शनिवार, 8 जनवरी 2011

छुप छुप कर सिगरेट पीने वाले बच्चे को पकड़ना चाहेंगे ?

आज सुबह टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर पर मेरी नज़रें अटकी रह गईं... उस का शीर्षक ही कुछ ऐसा था .... Catch your children smoking with this kit... मुझे बहुत उत्सुकता हुई कि आगे पढ़ूं तो सही. हां, तो उस में बताया गया है कि जल्द ही इस देश में कुछ ऐसी किट्स आ जाएंगी जिस से आप अपने लाडले की चोरी चोरी चुपके चुपके सिगरेट का कश लगाने की चोरी पकड़ पाएंगे। इस के लिये   स्ट्रिप आती है और बच्चे के यूरिन से अथवा गाल के अंदरूनी हिस्से से एक स्वॉब (swab) सारे राज़ खोल देगा। और भी एक बात उस में लिखी है कि अगर कही किसी ने किसी अजनबी के साथ असुरक्षित संभोग कर लिया है और उसे एचआईव्ही संक्रमण का डर सताने लगा है तो भी ऐसे मिलन के दो दिन के बाद उस व्यक्ति का एचआईव्ही स्टेट्स बताने का भी जुगाड़ कर लिया गया है। 

कैसी लगी आप को खबर? मुझे तो बस यूं ही लगा यह सब कुछ। मुझे लग रहा है कि यह हमारे देश की ज़रूरत नहीं है। अपने बच्चों की चौकीदारी करते करते लोग थक चुके हैं – आज से 20 साल पहले लोग अपनी स्मार्टनैस दिखाते थे –चैनल लॉक की बातें कर के –और एक तरह से यह एक स्टेट्स सिंबल सा ही हो गया था कि हम ने तो अपने टीवी पर चैनल लॉक का जुगाड़ किया है। लेकिन क्या हुआ? – केवल कबूतर के आंखे बंद कर लेने से क्या हुआ? उस के बाद तकनीक ने इतनी तरक्की कर ली है कि टैक्नोलॉजी से जुड़े युवक आज की तारीख में सब कुछ कर पाने में सक्षम हैं। ऐसे में हम उन की नैतिक चौकीदारी (moral policing) कर के आखिर कर क्या लेंगे? मुझे तो यह बच्चों की सिगरेट पीने की आदत पकड़ कर तीसमार खां बनने की बात मे रती भर भी दम नहीं लगता. 

तो फिर क्या बच्चों को यू ही मनमानी करने दें ?  कोई भी काम ज़ोर-जबरदस्ती से होने से रहा – अगर हम लोग बच्चों का विश्वास ही जीत नहीं पाये तो हम ने क्या किया? वो कैसा घर जिसमें बच्चे बच्चे अपने माता पिता से दिल न खोलें .... सिगरेट की उस की आदत पकड़ कर कौन सा बड़ा पहाड़ उखाड़ लिया जाएगा –ऐसे तो अनेकों तरह की किटें और उपकरण चाहिये होंगे उन की चोरियां पकड़ने के लिये। लेकिन यह सब पश्चिमी तरीका है बच्चों को कंट्रोल करने का। क्योंकि यह देश तो चलता ही है कि उदाहरण के द्वारा –अब अगर मां-बाप तंबाकू का सेवन स्वयं नहीं करते तो बच्चे के सामने उस के मां बाप की उदाहरण है। सीधी सी बात है इस तरह की स्ट्रिप खरीदने की बजाए अगर बच्चे के संस्कारों पर ध्यान दिया जाए तो ही बात बन सकती है।

और दूसरी बात कि असुरक्षित संभोग के दो दिन बाद अगर किसी को अपना एचआईव्ही स्टेट्स जानने की उत्सुकता हो रही है और उसे अगर दो-तीन दिन बाद पता भी चल गया तो कौन सा किला फतह हो गया –अगर उस का टैस्ट नैगेटिव आया तो यकीनन् वह अगले एनकांउटर के लिये कुछ दिनों बाद अपने आप को रोक नहीं पाएगा --- और अगर कहीं पॉज़िटिव निकला तो भी बहुत गड़बड़ी ...क्योंकि वॉयरस को रोकने के लिये जो दवाईयां उसे एक्सपोज़र के 24 घंटे के अंदर शुरू कर लेनी चाहिए थीं, उन का असर 48-72 घंटे के बाद उतना यकीनी नहीं हो पाता--- अब इस केस में देखें तो अगर वह इंसान किसी अनजबी के साथ असुरक्षित संबंध ( एक तो मुझे यह असुरक्षित शब्द से बड़ी चिढ़ हैं, लिखने समय ऐसे लगता है जैसे कि यह कोई मैकेनिकल प्रक्रिया है जो अगर अजनबी के साथ सुरक्षित ढंग से की जाए तो ठीक है जैसे कि चिकित्सा शास्त्रियों ने इस की खुली छूट दे दी हो...... ) लेकिन ऐसा तो बिल्कुल नहीं है, हाई-रिस्क बिहेवियर तो हाई-रिस्क ही है, आग का खेल है, कितना कोई बच लेगा !!

यह खबर पढ़ते हुये मैं यही सोच रहा था कि इस देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें पता नहीं कि उन्हें उच्च रक्तचाप है, उन्हें पता नहीं कि उन्हें मधुमेह है ...ऐसे में उस तरह ध्यान देने की बजाए अब उन की बच्चों की चोरियां पकड़ने की तरफ उन को रूख करके उन की परेशानियां बढ़ाई जाएं। लेकिन होता यही है जब कोई प्रोड्कट यहां लांच हो जाता है तो फिर शातिर मार्केटिंग हथकंड़ों के द्वारा उस की डिमांड तो पैदा कर ही ली जाती है, मुझे इसी बात का डर है।

कोई बात नहीं, निकोटिन च्यूईंग गम भी आई --- मुझे बहुत से लोगों ने कहा कि आप भी लिखा करें – लेकिन मैंने भी कभी नहीं लिखीं ...क्यों? महंगी होने के कारण मेरे मरीज़ों की जेब इस की इज़ाजत नही देती और दूसरा यह कि मुझे कभी अपने किसी मरीज़ के लिये इस की ज़रूरत ही नहीं महसूस हुई --- अच्छे ढंग से समझाने से कौन नहीं समझता? पच्चीस पच्चीस साल हो गये हम यही बातें कहते सुनते ....अगर फिर भी कोई हमारे अपनेपन की बातें सुन कर तंबाकू की चुनौतिया, गुटखा या बीड़ी के बंडल को आपके सामने ही कचरादान में न फैंक के जाए तो समझ लीजिए हमारी काउंसिलिंग में ही कहीं कमी रह गई।

हां, तो मैं अपनी बात को यहीं कह कर विराम देता हूं कि हर क्षेत्र में हमारा प्रबंधन पश्चिम के प्रबंधन के अच्छा खासा अलग है...... हम जुगाडू किस्म की मानसिकता रखते हैं, प्यार से पुचकार के शाबाशी से थोड़ी डांट डपट से  हल्की फटकार से किसी को भी वापिस सही लाइन पर लाने की कुव्वत रखते हैं .....हम कहां अपने सीधे-सादे लोगों को इन महंगे महंगे शौकों की तरफ़ धकेल सकते हैं!!

भाषणबाजी बहुत हो गई, इसलिये जाते जाते इस महान देश की महान जनता को समर्पित एक गीत सुनते जाइये ...


Catch your kid smoking with this kit