इस सप्ताह के ब्रिटिश मैडीकल जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अब कम उम्र के लोगों में भी हेयर-डाई का इस्तेमाल बढ़ने से इस से होने वाले एलर्जिक रिएक्शन के केस भी बढ़ रहे हैं।
इस से चेहरे की चमड़ी पर सूजन (dermatitis)आ सकती है और कभी कभी तो चेहरा सूज भी सकता है।
रिपोर्ट में यह कहा गया है कि दो-तिहाई हेयर-डाईयों में पैराफिनाइलीनडॉयामीन( para-phenylenediamine…PPD) और उस से ही संबंधित पदार्थ होते हैं। बीसवीं सदी में इस पीपीडी (PPD) से होने वाली एलर्जी एक ऐसा गंभीर समस्या बन गई कि हेयर-डाई में इस के इस्तेमाल पर जर्मनी, फ्रांस एवं स्वीडन नें प्रतिबंध लगा दिया गया।
आजकल प्रचलित यूरोपीय कानून के अंतर्गत हेयर-डाई में पीपीडी की मात्रा 6प्रतिशत तक रखने की अनुमति है। चिंता की बात यह भी है कि इन बालों को स्थायी तौर पर रंग करने के लिए इस पीपीडी का कोई ढंग का विकल्प मिल नहीं रहा है।
चमड़ी रोग विशेषज्ञों के अनुसार पीपीडी युक्त हेयर-डाई के द्वारा पैच-टैस्ट करने पर पाज़िटिव टैस्ट के केसों में लगातार वृद्धि हो रही है। लंदन में किए गये एक सर्वे के अनुसार पिछले छःसालों में इस प्रकार के चर्म-रोग( contact dermatitis) की फ्रिक्वैंसी दोगुनी हो कर 7.1प्रतिशत तक पहुंच गई है। दूसरे देशों में भी इसी ट्रेंड को देखा गया है।
मार्कीट रिसर्च से यह भी पता चला है कि ज़्यादा लोग अब बालों को रंग करने लगे हैं और वह भी कम उम्र में ही। 1992 में जापान में किए गए एक सर्वे से पता चला था कि 13प्रतिशत हाई-स्कूल की छात्राओं , 6प्रतिशत बीस से तीस साल की उम्र की महिलाओं तथा इसी उम्र के 2 प्रतिशत पुरूषों ने हेयर-कलर के इस्तेमाल की बात स्वीकारी थी , लेकिन 2001 तक पहुंचते पहुंचते इन तीनों ग्रुपों का अनुपात 41%, 85% तथा 33% तक पहुंच चुका है।
यहां तक कि हाल ही में बच्चों में हेयर-डाई से होने वाले गंभीर रिएक्शनों की भी रिपोर्टें प्राप्त हुई हैं।
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अब समय आ गया है जब इन हेयर-डाई की सेफ्टी एवं इन की कंपोज़िशन पर चर्चाएं होनी चाहिएं। चिंता की बात यह भी बताई गई है कि मरीज़ों को इन के दुष्परिणामों का पता होते हुए भी वे इनको इस्तेमाल करने से बाज नहीं आते।
मीडिया डाक्टर की टिप्पणी---- आप ने यह तो देख लिया कि पश्चिमी देशों में इस हेयर-कलर के इस्तेमाल ने कितनी चिंताजनक स्थिति उत्पन्न कर दी है। तो, क्या अपने यहां सब कुछ ठीक ठाक है....बिल्कुल नहीं। हमें तो यह भी नहीं पता कि जिस मेंहदी को इस देश में इतने चाव से बालों की रंगाई के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, उस में कौन कौन से कैमीकल इस्तेमाल किए जा रहे हैं और कितनी मात्रा में। ब्रिटेन में लोगों को पता तो है कि इस हेयर-कलर में इतनी प्रतिशत पीपीडी है, लेकिन हमें तो कुछ पता भी नहीं......लेकिन ये सब बालों को रंग करने के लिए बिकने वाली मेहंदीयां ( उदाहरणतः काली मेहन्दी के पैकेट) खूब धड़ल्ले से बिक रही हैं। इन में ज़रूर ही कोई कैमीकल मिले होते हैं , अन्यथा मेहंदी कभी (हिंदी फिल्मी गीतों के इलावा) इतना रंग छोड़ती है क्या ....