हमारे अस्पताल का कर्मचारी मनसा राम अपने अच्छे व्यवहार के लिए जाना जाता है..अस्पताल एक ऐसी जगह होती है जहां केवल अच्छे डाक्टर ही अस्पताल नहीं चला सकते...सारे स्टॉफ के मेलजोल से अस्पताल चला करते हैं।
मुझे लखनऊ आए दो साल से कुछ ज्यादा अरसा हुआ है...मुझे याद है जिस दिन मैं और मेरी मिसिज़ ड्यूटी ज्वाइन करने यहां आए तो मुझे लगा कि शायद यही एक बंदा है जिसे हमारे यहां आने की खुशी हुई थी...इस बंदे ने हंसते-मुस्कुराते बातचीत की...और फिर मैंने नोटिस किया पिछले दो-अढ़ाई साल में कि इस बंदे का व्यवहार हर एक के साथ बहुत ही अच्छा है। अपने साथियों एवं अन्य कर्मचारियों के साथ ही नहीं, मरीज़ों के साथ भी यह बड़ी विनम्रता से पेश आता है।
अभी कुछ दिनों से दिख नहीं रहा था..अकसर आते जाते दिन में एक बार तो मनसा राम दिख ही जाता है...पता चला कि मनसा राम छुट्टी पर है दो हफ्ते के लिए।
आज मनसा राम आया तो पता चला कि वह अपने गांव गया हुआ था जो चमोली जिले में पड़ता है....मैंने जैसे ही कुशल-क्षेम पूछा तो बड़े उत्साह से कहने लगा कि पहाड़ पर अपने गांव गया था...और बच्चों जैसे उत्साह के साथ उसने वहां अपने गांव में खींची फोटो अपने मोबाइल से दिखानी शुरू कर दी।
मैंने कुछ फोटो अपने मोबाइल से खींच लीं....आप तक पहुंचाने के लिए...
मनसा राम आज बहुत खुश लग रहा था...वैसे तो वह हमेशा खुश ही रहता है ...लेकिन आज अपने गांव, अपनों के साथ रह कर आने की खुशी उस के चेहरे पर झलक रही थी।
डाक्टर साहब, हम लोग वहां तो परसों तक कंबल ओड़ते थे और यहां पर ४५ डिग्री पारा है, मनसा राम ने कहा...सुबह ११ बजे तक तो वहां पर हम लोग धूप सेंकने के लिए बाहर बैठे रहते थे।
गांव को याद करते उस का चेहरा खिल उठा था...मुझे यही लग रहा था उस से बातचीत करते हुए कि अपनी जड़ों से जुड़े रहने का भी क्या जादू है.....आदमी चमक उठता है, बच्चा बन जाता है......मां को याद कर रहा था, अपनी मां के बारे में तो मनसा राम पहले भी बता चुका है, ९० साल की हैं, सेहतमंद हैं.....हमारी यही दुआ है कि वे शतायु से भी आगे तक जीएं...आप को इन की मां जी की तस्वीर यहां दिखा रहा हूं...
हां, जब वह अपने मोबाइल पर अपने घर की फोटो दिखा रहा था तो मुझे भी वह लकड़ी का घर देख कर बहुत अच्छा लगा... मैंने कहा कि मुकद्दर वाले हो, इतनी अच्छी जगह में रहते हो...बता रहा था कि इस बार वहां पर टीन की चादरें खरीदने के चक्कर में, उन्हें अपने गांव तक लाने में ...और थोड़ा खेती-बाड़ी को देखते देखते समय का पता ही नहीं चला...हल से जुताई करते की फोटो भी मनसा राम ने दिखाई।
मनसा राम अपने परिवार के साथ अपने गांव गया हुआ था...गांव के अड़ोस-पड़ोस के चाचा, मौसी की तस्वीरें, अपनी दादी के साथ मनसा राम की बेटी को खेलते देख कर अच्छा लगा...सब लोग कितने खुश लग रहे थे........उन को खुश देख कर मैं भी खुश हो गया।
यह मैं पता है क्यों लिख रहा हूं.....क्योंिक मैंने मनसा से वायदा किया है कि मैं इन तस्वीरों को अपने लेख में इस्तेमाल करूंगा...
