शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

गुटखा, देसी दारू और तंबाकू दो महीने में छूट गये


आज सुबह मेरे पास एस ३०-३५ वर्ष का आदमी आया था--अपनी छः साल की बेटी के इलाज के लिए। जब वह मेरे से बात कर रहा था तो मुझे उस का नीचे वाला होंठ एक तरफ़ से उठा हुआ दिखा। मैंने पूछा कि यहां क्या हो गया, मुझे नहीं लगा था कि उस ने तंबाकू दबाया हुआ है...शायद, उसने समझा कि मुझे पता है कि तंबाकू ही है।

इसीलिए उस ने तुरंत कहा कि कुछ नहीं है, सर, सॉरी। ऐसे ही फुंसी सी है। मैंने पूछा...तंबाकू है ना?... कहने लगा-- हां। मैंने इतना ही कहा कि क्यों इन सब के लफड़े में पड़ते हो।

उस बच्ची का इलाज होने के बाद मैंने उस आदमी से कहा कि आप बाहर जा कर कुल्ला कर के आएं और मैं फिर आप के मुंह के अंदर देखना चाहूंगा। वह तुंरत गया और कुल्ला कर के लौट आया....उस के नीचे के होंठ के अंदर का मांस सफ़ेद पड़ा हुआ था। मैंने उसे शीशे के पास जा कर दिखा भी दिया... और वह आज ही से तंबाकू के इस्तेमाल को लात मारने के लिए राजी भी हो गया।

झट से उसने तंबाकू का पैकेट जेब से निकाला और डस्टबिन में फैंक दिया......मुझे बड़ी खुशी हुई कि चलो, आज का दिन बन गया, एक और बच गया!

फिर वह जाते जाते दो मिनट में अपनी बात कह गया....उसने कहा-

"डाक्टर साहब, मैं दस साल तक देसी शराब पीता था... दो महीने पहले जब लखऩऊ में देसी नकली शराब से बहुत से लोग मरे थे, उन्हीं दिनों की बात है कि मैंने एक दिन ठेके से देसी दारू का क्वार्टर लिया, उसे चढ़ा लिया... तुरंत मेरा मुंह लाल हो गया...मैं जाते समय देसी का एक क्वार्टर घर में पीने के लिए भी ले लेता था, उस दिन भी लिया... घर जाकर मैं एक कमरे में गया, उसे भी चढ़ा लिया, लेिकन उसे पीते ही मुझे अजीब सा महसूस होने लगा, आंखों के आगे अंधेरा सा छा लगा.........बस, उस दिन से दारू पीने से तौबा कर ली और आज तक नहीं छुई।  
मैं गुटखा उस तरह का खाता था ...जिसमें मसाला अलग आता था, और तंबाकू अलग। मुझे उस में तंबाकू ज़्यादा मिला कर अच्छा लगता था, कईं बार तंबाकू-मसाला बेचने वालों से कहासुनी हो जाती थी जब मैं उन्हें कहा करता था कि आप तंबाकू कम वाला पैकेट देते हैं। उन्हीं दिनों एक दिन ऐसी ही एक तकरार से मैं इतना खफ़ा हो गया कि उस दिन से यह गुटखा बंद कर दिया।  
बस, डाक्टर साहब, आजकल यह तंबाकू चबाना ही चल रहा था. जिसे आज हमेशा के लिए त्याग दिया।"
आपने इस सज्जन की बातों से देखा कि जब हमें किसी नशे से दिल से नफ़रत हो जाती है तो कोई भी बात फिर उसे छोड़ने में हमारे आड़े नहीं आती।

यह पोस्ट मैंने इसलिए लिखी है कि इस तरह की चीज़ों का सेवन करने वालों का हौंसला बुलंद हो कि जब आप कुछ ठान लेते हैं तो फिर यह प्रबल इच्छा शक्ति (will power) ही है जो बड़े से बड़े काम करवा लेती है।

एक बात और करनी है पाठकों से......जो भी इस तरह के पदार्थ खाते हैं उन्हें अपने मुंह का स्वयं निरीक्षण भी करते रहना चाहिए, अच्छी रोशनी में आइने के सामने खड़े होकर देखिए कि कहीं कोई घाव, कोई सफेद दाग तो नहीं है, अगर नहीं है तो उसी दिन से ये सब नशे छोड़ दें, और अगर है तो अपने चिकित्सक से तुंरत संपर्क करे।

Stay safe---stay healthy.....stay blessed..
Take care!