शुक्रवार, 14 नवंबर 2008

वेसे है तो आज विश्व-डायबिटिज़ दिवस लेकिन..........

जी हां, आज विश्व मधुमेह दिवस है तो क्या आज के दिन इस बीमारी के बारे में शुभ-शुभ बातें ही करनी होंगी ?--- लेकिन मेरा मन कुछ और ही कह रहा है। मैं जितना इस बीमारी के इलाज की धज्जियां उड़ती देख रहा हूं, वह मैं ही जानता हूं। दोषारोपण? –क्या वह यहां भी करना ही होगा ? –वैसे मैं तो अभी तक इस का फैसला ही नहीं कर पाया कि इस के बीमारी के बुरे प्रबंधन का दोष किस के सिर पर मढूं---मरीज़ों पर, चिकित्सा व्यवस्था पर, मरीज़ों एवं मैडीकल ढांचे की परिस्थितियों पर !!

सब से अफसोसजनक बात यही है कि जो लोग इस बीमारी से जूझ रहे होते हैं उन की ठीक तरह से मॉनीटरिंग हो ही नहीं पाती है। इस के विभिन्न कारणों की तरफ़ देखना होगा। किसी मरीज़ को पता है कि उसे मधुमेह है ----और किसी डाक्टर ने उसे एक टेबलेट पर डाल दिया है। अब बहुत बार देखने में आया है कि वह सालों-साल बिना अपनी ब्लड-शूगर की जांच करवाये या तो उसी टेबलेट को उतनी ही मात्रा में लेता रहेगा वरना कुछ समय बाद जब उसे “ ठीक सा लगने लगेगा” तो उस टेबलेट को बिना किसी डाक्टरी सलाह के बंद कर देगा । शूगर के लिये ही नहीं बहुत सी तकलीफ़ों के लिये मरीज़ों के दवा बंद करने के कारण हमारे देश में कुछ इस तरह के होते हैं----- गोली खाने की आदत पड़ जायेगी, गोली गर्म होती है, लगातार गोली खाने से इस की खुराक बढ़ानी पड़ जायेगी, साथ वाली किसी पड़ोसन की शूगर तो बिना दवाई के ही गायब हो गई थी, देसी दवाई शुरू करनी है इसलिये अंग्रेज़ी दवाई तो बंद करनी ही होगी-------और भी इसी तरह के बहुत से कारण हैं डायबिटिज़ की दवाई अपने आप बंद करने के।

और एक ध्यान आ रहा है ---बहुत से मरीज़ आ कर बतलाते हैं कि डाक्टर ने तो मुझे इंसुलिन के टीके रोज़ाना लेने के लिये कहा हुआ है लेकिन मैं नहीं पड़ता इस चक्कर में ----कौन इस मुसीबत को मोल ले---एक बार लेने शुरू कर दिये तो हमेशा के लिये लेने ही पड़ेंगे। इसलिये मैं तो परहेज से ही काम चला रहा हूं और साथ में फलां दवाई की आधी गली कभी-कभी ले लेता हूं -----अब इन मरीज़ों को यह समझना भी बहुत ही ज़रूरी है कि अगर ये वह वाली आधी गोली भी नहीं लेंगे तो भी होगा कुछ नहीं ---बस वे शूगर-रोग से संबंधित तरह तरह की जटिलताओं की गिरफ्त में आ जायेंगे --- या तो दृष्टि किसी दिन जवाब दे जायेगी, गुर्दे पक्के तरह पर हड़ताल पर चले जायेंगे, हार्ट प्राब्लम हो जायेगी, वरना डॉयबिटिक पैर जैसी किसी समस्या का पंगा पड़ जायेगा और पैर या पैर का पंजा काटना पड़ सकता है ---मैं परसों रेडियो पर पीजीआई,चंडीगढ़ के एक विशेषज्ञ की एक इंटरव्यू सुन रहा था कि उन के संस्थान में चालीस में से उनचालीस पैर या पैर के पंजे आप्रेशन से काटने का कारण भी डायबिटिज़ ही होता है।

