हां, तो पिछली कड़ी को मैंने यह सवाल पूछ कर बंद किया था कि आप के घर में कितने मैंबर हैं और महीने में नमक की खपत कितनी है !!
दो जवाब मिले हैं....एक बंधु ने बताया है कि परिवार में छः सदस्य हैं और महीने में लगभग डेढ़ किलो नमक इस्तेमाल हो जाता है। दूसरे मित्र ने लिखा है कि घर में चार लोगों के लिये आधे किलो नमक की थैली तीन महीने चलती है।
मैं जब से भी स्कूल-कालेज में पढ़ने लगा तो मुझे यह सब आंकड़े सुन सुन कर बहुत ही ज़्यादा चिड़ सी हुआ करती थी कि यार, यह फलां विटामिन इतने मिलिग्राम----फलां एलीमैंट इतने माइक्रोग्राम और फलां इतने इंटरनैशनल यूनिट्स। मुझे हमेशा से यही लगता रहा है और अभी भी लगता है कि यार, यह तो एक ले-मैन के साथ एक अच्छा खासा मजाक ही हो गया.....अब कौन बंदा है जो अपने काम-धंधे छोड़ कर अपने संतुलित आहार के चक्कर में तरह तरह के तत्वों की नाप-तौल करता फिरे...........यह बिलकुल भी व्यावहारिक है ही नहीं !! हम लोग डाक्टर हैं ---जब हम लोग खुद कभी इस तरह के माप-तोल के चक्कर में पड़े नहीं तो किसी नान-मैडीकल बंदे से हम यह अपेक्षा भी आखिर कैसे कर सकते हैं।
आप किसी को अगर कहें कि देखो तुम केवल रोज़ाना केवल चार ग्राम नमक का सेवन ही कर सकते हो, तो उस का सिरदर्द होना लाज़मी है कि आखिर अब कैसे हिसाब रखें कि मैं चार ग्राम खा रहा हूं या दस ग्राम।
तो मैं अपनी इस श्रृंखला में गुर्दै के रोगों से बचने की बातें कर रहा हूं। गुर्दे के रोगों से बचने के लिये हमें नमक पर पूरा कंट्रोल करना ही होगा। उसी ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान जब नमक की बात चल रही थी तो एक सुझाव आया कि हमें लोगों को सीधे सरल तरीके से संदेश पहुंचाना चाहिये जैसे कि चार जनों के परिवार में महीने भर की नमक की खपत केवल आधा किलोग्राम( 500ग्राम) होनी चाहिये।
अब इस मापदंड से देखा जाये तो जो दो जवाब मुझे मिले हैं उन में से पहले केस में छः जनों के परिवार में नमक की खपत 750 ग्राम से ज़्यादा होनी ही नहीं चाहिये। और दूसरे केस में नमक की खपत काफी कम है----चलिये, उस के बारे में तो हम लोग ज़्यादा कमैंट नहीं कर सकते।
मद्रास में हुई ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान मैं एक महिला नैफ्रोलाजिस्ट के मुंह से यह सुन कर हैरान रह गया कि तमिलनाडू में लोग अकसर रिक्मैंडिड अलाऊंस से दस गुणा ज़्यादा तक नमक खपा जाते हैं। वैसे तमिलनाडू ही क्यों, मुझे तो लगता है कि देश के विभिन्न भागों में नमक का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल होता है।
अब नमक के ज़्यादा इस्तेमाल से हमारे उच्च ब्लड-प्रैशर का बिलकुल सीधा संबंध है। और उसी को कम करने के लिये हमें डाक्टरों के चक्कर में पड़ना पड़ता है, तरह तरह के दूसरे “साल्ट” ( दवाईयां) खाने पड़ते हैं और अगर उन से भी यह ब्लड-प्रैशर कंट्रोल में न आये तो अपने गुर्दै, हृदय आदि के स्वास्थय को जोखिम में डालना पड़ता है।
