बुधवार, 7 जनवरी 2015

दिमाग के डाक्टर के दिल से निकली बातें...

लखनऊ में बुज़ुर्ग पेड़ों की कमी नहीं है...
परसों दोपहर में विविध भारती प्रोग्राम लगाया तो सेहतनामा लग गया...इस में मुंबई के एक प्रसिद्ध मनोरोग विशेषज्ञ से बातचीत का दूसरा हिस्सा सुना रहे थे....पहला हिस्सा पिछले सप्ताह सुना चुके थे, मैंने उसे तो नहीं सुना, लेकिन परसों वाले कार्यक्रम को ध्यान से सुना ताकि जो भी काम की बातें डाक्टर के दिल से निकलेंगी आप के साथ शेयर करूंगा।

सब से पहले तो उन्होंने आधुनिक वैवाहिक जीवन को सफल बनाए रखने के लिए कुछ गुरू-मंत्र बताए... . उन का ध्यान नहीं आ रहा। लेकिन उस में इतनी कौन सी बड़ी बात है, जिसने यह लड्डू खाया है, वह तो अपने आप ही सीख िलया होगा, और जिस ने अभी नहीं खाया, अपने आप ही देर-सवेर सीख जाएगा या जायेगी।

जो जो बातें मुझे याद आती जाएंगी, मैं यहां लिख रहा हूं.

एक बात पर उन्होंने जोर दिया कि अपने ऑफिस में तनाव-मुक्त वातावरण रखने के लिए चेहरे पर मुस्कान बनाए रखिए.. कह रहे थे अगर सामने वाला नहीं भी हंसा तो उस के हाइपोथेलेमस (दिमाग का एक भाग जो इस क्रिया को कंट्रोल करता है) में शायद कोई समस्या हो, लेकिन आप का तो सब कुछ ठीक है, तो सदैव हंसते-मुस्कुराते रहिए...अच्छी लगी उन की यह बात।



ऑफिस में स्ट्रेस कम करने के लिए उन्होंने कहा कि काम करते करते बीच में माइक्रो-ब्रेक लेने भी बहुत ज़रूरी हैं.. जिस दौरान थोड़ा प्राणायाम् ही कर लिया, गहरे सांस ही ले लिए, थोड़ा इधर उधर टहल लिया। और एक बात पर उन्होंने विशेष बल दिया कि घर आते ही टीवी ऑन कर के उस के सामने मत टिक जाया करिए।

एक बात पर उन्होंने जोर दिया कि शादी के बाद अगर लडकी पर इमोशनल अत्याचार या शारीरिक हिंसा हो रही है तो उसे उसी वक्त मां-बाप को बताना ज़रूरी है..डाक्टर ने कहा कि पहले कहते थे एडजस्ट करो, अब कहते हैं फोन करो... आगे उन्होंने कहा कि शादी तोड़ना कोई शर्म की बात नहीं, जुल्म सहना खतरनाक है। उन्होंने यह भी कहा कि खानदान की इज्जत बचाए रखने की कोई ज़रूरत नहीं है। उन का तर्क यह था कि जैसे पानी में कूदते ही पता चल जाता है कि तापमान कैसा है, उसी तरह शादी के पहले महीने में ही काफी कुछ पता चल जाता है।

मुझे यह बात थोड़ी अजीब सी लगी....जिस एग्रेसिव ढंग से उन्होंने यह बात की.....कि बस जैसे कुछ भी हो और रिश्ता तोड़ दिया जाए। हो सकता है कुछ वर्गों के लिए यह काम कर जाए फार्मूला ..लेकिन मैं समझता हूं कि यह हर जगह काम नहीं कर सकता.....कोई बेलेंस करने की कोशिश करनी चाहिए....वह तो मैं मानता हूं कि जुल्म सहना खतरनाक है...लेकिन डाक्टर की यह बात थोडी अजीब सी प्रतीत हुई... पहले कहते थे एडजस्ट करो, अब कहते हैं फोन करो।
ऐसा नहीं होगा कि डाक्टर ने यह घुट्टी पिला दी और ऐसा ही होने लगेगा.......ऐसा नहीं होता, इस तरह का कदम उठाने से पहले लड़की को भी अपने पैरों पर खड़ा होने की ज़रूरत है।

इस के बाद उन्होंने मिजिल एज क्राईसिस की बात की ...महिलाओं में जब मीनोपॉज होता है और पुरूषों में एन्ड्रोपॉज़... शरीर में कुछ बदलाव आते हैं....उन के लिए तैयार रहना चाहिए। बता रहे थे कि cynical होने से काम नहीं चलता, हर वक्त यही कहना कि प्रतिभा की कद्र नहीं हो रही ... रिस्क लेना आना चाहिए... आप अपने विज़िटिंग कार्ड पर मत जिएं.....ऐसा भी ज़रूर करें जिसे करना आप को अच्छा लगता है।