तस्वीरें देख कर, मनसा राम से बात कर के हमेशा यही लगता है कि पापी पेट के लिए लोग कहां से कहां अपनी जड़ों से कितनी दूर आ बसते हैं.....दाने पानी का सब चक्कर है। हां, दूर की बात हुई तो यह बताना तो भूल ही गया कि यह जगह चमोली कितनी दूर है....लखनऊ से ये लोग हरिद्वार जाते हैं...ट्रेन से ...आठ दस घंटे तो लगते ही होंगे....फिर हरिद्वार से ये लोग बस पकड़ते हैं....जो आठ घंटे लेती है इन के गांव के बाहर इन्हें छोड़ने में .......जहां पर इन्हें बस छोड़ती है, यह उस जगह की तस्वीर है....यहां से ये लोग तीन किलोमीटर पैदल चढ़ाई चढ़ते हैं....दो घंटे लगते हैं तब जाकर अपने गांव तक पहुंचते हैं....मुझे लगा कि तीन किलोमीटर चढ़ाई और दो घंटे ....तो मनसा ने साफ कर दिया कि चढ़ाई बिल्कुल सीधी है और अब हम लोगों को इतनी आदत भी नहीं रही...
मनसा ने अपने गांव से दिखने वाले दूसरे गांवों की तस्वीरें भी दिखाईं....पास ही के एक जंगल में आग लगी हुई थी, उस की भी फोटो देखी... मनसा राम अपने गांव की और पहाड़ों पर की जाने वाली खेती की खासियत बता रहा था कि किस तरह से सीढ़ीनुमा खेतों में खेती की जाती है......
उस की बातों में उस का उत्साह, हर्ष, उमंग, और बच्चों जैसी खुशी झलक रही थी....जो एक तरह से संक्रमक भी थी....पास ही खड़ा मेरा सहायक सुरेश भी ये तस्वीरें देख कर खुश हो रहा था। अपनी जड़ों से जुड़े रहने का फख्र भी था मनसा की बातों मे।
बात इसी बात पर इस पोस्ट को संपन्न कर रहा हूं कि हम लोग अपने देश को ही कितना कम जानते हैं.....किसी साथी के मोबाइल कैमरे में बंद उस के घर-गांव की चंद तस्वीरें देख कर ही अगर हम लोग इतने खुश हो जाते हैं ...अगर हम लोग कभी इन नैसर्गिक स्थलों पर जाकर इन जगहों का हाल चाल जानने की ज़हमत उठाएं तो कैसा लगेगा! लेकिन शहर में जब हमारे पास अपने पड़ोसी का हाल जानने की फुर्सत नहीं है, तो इस तरह की यात्राओं की तो बात ही क्या करें।
जाते जाते एक बात......मैं जब भी मनसा राम को कहता हूं तो रिटायर होने के बाद गांव लौट जाना ....तो मुझे कभी मनसा राम की आवाज़ में वह दम नहीं लगा कि हां, वह वापिस वहीं लौट जाएगा.....मुझे लगता है वह वापिस लौट कर वहां नहीं जाएगा..यहीं लखनऊ में घर ले लिया है ....होती हैं , सब की पारिवारिक मजबूरियां ....वैसे यह उस का पर्सनल मामला है....हम क्यों इस में घुसने की कोशिश कर रहे हैं!
जाते जाते इतना ही कहूंगा कि मनसा राम जैसे कर्मचारी किसी भी संस्था के लिए एक asset होते हैं...God bless him and his family!
मुझे लखनऊ आए दो साल से कुछ ज्यादा अरसा हुआ है...मुझे याद है जिस दिन मैं और मेरी मिसिज़ ड्यूटी ज्वाइन करने यहां आए तो मुझे लगा कि शायद यही एक बंदा है जिसे हमारे यहां आने की खुशी हुई थी...इस बंदे ने हंसते-मुस्कुराते बातचीत की...और फिर मैंने नोटिस किया पिछले दो-अढ़ाई साल में कि इस बंदे का व्यवहार हर एक के साथ बहुत ही अच्छा है। अपने साथियों एवं अन्य कर्मचारियों के साथ ही नहीं, मरीज़ों के साथ भी यह बड़ी विनम्रता से पेश आता है।
अभी कुछ दिनों से दिख नहीं रहा था..अकसर आते जाते दिन में एक बार तो मनसा राम दिख ही जाता है...पता चला कि मनसा राम छुट्टी पर है दो हफ्ते के लिए।
आज मनसा राम आया तो पता चला कि वह अपने गांव गया हुआ था जो चमोली जिले में पड़ता है....मैंने जैसे ही कुशल-क्षेम पूछा तो बड़े उत्साह से कहने लगा कि पहाड़ पर अपने गांव गया था...और बच्चों जैसे उत्साह के साथ उसने वहां अपने गांव में खींची फोटो अपने मोबाइल से दिखानी शुरू कर दी।
मैंने कुछ फोटो अपने मोबाइल से खींच लीं....आप तक पहुंचाने के लिए...
