रविवार, 3 अगस्त 2008

वजन कम करने का सुनहरी फार्मूला !!

अकसर हम लोग खूब पढ़ते रहते हैं कि वजन कम ऐसे होगा, वैसे होगा.....लेकिन कईं बार कुछ ऐसा दिख जाता हैकि हम लोग इस बारे में सोचने पर मजबूर हो ही जाते हैं जैसा कि मेरे साथ पिछले सप्ताह हुआ....मैंने इंगलिश के अखबार में एक कैप्सूल पढ़ा.......

वजन कम करने का सुनहरी फार्मूला क्या है ?
उस के आगे लिखा था कि कम खाओ। प्रतिदिन 500 कैलेरी कम का सेवन करें और हर हफ्ते एक पौंड वजन कमहो जायेगा। और अगर इस के साथ साथ खूब शारीरिक परिश्रम भी करेंगे तो वजन कम होने की यह प्रक्रिया और भी तेज़ हो जायेगी।


बात मेरे भी मेरे मन में लग गई। सोचा कि क्या किया जाए। वैसे किसी नॉन-मैडीकल बंदे से इस बात का ज़िक्र किया जाये तो शायद वह यही कहेगा कि कल से नाश्ता बंद या लंच बंद, या कल से फल बिल्कुल बंद...या कल से चावल बंद ....ऐसे कईं ही विचार किसी के भी मन में आने लगेंगे कि किसी तरह से ये 500 कैलेरी रोजाना कम करनी हैं।

लेकिन यह बात बिलकुल गलत है कि बिना सोचे समझे नाश्ता बंद कर दिया ....लंच बंद कर दिया......हमें सभी आहार करने हैं लेकिन फिर भी अपनी कैलेरी को कम करना है। और विशेषकर यह ध्यान रखना तो और भी ज़रूरी है कि कैलेरी कम करनी है, ठीक है लेकिन आहार तो फिर भी संतुलित ही रहना चाहिये....ऐसा नहीं होगा तो शरीर में तरह तरह की तकलीफ़ें होने लगेंगी। और फायदे की बजाए नुकसान होने की ज़्यादा आशंका है।

अब आप सोच रहे होंगे कि नाश्ता भी लेना बंद नहीं करना, लंच भी खाना है, फल भी खाने हैं तो फिर ये 500 कैलेरी कैसे कम होंगी। तो, ठीक है, मैं अपनी उदाहरण दे कर यह बाद स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं आज कल धीरे धीरे प्रतिदिन 500 कैलेरी कम करने की तरफ़ कैसे बढ़ रहा हूं....

1. मैं बहुत मीठी चाय पीने का शौकीन हूं.....मतलब कि पांच-छः चीनी के चम्मचों का ज़्यादा सेवन ....अर्थात् लगभग तीस ग्राम चीनी ज़्यादा.....यानि कि लगभग 125 कैलेरी का ज़्यादा सेवन......तो मैंने पिछले कुछ दिनों से चाय में चीनी का सेवन बिलकुल कम करना शुरू कर दिया है। और कुछ सही, 100 कैलेरी की तो बचत हो गई।दही में भी चीनी बिलकुल डालनी बंद कर दी है और मीठी लस्सी भी बंद कर दी है।

2.वैसे तो आज सुबह ही दो जंबो साइज़ के आलू के परांठे खाये हैं और वैसे भी रोज़ाना दो परांठे नाश्ते में लेता हूं। पता नहीं पिछले कईं वर्षों से ये परांठे छोड़ रखे थे लेकिन फिर से शुरू कर रखे हैं अर्थात् लगभग बीस ग्राम घी का सेवन इन परांठों की वजह से हो ही जाता है.......तो लगभग 200 कैलेरी तो इन्हीं परांठों के द्वारा ही शरीर में पहुंच गईं। तो अबयह फैसला किया है कि आने वाले दो-तीन दिनों में परांठों को भी पूरी तरह बंद कर दूंगा।
अगर मैं यह भी कर पाऊं तो कुल 300 कैलेरी एक्स्ट्रा प्रतिदिन लेने से बच जाऊंगा।

