बुधवार, 10 मार्च 2010

कद बढ़ाने वाला सिरिप

जिस तरह आजकल लोग बड़े बड़े डिपार्टमैंटल स्टोरों में जा कर सैंकड़ों तरह की अनाप-शनाप कंज्यूमर गुड्स को देख देख कर परेशान हो हो कर कुछ न कुछ खरीदने में लगे रहते हैं, कैमिस्टों की दुकानों के काउंटरों पर जिस तरह से तरह तरह के टॉनिक और ताकत के कैप्सूल बिखरे रहते हैं और दुकान के ठीक बाहर जिस तरह से इस तरह की चीज़ों के विज्ञापन टंगे रहते हैं किसी भी आदमी का धोखा खा जाना कोई मुश्किल काम नहीं है।

मैं कल एक कैमिस्ट से एक दवाई खरीद रहा था -- कैमिस्ट ठीक ठाक ही लगता है-- इतने में एक आदमी अपने लगभग 13साल के बेटे के साथ आया और सिरिप की दो बोतलों को कैमिस्ट को लौटाते हुये कहने लगा कि उस ने जब इस बोतलों के बारे में ठीक से पढ़ा है तो उसे पता चला कि ये कद को लंबा करने के लिये नहीं हैं।

चूंकि उस ने वे बोतलें काउंटर पर ही रखी थीं तो उत्सुकतावश मैंने भी उन्हें देखा --- मैंने देखा कि अढ़ाई सौ रूपये के करीब एक बोतल का दाम था। मैंने देखा कि कैमिस्ट ने उस ग्राहक से ज़रा भी बहस नहीं की। ये दुकानदार भी बड़े प्रैक्टीकल किस्म के लोग होते हैं---ये मार्केटिंग स्किलज़ में मंजे होते हैं। झट से उस ने उस तरह की एक दूसरी शीशी उसे थमा दी।

अब दोष किस का है, मैं चंद लम्हों के लिये यह सोच रहा था। सब से पहले तो इस तरह की बोतलें कैसे किसी को भ्रमित करने वाली घोषणाएं कर सकती हैं कि इस से कद बढ़ जायेगा। चलिये, यह मान भी लिया जाये कि इस तरह की बोतलें मार्कीट में आ ही गईं। अब क्या कैमिस्ट का दोष है कि वह इस तरह के प्रोडक्ट्स बेच रहा है ---लेकिन फिर सोचा कि उस एक के हरिश्चन्द्र बन जाने से क्या होगा----साथ वाले ये सब बेचते रहेंगे तो वह पीछे रह जाएगा। यह भी सोचा कि क्या यह हमारी स्वास्थ्य प्रणाली का दोष है कि एक 40 साल के आदमी को यह समझ नहीं कि कद कोई शीशी पी लेने से नहीं बढ़ता।

तो, फिर दोष सब से ज़्यादा किस का ? सब से ज़्यादा दोष उस ग्राहक का जो इस तरह की शीशी खरीद रहा है--- और शायद इस के लिये उस की आधी-अधूरी शिक्षा ही ज़िम्मेदार है।

यह रात 9 बजे के आसपास की बात है --मैंने उस ग्राहक को मोटरसाइकिल को किक मारते देखा ---मुझे लगा कि वह टल्ली है। मैंने देखा कि उस ग्राहक के परिचित एक सरदार ने थोड़े मज़ाकिया से लहज़े में उसे इतना भी कहा ----की यार, कद वधान लई टॉनिक. लेकिन उस ग्राहक ने पुरज़ोर आवाज़ में कहा कि क्या करें, इस का कद बढ़ ही नहीं रहा है।

लेकिन मेरी बेबसी देखिये मैं सब जानते हुये भी चुप था। मुझे पता है कि इस शीशी से कुछ नहीं होने वाला----और ऐसे ही राह चलते बिना मांगी गई सलाह देना और वह भी किसी अजनबी को और वह भी उसे जो टल्ली लग रहा था और वह भी किसी कैमिस्ट की दुकान पर ही, इन सब के कारण मैं चुपचाप मूक दर्शक बना रहा। इस तरह के मौके पर कुछ कह कर कौन आफ़त मोल ले--- दूसरी तरफ़ से कुछ अनाप-शनाप कोई कह दे तो पंगा-----इसलिये मैं तो इस तरह की परिस्थितियों में चुप ही रहता हूं---पता नहीं सही है या गलत-----लेकिन क्या करें?

यह केवल एक उदाहरण है --सुबह से शाम तक इस तरह की बीसियों बातें सुनते रहते हैं, देखते रहते हैं---किस किस का ज़िक्र करें। हर एक को अपना रास्ता खुद ही ढूंढना पड़ता है।

आज लगभग पूरे चार महीने बाद लिख रहा हूं ----अच्छा लगा कि हिंदी में लिखना भूला नहीं ---वरना पिछले चार महीनों में जिस तरह से मैं अपने फ़िज़ूल के कामों में उलझा रहा, मुझे यह लगने लगा था कि अब कैसे लिखूंगा। चलिये, इसी बहाने यह जान लिया कि यह राईटर्ज़-ब्लॉक नाम का कीड़ा क्या है।

फिज़ूल के काम तो मैंने कह दिया --ऐसे ही हंसी में --लेकिन हम सब लिखने वालों के भी अपने व्यक्तिगत एवं कामकाजी क्षेत्र से जुड़े बीसियों मुद्दे होते हैं जिन पर लिखना या इमानदारी से लिख पाना हर किसी के बस की बात होती भी नहीं और मेरे विचार में इस तरह के विषयों पर नेट पर लाना इतना लाज़मी भी कहां है ?