आज सुबह तो मैं डा बशीर की डायरी ही पढने में मसरूफ रहा, सोचा आज के लिये इतनी ही काफी है...बाकी फिर कभी।
आज सुबह ही मैं दो दिन पुरानी अमर उजाला में एक खबर देख रहा था कि कैथल में जटरोफा खाने से 15 बच्चे बीमार हो गये। कुछ ही समय बाद मुझे मेरे चार साल पहले लिखे एक आर्टीकल की कापी दिख गई जो एक नेशनल न्यूज़-पेपर में छपा था, इसलिये आज जटरोफा के बारे में ही बात करते हैं।
जटरोफा कुरकास (जंगली अरंडी) सारे भारतवर्ष में पाया जाने वाला एक आम पौधा है—इस के बीजों में 40 प्रतिशत तक तेल होता है। भारत एवं अन्य विकासशील देशों में जटरोफा से प्राप्त तेल (बॉयोडीज़ल) पैदा करने हेतु सैंकड़ों प्रोजैक्ट चल रहे हैं।
दिल्ली से मुंबई जाने वाली रेल लाइन के दोनों तरफ़ जटरोफा के पेड़ लगाए गये हैं। कुछ गाड़ियां भी इसी जटरोफा से प्राप्त 15-20 प्रतिशत बॉयोडीज़ल पर चलती हैं। जटरोफा की एक हैक्टेयर की खेती से 1892 लिटर डीज़ल मिलता है।
जटरोफा के बीजों से प्राप्त होने वाला तेल मनुष्ट के खाने योग्य नहीं होता। बॉयो-डीज़ल पैदा करने के इलावा इसे मोमबत्तियां, साबुन इत्यादि बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। आयुर्वेद में भी इस पौधे के विभिन्न भागों को तरह तरह की बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है।
जटरोफा के बीजों का उत्पात ...
जटरोफा के विषैले गुण इस में मौजूद कुरसिन एवं सायनिक एसिड नामक टॉक्स-एल्ब्यूमिन के कारण होते हैं। वैसे तो पौधे के सभी भाग विषैले होते हैं लेकिन उस के बीजों में उस की सर्वाधिक मात्रा रहती है। उन बीजों को खाने के बाद शरीर में होने वाले बुरे असर मूल रूप से पेट एवं आंतों की सूजन के कारण उत्पन्न होते हैं। गलती से जटरोफा के बीज खाने की वजह से बच्चों में इस तरह के हादसे आये दिन देखने सुनने को मिलते रहते हैं।
उन आकर्षक बीजों को देख कर बच्चे अनायास ही उन्हें खाने को आतुर हो जाते हैं। उस के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता कि इस पौधे के कितने बीज खाने पर विषैलेपन के लक्षण पैदा होते हैं। कुछ बच्चों की तो तीन बीज खा लेने से ही हालत पतली हो गई जब कि कुछ अन्य बच्चों में पचास बीज खा लेने पर भी बस छोटे मोटे लक्षण ही पैदा हुये।
आम धारणा यह भी है कि इन बीजों को भून लेने से विष खत्म हो जाता है लेकिन भुने हुये बीज खाने पर भी बड़े हादसे देखने में आये हैं।
उल्टियां आना एवं बिलकुल पानी जैसे पतले दस्त लग जाना इन बीजों से उत्पन्न विष के मुख्य लक्षण हैं.. पेट दर्द, सिर दर्द, बुखार एवं गले में जलन होना इस के अन्य लक्षण हैं। इस विष से प्रभावित होने पर अकसर बहुत ज़्यादा प्यास लगती है, इस के विष से मृत्यु की संभावना बहुत ही कम होती है।
क्या करें ?
बेशक जटरोफा बीज में मौजूद विष को काटने वाली कोई दवा (ऐंटीडोट) नहीं है, फिर भी अगर बच्चों ने इस बीजों को खा ही लिया है तो अभिभावक घबरायें नहीं.....बच्चों को किसी चिकित्सक के पास तुरंत लेकर जाएं ...अगर बच्चा सचेत है, पानी पी सकता है तो चिकित्सक के पास जाने तक भी उसे पेय पदार्थ (दूध या पानी) पिलाते रहें जिससे कि पेट में मौजूद विष हल्का पड़ जाए।
चिकित्सक के पास जाने के पश्चात् अगर वह ज़रूरी समझते हैं तो अन्य दवाईयों के साथ साथ वे नली द्वारा ( आई-व्ही ड्रिप – intra-venous fluids) कुछ दवाईयां शुरू कर देते हैं। छः घंटे के भीतर अकसर बच्चे सामान्य हो जाते हैं।
रोकथाम ....
