सोमवार, 27 अप्रैल 2009

चिकित्सक हिंदी में इन विषयों पर लिखें...


पिछले कईं सालों से देख रहा हूं कि विकसित देशों में कोई छोटी मोटी स्टडी चूहे पर भी हो रही होती है तो उसे हमारेयहां के हिंदी एवं अंग्रेज़ी क अखबार बड़े चाव से छापते हैं। ठीक हैं, छापिये ....लेकिन सब से पहले आप को आमआदमी की आम शारीरिक समस्यायों एवं उन से जुड़े मुद्दों पर लिखना होगा।

मैं सोच रहा हूं कि मैं अगले कम से कम छः महीने तक कुछ ऐसे ही विषयों पर लिखूंगा। इतने ज़्यादा मरीज़थॉयरायड ग्रंथि की तरह तरह की बीमारियों के दिखने लगे हैं---ठीक है, आयोडीन युक्त नमक खाया जाये लेकिनइस के बारे में बाकी बातें भी तो आम आदमी तक पहुंचनी बहुत ही लाज़मी हैं ।

लगभग सारा हिंदोस्तान आड़ा-टेढ़ा हो कर चलता है , यह समस्या महिलायों में तो बहुत ही ज़्यादा है , इस कीरोकथाम के बारे में खूब चर्चा की जाये। इस के इलाज के बारे में , इस से संबंधित तरह तरह के टैस्टों के बारे मेंलिखा जाये और यह भी लिखा जाये की कौन सा इलाज किस के लिये कितना उपर्युक्त है।

इतनी ज़्यादा औरतों के कूल्हे की हड्डी टूट जाती है और वे सारी उम्र के लिये अपाहिज हो जाती हैं। इस के बारे मेंज़्यादा से ज़्यादा बातें करें और ज़्यादा बातें रोकथाम की भी की जायें----ज़्यादा महंगे महंगे इलाज गिना कर आमआदमी की परेशानियां और न बढ़ाई जायें।

पानी के बारे में जितना लिखा जाये उतना ही कम है। लोगों में इस के बारे में बहुत ही ज़्यादा अज्ञानता है। इस के शुद्धिकरण की बातें खोली जायें।

मैं पिछले लगभग एक-दो महीने से देख रहा हूं कि कुछ हिंदी समाचार पत्रों की वेबसाइटें भी मसालेदार खबरों में ज़्यादा रूचि ले रही हैं, होगी भई उन की अपनी मज़बूरी होगी किसी भी बहाने सैक्स संबंधी तरह तरह की सामग्री परोसना। इतना सब कुछ अजीब सा लिखा जा रहा है कि उन साइटों पर वापिस जाने की इच्छा ही नहीं होती।

हिंदोस्तान में कितने ज़्यादा लोग हैं जो कईं कईं वर्षों से घुटने के दर्द से कराह रहे हैं, टांगों में दर्द है, आंखों की रोशनीकम होने से रोज़ाना ठोकरें खाते फिरते हैं, नियमित शारीरिक जांच करवा नहीं पाते। इन के बारे में कौन लिखेगा मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि हिंदी के पाठकों तक जितनी अच्छी जानकारी पहुंचनी चाहिये वह पहुंच नहीं रही है।

इस के अलावा इन विषयों पर लिखा जाये ---नियमित शारीरिक जांच, बच्चों में विटामिन ए की कमी, महिलायोंमें रक्त की एवं कैल्शीयम की कमी।

मुझे यह लगता है कि जनमानस को किसी भी तरह से भ्रमित करने की कोशिश न की जाये। उन्हें महंगे महंगेइलाजों के फायदे गिनाते रहने की बजाये ( जो कि बहुत से लोग अफोर्ड कर ही नहीं पाते) ..कुछ इस तरह की बातेंबतायें जिन से उन के मन में विश्वास पैदा हो कि जरूरी नहीं कि हर महंगी वस्तु उत्तम ही हो। विशेषकर खाने पीने की आदतों की उदाहरण लेकर ये बातें जनमानस के सामने रखी जा सकती हैं। घर में आसानी से उपलब्ध तरहतरह के अनाज एवं दालों से भी एक उत्कृष्ठ आहार तैयार किया जा सकता है।

ऐसी और भी बहुत ही छोटी छोटी बातें हैं जो कि चिकित्सकों को तो छोटी लगती हैं लेकिन जनमानस के लिये बहुतबड़ी बातें होती हैं। अगर वे इन को अपने जीवन में उतार लेते हैं तो जीवन में बहार आ सकती है।

तो मैं अगले कुछ महीनों पर इस ब्लॉग पर कुछ इस तरह की ही सामग्री जुटाया करूंगा। देखते हैं यह सफ़र कैसा रहता है।