और काली मेहंदी, यह कौन सी बला है , मुझे तो बिलकुल नहीं पता कि यह कहां उगती है, मैं तो यही समझता हूं कि इसे इसी तरह के कैमीकल वगैरह डाल कर ही काला किया होता है। अगर देश में कहीं काली मेंहदी की पैदावार होती है तो मुझे प्लीज़ इस की सूचना दीजिएगा। देश की अधिकांश जनता इन सस्ते उत्पादों से ही काम चला रही है...बस वे इन से होने वाले नुकसानों से अनभिज्ञ हैं या कहूं कि किसी हद तक मजबूर भी हैं।
लेकिन देश में बिकने वाले महंगे हेयर-कलर्ज़ की भी हालत कुछ इतनी अच्छी नहीं है। मैंने एक ऐसा ही बहुत बड़ी कंपनी का पैक देखा है...खूब महंगा भी है। लेकिन डिब्बे पर , पैम्फलेट पर कहीं भी नहीं लिखा कि इस हेयर-डाई में कौन से कैमीकल्स मौज़ूद हैं। केवल ट्यूब के ऊपर बहुत ही चालाकी से अंग्रेज़ी में लिखा हुया है कि इस में पैराफिनाइलीनडायामीन है और साथ में उस की मात्रा बताई गई है। बड़ी इंटरएस्टिंग बात यह है कि पैम्फलेट को तो अंग्रेज़ी के इलावा हिंदी , गुजराती और दक्षिण भारतीय भाषाओं में भी छपवाया गया है, लेकिन यह जो टयूब के ऊपर लिखा है ...पीपीडी वाली बात....यह केवल अंग्रेज़ी में ही लिखी है ( हां, हां, बिल्कुल उस मशहूर सी मच्छर भगाने वाली दवा की पैकिंग की तरह जिस में सारी जानकारी शायद भारत की अधिकांश क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध करवाई जाती है) ...मैं तो इस तरह के पैम्फलेट जब भी देखता हूं तो यही सोचता हूं कि जब इन कंपनियों को अपने ग्राहकों की इतनी फिक्र है( या कहूं कि सेल्स की फिक्र है) तो पता नहीं इन पान मसालों एवं गुटखा बेचने वालों को क्यों वैधानिक चेतावनी ढंग से देते समय क्यों सांप सूंघ जाता है( चलिए , किसी दूसरी पोस्ट में यह पर्दा-फाश भी करूंगा कि किस तरह ये गुटखे-पान मसाले वाले वैधानिक चेतावनी की धज्जियां उड़ा रहे हैं।)
हां, तो बात उस महंगी वाली हेयर-कलर की पैकिंग की हो रही थी , एक मज़ेदार बात यह भी है कि उस की पैकिंग के बाहर ही छोटे छोटे अक्षरों में वैसे यह चेतावनी भी दी गई है कि इस के इस्तेमाल के 48 घंटे पहले आप स्किन एलर्जी टैस्ट ज़रूर कर लें। लेकिन प्रैक्टीकल रूप में देखें तो कितने लोग घर में यह टैस्ट करते होंगे या कितने हेयर-ड्रैसर इस बात को मान कर ग्राहक का टैस्ट कर के उसे 48 घंटे बाद आने की सलाह देते हैं। नहीं हो रहा ना यह सब कुछ, यह तो आप भी मानते हैं । एक चेतावनी और दिखती है कि इन कलर्ज़ को आंखों में न लगने दें, रंग आंखों में लग जाये तो तुरंत गुनगुने पानी से धोयें , इससे अपनी बरौनियों, भौहों को न रंगे क्योंकि इसके ऐसे इस्तेमाल से अंधापन हो सकता है।
चिंता की बात यह भी तो है कि टैलीविज़न में देख-देख कर छोटे छोटे बच्ची –बच्चियां भी अब इन तरह तरह के रंगों के हेयर-कलर्ज़ का इस्तेमाल करने लगे हैं।
तो, अब यह सब कुछ लिखने के पश्चात मेरा सुझाव यही है कि ज्ञान दत्त पांडे जी अपनी बुधवारीय पंकज अवधिया जी की अतिथि पोस्ट में इस हेयर-कलर की कुछ देशी (जड़ी-बूटी पर आधारित) विधियों पर प्रकाश डालें.....हम सब को इस का इंतज़ार रहेगा। आप भी ज्ञान दत्त जी से तथा पंकज अवधिया जी से ऐसा आग्रह कीजिए।