गुरुवार, 28 जनवरी 2016

लखनऊ महोत्सव ...१


आज सुबह लखनऊ महोत्सव की तरफ़ जाने की इच्छा हुई..घर के बिल्कुल पास ही में है। वहां पर कुछ तस्वीरें लीं जो यहां इस पोस्ट में शेयर कर रहा हूं...ज्यादा बातें नहीं करूंगा...आज सुबह ही किसी पेपर से यह ज्ञान हुआ है कि बातें कम करनी चाहिए... 



इस जोनल पार्क में मैं जैसे ही बिजली पासी किले की तरफ़ से दाखिल हुआ तो यह टॉवर देख कर हैरानी हुई...दूर से देख कर यही लगा कि इतने कम समय में इतना बड़ा टॉवर कैसे तैयार हो गया। हैरानगी हो रही थी ...लेकिन जैसे जैसे मेैं इस के पास पहुंचता चला गया, वह हल्की फुल्की उत्सुकता में बदलती गई...ऐसा लगने लगा कि यह कोई माडल होगा...

स्वस्थ भारत मिशन कार्यक्रम के अंतर्गत जगह जगह पर देखा कि सुलभ इंटरनेशनल ने इस तरह के कूड़ादान तो रखे ही हैं, साथ में सामाजिक संदेश भी लगा दिये हैं...साधुवाद।
मुझे पिछले दो वर्षों से इस लखनऊ महोत्सव में जाने का मौका मिल रहा है...मुझे वहां जाना और टहलना-घूमना अच्छा लगता है लेकिन एक समस्या तो बहुत थी ... हर तरफ़ मिट्टी के गुब्बार उड़ा करते थे... इस मिट्टी की वजह से आने वाले लोगों का हाल बेहाल हुआ करता था...लेिकन मैं देख रहा था पिछले कुछ महीनों से कि इस बार की तैयारियों में यहां इस मैदान में सड़कें तैयार की जा रही थीं..इसलिए अगर आप मिट्टी के गुब्बार से डर रहे हैं तो अब की बार ऐसी कोई बात है ही नहीं।
केवल सड़कें ही नहीं, अब यहां पर पार्किंग की भी कोई समस्या नहीं होगी क्योंकि पार्किंग स्थल को बहुत ही व्यवस्थित कर दिया गया है। अगर आप अपने वाहन पर आ रहे हैं तो आप के लिए उस को पार्क करने का कोई झंझट नहीं होगा।

जिस जगह पर भी  वृद्ध जनों या दिव्यांग जनों के लिए कुछ विशेष सुविधा रहती है, उसे देखना ही अपने आप में एक सुखद अहसास रहता है। हरेक का मन होता है कि मेलों में जा कर रौनक-मेले का आनंद लिया जाए।
कुछ लोगों ने आग तापने का ऐसा बढ़िया जुगाड़ कर रखा था..

खाने पीने के बहुत से स्टाल...हर तरह का खाना...बिरयानी, लखनवी कबाब..भेल पूरी और पता नहीं क्या क्या...हां, पिछली बार की मेरठ की खताईयां नहीं भूली अभी भी...

इस महोत्सव में पुस्तक मेले का आयोजन तो है ही, शायद रोज़ाना साहित्यिक संगोष्ठियां भी हुआ करेंगी...जैसा कि इस पंडाल से पता लग रहा है. वहां पर मौजूद स्टॉफ से इस के बारे में पूछा तो उसे इस के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।



इस टावर के बिल्कुल पास जाने से ही इस भेद से परदा खुल गया....


  मेरे फेवरेट रेडियोसिटी का भी अड्डा तैयार हो चुका है।



इस महोत्सव का यह मेन हाल है ....इस में हज़ारों लोगों के बैठने की सक्षमता है।


जब मैं इस महोत्सव स्थल में घुसा तो पता चला कि अभी तो विभिन्न स्टालों वाले अपनी अपनी दुकानें सजाने में जुटे हैं... होता है शुरूआती एक दो िदन तो किसी भी आयोजन को गर्म होने में लग जाते हैं... वैसे कल इस महोत्सव की शुरूआत हो चुकी है.. और शायद यह अगली ७ फ्रेबुवरी तक चलेगा...

अच्छा लगता है...मेले यूं ही लगते रहें, लोग जश्न मनाते रहें, आपस में प्रेम से रहें, सद्भाव बनाए रखें....यही जीवन है... इसी बात पर मुझे मेला फिल्म का यह गीत ध्यान में आ गया...यह नई वाली मेला फिल्म है...