3. आगे आइए....आप के सामने एक और राज़ खोल ही दूं कि किस तरह आदमी अपनी आदतों के हाथों का खिलौना होता है।
पिछले कुछ सालों से मैंने दाल में घी या मक्खन के एक-दो चम्मच उंडेलने बंद किये हुये थे लेकिन पिछले कुछ महीनों से फिर यह काम करने लगा था जो कि पिछले कुछ दिनों से बंद पड़ा है। यानि की लगभग 50-100 कैलेरीकी और बचत।

4. बचपन से ही एक आदत है कि लगभाग रोज़ाना( डाक्टर, तू तो यार खुदकुशी की पूरी तैयारी कर रहा है !!) चावल में दूध-चीनी या घी-चीनी डाल कर खाना( वैसे बचपन में तो चीनीके परांठे भी खूब खाये हैं) .....अब अगर मेरी उम्र में यह सब चलता रहेगा तो कैसे चलेगा......यह तो वही बात हो गई कि आदमी अपने पैरों पर खुद कुल्हाडी मारता रहे। अब अगर दूध-चीनी-चावल या घी-चीनी-चावल रोजाना खाये जा रहे हैं तो लगभग 100-150 कैलेरी तो शरीर के अंदर जा ही रहे हैं। तो, अब मैंने कईं दिनों से यह वाली आदतभी छोड़ दी है क्योंकि ज़्यादा वज़न के बुरे परिणाम रोज़ाना देख कर, सुन कर, पढ़ कर डरने लगा हूं।

मैंने अपने खाने पीने की बातें यहां इस लिये लिखी हैं कि मैं एक बात को रेखांकित कर सकूं कि हमें कम खाने के लिये अपना खाना कम करने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन यूं ही ऊल-जलूल खाने से बचना होगा जैसे कि बच्चे के हाथ में बिस्कुट देखे तो खुद भी दो-तीन खा लिये....आधी कटोरी भुजिया ऐसे ही ज़रूरत होते हुये भी निगल डाली......ये कैलेरीज़ हमें देती तो कुछ भी नहीं, केवल गलत जगहों पर जा कर जम जाती हैं।

वैसे आप भी कहीं यह तो नहीं सोच रहे कि यार, डाक्टर तू अपनी पोस्टों में प्रवचन तो अच्छे-खासे करता है लेकिन तेरा खुद का खाना-पीना इस तरह का है या रहा है, यह पढ़ कर बहुत हैरानगी हो रही है। ठीक है, आप का हैरान होना मुनासिब है, लेकिन मेरी मजबूरी यह है कि मैं आपसे झूठ नहीं बोल सकता...जब तक मैं पूरी सच्चाई आप के सामने रखूंगा तो मैं अपनी बात ठीक तरह से कह ही नहीं पाऊंगा।

और हां, यह भी बताना चाह रहा हूं कि पिछले कुछ दिनों से रोज़ाना 30-40 मिनट का भ्रमण करना भी शूरू करदिया है। लेकिन बस एक ही मुश्किल है कि इन आमों के ऊपर कंट्रोल नहीं हो रहा.......रोज़ाना दो-तीन आम तो खा ही लेता हूं......क्या करूं ये आम मेरी कमज़ोरी हैं। लेकिन, एक सुकून है कि चलिये अब तो आम खत्म होने का टाइम आने को है। अगले सीज़न से एहतियात बरतूंगा।

तो, इतनी बातें करने का मतलब तो बिलकुल साफ़ ही है कि हम अपने आहार में छोटे मोटे बदलाव कर के भीअपनी कैलेरी की खपत को अच्छा-खासा कम कर सकते हैं। आप किस सोच में पड़ गये ??....मेरे साथ साथ आप भी तो कुछ बदलाव करिये, साथ रहेगा तो बदलाव निभ जायेंगे, मैं आप के resolutions की इंतज़ार कर रहा हूं।

एटीएम - एनी-टाईम-मगजमारी !!

