मंगलवार, 3 मार्च 2015

चंद तस्वीरें जो आप को दिखानी हैं...

दोस्तो, मैं अकसर यहां वहां आते जाते रास्ते में तस्वीरें खींचता रहता हूं...पिछले कुछ दिनों में भी मैंने कुछ तस्वीरें खींचीं...सभी लखनऊ की ही हैं...मैं अभी डिलीट करने लगा तो सोचा, इतनी भी क्या जल्दी है, अब खेंच ही रखी हैं तो आप सब से दो दो लाइन लिख कर शेयर भी कर लेता हूं...


अपनी कॉलोनी के एक घर के बाहर इस तरह का पुराने ज़माने का लेटर-बॉक्स देख कर हैरानगी हुई...वैसे तो आजकल इस तरह के ये बॉक्स कहां बनते हैं...शायद इन लोगों ने कह कर बनवाया होगा।

यह हमारी कॉलोनी के मेनगेट की शोभा बढ़ाता है...
कुछ हाउसिंग सोसाइटीयों को बेल-बूटों की संभाल करने का हुनर होता है..यह एक नमूना है...आप ने शायद किसी गांव में ही पेड़ों की इस तरह की अच्छी हिफ़ाज़त होती देखी होगी...कितना सुंदर लगता है मिट्टी का प्लेटफार्म...और ये लोग इसे अकसर गमलों वाले रंग से सजाते रहते हैं....अच्छा लगता है। अकसर जिन जगहों पर इन पेड़ों के इर्दगिर्द सीमेंट का प्लेटफार्म बना दिया जाता है...ऐसे नहीं लगता जैसे पेड़ों का गला ही दबा दिया हो!...मुझे यह मिट्टी वाला आइडिया बहुत बढ़िया लगता है।




यह जो आप ऊपर तीन तस्वीरें देख रहें हैं , ये कल की हैं। मैंने कल पहली बार ऐसा देखा था कि इस तरह के बेड में एक बड़ा ट्रंक ही फिट करवा दिया। वैसे तो इस तरह की जुगाड़बाजी के अपने फायदे भी हैं और नुकसान भी हैं..लेकिन जो भी हो, ज़रूरत आविष्कार की जननी है। मैंने इस भद्रपुरूष को जाते जाते पूछा कि ये कहां पर बनते हैं तो उसने बताया कि कह नहीं सकता...मैं तो मोहनलालगंज से लेकर आ रहा हूं....यह लखनऊ से लगभग १५ किलोमीटर की दूरी पर है।




इस कॉलोनी में रहते दो बरस हो गये हैं....और माली अकसर नीचे काम करते दिख जाता था..इन तीनों में से सब से पहली तस्वीर जो आप देख रहे हैं, वह उस दिन की है जब मैंने एक जैसे दो बंदे देखे। मैं इन के पास गया और मैंने हैरानगी प्रकट की कि यार, आप दोनों अलग अलग हो, मुझे तो यह कभी पता ही नहीं चला....वे बताने लगे कि हम दोनों जुड़वा हैं ..दस मिनट का अंतर है....मैंने कहा..तस्वीर ले लूं ...तो वे झट से पोज़ देने के लिए खड़े हो गये।


रास्ते में जाते हुए यह पत्ते अच्छा लगा था कुछ दिन पहले.... यह इस तरह से मेरे कैमरे में आ गया।

आज शाम एक बाज़ार की नुक्कड़ पर ये सब तैयारियां होते देख ध्यान आया कि होलिका दहन की तैयारियां ज़ोरों पर हैं...तो मैंने इस मंज़र को कैमरे में कैद कर लिया.....पता नहीं यह भाई जी क्यों इतने गुस्से में लग रहे हैं, यह मेरा प्रश्न नहीं है, मेरे बेटे ने मेरे से पूछा!


तीन दिन पहले पीडब्ल्यूडी अफसरों की कॉलोनी के बाहर इस तरह का विज्ञापन पहली बार देखा.... मुझे नहीं पता था कि गाड़ी को धुलवाना भी इतना महंगा सौदा है......और ऊपर से आपने देख ही लिया...बिजली..पानी आपका...हा हा हा हा ...


