मंगलवार, 29 मार्च 2022

पर-उपदेश

मिसिज़ खन्ना का सुबह का यह वक्त अपनी मां दुलारी के साथ बैठ कर गप्पबाजी करने का होता है ..वे दोनों एक साथ बॉलकनी में बैठ कर चाय का मज़ा लेती हैं...साथ में अखबार के पन्ने उलट लेती हैं...मिसिज़ खन्ना की माताश्री को एफ.एम सुनना भाता है ...अभी विविध भारती पर भूले-बिसरे गीत चल रहे हैं...

मिसिज़ खन्ना की माताश्री रेडियो, किताबों और क्रोशिए, पैच वर्क की दुनिया में मस्त रहती हैं...85 से ऊपर हैं लेकिन ईश्वर उन्हें बुरा नज़र से बचाए..अभी भी अपने सूट खुद सी लेती हैं...और अपनी नातिन नेहा के मशहूर फैशन-डिज़ाइनर होने पर खूब ठहाके लगाती है ...अब उसे फटी हुई जीन की तुपाई करने को नहीं कहतीं...वह ज़माने के तौर-तरीकों से वाकिफ़ हो चुकी हैं...लेकिन दुलारी को यह बात बहुत हैरान परेशान करती है कि नेहा को किसी ने कटिंग भी नहीं सिखलाई.....मिसिज़ खन्ना उन्हें कईं बार बता भी देती हैं कि ये सब काम करने के लिए मॉम उस के पास टेलर हैं न .. दुलारी हंस कर बात टालने में माहिर तो है ..लेकिन उस का दिल फिर भी नहीं मानता..

खैर, अभी भी तो मां-बेटी चाय की चुसकियां ले रही हैं...

रिंकी,  मुझे यह तुम्हारी ग्रीन टी बिल्कुल नहीं भाती...यह तो मुझे और सुस्त कर देती है ..और ऊपर से ये पैकेट वाले बिस्कुट....मेरे लिए वही नीलम बेकरी से ही बिस्कुट मंगवाया करो, और चाय भी अच्छे से उबली हुई पी कर ही मुझे चुस्ती आती है ...

ठीक है, मॉम, अभी दूसरी चाय भिजवाती हूं...बिस्कुट भी मॉम, आप की सेहत के लिए यही ठीक हैं...मैरी गोल्ड के ....

नहीं, रिंकी, अब और कितने दिन की मेेहमान हूं...जो अच्छा लगता है, वही खाना पीना पसंद है ...

बस, मॉम, आप की यही बातें मुझे अच्छी नहीं लगतीं...जब देखो, उम्र की बात करने लगते हो...लोग आज कल 100 साल के जश्न की प्लॉनिंग करते हैं और आप हैं कि ....अच्छा, मॉम, आप मुझे यह बताएं कि आप के कमरे में एस.सी के लिए बोल दूं...

नही, नहीं, रिंकी, तु्म्हे तो पता है मेरी हड्डियां तो वैसे ही दुखती रहती हैं ...मुझे तो पंखा भी देर रात बंद करना पड़ता है ...मुझे कभी हवा लेनी होती है तो मैं बॉलकनी में बैठ जाती हूं ...मैं तो तुम लोगों को भी कहती हूं कि इस नामुराद ए.सी से थोड़ा दूर ही रहा करो...यह सेहत के लिए ठीक नहीं ..

ठीक है, मॉम, आप सही कहती हैं...लेकिन यह तो आप देख रही हैं न कि इस मार्च के महीने में भी किस तरह से सूरज आग उबल रहा है ...अब हमारे शरीर इन सब चीज़ों के आदि हो चुके हैं, यह कहते हुए वह वहां से उठ खड़ी हुई ...क्योंकि आज उन्हें एक प्रोग्राम में जाना है ...वह वहां की की-नोट स्पीकर हैं ...उन्हें वहां एक प्रिज़ेन्टेशन भी करनी है ...

मिसिज़ खन्ना (मां के लिए रिंकी) के वहां से उठने के बाद दुलारी फिर से पुरानी यादों में खो गईं ..दुलारी को भी लगने लगा है कि वह वर्तमान से ज़्यादा अकसर गुज़रे दौर में टहलती रहती हैं। उसे मीरपुर के वे बचपन के दिन याद आने लगे जब उन का सारा परिवार गर्मियों के दिनों में छत पर चारपाईयां डाल कर सोते थे...ठंड़ी ठंडी हवा के झोंके, चांद-सितारों की चादर ओढ़ कर सभी सो जाते ...और सुबह कितनी ताज़गी महसूस करते ...

