गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014

आंतों की सेहत के बारे में सचेत रहें...

पिछले सप्ताह यहां लखनऊ के पीजीआई मैडीकल संस्थान में पेट एवं आंत के विशेषज्ञों की गोष्ठी हुई थी, उस दौरान इन अनुभवी विशेषज्ञों ने बहुत सी काम की बातें मीडिया के साथ शेयर की जिन्हें समाचार पत्रों में भी जगह दी गई। कुछ ऐसी बातें हैं जो मैं इस पोस्ट में शेयर करना चाहता हूं.....

३० से कम उम्र वालों में भी बड़ी आंत का कैंसर.
अब ३० साल से कम उम्र के लोगों में भी बड़ी आंत का कैंसर हो रहा है। संजय गांधी पीजीआई में बड़ी आंत के निचले हिस्से (कोलोन एंड रेक्टम) के कुल मरीजों में २० फीसदी की उम्र ३० साल से कम है। पहले माना जाता था कि बड़ी आंत के इस हिस्से में कैंसर बड़ी उम्र के लोगों में होता है।

घूमते रहते हैं पाइल्स के चक्कर में...
विशेषज्ञों ने कहा कि कोलोन और रेक्टम कैंसर से ग्रस्त कुल मरीज़ों में २० फीसदी मरीज पाइल्स के चक्कर में घूमते रहते हैं। तब काफी देर हो जाता है। मल के रास्ते खून, मल विसर्जन के दौरान दर्द की परेशानी १५ दिन से अधिक समय तक रहे तो डॉक्टर से रेक्टम का परीक्षण ज़रूर करने के लिए कहना चाहिए। इससे गांठ का अंदाजा लग जाता है।

बीमारी की जड़- कब्ज
विशेषज्ञों ने बताया कि लंबे समय तक कब्ज रहने पर बड़ी आंत के निचले हिस्से में परेशानी होने की आशंका बढ़ जाती है। कब्ज से बचने के लिए चोकर युक्त आटे वाली रोटी, सत्तू का सेवन करना चाहिए ..रोज कम से कम दो लीटर पानी पीनी चाहिए। समय से खाना खाएं और रोज मल विसर्जन के लिए जाएं।

झोलाछाप डॉक्टर बिगाड़ देते हैं पाइल्स का केस..
पाइल्स का शर्तिया इलाज करने वाले झोलाछाप डाक्टर १० से १५ फीसदी केस बिगाड़ देते हैं। मरीजों के मल द्वार के पास और अंदर घाव हो जाता है। संक्रमण के कारण सेप्टीसीमिया तक हो जाता है। ऐसे मरीज हालत गंभीर होने पर गैस्ट्रोसर्जन के पास आते हैं।

दरअसल, झोलाछाप डाक्टर जो पाइल्स का शर्तिया इलाज करते हैं वह तेजाब का इंजेक्शन पाइल्स के समीप नस में लगा देते हैं। गलत जगह इंजेक्शन लगने पर मल द्वार और अंदर की सतह जल जाती है। इससे घाव और इंफेक्शन हो जाता है। इसी वजह से पाइल्स का इलाज किसी विशेषज्ञ से ही कराना चाहिए।

पाइल्स है क्या?
 लंबे समय तक कब्ज रहने पर बड़ी आंत के निचले हिस्से में रक्त प्रवाह करने वाली नसें फूल जाती हैं। यही गांठ का रूप बना लेती हैं। इसे पाइल्स कहते हैं। मल विसर्जित करते समय जोर लगाने पर गांठ फूटती है।

इससे मल के साथ रक्त स्राव होता है। ७० प्रतिशत लोगों में कब्ज की परेशानी होती है। पेट साफ करने के लिए दवा ले रहे हैं। पेट साफ नहीं हो रहा है। मल विसर्जन के बाद भी विसर्जन की फीलिंग तीन माह से अधिक समय तक यह परेशानी है तो विशेषज्ञ से सलाह लेना चाहिए।

बिना दर्द संभव होगी कोलोन एंड रेक्टल सर्जरी ...
पाइल्स, टी १ और टी २ प्रकार के छोटे कैंसर, आंत मल द्वार से बाहर आना (कांच उतरना), रेक्टोसील सहित कईं परेशानियों की सर्जरी अब बिना दर्द संभव हो गयी है।