पिछले पैराग्राफ में ज़िक्र हुआ है देसी दवा का ----इस देसी दवा से मतलब है कि कुछ लोग किसी नीम-हकीम से कुछ पुड़ियां सी ले आते हैं जो बिल्कुल झूठा सा वायदा साथ में कर देता है कि इन के सेवन से शूगर-रोग जड़ से ही खत्म हो जायेगा। लेकिन वह सरासर फरेब कर रहा है ---ऐसी कोई पुड़िया, कोई तिलस्माई पुड़िया बनी ही नहीं है जिस से यह तकलीफ़ हमेशा के लिये पुड़िया घोल कर पी लेने से नष्ट हो जाये। जितनी भी आप कल्पना कर सकते हैं उतना ही नुकसान ये देसी दवाईंयां मरीज़ का करती हैं और उसे पता ही नहीं चलता। बहुत बार तो इन पुड़ियों में इन नीम-हकीमों ने बहुत से नुकसान-दायक कैमिकल डाले होते हैं जो शरीर में तरह तरह की व्याधियां पैदा करते हैं । और अगर खुशकिस्मती से कहूं या गलती से आप इन व्याधियों से बच भी गये तो भी ये देसी दवाईयां किसी के शक्कर रोग को इनडायरैक्टली बढ़ावा तो दे ही रही हैं ----किसी तरह का कोई टैस्ट हो नहीं रहा, टॉरगेट-आर्गनज़ को क्या हो रहा है उन की किसे फिक्र है नहीं ----सो, बहुत से मरीज़ इन्हीं देसी दवाईयों की वजह से शूगर रोग से संबंधित बहुत सी मुश्किलें मोल ले डालते हैं। कृपया इस तरफ़ ध्यान दें कि देसी दवा से मेरा मतलब है कि नीम-हकीम डाक्टरों द्वारा दी गई थर्ड-क्लास दवाईयां (अगर इन्हें हम दवाईयां कह सकें तो !!)

लेकिन अगर कोई आयुर्वैदिक पद्धति से या किसी अन्य भारतीय चिकित्सा पद्दति के द्वारा ही अपना इलाज करवाना चाहता है तो उसे उस पद्धति के किसी विशेषज्ञ के पास जाना ही होगा और उन के कहे अनुसार दवा एवं जीवन-शैली में बदलाव करने ही होंगे।

कुछ बातें लोग आ कर बताते हैं कि वे कहीं से पढ़ कर, किसी की सलाह से जामुन की गुठली को पीस कर ले रहे हैं, करेले का जूस ले रहे हैं, और डोडिया-पनीर रात को भिगो कर सुबह वह पानी पे रहे हैं-----अगर आप इस तरह का कोई काम भी कर रहे हैं या करने का विचार बना रहे हैं तो किसी आयुर्वैदिक डाक्टर के परामर्श से, उनकी अनुमति से करेंगे तो ही उचित है क्योंकि वह साथ ही साथ आप के ब्लड-शूगर के स्तर का भी ध्यान रखेंगे।

यह तो हो गई बात दवाईयों की, अब आते हैं ---मधुमेह की नियमित मॉनीटरिंग की । विभिन्न कारणों की वजह से यह भी ठीक तरह से हो नहीं पा रहा है। इस में काफी हद तक मरीज़ों की अज्ञानता का भी दोष है-----वास्तव में, काफी नहीं कुछ हद तक ही। बिना मॉनीटरिंग के कैसे दवा को बढ़ाया, घटाया जायेगा, रोग के कंट्रोल के लिये कैसे और निर्देश दिये जायेंगे ।

पिछले महीनों में शूगर रोग पर किस तरह का कंट्रोल रहा- इस की जांच के लिये ग्लाईकेटेड-हीमोग्लोबिन (glycated haemoglobin) नाम से एक टैस्ट तो है लेकिन इस के बारे में बहुत ही कम लोग, बहुत ही ज़्यादा कम लोग जानते हैं और जो जानते भी हैं वे इसे करवाने की ज़रूरत नहीं समझते हैं। वैसे यह टैस्ट लगभग 200 रूपये के आसपास हो जाता है। इस ब्लाग पर इस विषय पर इस नाम से एक पोस्ट है---अब हो पायेगी डायबिटिज़ की और भी बढ़िया स्क्रीनिंग।

यह ग्लाईकेटेड-हिमोग्लोबिन की बात दूर, अकसर कुछ लोगों में अगर खाली पेट और खाने के बाद ब्लड-शूगर चैक करवाने को कहा जाता है तो कईं लोग इस को भी नहीं मानते, या तो खाली पेट वाला टैस्ट ही करवा लेते हैं ---यह कहते हुये कि अब कौन दूसरे टैस्ट के लिये इंतज़ार करे, वरना कईं बार खाये-पिये ही टैस्ट करवा लेते हैं –यह कहते हुये कि हम से भूख सहन नहीं हो पाती। इन्हीं कारणों की वजह से ही इन मरीज़ों की सही मॉनीटरिंग हो ही नहीं पाती।

