो जाती है।

Type I Diabetes cases are mostly detected in under 18 years of age though it can strike at any age. It is an autoimmune disease in which the insulin-producing cells of the pancrease get destroryed which lead to diabetes.

और जहां तक टाइप 2 डायबिटीज़ का सवाल है यह पहले तो बड़ी उ्म्र के लोगों को ही अपना शिकार बनाया करती थी लेकिन अब मोटापा इतना आम सी बात होने के कारण यह बीमारी छोटी उम्र में भी ---यहां तक कि बच्चों को भी ----धर-दबोचने लगी है। टाइप2 डायबिटीज़ में यह होता है कि मरीज के शरीर में इंसुलिन के प्रति इन-सैंसिटिविटी उत्पन्न हो जाती है जिस की वजह से शरीर में ग्लुकोज़ की मात्रा बढ़ी रहती है।

अकसर लोगों में यह धारणा है कि जिस किसी भी परिवार में मधुमेह है बस फिर तो यह अगली पीड़ियों में भी आगे ही चलता है। लेकिन ऐसा नहीं है ---- CNN जैसी विश्वसनीय साइट पर यह जानकारी उपलब्ध है कि रिस्क तो बढ़ता है लेकिन यह धारणा ठीक नहीं है। जिस परिवार में टाइप 1 डायबिटीज़ है, उस में आगे बच्चों को यह बीमारी होने का रिस्क पांच प्रतिशत ज़्यादा होता है और टाइप 2 डायबिटीज़ में यह रिस्क तीस प्रतिशत होता है. इसलिये अगर परिवार में डायबिटीज़ का कोई मरीज़ है तो खाने पीने में एवं शारीरिक परिश्रम करने में तो और भी नियमितता की ज़रूरत है ताकि इस 30% को बस एक आंकड़ा ही बने रहने दिया जाए।

ऐसा भी नहीं कि स्लिम-ट्रिम लोग डायबिटीज़ के शिकार नहीं होते, दुनिया भर के बीस प्रतिशत डायबिटीज़ के रोगी दुबले पतले ही हैं।

हमारे पेट का मोटापा ( abdominal obesity) डायबिटीज़ के लिये सब से खतरनाक है-- क्योंकि इस मोटापे में हमारे शरीर के अंदरूनी अंगों के आसपास जो फैट जमा हो जाता है बस वही हमें ले डूबता है ----लेकिन हमारे देश में तो अकसर जब तक पेट बाहर निकल कर लटकने न जाये तब तक तो उसे खाता-पीता मानते ही नहीं हैं। मोटापा होने से डायबिटीज़ होने का रिस्क 90 गुणा बढ़ जाता है।

पंजाब की तो मैं गारंटी लेता हूं कि वहां पर तो लोगों की सेहत की यही परिभाषा है कि बंदा अच्छा तगड़ा होना चाहिये। शादी से पहले दुबले पतले लोगों को यह कह कह कर सांत्वना दी जाती है कि कोई गल नहीं, विवाह के बाद सब ठीक हो जायेगा। और अकसर होता भी यही है ----सुबह से परांठे, पूरी-छोले, दाल-मक्खनी, मलाई दार लस्सी, ज़्यादा मीठे वाली चाय--मलाई मार के, चिकन-शिकन, बटन चिकन, मच्छी फ्राई,....अब क्या क्या लिखूं ----बस समझिये हर तरफ़ दूध( पता नहीं असली या सिंथैटिक), देसी घी, फ्राई चीज़ों की भरमार और सारा दिन सब जगह इन्हीं के खाने पीने की बातें -------और मेहनत का काम न के बराबर ---ऐसे में भला कैसे फूल के कुप्पा हुये बिना रह सकता है ----लेकिन परिवार वाले , सगे -संबंधी गबरू की सेहत देख देख कर फूले नहीं समाते कि हुन बनी गल----एह होई न गल -----ऐन्नू कहंदे ने सेहत ---- लेकिन यह वाली सेहत साथ में ढ़ेरों बीमारियां भी तो ले आती है।

वैसे दूसरे की बातें क्या करें ----पहले हम लोग अपनी तरफ़ ही क्यों न देखें ----तो फिर आज ही से कम से कम फीकी चाय पीनी शुरू करें , मैं तो कर रहा हूं , आपने क्या सोचा है ?