आज कल हर तरफ़ लोगों को सेहतमद बनाने पर जोर है.....आए दिन  फिटनेस वर्कशाप लगती रहती हैं।


हमारे अस्पताल से मरीज़ों को माउथवाश भी मिलता है...दो दिन पहले एक पढ़ी लिखी लेडी बोतल लेकर मेरे को दिखाने आ गई कि क्या यह भी औरतों मर्दों के लिए अलग अलग होता है। मैंने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है, यह कंपनी ने बिना कारण टिका दिया होगा, आप भी इसे बिना झिझक इस्तेमाल कर सकती हैं।


हमारे घर के पास ही किसी मकान के बाहर सड़क के किनारे उन्होंने यह शो-पीस रखा हुआ है...अच्छा लगता है ...रात के समय इस पर लाइट पड़ती है, इस का भी इंतजाम है.....अपने अपने शौंक की बात है!!

बस, आज के लिए इतना ही......लेिकन जाते जाते ध्यान आ गया कि पिछले बरस इन्हीं दिनों जब पड़ोस में होलिका दहन हो रहा था तो एक भोजपुरी गाने की खूब धूम मची हुई थी....मैंने अपने सहायक से आज पूछा कि वह कौन सा गीत है ....राजा जी...राजा जी.....उसने मुझे उस गीत का पूरा पता बता दिया....आप भी सुनिए...यह यहां का सुपर-डुपर गीत है....जैसे पंजाब का दिलेर मेंहदी का गीत है ना ...........गड्डे ते न चड़दी... गडीरे ते न चड़दी.....

सुबह अखबार न देखना भी सेहतमंद रहने का एक जुगाड़

कल रात से ही मेरा थोड़ा थोड़ा सिर दुःख रहा था..होता है जब कभी खा-पीकर बस लेटा ही रहता हूं तो यह होता ही है...वैसे भी पिछले दो दिन से मौसम बरसात और ठंडी हवाओं का था और ऊनी कपड़े पहने नहीं थे, इसलिए भी थोड़ा सिर भारी सा ही था।

मैं सुबह उठा तो ...ऐसे ही लेटा हुआ था तो मुझे बॉलकनी में अखबार के आने आवाज़ सुनाई दी।

लेकिन मैं हर रोज़ की तरह आज अखबार उठाने को लपका नहीं....इच्छा ही नहीं हुई....कहीं न कहीं मन में ऐसा ध्यान था कि यह जो सिर थोड़ा थोड़ा सा भारी हो रहा है, अगर अखबार के पन्ने उलटने-पलटने के चक्कर में पड़ गया तो यह फिर से फटने लगेगा। यही सोच कर चुपचाप बैठा रहा।

दोस्तों, आज से बीस वर्ष पहले मैंने बंबई में रहते हुए सिद्ध समाधि योग के कुछ प्रोग्राम किए थे...बहुत अच्छे लगे थे....अच्छे से सिखाया था...ये प्रोग्राम गुरू जी रिशी प्रभाकर जी द्वारा शुरू किए गये थे....हां, तो दोस्तो वहां पर हमें इस बात के लिए विशेष प्रेरणा दी जाती थी कि अखबार मत देखा करो...सुबह सुबह अखबार देखते ही सारी निगेटिविटी हम लोग अपने मन में ठूंस लेते हैं।

जैसा कि अकसर होता है कि हम लोग सुन सब की लेते हैं और करते मन की हैं, मैंने भी कुछ दिन --बिल्कुल थोड़े ही दिन--- गुरू जी की यह बात मानी और बाद में वहीं सुबह एक दो घंटे अखबारों के साथ बिताने शुरू कर दिए।

सोचने वाली बात तो है कि आज की अखबार में ऐसा है क्या कि हम लोग सुबह सुबह उन के लिए इतने तड़फने लगते हैं।

यू.पी कि कानून व्यवस्था से तो सब वाकिफ ही हैं, लखनऊ के अलावा यू.पी के किसी शहर में नहीं रहा, और यहां इतना क्राइम है कि सुबह सवेरे अखबार देखने पर ही सिर भारी होने लगता है...कईं बार तो रोने की इच्छा ही नहीं, रो ही पड़ते हैं। हमारे साथी अकसर कहते हैं कि आप लोग यूपी के अन्य शहरों में नहीं रहे हैं न, इसलिए आप को पता नहीं है कि यूपी के अन्य शहरों में क्या चल रहा है। वे कहते हैं कि हमें तो लखनऊ में इतना सुरक्षित महसूस होता है।

हम अकसर सोचते हैं कि क्या सुरक्षा की परिभाषा यही है ..हर रोज नित नये हथकंडे अपना कर मार-काट, देसी कट्टों को खुला इस्तेमाल, एटीएम की लूट, गार्डों की हत्या.....बलात्कार की ऐसी ऐसी वहशी घटनाएं....वैसे तो आप को लगता होगा कि यह अब देश के लगभग हर शहरों में होने लगा है, फिर भी यहां तो जुर्म बहुत ज़्यादा है, ऐसा लगता है कि लोगों में कानून का भय नहीं है।