एक बात का ध्यान रखियेगा कि जब यह चार लोगों के लिये आधा किलो नमक की रिक्मैंडेशन दी गई है तो इस में उस नमक को तो कंसिडर ही नहीं किया गया है जो हम घर के बाहर तरह तरह के ऊल-जलूल स्नैक्स, फास्ट-फूड्स के चक्कर में खाते रहते हैं। तो, कहने से अभिप्रायः यही है कि उस आधा किलो वाली बात को मानने में बहुत दम है।
वहां बात आचार की भी हुई कि आचार में तो नमक ठूंसा हुया होता है । लोग चाहे जितना भी कह लें कि हम तो भई इस नमक को कम करने के लिये आचार को खाने से पहले धो लेते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि इस से कुछ खास फर्क पड़ता नहीं है क्योंकि नमक तो आचार में पूरी तरह से रच-बस गया होता है।
जाते जाते एक बात करनी है......अकसर हम लोग यह तो सुन लेते हैं कि इतने कार्बौ खायें, इतने प्रोटीन खायें ...इतने फलां-2 तत्व लें....लेकिन आखिर इस के बारे में बिल्कुल सही पता कहां से लगे। तो, इस के लिये इंडियन कांउस्लिंग आफ मैडीकल रिसर्च ने एक बहुत ही बढ़िया पुस्तक छापी हुई है .....Nutritive value of Indian foods….इस में सभी तरह के भारतीय खाद्य पदार्थों की पौष्टिकता के बारे में चर्चा की गई है। मैंने शायद 15 साल पहले इसे ICMR, New Delhi से 30-40रूपये में खरीदा था .....इस में इडली, चपाती, वड़ा, सभी इंडियन फ्रूट्स, सभी इंडियन सब्जियों की पौष्टिकता का पूरा विश्लेषण किया गया है कि किस खाद्य में कितने प्रोटीन, कितने कार्बौहाइड्रेट्स , कितनी वसा है, कितना सोडियम है , कितना पोटाशियम है, कितना कैल्शीयम है.....वगैरह वगैरह ...........सब कुछ बहुत ही विस्तार से लिखा गया है।
वैसे एक इडली में एक सौ कैलरीज़ होती हैं। सोच रहा हूं कि किसी दिन बहुत ही प्रचलित खाद्य पदार्थों का एक टेबल उस ICMR वाली किताब से चुराकर आप तक पहुंचाऊंगा।
दो जवाब मिले हैं....एक बंधु ने बताया है कि परिवार में छः सदस्य हैं और महीने में लगभग डेढ़ किलो नमक इस्तेमाल हो जाता है। दूसरे मित्र ने लिखा है कि घर में चार लोगों के लिये आधे किलो नमक की थैली तीन महीने चलती है।
मैं जब से भी स्कूल-कालेज में पढ़ने लगा तो मुझे यह सब आंकड़े सुन सुन कर बहुत ही ज़्यादा चिड़ सी हुआ करती थी कि यार, यह फलां विटामिन इतने मिलिग्राम----फलां एलीमैंट इतने माइक्रोग्राम और फलां इतने इंटरनैशनल यूनिट्स। मुझे हमेशा से यही लगता रहा है और अभी भी लगता है कि यार, यह तो एक ले-मैन के साथ एक अच्छा खासा मजाक ही हो गया.....अब कौन बंदा है जो अपने काम-धंधे छोड़ कर अपने संतुलित आहार के चक्कर में तरह तरह के तत्वों की नाप-तौल करता फिरे...........यह बिलकुल भी व्यावहारिक है ही नहीं !! हम लोग डाक्टर हैं ---जब हम लोग खुद कभी इस तरह के माप-तोल के चक्कर में पड़े नहीं तो किसी नान-मैडीकल बंदे से हम यह अपेक्षा भी आखिर कैसे कर सकते हैं।
आप किसी को अगर कहें कि देखो तुम केवल रोज़ाना केवल चार ग्राम नमक का सेवन ही कर सकते हो, तो उस का सिरदर्द होना लाज़मी है कि आखिर अब कैसे हिसाब रखें कि मैं चार ग्राम खा रहा हूं या दस ग्राम।
तो मैं अपनी इस श्रृंखला में गुर्दै के रोगों से बचने की बातें कर रहा हूं। गुर्दे के रोगों से बचने के लिये हमें नमक पर पूरा कंट्रोल करना ही होगा। उसी ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान जब नमक की बात चल रही थी तो एक सुझाव आया कि हमें लोगों को सीधे सरल तरीके से संदेश पहुंचाना चाहिये जैसे कि चार जनों के परिवार में महीने भर की नमक की खपत केवल आधा किलोग्राम( 500ग्राम) होनी चाहिये।
