शुक्रवार, 4 जून 2010

अमेरिकी टीनएजर्स का सैक्सुअल बिहेवियर- एक रिपोर्ट

अमेरिका की एक सरकारी संस्था है --सैंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल-- इस ने कल ही वहां के टीनएजर्स के सैक्सुअल बिहेवियर के बारे में एक रिपोर्ट जारी की है ---CDC Report Looks at Trends in Teen Sexual Behaviour; Attitudes toward Pregnancy.
इस रिपोर्ट के मुताबिक कुछ बातें हैं जिन्हें हिंदी चिट्ठों के पाठकों से साझा करना ज़रूरी लग रहा है। मैंने ये आंकड़े इस रिपोर्ट के आधार पर cnn.com पर छपी इस स्टोरी से लिये हैं-- Teens having sex: Numbers staying steady.
15से19 साल के युवक-युवतियों के सैक्सुअल बिवेवियर के बारे में छपी इस रिपोर्ट के अनुसार 2006 से 2008 के दो साल के आंकड़ों से यह पाया गया है कि 42 प्रतिशत से ज़्यादा अथवा 43 लाख टीनएज किशोरियां कम से कम एक बार यौन संबंध बना चुकी हैं। टीनएज लड़कों के लिये ये आंकड़ें 43 प्रतिशत के हैं या 45 लाख लड़के।
जिन लड़के-लड़कियों का सर्वे किया गया उन में से 30 प्रतिशत के दो अथवा उस के अधिक पार्टनर रहे हैं। जिन टीनएज लड़कियों ने छोटी उम्र में ही पहला सैक्सुअल अनुभव किया था, उन के पार्टनर ज़्यादा होने की संभावना रहती है। और यह भी पता चला कि जो टीनएज़र अपने मां-बाप की पहली संतान हैं और 14 वर्ष की आयु में अगर वे एक टूटे परिवार (जहां मां-बाप एक साथ नहीं रहते) में रहते हैं तो उन के सैक्सुअली एक्टिव होने की संभावना ज़्यादा होती है।
यह तो आप जानते ही हैं कि अमेरिका में टीनएज उम्र की लड़कियों के मां बनने के आंकडे़ काफी ऊपर हैं। अमेरिका के बाद अगला नंबर है युनाइटेड किंगडम का। कैनेडा में टीन-बर्थ रेट है 1000 में से 13 (13 per1000) जब कि अमेरिका में यह रेट है 43 per 1000.
इस स्टोरी में तो यह भी लिखा गया है कि उन्हें इस बात की तसल्ली तो है कि लगभग 80 प्रतिशत टीनएज लड़कियां और 90 प्रतिशत टीनएज लड़के अपने पहले सैक्सुअल अनुभव के वक्त किसी न किसी तरह का गर्भनिरोध का तरीका इस्तेमाल करते हैं। कांडोम के गर्भ निरोध के लिये सब से ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है। 95 प्रतिशत सैक्सुअली अनुभवी लड़कियों ने कम से कम एक बार इस का उपयोग किया है। इस के बाद नंबर आता है वीर्य-स्खलन से पहले ही withdraw कर लेना और उस के बाद में नंबर आता है गर्भनिरोधक गोली का।
और जो टीनएजर पूरी तरह से यौन संबंधों से किनारा किये रहते हैं उन का इस तरह के व्यवहार से दूर रहने के नैतिक अथवा धार्मिक कारण पहले नंबर पर हैं --दूसरा नंबर है गर्भ ठहर जाने का डर। इस स्टोरी में यह भी लिखा है कि ऐसा नहीं कि प्रेगनैंसी ने किसी तरह से टीनएजर्स को रोक के रखा हुआ है। इस में लिखा है कि मां बाप को तो शायद सुन कर हैरानगी होगी कि ऐसे लड़के लड़कियों (जो इस तरह के संबंधों में लिप्त होते हैं) में से लगभग एक चौथाई ने तो यह कहा कि उन्हें खुशी होगी अगर वे गर्भवती हो जाएं अथवा अपने पार्टनर को गर्भवती कर दें।