बच्चों को इस पौधे के बीजों के बारे में पहले से बता कर रखें...उन्हें किसी भी पौधे को अथवा बीजों को ऐसे ही खेल खेल में खा लेने के लिये सचेत करें। स्कूल की किताबों में इन पौधों का विस्तृत्त वर्णन होना चाहिये व अध्यापकों को भी इस से संबंधित जानकारी देते रहना चाहिए।
आज सुबह ही मैं दो दिन पुरानी अमर उजाला में एक खबर देख रहा था कि कैथल में जटरोफा खाने से 15 बच्चे बीमार हो गये। कुछ ही समय बाद मुझे मेरे चार साल पहले लिखे एक आर्टीकल की कापी दिख गई जो एक नेशनल न्यूज़-पेपर में छपा था, इसलिये आज जटरोफा के बारे में ही बात करते हैं।
जटरोफा कुरकास (जंगली अरंडी) सारे भारतवर्ष में पाया जाने वाला एक आम पौधा है—इस के बीजों में 40 प्रतिशत तक तेल होता है। भारत एवं अन्य विकासशील देशों में जटरोफा से प्राप्त तेल (बॉयोडीज़ल) पैदा करने हेतु सैंकड़ों प्रोजैक्ट चल रहे हैं।
दिल्ली से मुंबई जाने वाली रेल लाइन के दोनों तरफ़ जटरोफा के पेड़ लगाए गये हैं। कुछ गाड़ियां भी इसी जटरोफा से प्राप्त 15-20 प्रतिशत बॉयोडीज़ल पर चलती हैं। जटरोफा की एक हैक्टेयर की खेती से 1892 लिटर डीज़ल मिलता है।
जटरोफा के बीजों से प्राप्त होने वाला तेल मनुष्ट के खाने योग्य नहीं होता। बॉयो-डीज़ल पैदा करने के इलावा इसे मोमबत्तियां, साबुन इत्यादि बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। आयुर्वेद में भी इस पौधे के विभिन्न भागों को तरह तरह की बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है।
जटरोफा के बीजों का उत्पात ...
जटरोफा के विषैले गुण इस में मौजूद कुरसिन एवं सायनिक एसिड नामक टॉक्स-एल्ब्यूमिन के कारण होते हैं। वैसे तो पौधे के सभी भाग विषैले होते हैं लेकिन उस के बीजों में उस की सर्वाधिक मात्रा रहती है। उन बीजों को खाने के बाद शरीर में होने वाले बुरे असर मूल रूप से पेट एवं आंतों की सूजन के कारण उत्पन्न होते हैं। गलती से जटरोफा के बीज खाने की वजह से बच्चों में इस तरह के हादसे आये दिन देखने सुनने को मिलते रहते हैं।
उन आकर्षक बीजों को देख कर बच्चे अनायास ही उन्हें खाने को आतुर हो जाते हैं। उस के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता कि इस पौधे के कितने बीज खाने पर विषैलेपन के लक्षण पैदा होते हैं। कुछ बच्चों की तो तीन बीज खा लेने से ही हालत पतली हो गई जब कि कुछ अन्य बच्चों में पचास बीज खा लेने पर भी बस छोटे मोटे लक्षण ही पैदा हुये।
आम धारणा यह भी है कि इन बीजों को भून लेने से विष खत्म हो जाता है लेकिन भुने हुये बीज खाने पर भी बड़े हादसे देखने में आये हैं।
उल्टियां आना एवं बिलकुल पानी जैसे पतले दस्त लग जाना इन बीजों से उत्पन्न विष के मुख्य लक्षण हैं.. पेट दर्द, सिर दर्द, बुखार एवं गले में जलन होना इस के अन्य लक्षण हैं। इस विष से प्रभावित होने पर अकसर बहुत ज़्यादा प्यास लगती है, इस के विष से मृत्यु की संभावना बहुत ही कम होती है।
क्या करें ?
बेशक जटरोफा बीज में मौजूद विष को काटने वाली कोई दवा (ऐंटीडोट) नहीं है, फिर भी अगर बच्चों ने इस बीजों को खा ही लिया है तो अभिभावक घबरायें नहीं.....बच्चों को किसी चिकित्सक के पास तुरंत लेकर जाएं ...अगर बच्चा सचेत है, पानी पी सकता है तो चिकित्सक के पास जाने तक भी उसे पेय पदार्थ (दूध या पानी) पिलाते रहें जिससे कि पेट में मौजूद विष हल्का पड़ जाए।
चिकित्सक के पास जाने के पश्चात् अगर वह ज़रूरी समझते हैं तो अन्य दवाईयों के साथ साथ वे नली द्वारा ( आई-व्ही ड्रिप – intra-venous fluids) कुछ दवाईयां शुरू कर देते हैं। छः घंटे के भीतर अकसर बच्चे सामान्य हो जाते हैं।
रोकथाम ....
बच्चों को इस पौधे के बीजों के बारे में पहले से बता कर रखें...उन्हें किसी भी पौधे को अथवा बीजों को ऐसे ही खेल खेल में खा लेने के लिये सचेत करें। स्कूल की किताबों में इन पौधों का विस्तृत्त वर्णन होना चाहिये व अध्यापकों को भी इस से संबंधित जानकारी देते रहना चाहिए।