फिर देश के विभाजन के बाद वे सब लोग इधर आ गए ....दिल्ली में रहने लगे ...वहीं दुलारी की शादी हो गई ...मौसम खुशनुमा ही थी..हां, रात के वक्त कभी कभी गर्मी लगती तो सब लोग अपनी अपनी खटिया के एक कोने में एक हाथ की पक्खी रखने लगे थे ...कभी ज़रूरत महसूस होती तो हाथ से उसे दो मिनट चला लेते ...फिर कुछ सालों बाद पक्खी से काम न चलता तो आंगन में एक छोटी टेबल पर एक पंखा चला दिया जाता ...रात भर सब को हवा देता न थकता...और जब सुबह सुबह सब को उस की वजह से 
ठंड लगने लगती तो कोई न कोई उठ कर उसे बंद कर देता...

दुलारी को सब अच्छे से याद है ...नेहा दाद देती है नानी की फोटोग्राफिक मेमेरी की ...खैर, दुलारी को याद है फिर पंखे की हवा में भी जब लोगों को हवा न लगती तो आंगन में सोते वक्त एक कूलर किसी बड़ी सी मेज़ पर टिका दिया जाता ...कुछ साल काम चलता रहा ...लेकिन जैसे जैसे गर्मी बढ़ती गई ...उमस से परेशान होने लगते ..तो कूलर भी बेकार लगने लगता ...

फिर घर में एक ए.सी लग गया ....वाह...जैसे तैसे घर के सभी लोग उसी कमरे में ठूंसे रहते ख़ास कर रात के वक्त ....लेकिन धीरे धीरे जैसे घर के लोगों की प्राईव्हेसी की ज़रूरत बढ़ने लगीं....सब अपने अपने कमरों में अपने स्पेस में जाने लगे ...एक दो और कमरों में ए.सी भी लग गया...किसी विंडो ए.सी को निकाल कर स्पलिट ए.सी का रिवाज़ चल निकला ...क्योंकि इस से शोर-शराबा कम से कम घर में तो नहीं होता....फिर जब महिलाओं को किट्टी पार्टी में अपनी सखी-सहेलीयों को अपने बिना ए.सी वाले ड्राईंग रूम में बैठाने में अजीब सा लगने लगा तो धीरे धीरे बैठकों में भी ए.सी फिट हो गए...कुछ तो देखा-देखी, कुछ स्टेट्स सिंबल के तौर पर ....अब लगभग हर कमरे में ए.सी है...अकसर दुलारी यही सोचा करती है कईं बार बैठी बैठी कि अब इस के आगे बढ़ती गर्मी से टक्कर लेने के लिए लोग क्या करेंगे...

अभी दुलारी अपनी पुरानी यादों की संदूकची खोल कर बैठी ही थी कि उस के कानों में रिंकी की आवाज़ पड़ी ...मॉम, मैं ज़रा पार्लर हो कर आ रही हूं ...थोड़ा वक्त लगेगा...

ड्राईवर, तुम ने दूसरी गाड़ी का ए.सी ठीक करवाया कि नहीं अभी। 

हां, मैम, कल ही गाड़ी गैरेज पर छोड़ी है, तीन चार दिन लगेंगे ..

ठीक है, उसे कहो जल्दी करे, इतनी गर्मी में बिना ए.सी की गाड़ी के निकलना अपना दिन और मूड खराब करने जैसा है ..

ठीक है, मैम, करता हूं कुछ ...

मिसिज़ खन्ना पार्लर के अंदर चली गईं...और ड्राईवर ए.सी लगा कर किशोर कुमार के गीत सुनने लगा...

सेल्वी, यह फेशियल तो तुम बहुत अच्छा करती हो, लेकिन अपने इस पार्लर की कूलिंग का भी तो कुछ करो...कूलिंग बढ़ाओ भई, दम घुट रहा है, मिसिज़ खन्ना में वहां के स्टॉफ को फटकार पिलाई। 

मैम, क्या करें, गर्मी ही इतनी पड़ रही है...दो दो स्पलिट ए.सी लगवाने के बाद भी यह हाल है ...पता नहीं, यह गर्मी हमें कहां ले जाएगी...