अच्छा बात बार बार हो रही है मॉनिटरिंग की ----हमें यह ध्यान रहे कि ब्लड-शूगर के स्तर की नियमित मॉनिटरिंग के साथ साथ शूगर के मरीज के टार्गट अंगों की भी नियमित जांच होनी चाहिये ----अपने चिकित्सक की सलाह अनुसार टार्गट अंगों की कार्य-प्रणाली का आकलन करने हेतु ये टैस्ट होते हैं। पहले ज़रा इस के बारे में बात करें कि यह जो शब्द टार्गट अंग है, इस का क्या मतलब है---इस का मतलब है कि जिन अंगों पर शूगर रोग के बुरे प्रभाव सब से ज़्यादा पड़ते हैं ---जैसे कि किडनी( गुर्दे), हार्ट, आंखें, नसें आदि -----इन की नियमित जांच के साथ साथ इन के लिये कुछ टैस्ट जैसे कि किडनी फंक्शन टैस्ट, ईसीजी, ब्लड-प्रैशर की नियमित जांच, लिपिड-प्रोफाइल टैस्ट, आंखों का नियमित परीक्षण, किसी न्यूरोलॉजिस्ट के द्वारा चैक-अप शामिल हैं----- किसी अमेरिकन वैब-साइट मैं पढ़ रहा कि शूगर के रोगियों में आंखों का चैक-अप तो एक साल की बजाये हर छः महीने के बाद ही होना चाहिये ताकि आंखों की समस्याओं का प्रारंभिक अवस्था में ही पता चल सके और उन की मैनेजमैंट की जा सके।

बातें तो बहुत हो गईं ----लेकिन अब असलियत के फर्श पर उतर ही आता हूं। क्या आप को लगता है कि इस तरह की नियमित मॉनीटरिंग किसी बिल्कुल आम आदमी के बस की बात है ---सरकारी हस्पताल मरीज़ों के लोड के कारण ठसा-ठस भरे हुये हैं----काम धंधा छोड़ कर कितने लोग इन लंबी कतारों में लग सकते हैं, कितने लोग महंगी महंगी दवाईयां खरीद पाते हैं, महंगे टैस्ट करवा पाते हैं, ये चाय में नकली मीठे की गोलियां इस्तेमाल कर सकते हैं ------ये सब सोचने की बाते हैं । और अगर आप सोच रहे हैं कि इस डायबिटिज़ में एक आम आदमी कैसे घुस आया ----तो यह अब हो चुका है। वह भी इस की चपेट में आ चुका है।

कोई समाधान ?--- सब से महत्वपूर्ण बात वही है कि कैसे भी हो अपने वजन को कंट्रोल करने की पूरी कोशिश की जाये----बिना जिह्वा के स्वाद पर पर कंट्रोल किये यह संभव है ही नहीं, जंक-फूड का नामो-निशां अपनी लाइफ से मिटाना होगा---और इन सब के साथ साथ रोज़ाना सैर तो करनी ही होगी ----चाहे मन करे या न करे----एक बार पैदल भ्रमण करने की आदत पड़ जाये तो फिर अच्छा भी लगने लगेगा। बहुत से लोग अपनी विवशता प्रगट करते हैं कि वे चल ही नहीं पाते, क्या करें !!--- उन्हे सलाह है कि अपने चिकित्सक से पूछ कर खड़े खड़े ही किसी एक्सर-साईकिल को ही चला लिया करें-----बहुत ही , बहुत ही ,बहुत ही, ..........मेरे इस तीन बार लिखे को तीस लाख बार जानिये कि वैसे तो सब के लिये ही लेकिन शूगर के रोगी के लिये भ्रमण निहायत ही ज़रूरी है।

चलिये,अब विश्राम लेते हैं क्योंकि मेरा भी भ्रमण के लिये जाने का समय हो गया है – रोज़ाना आधा घंटा भ्रमण करने की आदत डाल रहा हूं ---और इस विश्व डायबिटिज़ दिवस पर सारे विश्व के लिये यही मंगलकामना करता हूं कि शूगर के सब रोगियों की शूगर पूरी तरह से कंट्रोल में रहे, और उन के टार्गेट अंग पूरी तरह से फिट रहें और वे भरपूर ज़िंदगी का लुत्फ़ उठाएं और जो बंधु प्री-डायबिटिक्ट हैं वे अपनी जीवन-शैली में उचित परिवर्तन समय रहते कर लें ताकि उन्हें आगे चल कर किसी तरह की परेशानी न हो -----और सारे विश्व के लिये शुभकामनायें कि उन का वज़न कंट्रोल में रहे, वे जंक-फूड से मुक्त हो जायें, अपने नमक की खपत पर पूरा कंट्रोल कर लें और सारे विश्व-बंधुओं को रोज़ाना एक-आध घंटा टहलने का चस्का पड़ जाये।

जाते जाते यही लिखना चाह रहा हूं कि मैं इतनी बातें लिखते लिखते उस महान योगी ---बाबा रामदेव को कैसे भूल गया ---उन की बातें अनुकरणीय हैं -----अगर कोई बंधु हर तरह से परेशान हैं तो बाबा रामदेव की कही बातें अपने जीवन में उतारनी शुरू कर दें-----अवश्य कल्याण होगा। मैं क्या सारा संसार उन से बहुत प्रभावित है ----वे बिल्कुल निराश, हताश लोगों की ज़िंदगी में आशा का दीप जला रहे हैं , आखिर इस से बड़ी बात क्या हो सकती है !!