हां तो दोस्तो इस तरह की खबरें रोज़ रोज़ सुबह सवेरे पढ़ने से क्या हमारा दिन अच्छा बीत सकता है...नहीं ना, तो फिर सुबह का समय हमें अपने लिए ...अपने चैन-सुकून के लिए रखना चाहिए। कितना अच्छा हो अगर सुबह हम लोग टहल लिया करें, और अपनी अपनी आस्था अनुसार ईश्वर से प्रार्थना-याचना-अरदास कर लिया करें...अखबार पढ़ने से कहीं अच्छा है कि हम चाहें तो रेडियो ही सुन लिया करें....रेडियो में भी मुझे लगता है कि सुबह सुबह तो अपना आकाशवाणी विविध भारती ही सुनना ठीक है, प्राईवेट एफएम चैनल भी सुबह सुबह जो कुछ अकसर परोसने लगते हैं वह सुकून देने वाला नहीं होता।

दोस्तो, मैं बीस सालों में अपने मन को इतना ही तैयार कर पाया कि सुबह सवेरे अखबार देखना सेहत के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है, लेकिन मैं इसे दोपहर या शाम को देखना तो अभी बंद नहीं कर पाऊंगा....शायद यह अकल भी कुछ बरसों बाद आ जाए...लेकिन अभी तो नहीं!

दोस्तो, ठीक है अखबार में कुछ प्रेरणात्मक प्रसंग भी आते हैं...कुछ विकास से संबंधित मुद्दे भी छपते हैं ...लेकिन वे सब उस में ही रहेंगे ...दोपहर-शाम तक इंतज़ार कर सकते हैं ....किसी को भी एक विचार आ सकता है कि सुबह सवेरे हम लोग वही प्रेरणात्मक बातें ही पढ़ लें तो ...लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि यह संभव हो नहीं पाएगा, जिस तरह से निगेटिव खबरों की सुर्खियां सारी अखबार में बिछी पड़ी रहती हैं, ऐसे में बिना इन तरह की खबरों के कांटों में उलझे उन अच्छे लेखों पर पहुंचना खासा दुर्गम काम है। ऐसा मुझे लगता है, हो सकता है यह मेरी व्यक्तिगत समस्या हो।

तो दोस्तो, मैंने तो आज से अपने आप से ही यह प्रण किया है कि सुबह सवेरे अपने मन में कचरा और निगेटिविटि ठूंसनी बंद कर देनी है। कुछ कुछ खबरें, तस्वीरें बहुत ज़्यादा विचलित कर देती हैं.....दोस्तो, हम सब लोगों का मन ही ऐसा है कि अगर सुबह छः बजे मोबाईल की घंटी बजती है तो सब से पहला ध्यान यही जाता है कि सब ठीक तो है ना, कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हो गई!!....फोन चाहे कोई आम हो हो, लेकिन हम लोग दस-पंद्रह मिनट के लिए सामान्य नहीं हो पाते, होता है ना ऐसे ही?...ऐसे में क्यों सुबह सुबह अखबारों में छपी सारी वारदातें मन में बसा ली जाएं!!.... आखिर ऐसी भी क्या मजबूरी है!!

लेकिन दोस्तो काम की बात तो आप से शेयर नहीं की.... मैंने बताया ना कि सुबह सिर भारी था, अजीब सा लग रहा था, जानबूझ कर मैंने अखबार देखना तो दूर, बॉलकनी से उठाई तक नहीं......और हम लोग सुबह एक घंटे के लिए सत्संग करने के लिए चले गये.........वहां पहुंचते ही ऐसा खुशनुमा माहौल मिला कि पता ही नहीं सिर का भारीपन कहां गया, नहीं तो सारा दिन यह भारीपन पीछे पड़ा रहता, एक नया उत्साह...नईं स्फूर्ति का संचार हो गया।

बस दोस्तो यह आशीर्वाद दीजिए कि सुबह सुबह अखबार को छूने वाली अपनी बात पर टिका रह सकूं।

देखिए, मुझे यहां टिकाने के लिए पोस्ट के कंटेंट से मेल खाता एक सुदंर गीत भी मिल गया....सांचा तेरा नाम, तेरा नाम...तू ही बनाए बिगड़े काम....