क्या यार, ये एटीएम हैं या एनी-टाईम-मगजमारी......ये भी हमें अकसर बहुत ही नाज़ुक समय में धोखा दे जाते हैं। इस लिये मुझे तो ये मगजमारी के केन्द्र ज़्यादा लगने लगे हैं।

इन मगजमारी केन्द्रों पर जा कर मुझे तो अकसर निराशा ही हाथ लगती है। शायद 10 फीसदी मौकों पर ही मैं इन के थ्रू पैसा निकालने में सफल होता हूं।

एक बार जब मैं बार एक ऐसे ही एटीएम( मगजमारी केन्द्र) पर चक्कर लगा लगा कर परेशान हो गया तो मैंने मैनेजर से मिल कर इन मशीनों के डाउन-टाईम के किसी लॉग के बारे में जानना चाहा। मैं यह जानना चाह रहा था कि एक महीने के दौरान यह जो आपकी एटीएम मशीन किन्हीं भी कारणों की वजह से खराब रहती है, क्या इस का कोई रिकार्ड मेनटेन किया जाता है क्या ...( लॉग-बुक) , तो उस ने भी मुझे अच्छा खासा टरका दिया कि हां, हां, यह सारा रिकार्ड तो हैड-आफिस में रखा ही होता है। मैं सारा माजरा समझ गया।

अभी लिखते लिखते एक बात ध्यान में और भी आ रही है कि यार, आप सब हिंदी ब्लोगिंग करने वाले ज़्यादा मुश्किल हिंदी मत लिखा करें। सीधी-सादी बोल चाल वाली भाषा लिखा करें.....कईं बार जब किसी मुश्किल शब्द से भिड़ना पड़ता है तो बाकी की पोस्ट पढ़ने में ही कंटाला आता है। मैं समझता हूं कि हम लोगों का काम है हिंदी को बढ़ावा देना.....ज़्यादा संभ्रांत हिंदी लिख कर हम कौन सा हिंदी को पिछले 60 वर्षों में आगे बढ़ा पाये हैं....हमें आम आदमी की, अनपढ़ आदमी वाली हिंदी लिखनी होगी जिसे रिक्शे वाला भी समझे , कुली भी समझे और पनवाड़ी भी समझ ले। मुझे खुद हिंदी के बड़े बड़े शब्द देख कर बहुत डर लगता है। खास कर जिन टैक्नीकल शब्दों के नाम हिंदी में बहुत मुश्किल हैं, उन्हें तो देवनागरी लिपि में ही लिख के छुट्टी करनी चाहिये। शायद मैं कहीं हिंगलिश की बात तो नहीं कर रहा......अगर हमारी भाषा आम आदमी की होगी तो उसे भी लिखने की प्रेरणा मिलेगी।

हां, तो उस एनी टाईम मगजमारी मशीनों की बात चल रही थी। मेरा तो भई इन के साथ अनुभव बेहद बेकार रहा है....लोगों के अनुभवों की भी दासतानें सुनता रहता हूं लेकिन अभी तो अपनी ही बात करूंगा।

हां, तो मैंने भी शौक शौक में शायद एक बिलकुल बेहूदा से स्टेट्स-सिंबल के रूप में दो-तीन बैंकों के एटीएम ले रखे हैं जिन में से एक तो पिछले एक महीने से गुम है.....इसी उम्मीद से रिपोर्ट नहीं लिखवाई कि इस कमबख्त को दोबारा बनवाना भी अच्छा खासा मुश्किल काम है....शायद कहीं पड़ा मिल ही जाए।

आज सुबह मुझे कुछ पैसे ज़रूरी चाहिये थे। घर के पास एक एटीएम पर गया.....दो तीन बार ट्राय किया....बार बार यही आया कि transaction declined..... ! कईं बार मेरे जैसे बंदे को यह भी वहम हो जाता है कि कहीं मेरे एटीएम से बाहर निकलने पर ही यह मशीन नोट न उगल दे। खैर, जब मेरे पीछे जैंटलमेन ने भी यह बताया कि पैसे नहीं निकल रहे तो तसल्ली हुई कि ठीक है, इस मशीन में पिछले सैंकड़ों मौकों की तरह इस बार भी धोखा दे दिया।

बरसात में भीगते हुये मैं उसी बैंक के एक दूसरे एटीएम जो कि चार-पांच किलोमीटर दूर था वहां पहुंच गया, लेकिन वहां पर भी निराशा ही हाथ लगी।

