मैं कईं बार लिख चुका हूं हमारे घर का स्टडी रूम लिखने-पढ़ने की जगह कम और कबाड़खाना ज़्यादा लगता है ...वहां पढ़ने-लिखने के अलावा कुछ भी हो सकता है, रेडियो सुना जा सकता है, सपने बुने जा सकते हैं..और पुरानी यादों को ताज़ा किया जा सकता है ...
मैंने पिछले १५-२० सालों में बहुत बार कोशिश की सब कुछ व्यवस्थित करूं ..लेकिन कभी हो नहीं पाया...कुछ भी ऐसा मिल जाता है जिस की यादों में खो जाता हूं और बस, वह दिन तो गया....
मैं जब भी पुरानी डॉयरियां, कापियां या पर्चियां, विज़िटिंग कार्ड्स देखता हूं तो उन्हें बड़ी एहतियात के साथ संभालता हूं ...और बहुत सोच समझ कर फाड़ता भी हूं कभी कभी....वह क्लेरिटी तो है मुझे।
आज शाम को भी १४-१५ साल पुरानी एक डॉयरी हाथ लग गई... २००१-०२ के आसपास मैं अमृतसर गया था एक लेखक वर्कशाप के लिए..कुछ दिन वहां पर ही रहा ..और उन दिनों मैंने राइटर वर्कशाप में इतनी रूचि नहीं ली जितनी अपने स्कूल के पुराने साथियों को ढूंढने की मुझे बेसब्री थी...
बड़ा मेहनत का काम था..किसी को उस के बैंक में पकड़ा, किसी को उस की फैक्टरी में, क्लिनिक में ...कुछ को घर में जा कर धर दबोचा, किसी को उस के स्कूल में .....बड़ा मुश्किल काम था...लेकिन जिसे भी मिलता, मिल कर मज़ा आ जाता ...पुराने दिन याद आ जाते ...अपना एक साथी है ...सतनाम सिंह .. १९७३ में मैं डीएवी स्कूल अमृतसर में दाखिल हुआ तो शायद सतनाम पहले ही से वहां पढ़ रहा था ... सतनाम का घर भी हमारे स्कूल के गेट के सामने ही था...याद है कईं बार आते जाते उस के घर में उसे आवाज़ लगा दिया करते थे...हां, तो जब मैं १४-१५ साल बाद अमृतसर गया तो मैं उस गली में भी गया जहां सतनाम का घर था... उस गली में एक कुल्चे बनाने का कारखाना था...सतनाम का कुछ अता-पता-ठिकाना न मिला...
मैंने भी हार नहीं मानी ....धक्के खाते खाते उस का फोन नंबर मिल गया...और उसी दिन ही मुझे वापिस लौटना था...फोन पर बात हुई ...बहुत अच्छा लगा...
हां, तो आज जब मुझे वह डॉयरी मिली तो पन्ने उलटे-पुलटे ...जिन स्कूल के साथियों को मिला था ...और जिन मास्साब के घर भी गया उन सब का ठिकाना और फोन नंबर तो लिखे थे ...एक जगह पर सतनाम का फोन नंबर भी लिखा मिल गया...बहुत खुशी हुई....मुझे सतनाम पर इतना तो भरोसा था कि उसने फोन नहीं बदला होगा...इसलिए जैसे ही फोन मिलाया और ट्रू-कॉलर पर सतनाम लिखा आया तो मज़ा ही आ गया...
खूब बातें हुई ...पुराने साथियों की बातें हुईं... उसे बताया कि अपने स्कूल के साथियों का वाट्सएप ग्रुप है ...उसे भी उस में अब शामिल होना है ...
यह वाट्सएप ग्रुप वैसे तो एक साल पुराना है ..मैंने उस में बहुत बार कहा कि सतनाम का पता करो....लेकिन शायद कुछ पता लग नहीं पाया... चलिए, कोई बात नहीं, देर आयद..दुरुस्त आयद...
सतनाम सिंह जो आजकल केंद्र सरकार के एक विभाग में अधिकारी हैं... |
हां, तो सतनाम के बारे में दो बातें...सतनाम बड़ा खुले स्वभाव का है ....खूब हंसोड़... जब मैं १९७३ के सतनाम को याद करता हूं तो मुझे खुलेपन से हंसने वाला अपना एक साथी याद आता है...जो हमेशा मस्त रहता था...बड़ी सहज तबीयत, कोई टेंशन वेंशन नहीं लेना उस का स्वभाव था....
आज सतनाम से बात करने के बाद यही लग रहा है कि जिस भी चीज को हम लोग मन से चाहते हैं...वह अपने आप हम तक पहुंच जाती है, वरना कुछ संयोग ऐसा हो जाता है कि हम लोग उस तक पहुंच जाते हैं... इसलिए उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए..
उम्मीद से एक बात याद आ गई ....पुराना एक रिवाज था कि लोग एक बोतल में किसी के नाम चिट्ठी लिख कर समुद्र में डाल दिया करते थे...उस उम्मीद के साथ कि चिट्ठी कभी न कभी तो ठिकाने पर पहुंच ही जायेगी.. अभी कुछ समय पहले किसी को ऐसी ही एक १०८ साल पुरानी एक चिट्ठी मिली है ...कुछ पता नहीं कि किस ने किस को लिखी थी...लेकिन उसे गिनिज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज कर दिया गया है ....
तो आज के इस किस्से से हम ने क्या सीखा?....उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए, उम्मीद पर ही दुनिया टिकी है सारी ...
और एक बात अपनी तरफ़ से जोड़ रहा हूं कि किसी के सपनों पर कभी हंसना भी नहीं चाहिए....कायनात बहुत बड़ी है, सब के हिस्से का आकाश है!
हां, एक बात लिखनी तो भूल ही गया कि इतने सालों के बाद बात करने पर भी सतनाम को याद था कि हम दोनों की १४-१५ साल पहले बात हुई थी और वह बता रहा था कि वह लोगों से यह शेयर करता रहा इन सालों में कि अपना एक साथी आया था ..उसने पता नहीं कितनी मेहनत-मशक्कत कर के मेरा नंबर पता किया ..लेकिन अपनी मुलाकात नहीं हो सकी ..और सतनाम यह भी बता रहा था कि वह उसे हमारे घर के पास वह जगह भी बड़ी याद आती है ...जहां वह खेलने जाया करता था...कह रहा था कि लोगों को उस के बारे में बताता हूं जब भी उधर से गुजरता हूं..
कोई गल नहीं, सतनाम...कोई गल नहीं ...मिलांगे यार ज़रूर ....वादा रिहा ...जिउंदे वसदे रहो ..यारां नाल बहारां..