और अधिकांश टीनएजर्स -- 64 प्रतिशत लड़कों एवं 71 प्रतिशत लड़कियों ने यह माना कि अगर शादी-ब्याह के बिना बच्चा हो भी जाता है तो यह ठीक है।
और एक दुःखद बात देखिये --सर्वे में पाया गया है कि 15 से 19 उम्र की टीनएज लड़कियों में यौनजनित रोग ---क्लैमाइडिया एवं गोनोरिया रोग (Chlamydia and Gonorrhoea)...किसी भी दूसरे आयुवर्ग एवं लड़कों की तुलना में काफी ज़्यादा संख्या में हैं।
इस स्टडी के लिये लगभग 3000 टीनएज लड़के लड़कियों का इंटरव्यू लिया गया था।
आप किस सोच में पड़ गये ? ऐसा ही लगते है ना कि ज़माना वास्तव में ही बहुत आगे निकल गया है। और यहां पर कुछ समय पहले शायद एक लिव-इन रिलेशशिप पर कोई फैसला आया था तो कितना बवाल मचा था । अब क्या ठीक है क्या गलत----- यह निर्णय करना एक लेखक का काम नहीं, उस का काम है तसवीर पेश करना, सो कर दी है। वैसे जो ऊपर cnn वाली स्टोरी है उस पर टिप्पणीयां बहुत ही आई हुई हैं, हो सके तो देखियेगा। मुझे तो टाइम नहीं मिला। आज शायद पहली बार मैंने इस तरह के सरकारी आंकड़े पढ़े हैं, सुनी सुनाई बात और होती है और प्रामाणिक तौर पर जारी कोई रिपोर्ट ही विश्वसनीय होती है।
बस इस बात को इधर यहीं पर दफन करते हैं। वैसे भी ...... हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है.....।

तो क्या अब मधुमेह से बचने के लिये भी दवाईयां लेनी होंगी?

एक बार तो यह रिपोर्ट देख कर मेरा भी दिमाग घूम गया कि अब नौबत यहां तक आ पहुंची है कि मधुमेह जैसे रोग से बचने के लिये भी दवाईयों का सहारा लेना होगा। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि प्री-डॉयबीटिज़ को मधुमेह तक न पहुंचने में दवाईयां सहायता कर सकती हैं।
प्री-ड़ॉयबीटिज़ से तो आप सब भली भांति परिचित ही हैं ---यानि कि डॉयबीटिज की पूर्व-अवस्था। इस के बारे में जाने के लिये इस पोस्ट को देख सकते हैं...क्या आप प्री-डॉयबीटिज़ के बारे में जानते हैं ?
हम सब लोग समझते हैं कि हैल्थ-जर्नलिज़्म भी एक मिशन जैसा काम है। ऐसा नहीं हो सकता कि किसी को भी कुछ भी परोस कर हम किनारा कर लें----क्योंकि हैल्थ से जुड़ी न्यूज़-रिपोर्ट को लोग कुछ ज़्यादा ही गंभीरता से लेते हैं ---इसलिये इन में हमेशा वस्तुनिष्ठता (objectivity) का होना बहुत लाज़मी सा है।
पता नहीं जब मैंने भी इस रिपोर्ट....Drug Combo staves off Type2 Diabetes-- को पढ़ना शुरु किया तो बात मुझे बिल्कुल हज़्म नहीं हो रही थी लेकिन जैसे तैसे पढ़ना जारी रखा तो बहुत सी बातें अपने आप ही स्पष्ट होने लगीं ---अर्थात् इस तरह की सिफारिश कर कौन रहा है, इस तरह का अध्ययन कितने लोगों पर किया गया है, यह स्टड़ी करने के लिये फंड कहां से आए और सब से अहम् बात यह कि इस के बारे में मंजे हुये विशेषज्ञों का क्या कहना है?