नान सर्जिकल ट्रीटमेंट भी कारगर....
बड़ी आंत के निचले हिस्से में नसों का गुच्छा बन जाता है जिसे फिशर कहते हैं.. मल विसर्जन के समय दर्द, विसर्जन के बाद दर्द, मल में चिपका हुआ खून आता है। ऐसा क्रानिक कब्ज के कारण होता है। कब्ज को दूर कर के इस परेशानी को कम किया जा सकता है। देखा गया है कि लाइफ स्टाइल में बदलाव लाकर, मल द्वार पर लाने वाले क्रीम, लेक्सेटिव दवाओं से ५० से ६० फीसदी केसों में परेशानी दूर हो जाती है। इस परेशानी से ग्रस्त लोगों को फाइबर युक्त आहार (सत्तू, चोकर युक्त रोटी) के साथ खूब पानी पीना चाहिए।

वैसे कितनी बातें जो विशेषज्ञ तो बार बार हमारी अच्छी सेहत के लिए दोहराते रहते हैं, सोचने वाली बात है कि क्या हम इन का कहा मानते भी हैं या बस, ऐसे ही पढ़ा और बस भूल गये। नहीं, ऐसे नहीं चलेगा, विशेषज्ञों की हर बात में राज़ होता है.......वे अपनी बीसियों वर्षों के अनुभव को आप के साथ चंद मिनटों में साझा कर लेते हैं।

अपना ध्यान रखिएगा। 

आ रही है बकरीद

मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकता कि एक बकरा एक-डेढ़ हज़ार रूपये से ज़्यादा का होगा......शायद अगर कोई मुझे कहे कि अब महंगाई हो गई है इसलिए अब बकरा तीन- चार हज़ार या पांच हज़ार का बिकता है, मैं यह भी मान लूंगा।

दो चार दिन पहले की बात है मैंने हिन्दुस्तान समाचार पत्र में एक शीर्षक देखा... १२ से दो लाख तक के बकरे हैं बाजार में, लोग दे रहे मुंह मांगी कीमत। मैं यह पढ़ कर दंग रह गया था।

इसी खबर से कुछ वाक्य उठा कर यहां लिख रहा हूं.....

बकरीद पर होने वाली कुर्बानी के लिए शहर की बकरा मण्डी पूरे शबाब पर है। चौक की बकरा मण्डी में रविवार को बकरा खरीदने वालों की खूब भीड़ उमड़ी। मण्डी में बकरा बारह हजार रूपये से लेकर २ लाख रूपये तक बिक रहे हैं।

खूबसूरती देख बिक रहे बकरे...
मण्डी में बकरा खरीदने आने वाले लोग खूबसूरत बकरों की मुंह मांगी कीमत अदा करने को तैयार हैं। खरीदारों को अपनी ओर आकर्षित करने वाले ऐसे ही तमाम बकरे काफी महंगे कीमत पर बिक रहे हैं।

बकरा बाजार की कीमतें...
अजमेरी बकरा.. २५ हज़ार से १.५० लाख तक
बरबरा बकरा- ३० हज़ार से ८० हज़ार तक
तोता परी बकरा- ६० हज़ार से ३लाख तक
जमुनापनी बकरा- १२ हज़ार से ६० हज़ार तक
देसी बकरा - २० हज़ार से ५० हज़ार तक
दुम्बा- ६० हज़ार से २ लाख तक
बकरा खरीदने आ रहे लोग हर तरह से कर रहे हैं जांच परख, बकरे की सुंदरता भी परख रहे हैं लोग।

ऑनलाइन बिक्री
इसके अलावा ऑनलाइन भी बकरों की खूब बिक्री लग रही है। कई लोग तो ओएलएक्स और क्विक्र (  OLX and Quickr) जैसी साइटों पर भी बकरे बेच और खरीद रहे हैं।

कीमतों का मुझे सच में बिल्कुल अंदाज़ा नहीं है, इस का प्रमाण कल रात भी मिल गया जब हम लोग टाटास्काई के शो-टाइम में हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया फिल्म देख रहे थे....तो आलिया भट्ट फिल्म में अपने बापू से जिद्द करने लगी कि वह तो शादी में ५ लाख की कीमत वाला डिजाईनर लहंगा ही पहनेगी........मैंने तुरंत अपनी श्रीमति जी की तरफ़ देखा ...क्या लहंगे इतने महंगे होते हैं ?......उन की हां ने इस कीमत की पुष्टि कर दी। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि जो दौड़ हम हांफते हुए दौड़े जा रहे हैं, क्या उस का कोई एंड प्वाईंट भी है।

बकरे वाली बात मैं यही खत्म करता हूं......दिल में बहुत सी बातें हैं......अपने परिवार में तो बैठ कर शेयर कर ही लेता हूं लेकिन यहां इस पोस्ट में नहीं लिखना चाहता क्योंकि इस तरह के विषय पर कुछ भी लिखे हुए को अकसर धार्मिक चश्मा पहने कर पढ़ने की कोशिश की जाती है........मुझे इस काम से घोर परहेज है।

मैं तो बस एक ही धर्म को जानता हूं और इसे ही मानता हूं .........इंसानियत।