बुढ़ापे में मानसिक स्वास्थ्य

डाक्टर ने बड़े शायराना अंदाज़ में यह फरमाया..
एक बूढ़ा जी रहा है इस शहर में
एक अकेली कोठड़ी में जैसे रोशनदान है।।

बुज़ुर्ग लोगों के लिए भी मनोरोग विशेषज्ञ ने बड़े काम की बाते कीं। इस बात विशेष जोर दे कर कहा कि अपनी रिटायरमैंट प्लॉनिंग ज़रूर करनी समय रहते कर लेनी चाहिए। डा ने कहा कि रिटायर होने के बाद चपरासी भी सलाम नहीं ठोकेगा और बीवी भी नहीं पूछेगी......मैं इस बात से सहमत नहीं हूं, इस देश की नारियां ऐसी नहीं हैं।

बुजुर्ग लोगों को डाक्टर ने सलाह दी कि अपने जीवन को एक्टिव रखना चाहिए... अखबार पढ़े, किताबें पढ़ें, चर्चा में शामिल हों, puzzles को हल करें... अपने जैसे लोगों को तैयार कर के एक स्पोर्ट ग्रुप (support group) बनाएं... टहलने की आदत डालें... लेकिन मजाक में उन्होंने कहा कि अगर चिकित्सक ने चार गोली लेने को कहा है तो चार ही लेना, दो नहीं लेना......और जो लोग घूमते-फिरते-टहलते रहते हैं...पढ़ने लिखने में बिजी रहते हैं, वे स्वस्थ रहते हैं.. मुन्ने की चिंता न करने की सलाह दी, मुन्ना अपनी जिंदगी स्वयं जी सकते हैं।

अगर बुज़ुर्ग लोग हंसना, पढ़ना, लिखना, टहलना छोड़ देते हैं, घर से बाहर ही नहीं निकलते, कोई support system तैयार नहीं कर पाते तो ये अवसाद (्डिप्रेशन) का शिकार हो जाते हैं...... वे चुप से हो जाते हैं.....अगर वे इस तरह की बातें करने लगें कि मेरा तो सारा काम हो गया है, इस का यह मतलब कि वे डिप्रेस हो गये हैं.... उदासीनता ने उन्हें घेर लिया है...उन की बैटरी डिस्चार्ज हो गई है जिसे तुरंत रिचार्ज किए जाने की ज़रूरत है।

दोस्तों,मैंने भी कुछ रिसर्च देखी थीं कि जो बुजुर्ग किसी आध्यात्मिक संगठन के साथ जुड़े रहते हैं नियमितता से... अपने हमउम्र लोगों के साथ बैठते हैं, हंसी मजाक करते हैं, ताश खेलते हैं, गपशप करते हैं... वे बहुत सी बीमारियों से बचे रहते हैं........मैंने भी अनुभव किया है कि सतसंग में जिन बुज़ुर्गों को देखता हूं वे सब एकदम हंसते-मुस्कुराते मिलते हैं......feeling on the top of the world! एक कहावत भी है ....
Prayer may not change things for you!
It changes you for the things!!

 वैसे ऐसा होना तो नहीं चाहिए, यह क्या, मैं ही यह सब लिखते लिखते बोर सा होने लगा हूं......यहीं पर विराम लेता हूं.. मनोरोग विशेषज्ञ की दो चार अन्य बातें फिर कभी शेयर करूंगा।

बात सोचने वाली केवल यह है कि क्या इन सब बातों का आप सब को पहले नहीं पता था, बिल्कुल पता था, मेरे से भी ज़्यादा अच्छे ढंग से पता था, लेकिन काश! हम ये सब छोटी छोटी महत्वपूर्ण बातों को अपने जीवन में भी उतार पाएं। 

एक पान पुराण यह भी....

अभी मैं पेपर पढ़ रहा हूं...पास ही रेडियो बज रहा है....विविध भारती पर किसी ठुमरी बंदिश की बातें चल रही थीं....मेरी समझ में नहीं आतीं ये बातें. लेकिन अचानक पान की बात चली।

प्रोग्राम पेश करने वाला पुरूष ने उस महिला कलाकार से पूछा कि आप तो बनारस से हैं, और बनारस का पान तो सारे जहां में प्रसिद्ध है.. आप का पान के बारे में क्या ख्याल है?

