सोमवार, 15 मई 2023

शकरकंदी में भी कीड़े ...


हम लोग बचपन से जो खाते पीते रहते हैं हमें उन चीज़ों की आदत पड़ जाती है...है कि नहीं....इसलिए अकसर डाक्टर लोग छोटे-बच्चों के मां-बाप को यही मशविरा हमेशा देते हैं कि इन को सभी प्रकार की दालें एवं साग-सब्जियों और फलों की आदत डालो अभी से ...अगर बचपन में इन की इस तरफ़ रूचि न हुई तो ये उम्र भर इन पौष्टिक चीज़ों से बचते रहेंगे, दूर भागते रहेंगे....हम जिस दौर के हैं, उन दिनों बच्चों को अकसर एक-आध दाल या सब्जी नहीं भाती थी, लेकिन आज बच्चों को, युवाओं को कोई सी भी एक दाल या एक ही सब्जी चाहिए ...हर दिन ...अमूमन दाल मक्खनी या शाही पनीर ....स्विग्गी से या ज़ोमेटो से ....। चलिए, अब जो है सो है, यह आज एक बहुत बड़ा मसला है...मैंने भी बचपन से ही करेला कभी नहीं खाया और आज तक नहीं खा सका। बचपन में खाने-पीने की सही ट्रेनिंग की यह अहमियत है ...

शकरकंदी और सिंघाडे़ 

खैर, बात तो शकरकंदी की करने वाला था ...यह हमें बचपन से बहुत पसंद रही है...पंजाब में जिस जिले में मैं 30 बरस तक रहा -अमृतसर में- वहां हमें शकरकंदी और सिंघाड़े (water chestnut) सिर्फ ठंडी़ के मौसम में कुछ ही दिनों के लिए बाज़ार में दिखते थे ...और बस हमें इन को उन दिनों कुछ ही बार खाने का मौका मिल पाता था...लेकिन मज़ा आ जाता था उबली हुई शकरकंदी के साथ सिंघाड़े खाते वक्त जब हम लोग साथ में थोड़ा गुड़ ले लेते थे ...

एक पुरानी कहावत है ....भूख में चने बादाम....या ज़रूरत आविष्कार की जननी है ....जहां मैं काम करता हूं पास ही देखा पिछले साल कि ये बाल गोपाल इत्मीनान से शकरकंदी को भून रहे हैं... 🙏

अभी भी ये दोनों चीज़ें बहुत पसंद हैं....लेकिन अब इन चीज़ों में वह पुराने वाला स्वाद नहीं रहा, क्या करें, फिर भी खाना तो है ही ..इसलिए अब शकरकंदी को उबालते वक्त उस में गुड़ डालना पड़ता है ताकि वह खाई तो जा सके। और यहां बंबई में यह शकरकंदी लगभग सारा साल ही दिखती है ...हां, उस के रंग शायद दो तरह के होते हैं...एक तो यह है जो मैंने यहां तस्वीर लगाई है थोड़े लाल से रंग में और दूसरी होती है जो भूरे से रंग वाली ....जो अकसर हम लोग पहले खाते रहे हैं...मुझे नहीं पता इन में फ़र्क क्या है...

शकरकंदी में कीड़े 

कल मैं उबली हुई शकरकंदी से जैसे ही छिलका उतार रहा था तो मुझे कुछ सख्त सा महसूस हुआ ....मैंने थोड़ा जोर से दबाया तो अंदर से काला सड़ा हुआ हिस्सा दिखा ...और थोड़ा और ध्यान से देखा तो पता चला कि उस में तो इतने कीड़े हैं....और एक ही शकरकंदी में ही नहीं, कईं टुकडो़ं में ये कीड़े दिखे....

देखिए, शकरकंदी में कीड़े दिख रहे हैं...मैंने पहली बार देखा इन्हें शकरकंदी में 

खाने पीने की चीज़ों में कीड़े देख कर हम लोग आज भी डर जाते हैं, सहम जाते हैं....जैसे मां जब भिंडी या बेंगन काट रही होती और उसमें से कोई कीड़ा निकलता तो हमें दिखाती और समझाती कि इसलिए मैं तुम लोगों को कहती हूं कि सब्जी कच्ची मत खाया करो...हम लोगों की उन दिनों आदत सी कच्ची सब्जी जैसे भिंड़ी, फुल गोभी आदि का एक आध टुकडा़ उठा कर खाने की ....हमें उन सब्जियों में कीड़ा देख कर इतना ़डर लगता जैसे किसी आतंकवादी को देख लिया हो...

