मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

दीवाली की मिठाई का हाल

अभी अभी पेपर देख रहा था तो आज की टाइम्स ऑफ इंडिया में इस खबर पर नज़र पड़ गई कि किस तरह से शुद्ध घी में जानवरों के फैट को मिला कर बेचा जा रहा है.....लिखा है सब कुछ, आप स्वयं भी पढ़ सकते हैं.
इसे अच्छे से पढ़ने के लिए इस पर क्लिक करिए.. 
और यह लखनऊ का रोना ही नहीं है, देश के हर कोने में इस तरह के मिलावटी खाद्य पदार्थ बेचने वाले आतंकवादी फैले हुए हैं, ये भी सरहद पार से आने वाले आतंकवादियों से कम खतरनाक थोड़े ही ना हैं।

त्योहारों के महीनों में इस तरह की रिपोर्टें आती हैं, सैंपल भरे जाते हैं, कार्यवाही कितनी होती है कितनी नहीं, आप सब समझदार लोग हैं, सब कुछ जानते हैं, इस रिपोर्ट में भी लिखा है कि कितनी भारी संख्या में मिलावट होने की पुष्टि हो जाती है।

मुझे बेकरी के बिस्कुट पसंद हैं, मेरे एक मित्र ने मुझे दो वर्ष पहले चेता दिया कि यह शौक बड़ा खराब है क्योंकि बहुत सी बेकरियों में ये घी में जानवरों का फैट मिला कर ये सब तैयार कर रहे हैं। फिर भी हम लोग कहां सुधरते हैं, कभी कभी खा ही लेता हूं.....लेकिन खाते हुए भी यही ध्यान रहता है कि मैं मिलावटी सामान ही खा रहा हूं।

इसी खबर में यह भी लिखा है कि किस किस खाद्य पदार्थ में किस चीज़ की मिलावट हो सकती है... और उस के क्या क्या बुरे परिणाम हैं, ये समाचार पत्र ये सब सूचनाएं आम आदमी तक पहुंचा के बहुत सेवा कर रही हैं, जागरूकता पैदा कर रहे हैं, और करें भी तो क्या करें, चार रूपये में और इन की जान लेकर मानेंगे हम।

बहुत ही बुरी खबर है यह.......पता नहीं मुझे इस समय वह बात क्यों याद आ गई ..अखबार में मैंने एक तस्वीर देखी ८-१० दिन पहले...शायद हरियाणा की किसी जगह की थी जिस में एक आदमी ने एक नाबालिग लड़की से बलात्कार करने की कोशिश की तो जनता ने पकड़ कर उस का हथियार ही काट कर उस के हाथ में थमा दिया....

जनता के आक्रोश से डर लगता है, और डर लगना भी चाहिए......किसी को भी इसे कम  समझने की नादानी नहीं करनी चाहिए.....हर चुनाव के बाद मैं यही सोचता हूं कि अजब देश की गजब डेमोक्रेसी है कि बिल्कुल शांति पूर्वक जनता सत्ता-परिवर्तन कर देती है......बड़ी समझदार जनता है इस देश की।

सरकार के पास अनेकों मुद्दें हैं......कर रही है सरकार अपना काम......लेकिन क्या हम ने अपनी जिम्मेदारी से मुंह हमेशा मोड़े ही रखना है। इतना कुछ आ रहा कि विशेषकर त्योहारों के मौसम में खाने पीने के मिलावटी सामान की भरमार रहती है, फिर भी हम नहीं सुधरते। अब सरकार हर हलवाई की दुकान पर हर गली की नुक्कड़ पर तो किसी फूड इंस्पैक्टर को खड़ा करने से रही, इसलिए हमें ही बात माननी पड़ेगी। बात न मान कर हम अपनी सेहत ही से खिलवाड़ करते जा रहे हैं।

जहां, तर्क-वितर्क की कोई ज़रूरत नहीं होती, वहां हम करते हैं। आज ३५ वर्षीय आदमी आया...बीवी के इलाज के लिए आया था, उस का भी मुंह गुटखे-पान मसाले से ठसाठस ठूंसा हुआ था। मैं भी अपनी आदत से मजबूर, उसे कहा कि मत खाया करो, यह आग का खेल है, परेशानी हो जाएगी। दो-तीन मिनट मेरे प्रवचन सुन कर कहने लगा कि डाक्टर साहब, मेरी समझ में नहीं आता कि मेरा मौसा तो कुछ भी गल्त-वल्त नहीं खाता था, उस के गुर्दे क्यों फेल हो गये।

मैंने कहा कि वह तो मुझे नहीं पता, लेकिन यह जो गुटखे वुटखे तुम मुंह में ठूंसे रहते हो, इस के तो हर पैकेट पर साफ साफ लिखा है कि इस से क्या क्या हो सकता है, सरकार ने भयानक तस्वीरें भी छाप रखी हैं, फिर भी ज़हर को देख कर कैसे खा पाते हो। शायद बात उस की समझ में आ गई, कहने लगा कि आज से नहीं खाऊंगा.......इतने में उस की बीवी कहने लगी कि अल्होकल का क्या होगा जो इतनी पीते हैं। कहने लगा कि उस का मैं अभी वायदा नहीं करता, कभी कभी कंपनी में बैठ कर पीनी ही पड़ती है .....मैंने कहा कि चलो आज से गुटखे को तो लात मारो, और पंद्रह दिन में मिलने आया करो, दारू को भी देख लेंगे।