मैंने सोचा चलो स्कूटर पर चलते चलते भीग तो चुका ही हूं अब तीसरा एटीएम भी ट्राई कर लिया जाये ..जो कि वहां से तीन-चार किलोमीटर की दूरी पर था। लेकिन वहां पर भी कुछ हाथ नहीं लगा।

ये एटीएम के सालाना हम से कुछ पैसे लिये जाते हैं...तो क्या ये consumer protection act के दायरे में नहीं आते ?....मुझे लगता तो है कि ये ज़रूर आते होंगे....आदमी को पैसों की ज़रूरत है, लेकिन उसे ठीक मौके पर एटीएम से पैसे नहीं मिलते तो क्या यह सर्विसिज़ की कमी नहीं है ? ....मुझे लगता तो है कि यह कमी है लेकिन अब अकेला आदमी कहां कहां मगजमारी करे।

हां, इन मगजमारी सैंटरों के साथ हुये मेरे दर्जनों अनुभवों ने तो मुझे सिखा दिया है कि यार, इन पर कभी भी ज़रूरत से ज़्यादा भरोसा मत करो......इन्होंने मुझे तो ऐन मौके पर बहुत बार धोखा दिया है। कईं बार तो रेलवे स्टेशन पर भी मेरे साथ यह हो चुका है।

तो इसलिये इस से यही सीख मैंने ली है कि जेब में अच्छे-खासे पैसे हर समय रहने चाहिये....क्योंकि इन मगजमारी केन्द्रों का तो कोई भरोसा ही नहीं है।

मुझे यह समझ में यह नहीं आता कि कंप्यूटर के क्षेत्र में इतनी तरक्की होने के बावजूद भी किसी एटीएम में कैश खत्म होने पर इस के बारे में सूचना स्क्रीन पर क्यों नहीं आ जाती....कैश खत्म होने पर भी सैंकड़ों लोग अगली सुबह तक उस मशीन से मगजमारी करते रहते हैं और यह सिलसिला तब तक जारी रहता है जब तक अगली सुबह बड़ा-बाबू आकर उस मशीन में नोट नहीं ठूंस देता।

और हां, एक बार और भी है कि हम लोग बहुत तरक्की कर चुके हैं....मुझे कैसे पता चला ?.....बस, सुनी सुनाई बात कर रहा हूं....तो ऐसे में आखिर क्यों कईं बार हम लोग मीडिया में रिपोर्ट पढ़ते हैं कि फलां-फलां एटीएम से कुछ नोट नकली निकले।

इन्हीं कारणों से मुझे तो यही ठीक लगता है कि जब बैंक खुला हुया हो तभी ही atm पैसे निकलवाने चाहिये......वरना बाद में तो बहुत झिक-झिक हो जाती होगी अगर नकली नोट वगैरा निकल आता होगा तो ।

एटीएम के बाहर लिखा भी रहता है कि एक समय में एक ही आदमी अंदर जायेगा लेकिन आम तौर पर एटीएम के अंदर कईं कईं लोग घुस जाते हैं......बिलकुल एसीडी बूथ जैसा माहौल ही बनता जा रहा है।

पिछली बार मैंने दो-बार एक एटीएम से पैसे निकलवाये तो मुझे मेरे साथ खड़ा एक जैंटलमैन कहने लगा कि ....अब बस करो, कैश खत्म हो जायेगा।

आज यमुनानगर में इतनी उमस है कि क्या बताऊं....ऐसे में इस एटीएम की बात और कितनी खींचूं ......इतना ही कह कर विराम लेना चाह रहा हूं कि हमारे एटीएम सिस्टम के साथ कुछ ज़्यादा ही गड़बड़ है........कहीं बैंकों ने इन्हें भी तो एक स्टेटस सिंबल की तरह ही तो नहीं खोल दिया और अब ये माथा-पच्ची एवं मगजमारी के अड्डे बन चुके हैं। बेचारे अनपढ़ लोगों की हालत तो इन जगहों पर और भी दयनीय होती है.....उन्हें तो कईं बार यही लगता है कि उन का पैसा मशीन में ही फंसा रह गया है।

जो भी हो, मेरा तो एक्सपीरियैंस इन के साथ काफी खराब ही रहा। trasaction declined ....भला क्यों भई , कोई खैरात बांट रहे हो क्या ??