एक बात का ध्यान आ रहा है कि जिन दवाईयों की बात हो रही है उन में से एक के तो कभी कभी बुरे प्रभाव भी देखने को मिलते हैं और इस तरह की कुछ रिपोर्टें पीछे देखने को भी मिलीं। लेकिन जब विशेषज्ञ डाक्टर किसी मधुमेह के रोगी को ये दवाईयां देते हैं तो सब देख भाल कर देते हैं और उन के प्रभावों को नियमित मानीटर करते रहते हैं ----और रिस्क और लाभ को तोल कर---भारी पलड़ा देख कर ही इस तरह के निर्णय लेते हैं। लेकिन जब इस तरह की दवाईयों की बात मधुमेह से बचने के लिये की जाए तो किसी के भी कान खड़े हो जाना स्वाभाविक सा ही है।
हां, तो जब सारी रिपोर्ट पढ़ी तो यह पता चला कि यह अध्ययन केवल 207 लोगों पर किया गया ---जैसा कि इस रिपोर्ट में बताया गया है कि चाहे किया तो इसे गया लगभग चार साल के लिये लेकिन इस स्टडी को करने के लिये ये दवाईयां बनाने वाली कंपनी ने फंड उपलब्ध करवाये। और साथ ही साथ आप पारदर्शिता की हद देखिये कि रिपोर्ट में एक तटस्थ विशेषज्ञ (independent expert) की राय भी छापी गई है।
विशेषज्ञ की राय की तरफ़ भी ध्यान करिये कि वह कह रहे हैं कि प्री-डायबीटिज़ एक ऐसी अवस्था तो है जिस के बारे में जागरूक रहने की ज़रूरत है और इस को डायबीटिज तक पहुंचने से रोकने के लिये अपना वज़न नियंत्रित करने के साथ साथ नियमित शारीरिक व्यायाम करना भी बेहद लाजमी है। रिपोर्ट के आखिरी लाइन में तो उस ने यह भी कह दिया कि इस छोटे से अध्ययन के परिणामों से यह नहीं कहा जा सकता कि इन दवाईयों के प्रभाव से प्री-डायबीटिज को डायबीटिज़ में तबदील होने से रोका जा सकता है।
अब आप देखिये कि हैल्थ रिपोर्टिंग कितने ध्यान से की जानी चाहिये----अखबारों में छपी इन खबरों को हज़ारों-लाखों लोग पढ़ते हैं और फिर बहुत बार रिपोर्ट में लिखी सारी बातों को पत्थर पर लकीर की तरह मान लेते हैं। और तो और, अगर किसी हिंदी अखबार में यही खबर छपे तो पता है कैसे छपेगी-----डायबीटिज़ से बचने के लिये वैज्ञानिकों ने रोज़ाना दवाई लेने की सलाह दी है -------और शीर्षक भी कुछ ऐसा ही होता -----"डायबीटिज़ की रोकथाम के लिये लें दवाईयां" ।
अच्छा तो हो गई खबर----अब आपने क्या फैसला किया है --- शायद मेरी ही तरह रोज़ाना टहलने का मन बनाया हो, मीठा कम करने की ठानी हो और मैंने तो फिर से साइकिल चलाने की प्लॉनिंग कर ली है।
मुझे यह सब लिखने का बड़ा फायदा है---- मेरे गुरू जी कहते हैं कि तुम लोग किसी बात को अपनी लाइफ में उतारना चाहते हो तो उस से संबंधित ज्ञान को दूसरों के साथ बांटना शूरू कर दो ----इस से जितनी बार तुम दूसरों को इस के बारे में कहोगे, उतनी ही बार अपने आप से भी तो कहोगे और वह पक्की होती जायेगी। मेरे खाने-पीने के साथ भी ऐसा ही हुआ ----मैं पिछले कुछ वर्षों से जब से सेहत विषयों पर लिख रहा हूं तो मैंने भी बाहर खाना बंद कर दिया है, जंक बिल्कुल बंद है -------क्या हुआ छः महीने साल में एक बार कुछ खा लिया तो क्या है !!
अब मैं चाहता हूं कि नियमित शारीरिक व्यायाम और मीठे के कंट्रोल के बारे में भी मैं इतनी बातें लिखूं कि मुझे भी थोड़ी शर्म तो महसूस होने लगे ------परउपदेश कुशल बहुतेरे!!!!

मूंगफली मुक्त अमेरिकी उड़ाने ?

अमेरिका में कुछ लोगों को मूंगफली से एलर्जी है इसलिये वहां पर एयरलाइन कंपनियां अपनी उड़ानों को मूंगफली मुक्त करने पर गंभीरता से विचार कर रही हैं। आप स्वयं भी cnn यह रिपोर्ट पढ़ सकते हैं --US considers banning peanuts on planes.
यह मानना पड़ेगा कि उन देशों में यह एलर्जी वगैरह की टैस्टिंग बहुत बढ़िया ढंगों से की जाती है। क्या आपने अपने यहां भी कभी सुना कि किसी को मूंगफली से एलर्जी है, मैंने तो नहीं सुना। एक बात और भी है ना कि यहां तो वैसे ही हमारे पास सेहत से जुड़े इतने बड़े बड़े मुद्दे हैं कि अब इस मूंगफली की एलर्जी को कौन ढूंढवाता फिरे ?