अब इस मापदंड से देखा जाये तो जो दो जवाब मुझे मिले हैं उन में से पहले केस में छः जनों के परिवार में नमक की खपत 750 ग्राम से ज़्यादा होनी ही नहीं चाहिये। और दूसरे केस में नमक की खपत काफी कम है----चलिये, उस के बारे में तो हम लोग ज़्यादा कमैंट नहीं कर सकते।
मद्रास में हुई ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान मैं एक महिला नैफ्रोलाजिस्ट के मुंह से यह सुन कर हैरान रह गया कि तमिलनाडू में लोग अकसर रिक्मैंडिड अलाऊंस से दस गुणा ज़्यादा तक नमक खपा जाते हैं। वैसे तमिलनाडू ही क्यों, मुझे तो लगता है कि देश के विभिन्न भागों में नमक का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल होता है।
अब नमक के ज़्यादा इस्तेमाल से हमारे उच्च ब्लड-प्रैशर का बिलकुल सीधा संबंध है। और उसी को कम करने के लिये हमें डाक्टरों के चक्कर में पड़ना पड़ता है, तरह तरह के दूसरे “साल्ट” ( दवाईयां) खाने पड़ते हैं और अगर उन से भी यह ब्लड-प्रैशर कंट्रोल में न आये तो अपने गुर्दै, हृदय आदि के स्वास्थय को जोखिम में डालना पड़ता है।
एक बात का ध्यान रखियेगा कि जब यह चार लोगों के लिये आधा किलो नमक की रिक्मैंडेशन दी गई है तो इस में उस नमक को तो कंसिडर ही नहीं किया गया है जो हम घर के बाहर तरह तरह के ऊल-जलूल स्नैक्स, फास्ट-फूड्स के चक्कर में खाते रहते हैं। तो, कहने से अभिप्रायः यही है कि उस आधा किलो वाली बात को मानने में बहुत दम है।
वहां बात आचार की भी हुई कि आचार में तो नमक ठूंसा हुया होता है । लोग चाहे जितना भी कह लें कि हम तो भई इस नमक को कम करने के लिये आचार को खाने से पहले धो लेते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि इस से कुछ खास फर्क पड़ता नहीं है क्योंकि नमक तो आचार में पूरी तरह से रच-बस गया होता है।
जाते जाते एक बात करनी है......अकसर हम लोग यह तो सुन लेते हैं कि इतने कार्बौ खायें, इतने प्रोटीन खायें ...इतने फलां-2 तत्व लें....लेकिन आखिर इस के बारे में बिल्कुल सही पता कहां से लगे। तो, इस के लिये इंडियन कांउस्लिंग आफ मैडीकल रिसर्च ने एक बहुत ही बढ़िया पुस्तक छापी हुई है .....Nutritive value of Indian foods….इस में सभी तरह के भारतीय खाद्य पदार्थों की पौष्टिकता के बारे में चर्चा की गई है। मैंने शायद 15 साल पहले इसे ICMR, New Delhi से 30-40रूपये में खरीदा था .....इस में इडली, चपाती, वड़ा, सभी इंडियन फ्रूट्स, सभी इंडियन सब्जियों की पौष्टिकता का पूरा विश्लेषण किया गया है कि किस खाद्य में कितने प्रोटीन, कितने कार्बौहाइड्रेट्स , कितनी वसा है, कितना सोडियम है , कितना पोटाशियम है, कितना कैल्शीयम है.....वगैरह वगैरह ...........सब कुछ बहुत ही विस्तार से लिखा गया है।
वैसे एक इडली में एक सौ कैलरीज़ होती हैं। सोच रहा हूं कि किसी दिन बहुत ही प्रचलित खाद्य पदार्थों का एक टेबल उस ICMR वाली किताब से चुराकर आप तक पहुंचाऊंगा।