मनसा राम आज बहुत खुश लग रहा था...वैसे तो वह हमेशा खुश ही रहता है ...लेकिन आज अपने गांव, अपनों के साथ रह कर आने की खुशी उस के चेहरे पर झलक रही थी।
डाक्टर साहब, हम लोग वहां तो परसों तक कंबल ओड़ते थे और यहां पर ४५ डिग्री पारा है, मनसा राम ने कहा...सुबह ११ बजे तक तो वहां पर हम लोग धूप सेंकने के लिए बाहर बैठे रहते थे।
मनसा राम की ९० वर्षीय माता जी |
हां, जब वह अपने मोबाइल पर अपने घर की फोटो दिखा रहा था तो मुझे भी वह लकड़ी का घर देख कर बहुत अच्छा लगा... मैंने कहा कि मुकद्दर वाले हो, इतनी अच्छी जगह में रहते हो...बता रहा था कि इस बार वहां पर टीन की चादरें खरीदने के चक्कर में, उन्हें अपने गांव तक लाने में ...और थोड़ा खेती-बाड़ी को देखते देखते समय का पता ही नहीं चला...हल से जुताई करते की फोटो भी मनसा राम ने दिखाई।
मनसा राम खेतों में हल चलाते हुए.. |
मनसा राम का पैतृक घर |
यह मैं पता है क्यों लिख रहा हूं.....क्योंिक मैंने मनसा से वायदा किया है कि मैं इन तस्वीरों को अपने लेख में इस्तेमाल करूंगा...
इस जगह पर ये लोग बस से उतरते हैं और फिर ३ किलोमीटर पहाड़ की चढ़ाई करते हैं. |
वहां के गांव की खेती का एक भव्य नज़ारा |
उस की बातों में उस का उत्साह, हर्ष, उमंग, और बच्चों जैसी खुशी झलक रही थी....जो एक तरह से संक्रमक भी थी....पास ही खड़ा मेरा सहायक सुरेश भी ये तस्वीरें देख कर खुश हो रहा था। अपनी जड़ों से जुड़े रहने का फख्र भी था मनसा की बातों मे।
बात इसी बात पर इस पोस्ट को संपन्न कर रहा हूं कि हम लोग अपने देश को ही कितना कम जानते हैं.....किसी साथी के मोबाइल कैमरे में बंद उस के घर-गांव की चंद तस्वीरें देख कर ही अगर हम लोग इतने खुश हो जाते हैं ...अगर हम लोग कभी इन नैसर्गिक स्थलों पर जाकर इन जगहों का हाल चाल जानने की ज़हमत उठाएं तो कैसा लगेगा! लेकिन शहर में जब हमारे पास अपने पड़ोसी का हाल जानने की फुर्सत नहीं है, तो इस तरह की यात्राओं की तो बात ही क्या करें।
जाते जाते एक बात......मैं जब भी मनसा राम को कहता हूं तो रिटायर होने के बाद गांव लौट जाना ....तो मुझे कभी मनसा राम की आवाज़ में वह दम नहीं लगा कि हां, वह वापिस वहीं लौट जाएगा.....मुझे लगता है वह वापिस लौट कर वहां नहीं जाएगा..यहीं लखनऊ में घर ले लिया है ....होती हैं , सब की पारिवारिक मजबूरियां ....वैसे यह उस का पर्सनल मामला है....हम क्यों इस में घुसने की कोशिश कर रहे हैं!
जाते जाते इतना ही कहूंगा कि मनसा राम जैसे कर्मचारी किसी भी संस्था के लिए एक asset होते हैं...God bless him and his family!