अमेरिका में तो केवल मूंगफली से ही नहीं, इन उड़ानों के दौरान मूंगफली से बनी अन्य चीज़ों पर भी रोक लगाने का मामला विचाराधीन है। मूंगफली से और क्या बनता है? -- आप भी मेरी तरह गज्जक (चिक्की) के बारे में सोच रहे हैं, लेकिन इस से मक्खन भी बनता है (Peanut butter).
कुछ महीने पहले मैंने एक लेख लिया था कि कैसे विदेश में कुछ स्कूलों ने बच्चों के मूंगफली खाने पर प्रतिबंध लगा दिया है-- क्योंकि वहां कुछ बच्चों को इस से एलर्जी होती है।
चलिये, वहां तो इस तरह के प्रतिबंध लगाये जा रहे हैं, विचाराधीन हैं---लेकिन हम यहां क्या करें ? आप भी मेरी तरह मूंगफली का जश्न तब तक मनाते रहें जब तक कि कोई विदेशी कंपनी के महंगे टैस्ट आपके या मेरे कान खींच कर यह न कह दे कि ओए, यह क्या खा रहा है, तेरे को तो इस से एलर्जी है?
यह तो मानते ही हैं कि मूंगफली प्रोटीन का एक बेहत उमदा स्रोत है। और हमारे देश में खून की कमी (एनीमिया) की बीमारी बहुत आम है। इसलिये मैं हरेक को विशेष कर कमज़ोर महिलाओं को एवं सभी बच्चों को यह सलाह देता हूं कि ठीक है सर्दियों में मूंगफली खाएं लेकिन रात को अगर एक मुट्ठी मूंगफली के कच्चे दाने पानी में भिगो के सुबह गुड़ के साथ नाश्ते के समय खा लें तो बहुत बढ़िया रहता है। मैं भी कईं साल ऐसा करता रहा हूं।
कईं बार ऐसा प्रश्न सामने आता है कि यह सब क्या ग्रीष्मकाल में भी ? ---जी हां, बिल्कुल गर्मी के मौसम में भी इसे भिगो कर खाते रहें --- यह सेहत के लिये, खून की कमी को पूरा करने के लिये बहुत बढ़िया देसी जुगाड़ है। लेकिन यह ध्यान रहे कि ऐसे लोग जो पहले ही से ओवर-व्हेट हैं, स्थूल काया के हैं, मोटापे से परेशान हैं, वे इस के इस्तेमाल से बच कर रहें।
और एक बात ---अब हमें आने वाले समय में सचेत रहना होगा कि हम लोग इन उड़ानों के दौरान जेब में मूंगफली डाल पर हवाईअड्डों पर न दिखें ---- और न ही वहां रह रहे अपने सगे-संबंधियों के लिये मूंगफली से तैयार किये कुछ उम्दा खाद्य पदार्थ ही वहां लेकर जाएं -----कहीं ऐसा न हो कि उड़ान के दौरान किसी को मूंगफली से एलर्जी का अटैक हो जाए और आप के लिये आफ़त हो जाए।
अपने यहां कोई दिक्कत नहीं ---खाते जाएं....चबाते जाएं --मस्त रहें, लेकिन छिलके केवल डस्टबिन में --नहीं तो घर में भी डांट पड़ती है और बाहर लोग बड़े अजीब ढंग से घूरने लगते हैं।
संपादित --15:30......इस पोस्ट पर आई टिप्पणीयां देख कर लगा है कि मैडीकल लेखन में हर बात को खोल के लिखना कितना ज़रूरी है, मुझे लगता है कि मेरी मूंगफली से एलर्जी वाली बात को पाठकों ने वह एलर्जी समझ लिया है जिस के बारे में हम लोग अकसर कह देते हैं कि यार, मुझे यार तेरी इस बात से बड़ी एलर्जी है , मुझे उस से बड़ी एलर्जी है। लेकिन यहां बात हो रही है मैडीकल एलर्जी की ---जिस में मूंगफली खाने से या उस के संपर्क में आने से वही सब कुछ होता है जो किसी को दवाई की या किसी इँजैक्शन से एलर्जी के कारण होता है ---सारे शरीर में सूजन, खाज-खुजली, सांस लेने में दिक्तत, घबराहट और यहां तक कि बहुत बार तो इस के लिये तुरंत कुछ टीके भी लगवाने पड़ सकते हैं ---कईं बार कुछ एैंटी-एलर्जिक दवाईयों से भी काम चल जाता है।