उस फनकार ने बताया कि आप ठीक कह रहे हैं, पान तो बड़े काम की चीज़ है ही, वैसे हम लोग बनारस में जो पान इस्तेमाल करते हैं वह गया से आता है।

आगे उन्होंने बताया कि पान हम गाने वालों के लिए बड़े काम की चीज़ है, इस से गला तर रहता है, हमें ठंडक महसूस होती है..गला सूखता नहीं है।

पान की तारीफ़ करते करते मोहतरमा ने यह भी कहा कि पान तो वैसे भी हर मौके पर शुभ ही माना जाता है....फिर पुराने राजे-महाराजों नवाबों की पान से जुड़ी यादें ताज़ा की गईं।

मोहतरमा ने आगे बताया कि आज कल वैसे बाज़ार में जिस तरह की अनेकों चीज़ें पान में मिला देते हैं, वह देख कर डर लगता है। इसलिए वे कह रही थीं िक हम लोग तो देश-विदेश कहीं भी बाहर जब जाते हैं तो अपना पान स्वयं ही बनाते हैं।

बहुत अफसोस हुआ विविध भारती जैसे रेडियो कार्यक्रम पर पान के बारे में इस तरह की बातें सुन कर। अगर कोई कलाकार पान वान खाता है तो कहीं न कहीं यह उसका पर्सनल निर्णय है......जी हां, पी के के आमिर खान जैसे..(मैंने उसे एक खत भी लिखा था) ..लेिकन इस तरह से पान जैसी घातक चीज को ग्लोरीफाई करने से तो जनता का बहुत नुकसान हो सकता है।

लोग वैसे ही हमारी नहीं सुनते.......हम लोग सुबह से शाम तक पान आदि को छुड़वाने के लिए लोगों को प्रेरित करते रहते हैं......लेख लिखते हैं जिन्हें शायद ५०-६० हज़ार लोग पढ़ते होंगे लेकिन विविध भारती के प्रोग्रामों की अथाह पहुंच के बारे में तो आप सब जानते ही हैं.....करोड़ों लोगों तक ये कार्यक्रम पहुंचते हैं।

हां, एक बात और भी है कि प्रोग्राम पेश करने वालों को भी इन सब बातों के बारे में संवेदनशील होना बहुत ज़रूरी है ताकि लोगों तक ऐसी जानकारी ही पहुंचे जिससे उन्हें लाभ हो।

जितना मैं पान के बारे में जानता हूं कि पान में सुपारी, तंबाकू... ये दोनों या इस में से एक चीज़ तो होती ही है......और दोनों ही आप की सेहत के लिए घातक है।

 यह महिला भी केवल पान ही चबाती थीं...
पिछले दिनों एक बुज़ुर्ग महिला आई थीं......ऐसे ही चेक अप के लिए....यह भी कुछ महीने पहले तक बस पान ही खाती थीं और घर पर ही बना कर.....अब इस घाव पर लगने लगा तो पान चबाना बंद कर रखा है....अब इन्हें क्या तकलीफ़ है, शायद यह मुझे बताने की ज़रूरत नहीं है!!

इस कार्यक्रम के ठीक बाद प्रधानमंत्री मोदी के दिल की बात का विज्ञापन था.....सोच रहा हूं कि प्रधानमंत्री के दिल की बात में यह बात भी दर्ज करवा ही दूं। 

हंसी को तो मत बांधिए..

इस पोस्ट की शुरूआत बहुत ही खूबसूरत गीत से करते हैं.......मैंने कहा फूलों से.......दोस्तो, अपनी तो सुबह सुबह की इबादत का यही ढंग है कि हम इसी तरह के गीत सुन कर मन को खुश कर लिया करते हैं.......आप भी ट्राई करिएगा, मशवरा इतना खराब भी नहीं है..



मैं जब भी पार्क में बहुत से लोगों को इक्ट्ठा हो कर लाफ्टर-थेरेपी करते देखता हूं तो मुझे बड़ा अजीब सा लगता है...यार, यह कैसे हो सकता है..जबरदस्ती हंसना। हंसी तो वह है जो हमारी आत्मा की हंसी होती है, जब हमारा दिल हंसता है.. मुझे याद है कभी एक बार मैंने भी एक ग्रुप में यह काम करना चाहा था, लेकिन पता नहीं दो चार मिनट में बिल्कुल अजीब सा लग रहा था.....हल्कापन महसूस होने की जगह, तनाव महसूस होने लगा था....शायद मैं उस समय जबरदस्ती वाली हंसी लाने की कोशिश कर रहा था......वैसे मुझे लाफ्टर-थेरेपी का कोई अनुभव नहीं है, एक अनाड़ी जैसे विचार रख दिए हैं, कृपया इसे अन्यथा न लें। क्या पता जो बुज़ुर्ग वहां उस समय चंद मिनट हंस-खेल जाते हैं, वे इन्हीं चंद मिनटों की मधुर यादों की वजह से दिन भर की कड़वाहट भी मुस्कुराते हुए निगल पाते हों।

मैं जिस सत्संग में जाता हूं वहां हर बार यह अवश्य याद दिलाते हैं कि भाईयो, बहनो, यह चेहरे पर क्यों बारह बजे हुए हैं, मुस्कुराते आईए और मुस्कुराते जाइए। सुन कर सब के चेहरों पर रौनक आ जाती है। अच्छी बात!!