बिना काटे आम खाने वाले भी ख्याल रखें

खाने पीने की चीज़ों में मुझे कुछ भी ऐसा-वैसा नज़र आता है तो मैं ब्लॉग में ज़रूर शेयर करता हूं ताकि सभी पढ़ने वालों को इस की जानकारी हासिल हो ..ऐसे ही आज से 8-10 बरस पहले जब हमें आम को चूस कर खाने की आदत थी ...चूसने के बाद जब उस के छिलके को भी दांतों से कुरेदने लगे तो पता चला कि अंदर तो कीड़े ही कीड़े हैं ....बस उस दिन के बाद फिर कभी आम को काटे बिना खाया नहीं ....अगर कभी ऐसे ही बिना काटे खा भी लेते हैं तो वह घटना बराबर याद आ जाती है, ़डर डर खाते हैं...

लगभग दस बरस पहले मैंने जब आम का यह रूप देखा तो उसे इस ब्लॉग में दर्ज कर दिया था....और मैं अमूमन एक बार लिखने के बाद अपनी पोस्ट पढ़ता नहीं हूं, उसे एडिट करना तो दूर की बात है ....मुझे उसे फिर से पढ़ना कुछ कारण वश असहज कर देता है ....एक रवानगी में जो लिख दिया, उसे क्या बार बार देखना...जो कह दिया सो कह दिया....😎 यह रहा मेरी उस ब्लॉग-पोस्ट का लिंक, देखिएगा....कैसे उन दिनों लखनऊ मेंं आमों की ऐश किया करते थे ...

बिना काटे आम खाना बीमारी मोल लेने जैसा...

हां, तो यह पोस्ट सिर्फ़ इसलिए है क्योंकि हमें अपने खाने पीने के बारे में सचेत रहना चाहिए...मुझे अभी लिखते हुए याद आ रहा था कि शकरकंदी को आज तक हम ने कभी काट कर खाया ही नहीं, छिलका उतारा और खाने लगे ...और हां, बहुत बार अंदर से कुछ सख्त महसूस होता, और कडवाहट सी भी लगती तो हम खा लेते चुपचाप ....यही सोच कर कि कईं बार बादाम भी तो होते हैं कड़वे ...लेकिन अब सोच रहा हूं कि वो सब शकरकंदी अंदर से सड़ी हुई कीडे़ वाली होती होगी ....खैर, अब चिडि़या खेत चुग चुकी है ...अब तो आगे की ही सुध ले सकते हैं....

खाने पीने की चीज़ों से जितना डर कर रहा जाए उतना ही ठीक है...अच्छे से काट कर , देख कर और उस का स्वाद भी अगर बदला दिखे तो फैंक दीजिए,मत खाईए...सेहत से बढ़ कर तो कुछ है नहीं। कड़वेपन से याद आया कि लौकी का जूस पीते वक्त भी ख्याल रखिए....हमारे एक साथी अधिकारी की पिछले बरस लौकी का कड़वा जूस पीने से जान जाती रही ....ध्यान रखिए, और इस नीचे दिए हुए लेख के लिंक को भी देखिएगा...उसमें बहुत उपयोगी जानकारी है इन कड़वी सब्जियों के बारे में ...अपना ख्याल रखिए...बाती छोटी छोटी हैं, लेकिन कईं बार बहुत महंगी साबत होती हैं....

लौकी का रस और वह भी कड़वा  (इस लेख को भी ज़रूर देखिए, कभी फुर्सत में) 

PS... ये जो आज कल हर मौसम में हर सब्जी और फल बाज़ार में दिखते हैं न, यह भी लफड़े की बात ही है ...हम लोग देखा करते थे गर्मी सर्दी की सब्जियां और फल अलग होती थीं....वे उसी मौसम में उगती थी, दिखती थीं और बिकती थीं. अब किसी भी मौसम में कुछ भी खरीद लो...यह क़ुदरत के साथ पंगे लेने वाली बात लगती है मुझे अकसर ...बिन मौसम के सब्जी फल उगाने के लिए बहुत से कीटनाशकों का इस्तेमाल होता है एक बात, और उन को कोल्ड-स्टोरेज़ आदि मेंं रखने के लिए भी बहुत से प्रिज़र्वेटिव इस्तेमाल होते हैं....सब कैमीकल लोचा है, और क्या....इसलिए ताज़ा खाएं, सुथरा खाएं, मौसम के मुताबिक ही सब्जियों एवं फलो का सेवन करें। मुफ्त की एक और नसीहत....आदत से मजबूर, क्या करें।

छोटी सी सीख यही है शकरकंदी भी 😎खाइए ज़रूर, लेकिन काट कर ....अच्छे से देख कर, मैं भी आज के बाद कभी इसे काटे बिना नहीं खाऊंगा...