रिंकी ने फेशियल तो जैसे-तैसे करवा लिया...लेकिन पार्लर का ए.सी ठीक न काम कर पाने की वजह से उस का मूड ऑफ था..न ही उसने थ्रेडिंग करवाई , न ही मनीक्योर, न पैडीक्योर ....बस, बालों की स्ट्रेटनिंग जो बेहद ज़रूरी थी, वह करवाई और वापिस घर लौट आई...रास्ते में एक जगह मटके बिक रहे थे तो ड्राईवर को कह कर एक मटका खरीद कर कार में रख लिया...दुलारी कितनी बार उसे कह चुकी थीं कि उस के कमरे की बॉलकनी में एक मटका रखवा दो क्योंकि दुलारी को फ्रिज का पानी भी नहीं सुहाता ...फ़ौरन उस का गला पकड़ा जाता है ...

घर आते ही मिसिज़ खन्ना अपने मेक-अप में लग गई, जो थोड़ा बहुत रह गया था ....क्या करे, कुछ सेमीनार होते ही ऐसे हैं....सब लोगों की निगाहें आप के ऊपर टिकी होती हैं ...आप ने क्या पहना है, आप कैसे दिख रहे हैं...यही सोच कर मिसिज़ खन्ना हर जगह अच्छे से तैयार हो कर ही जाती थीं...

दोपहर 2 बजे मिसिज़ खन्ना उस सात सितारा होटल में पहुंच गईं जहां पर वह सेमीनार था ...वाह, उस हाल की कूलिंग की बात ही क्या थी...लंच के बाद कुल्फी-जलेबी का आनंद लेते लेते स्वामीनाथन ने कहा कि सत्यार्थी तो कह रहे थे कि इस बार यह सेमीनार तो गांव में उन के आश्रम में ही होना चाहिए। 

"सठिया गये हैं, क्या सत्यार्थी जी....इतनी गर्मी में, इतनी उमस में ...हम सेमीनार में आए हैं कोई अत्याचार भोगने नहीं...अगर बोलने-बैठने में ही लोगों को दिक्कत होगी तो ब्रेन-स्टार्मिंग क्या ख़ाक होगी" कहीं पीछे से आवाज़ आई। 

खैर, चलिए, सैमीनार शुरू हुआ...मिसिज़ खन्ना की प्रस्तुति ने जैसे समां बांध दिया....ताली की आवाज़ से सारा हाल गूंज उठा...सब ने तारीफ़ की जिस तरह से मिसिज़ खन्ना ने अपनी बात को रखा...जिस तरह से उन्होंने आंकडे पेश किए और जिस तरह से रिसर्च के आधार पर सब बातें कह कर लोगों को सचेत किया...चाय ब्रेक के वक्त हर कोई मिसिज़ खन्ना की तारीफ़ों के पुल बांध रहा था..

खैर, हो गया सेमीचार अच्छा से हो गया... अगले दिन वही रुटीन ....मां के साथ चाय पीते वक्त मां ने अखबार के पहले पन्ने पर रिंकी की तस्वीर देखी तो वह खुश हो गई ...हैडिंग में लिखा था ...जानी-मानी पर्यावरणविद श्रीमति खन्ना का ग्लोबल-वार्मिंग पर प्रभावशाली व्याख्यान....इस में लिखा था कि श्रीमति खन्ना ने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के तरीके बताए....फ्लोरोकार्बन कम करने के फायदे बताए...एक कुदरती जीवन-पद्धति अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित किया....

दुलारी अभी पूरी न्यूज़-स्टोरी पढ़ ही रही थी कि चाय की चुस्की लेते लेते उस की हंसी ऐसी छूटी कि चाय उछल कर उस के गाउन पर छलक गई....

क्या हुआ, मॉम, बहुत हंसी आई आप को यह खबर देख कर ...

नहीं, रिंकी, कुछ नहीं, बस ऐसे ही , मां ने कहा। 

लेकिन रिंकी जानती थी कि मां की यह हंसी वह वाली हंसी नहीं थी, उस में कुछ तो अलग था ....क्या था, कटाक्ष था, थोड़ा व्यंग्य था, उपहास था ...उसे पता था कि मां अपने मुंह से कम ही कुछ कहती हैं, अपनी आंखों से बहुत कुछ कह देती हैं, फिर भी अगर कुछ छूट जाता है तो हंस कर कह देती है ...हर जज़्बात के लिए मां की हंसी मुख्तलिफ होती है ....रिंकी मां की हर हंसी का मतलब समझती है ...लेकिन जैसे मां कुछ नहीं कहती, वैसे ही वह भी चुप रहती है...लेकिन आज की खबर देख कर मां के अजीब से ठहाके ने मिसिज़ खन्ना को अपने आप से कुछ सवाल करने पर मजबूर कर दिया...