परसों सोमवार शाम की बात है....मैं अपनी वाइफ के साथ एक मॉल में गया हुआ था....घूमते घूमते वहां पर व्हाट्स-एप पर एक मैसेज आया.....मुझे लगा कि इस के बारे में अपने कॉलेज के दिनों के दोस्त से बात करने के लिए फोन करना ही होगा.....लुधियाना फोन मिलाया.....वह बड़ा बिज़ी बंदा है.......लेकिन उस दिन उस ने तुरंत फोन उठा लिया.....आधा मिनट दबी आवाज़ में बात करने पर कहने लगा..हां, हां, बोल, मैं क्लीनिक से बाहर आ गया हूं।

दोस्तो, बोलना क्या था, शायद १०-१५ मिनट बात हम लोगों ने की होगी........बातें तो बहुत कम, हम दोनों ठहाके ज़्यादा लगाते रहे.....मैं बात करूं तो उस के ठहाके की वजहों से बात पूरी न कर पाऊं और जब वह बात शुरू करता तो उस की बात मेरे ठहाकों में गुम हो जाती......वैसे तो जब दो पंजाबी नार्मल बात भी करते हैं तो कहने वाले कह देते हैं जैसे ये लड़ रहे हों, चलिए, यह पंजाबियों का अपना स्टाईल है...मेरी पत्नी शोरूम से बाहर आईं ...मुझे याद दिलाने की आप की आवाज़ बहुत गूंज रही है.......जब मैंने अपने दोस्त को यह बात बताई तो उस के हंसी के फुव्वारे और ज़ोर से फूट पड़े।

दोस्तो, सच सच बताईए, आज के दौर में कितने लोग ऐसे होते होंगे जिन से आप इतना दिल खोल कर खुल कर इतना हंसी मजाक में बात कर सकते हैं, आप अपनी गिनती करिए, मैंने तो कर ली.......मैं भी केवल तीन-चार दोस्तों से ही इस तरह से बात कर पाता हूं, वरना मैं फोन पर बिल्कुल ही ब्रीफ़ सी बात करने के लिए जाना जाता हूं.....लेिकन इन जब तीन चार लोगों में से कोई फोन पर होता है तो यही समझ नहीं आता कि बातें कहां से शुरू करें और कहां इन्हें विराम दें, आप इन चंद दोस्तों पर अपने से भी ज़्यादा भरोसा करते हैं।

हां, तो परसों ही रात में जब फिर व्हाट्सएप ग्रुप पर हमारे मेसेज आने-जाने लगे तो मैंने पूरी इमानदारी से बिल्कुल स्पॉनटेनिटी से यह बात शेयर की .........बेदी, तेरे से बात कर के मुझे बहुत ही अच्छा लगा, मुझे तो दोस्त ऐसा लगा कि मैंने जैसे आधा घंटा प्राणायाम् कर लिया हो या मैं पंद्रह बीस मिनट जॉगिंग कर ले लौटा हूं......सारे शरीर में इतनी शक्ति-स्फूर्ति का संचार हो गया।

मैं इस बात को बिल्कुल बढ़ा चढा कर नहीं लिख रहा। और ना ही मुझे ऐसा करने का कोई कारण ही दिखता है।

मुझे एक बात और बहुत कचोटती है, छोटी छोटी बच्चियों को यह कह कर कंडीशन किया जाना कि लड़कियां इतना खुल कर नहीं हंसती......मैं समझता हूं कि किसी पर भी इस तरह की बंदिशें लगाना भी सरासर हिमाकत है....जीवन में और है क्या, इस में भी अगर कोई कोड़-ऑफ-कंडक्ट लागू हो गया तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा।

मुझे एक फिल्मी गीत इसलिए पसंद है.......क्योंकि कुछ लाइने इस तरह से हैं......कुछ लोगों के हंसने और गाने पर टिप्पणी करते हुए ..महान् गीतकार आनंद बक्शी कहते हैं.....

ये हंसते हैं लेकिन दिल में..
ये गाते हैं लेकिन महफिल में।।
हम में इन में है फर्क बड़ा, 
हम जीते हैं, ये पलते हैं।।

लीजिए, आप भी इस का लुत्फ़ उठाईए..



मैंने कहीं पढ़ा था और आपने तो देखा भी होगा कि हंसता-मुस्कुराता चेहरा कोई भी ऐसा नहीं होता जो बदसूरत हो।
मैं आज कर अपनी व्यस्तता के कारण टीवी बहुत कम देख पाता हूं.. न के बराबर ... यह जो लॉफ्टर चैनल पर कुछ प्रोग्राम आते हैं......क्या नाम है उस अमृतसर के लड़के का..कपिल शर्मा, और वह हर समय खिलखिलाने वाली भारती.......आज का सभ्य समाज कईं बार कहता दिखता है.....यह सब फूहड़पन है। अरे भाई, है तो हुआ करे, कम से कम इस तरह के प्रोग्रामों की वजह से परिवार के लोग बैठ कर कुछ ठहाके तो एक साथ लगा लेते हैं, वरना आज के दौर में एक साथ बैठने की फुर्सत ही किसे है!!

लेकिन कपिल को मेरा एक मशवरा है.......यह मशवरा मेरा वह मित्र डा बेदी भी अकसर हमारे ग्रुप में देता रहता है िक हमें किसी पे हंसने की बजाए,  सब के साथ मिल कर हंसना चाहिए......मैं तो कहूंगा कि बेस्ट है हम अपने आप पर ही हंसना सीख जाएं, बीसियों कारण तो कम से कम मिल ही जाएंगे। कभी कभी जब कपिल जब अपनी हद लांघता दिखता है.......किसी का मज़ाक उड़ाते दिखता है, तो बुरा लगता है....शायद इसी वजह से मेरी रूचि उस के कार्यक्रम से उठ गई। अपनी अपनी संवेदनाओं की बात है, और कुछ खास नहीं!!

कल मेरे पास एक मां अपने १०-१२ साल के बेटे को लेकर आई.....उस का एक दांत अपनी नार्मल सी जगह से थोड़ा ऊपर नीचे आ गया, जाहिर सी बात है मां ज़्यादा परेशान थी, बेटा बिल्कुल मस्त था. मैंने जब उस की हंसी में इस दांत की भूमिका देखने के लिए उसे हंसने के लिए कहा ......तो झट से उस की मां बोली....इस की यह भी एक समस्या है, यह हंसता बहुत खुल कर है। और इसी वजह से यह दांत भी फिर दिखाई देने लगता है.......मैंने उस बच्चे की तरफ देखा, वह मेरी तरफ ऐसे देख रहा था जैसे कि वह खुल कर हंस कर भी कोई अपराध कर लेता हो, जाहिर है वह हंसी के सही ढंग के बारे में मेरे किसी तुगलकी नुस्खे का इंतज़ार करता दिखा।

मैंने उसे और उस की मां को सब से पहले तो यही बताया कि हंसी को मत बाँध के रखो, जितना खुल के हंसना चाहते हो हंस लिया करें.....ऐसी उन्मुक्त हंसी बहुत कम दिखने लगी है आज कल........रही बात दांत का थोड़ा टेढ़ा वेढ़ा अपनी जगह से इधर उधर होने की बात, वह ठीक कर देंगे लेकिन तब तक अपनी खुली हंसी को दबाने की गलती मत कर देना।

जैसा मैंने उस बच्चे को भी आशीर्वाद दिया......चलिए हम सब के लिए सुबह सुबह यही प्रार्थना करें कि ईश्वर, अल्ला, वाहेगुरू, गॉड ...अपने सभी बच्चों को ऐसे हालात मुहैया कराएं कि सब के चेहरों पर मुस्कान बिखरी रहे......आमीन।

सच में दोस्तो, हंसना-मुस्कुराने भी एक कुदरत का करिश्मा ही है, कितने सारी मांसपेशियों को इस के िलए काम करना पड़ता है, आप सेहतमंद हैं, शरीर से भी और मन से भी, आप की रूह राजी है.......तब कहीं जाकर हंसी फूटती है। आप का क्या ख्याल है?......वैसे यह मेरा ही ख्याल नहीं है, अमिताभ बच्चन भी कुछ इसी तरह का फलसफा ब्यां कर रहे हैं......ज़िंदगी हंसने गाने के लिए हैं पल दो पल.......इस को इतनी बार सुन चुका हूं कि यह याद ही हो चुका है, काश! यह पूरी तरह से लाइफ में भी उतर जाए!!